22 नवम्बर, 2012 को ‘आंतकवाद के खिलाफ़ जंग’ के नाम पर, देश भर में मुस्लिम नौजवानों को राज्य के द्वारा गैर-कानूनी तरीके से गिरफ्तार करके पीडि़त करने और उनके भविष्य को बर्बाद करने के खिलाफ़ संसद पर जमात-ए-इस्लामी हिंद की अगुवाई में एक संयुक्त रैली आयोजित की गई।
इस रैली में, जामिया मिलिया, हमदर्द यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू और एएमयू सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में
22 नवम्बर, 2012 को ‘आंतकवाद के खिलाफ़ जंग’ के नाम पर, देश भर में मुस्लिम नौजवानों को राज्य के द्वारा गैर-कानूनी तरीके से गिरफ्तार करके पीडि़त करने और उनके भविष्य को बर्बाद करने के खिलाफ़ संसद पर जमात-ए-इस्लामी हिंद की अगुवाई में एक संयुक्त रैली आयोजित की गई।
इस रैली में, जामिया मिलिया, हमदर्द यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू और एएमयू सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ने वाले सैकड़ों छात्रों ने भाग लिया।
देश के कई भागों में लोग, राज्य के द्वारा मुस्लिम नौजवानों को लगातार निशाना बनाये जाने के खिलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
रैली के बाद सभा आयोजित की गई।
सभी वक्ताओं ने एक लंबे समय से देश भर में चल रहे ‘आतंकवाद के खिलाफ़ जंग’ के नाम पर निर्दोष मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार करके पीडि़त किये जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की।
इस रैली के सह-आयोजक लोक राज संगठन के दिल्ली प्रदेश के सचिव बिरजू नायक ने कहा कि, आज राजकीय आतंकवाद के शिकार मुस्लिम हैं। जबकि 80 के दशक में, सिख धर्म के लोग इसके शिकार थे। राज्य को कब और किस पर राजकीय आतंकवाद का हथियार चलाना है, वह अपनी रणनीति से तय करता है।
उन्होंने सभा में उपस्थित लोगों से यह सवाल पूछा कि ‘क्या आप बता सकते हैं कि 1984 में हजारों की संख्या में सिखों का कत्लेआम करने वाली कांग्रेस पार्टी या 2002 में, गुजरात में मुस्लिम लोगों का कत्लेआम करने वाली भाजपा क्यों बहुमत के साथ सत्ता पर आती है? यह कैसा लोकतंत्र है, जिसमें कत्लेआम के आयोजक, देश की हुकूमत की बागडोर संभालते हैं, संविधान, न्यायव्यवस्था, मीडिया तथा संसद अपनी मुहर लगाता है!
उन्होंने कहा कि, 1947 में हिन्दोस्तानी राज्य की स्थापना सांप्रदायिक कत्लेआम के साथ हुई थी। इस राज्य के सांप्रदायिक होने का इतिहास मौजूद है तो दूसरी ओर देश के लोगों के सांप्रदायिक न होने का इतिहास भी मौजूद है। इसलिए हमारा निशाना किसी धर्म पर नहीं।
उन्होंने, 6 दिसम्बर, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के गुनहगारों को सज़ा देने की मांग को लेकर, मंडी हाउस से लेकर, जंतर-मंतर तक विरोध प्रदर्शन में उपस्थित होने के लिये लोगों को आमंत्रित किया।
सभा को जमात-ए-इस्लामी हिन्द के सचिव मोहम्मद अहमद, स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाईजेशन ऑफ इंडिया के सर्व हिन्द अध्यक्ष तथा वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के सचिव एस.क्यू.आर. इलियास, जमीयत अहले हदीस से अब्दुल वाहाब खिल्जी, मुस्लिम पोलिटीकल काउंसिल ऑफ इंडिया से डा. तसलीम रहमानी, ए.पी.सी.आर. से एखलाक अहमद आदि ने संबोधित किया।
सभा के अंत में, प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन सौंपा गया।