भ्रष्टाचार घोटाले और पूंजीवादी व्यवस्था

आज, कांग्रेस पार्टी और भाजपा के बारे में खुलासों का एक प्रमुख कारक बड़े-बड़े भ्रष्टाचार घोटालों का होना है। ये भ्रष्टाचार घोटाले क्या दिखलाते हैं?

आज, कांग्रेस पार्टी और भाजपा के बारे में खुलासों का एक प्रमुख कारक बड़े-बड़े भ्रष्टाचार घोटालों का होना है। ये भ्रष्टाचार घोटाले क्या दिखलाते हैं?

हालांकि भ्रष्टाचार अपने देश की राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था का एक स्थायी लक्षण है, इनके बारे में बारिकी का विवरण आम तौर पर लोगों से छुपा रहता है। इनका खुलासा तब होता है जब कोई पूंजीपति या राजनेता अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में अंदरूनी सूचना का इस्तेमाल करना चाहता है।

हिन्दोस्तानी और अंतर्राष्ट्रीय इजारेदार पूंजीपतियों के गठबंधनों और अन्य प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच तीव्र टक्कर का नतीजा है कि एक महाघोटाले के बाद दूसरे का पर्दाफाश हो रहा है। उत्तरी अमरीका और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं की गहरी मंदी की स्थिति में, दुनिया के सबसे बड़े पूंजीपतियों द्वारा संभावित पूंजीनिवेशों के कुछेक प्रमुख केन्द्रबिंदुओं में से एक हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था के बनने का यह नतीजा है।

देश की लूटपाट में अपना हिस्सा बढ़ाने के लिये इजारेदार पूंजीपति एक दूसरे के साथ लड़ रहे हैं। बड़े भ्रष्टाचारों के पर्दाफाश के लिये यह प्रमुख कारक है। इससे अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था का और भी खुलासा हो रहा है। इससे लोगों का गुस्सा और सुधारों के नाम पर लादे जा रहे अजेंडे के विरोध में जनता का प्रतिरोध बढ़ रहा है।

2जी स्पैक्ट्रम घोटाले के कारण टेलीकॉम ऑपरेटरों को दिये एक सेट के सभी नये लाईसेंसों को रद्द किया गया। इससे लाईसेंसों के आबंटन में भ्रष्टाचार के खुलासे के जरिये, टेलीकॉम इजारेदारों के एक गुट को दूसरे गुट के मुकाबले फायदा हुआ है।

पूंजीवादी व्यवस्था के वैश्विक संकट और हर महाद्वीप में इसके विरोध में बढ़ते असंतोष की पृष्ठभूमि में वैश्विक वित्त पूंजी के अगुवा विशेषज्ञ यह विचार फैला रहे हैं कि समस्या स्वयं पूंजीवाद में नहीं है बल्कि समस्या “याराना पूंजीवाद” की वजह से है।

याराना पूंजीवाद एक ऐसी व्यवस्था कहलाती है जिसमें विभिन्न पूंजीपतियों के, नीतियां बनाने और सरकारी ठेकों के प्रभारी राजनेताओं और अधिकारियों के साथ, बहुत अनुकूल संबंध होते हैं। इनके बीच पैसों, विशेष एहसानों, फायदेमंद ठेकों और लाईसेंसों के आदान-प्रदान नियमित तौर पर होते रहते हैं। दूसरों के मुकाबले पूंजीपतियों के एक हिस्से की तरफदारी होती है। कुछेक का दबदबा रहता है और पूंजीवाद बाजार में समतल खेल का मैदान नहीं होता है।

अमरीकी कोर्पोरेट मीडिया याराना पूंजीवाद शब्द का इस्तेमाल चीन, दक्षिणी कोरिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की नुक्ताचीनी करने के लिये करता है। हिन्दोस्तान के अंदर, सबसे पहले रतन टाटा ने कहना शुरू किया कि याराना पूंजीवाद समस्या है। बहुत से राजनीतिक कार्यकर्ता, असली मतलब समझे बिना, इस मंत्र को दोहरा रहे हैं।

