संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने अमरीका द्वारा अपनाई घेराबंदी के खिलाफ़ वोट दिया :

 

अमरीका द्वारा क्यूबा के खिलाफ़ जारी अनैतिक तथा अमानवीय घेराबंदी खत्म की जाये!

 

 

अमरीका द्वारा क्यूबा के खिलाफ़ जारी अनैतिक तथा अमानवीय घेराबंदी खत्म की जाये!

 

13 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने बहुत बड़े बहुमत से प्रस्ताव पारित किया कि अमरीका ने क्यूबा के खिलाफ़ गत 50 वर्षों से जो घेराबंदी जारी की है उसे तुरंत खत्म किया जाये। 188 सभासद देशों ने प्रस्ताव के समर्थन में और केवल 3 सभासद देशों ने प्रस्ताव के विरोध में मत दिया। क्यूबा के खिलाफ़ अमरीका ने जो अनुचित तथा प्रतिशोधी नीति अपनाई है उस बारे में अमरीका दुनिया में बिलकुल अकेला पड़ गया है यही उससे स्पष्ट हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में इस घेराबंदी के खिलाफ़ प्रस्ताव पारित करने का यह 21वां मौका है। मगर इससे अब तक 10 अलग-अलग अमरीकी सरकारों पर कोई असर नहीं हुआ एवं ओबामा सहित उन सबने क्यूबा के मामले में वही दुष्ट नीति जारी रखी है।

केवल 1 करोड़ 10 लाख की आबादी वाले उस छोटे से देश क्यूबा ने, 1958 में बातिस्ता की अमरीकी साम्राज्यवादियों की हिमायत करने वाली दमनकारी सरकार के खिलाफ़ इंक़लाब सफल किया था। तब से अब तक, अमरीका ने क्यूबा के लोगों तथा उनकी इंकलाबी सरकार को कुचलने के लिए हर तरह कोशिश की है। क्यूबा के इंक़लाब के नेता फिदेल कास्त्रो की हत्या की कई कोशिशें, सी.आई.ए. तथा दूसरी खुफिया एजेंसियों द्वारा क्यूबा के अन्दर विध्वंस संगठित करना, क्यूबा की आर्थिक घेराबंदी, फ़ौजी ब्लैकमेल आदि सभी हथकंडे अमरीकी सरकारों ने अपनाये। मगर क्यूबा के लोगों को कुचलने में या उन्हें उनकी सरकार के खिलाफ़ भड़काने में अमरीका को कोई कामयाबी नहीं मिली।

1960 में अमरीका के गृह सचिव लेस्टर मल्लोरी ने क्यूबा के खिलाफ़ आर्थिक घेराबंदी का क्या मकसद है यह स्पष्ट किया। “आर्थिक मुश्किलें पैदा करके आवाम में मनमुटाव तथा विद्रोह भड़काना। …क्यूबा के आर्थिक जीवन को कमजोर करना …उन्हें धन देने पर तथा वस्तुएं देने पर रोक लगाना। …भूख तथा दूसरी मुश्किलें इस हद तक बढ़ाना कि सरकार का तख्तापलट हो जाये।” दूसरे शब्दों में लोगों पर मुश्किलें थोपकर क्यूबा की सरकार बदलने का प्रत्यक्ष प्रयास। इस अमानवीय उद्देश्य से जारी घेराबंदी के तहत, किसी भी देश की कंपनी अथवा संगठन, अथवा व्यक्ति क्यूबा के साथ किसी भी तरह का आर्थिक लेनदेन करेंगे तो उन्हें अमरीकी सरकार सज़ा देगी। क्यूबा की अर्थव्यवस्था को इससे बहुत ज्यादा हानि पहुंची है, जो कि अनुमानों के मुताबिक लगभग 100 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। क्यूबा के प्रत्येक स्त्री-पुरुष-बच्चे की जिंदगी इससे प्रभावित हुई है। गंभीर बीमारी से पीडि़त लोगों को जीवन बचाने वाली दवाइयों से वंचित रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में क्यूबा के प्रतिनिधि के अनुसार “हमारे देश की आर्थिक समस्याओं तथा हमारे देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को सीमित रखने के लिए यह घेराबंदी एक मुख्य कारण है।”

क्यूबा के बहादुर तथा स्वाभिमानी लोगों के खिलाफ़ अमरीकी साम्राज्यवादियों ने घेराबंदी तथा जो दूसरे कदम उठाये हैं, उनका हिन्दोस्तान का मजदूर वर्ग एवं आवाम क्रोध से धिक्कार करती है। उनके देश में किस तरह की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था होनी चाहिए, यह तय करना क्यूबा के लोगों का एक ऐसा अधिकार है जिसे कभी नकारा नहीं जा सकता। पूरी दुनियाभर में विरोध, उनके दोस्त देशों से भी कड़ा विरोध होने के बावजूद, अमरीका द्वारा घेराबंदी वैसी ही जारी है। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी कितने घमंडी हैं यह स्पष्ट होता है। वे “जनतंत्र” एवं “मानव अधिकारों” के तथाकथित हिमायती होने का जो दावा करते हैं, वह कितना खोखला है यह भी स्पष्ट होता है।

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