इस प्रचार से जो सच्चाई छुपाने की कोशिश हो रही है वह है, कि पूंजीवाद अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। इस पड़ाव का मुख्य लक्षण है कि इसमें इजारेदारी व दबदबा होता है, न कि मुक्त व उचित स्पर्धा। इस इजारेदारी पड़ाव में, पूंजीवाद एक भ्रष्ट और परजीवी व्यवस्था है। अरबपति पूंजीपतियों के राजनीतिक पार्टियों और सरकार के मंत्रियों के साथ अनुकूल संबंध अपवाद नहीं बल्कि कायदा होता है।

अपने देश की परिस्थिति में जन्म से ही पूंजीवाद एक भ्रष्टाचार ग्रस्त व्यवस्था रही है। उपनिवेशवादी शासन की परिस्थिति में, बर्तानवी ताज के लिये जमा की हुयी लूट का एक हिस्सा विभिन्न अधिकारी ले लेते थे। हिन्दोस्तानी पूंजीपति और जमींदार जिन्होंने उपनिवेशवादी शासकों से सहयोग किया उन्हें भूमि, लाईसेंस और विभिन्न विशेष एहसानों की सौगातें मिली। व्यवस्था इसी तरह चलती थी।

उपनिवेशवाद के खत्म होने के पश्चात, विशेषाधिकारों के वितरण की व्यवस्था को कायम रखा गया है। विभिन्न व्यवसायिक घरानों ने राज्य के अंदर कर्मचारियों से अपने संबंध बढ़ाये हैं और खास विशेषाधिकार पाये हैं। वरिष्ठ अधिकारी और नेता घूस, दलाली और रिश्वत खाकर पूंजीपति बने हैं।

क्योंकि उपनिवेशवादी संस्थानों को बचाये रखा गया है, राज्य की मशीनरी में, ऊपर से नीचे तक, भ्रष्टाचार और छीना-झपटी बरकरार है। सबसे निचले दर्जे के अधिकारी भी, उनसे अपेक्षित सेवाओं के लिये, घूस की मांग करते हैं; और अनेक राजनीतिक पार्टियों की धनराशि लोगों से घूस के पैसे ऐंठने की व्यापक व्यवस्था से जमा होती है।

जैसे-जैसे इजारेदारी की सघनता का दर्जा बढ़ा है, वैसे-वैसे ऊंचे स्तर के भ्रष्टाचार का पैमाना भी बढ़ा है। जब 1991 में मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों के पहले दौर की शुरुआत की थी, तब पूंजीपतियों ने दावा किया था कि लाईसेंस राज को खत्म करने पर, उदारीकरण से भ्रष्टाचार कम हो जायेगा। परन्तु भ्रष्टाचार कायम है और अभूतपूर्व नयी ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है।

यह एक भ्रम है कि मौजूदा व्यवस्था को साफ किया जा सकता है और इसे मुक्त और उचित स्पर्धा वाले पूंजीवाद में तब्दील किया जा सकता है। उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की नींव पर बनी मौजूदा राज्यव्यवस्था को हटाये बिना, अपने देश में भ्रष्टाचार को मात्र कम करने तक का विचार भी एक भ्रम है।

संघर्ष याराना पूंजीवाद और किसी कथित साफ-सुथरे व उचित पूंजीवाद के बीच नहीं है। संघर्ष तो पूंजीवाद की जगह, मानव समाज के अगले उच्चतर पड़ाव, समाजवाद लाने का है। यह लक्ष्य सिर्फ मज़दूर वर्ग के नेतृत्व में पाया जा सकता है।

अर्थव्यवस्था की दिशा को पूरी तरह बदलना होगा; मुट्ठीभर शोषकों को अमीर बनाने की दिशा से बदल कर इसे सभी को समृद्धि प्रदान करने वाला बनाना होगा। उपनिवेशवादी राज्य को हटा कर एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य लाना होगा जो मानवाधिकारों की रक्षा करेगा और सभी के लिये सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व प्रधान अर्थशास्त्री  डॉ. रघुराम राजन, जो अब हिन्दोस्तानी सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार हैं, उन्होंने एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक है, “पूंजीपतियों से पूंजीवाद का बचाव”। परन्तु मुद्दा पूंजीवाद को बचाने का नहीं है। मुद्दा तो मानव समाज को पूंजीवाद से बचाने का है। पूंजीवाद का समय खत्म हो चुका है।

पूंजीवाद को यारी और भ्रष्टाचार से मुक्त करने के विचार का प्रचार, इजारेदार पूंजीवादी व्यवस्था को, मेहनतकश लोगों के गुस्से से बचाने की कोशिश है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *