संसद का शीतकालीन सत्र 22 नवम्बर से शुरू हुआ। इसके अजेंडे पर अनेक प्रस्तावित कानून हैं जिन्हें मंत्रीमंडल ने हाल में स्वीकृति दी है और जिन्हें संसद की स्वीकृति की आवश्यकता है।
संसद का शीतकालीन सत्र 22 नवम्बर से शुरू हुआ। इसके अजेंडे पर अनेक प्रस्तावित कानून हैं जिन्हें मंत्रीमंडल ने हाल में स्वीकृति दी है और जिन्हें संसद की स्वीकृति की आवश्यकता है।
दो विधेयक बीमा और पेंशन निधियों में विदेशी पूंजी निवेश के बारे में हैं, जिनसे मज़दूर वर्ग के जीवन पर भारी प्रभाव पड़ेगा और मध्यम तबके के परिवारों की खून-पसीने की कमाई की बचत खतरे में आयेगी, क्योंकि इन्हें पूंजीवादी मुनाफाखोरों की सट्टेबाजी के लिये खोला जा रहा है। भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास के मुद्दे पर एक विधेयक है जिसका भारी प्रभाव किसानों व दूसरे भूधारकों और जनजातियों पर पड़ेगा। ऐसा जानने को आया है कि इस विधेयक को फरवरी-मार्च 2013 में होने वाले बजट सत्र तक धकेला जायेगा।
व्यापार का मौजूदा ढांचा और प्रस्तावित सुधार व्यापार में वस्तुओं की खरीद व बिक्री के तमाम प्रक्रियायें शामिल होती हैं, जिसके द्वारा देश के एक भाग में बनी वस्तु दूसरे भाग में उपभोक्ता तक पहुंचती है। इसमें कृषि और उद्योग, दोनों की खरीद और बिक्री शामिल होती है। कपड़े, श्रृंगार का सामान, पैन, घडि़यां, आदि, अधिकांश उपभोक्ता वस्तुयें आम तौर पर 3 श्रेणियों के व्यापार बिचैलियों के ज़रिये अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचती हैं। पूरे हिन्दोस्तान में बेचने वाली उत्पादन कंपनी के 40 से 80 वितरण सटोरिये (स्टॉकिस्ट) होते हैं, जिनमें से प्रत्येक 100 से 450 थोक व्यापारियों को माल भेजते हैं। पुनर्वितरण के सटोरिये और थोक व्यापारी, मिल कर, देश भर में 2.5 से 7.5 लाख खुदरा व्यापारियों को माल भेजते हैं। जो उद्यम किसी राज्य के अंदर ही कारोबार चलाते हैं, उनका सामान दो तरह के बिचैलियों, थोक और खुदरा व्यापारियों के ज़रिये वितरित होता है। कृषि उत्पाद विभिन्न बिचैलियों के ज़रिये वितरित होते हैं, जिनमें शामिल हैं पारंपरिक ग्रामीण सौदागर, थोक व्यापारियों के कमीशन एजेंट, भारतीय खाद्य निगम के एजेंट, राशन दुकानों के अधिकारी, लाखों परिवारों की मालिकी के फुटकर विक्रेता और रेड़ी वाले। पांच वर्षों में एक बार किये जाने वाले सरकारी आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2005 में पूरे देश में कुल मिलाकर 1.5 करोड़ खुदरा संस्थापन थे। कुल मिला कर थोक संस्थापनों की संख्या 8.5 लाख थी। कुल खुदरा बिक्री में सिर्फ 5 प्रतिशत बड़े स्तर के डिपार्टमेंट स्टोरों में आयी थी। बाकी 95 प्रतिशत बिक्री “असंगठित” उपक्षेत्रों से थी जिनमें शामिल हैं परिवारों की मालिकी की दुकानें, व्यक्तिगत दुकानदार और रेड़ी वाले। थोक व्यापार पारंपरिक पूंजीपति सौदागरों के वर्चस्व में है जो स्थानीय और राज्य स्तर पर काफी शक्तिशाली हैं। इनमें किसानों से औपचारिक या अनौपचारिक ग्रामीण बाजारों (मंडियों) से खरीदने वाले और देश के अन्य भागों से औद्योगिक माल खरीद कर किसी खास राज्य के अंदर खुदरा व्यापारियों को बेचने वाले शामिल हैं। बहु ब्रांड खुदरा व्यापार का मतलब बड़े स्तर के डिपार्टमेंट बिक्री केन्द्रों से है जिनका क्षेत्रफल हजारों वर्ग फुट में होता है और वे विभिन्न उत्पादकों और उपलब्ध कराने वालों के अनेक ब्रांड बेचते हैं। इनके उदाहरण हैं रिलायंस फ्रेश, रिलायंस मार्ट, स्टार बाज़ार, ईज़ी डे, मोर, बिग बाज़ार तथा अन्य इजारेदार घरानों के बिक्री केन्द्रों की बड़ी श्रृंखलायें। ये थोक से खुदरा व्यापार की जंजीरे होती हैं जो उत्पादकों से सीधे खरीदी करते हैं और सीधे उपभोक्ताओं को बेचते हैं। एकल ब्रांड खुदरा व्यापार का मतलब उन बिक्री केन्द्रों से है जो एक ही कंपनी और एक ही ब्रांड की वस्तुयें बेचते हैं, जैसे कि नाईक या एप्पल या ब्लैकबेरी। अपने देश में विदेशी कंपनियों को एकल ब्रांड के बिक्री केन्द्र खोलने की अनुमति है। परन्तु किसी भी विदेशी कंपनी को बहुब्रांड का खुदरा बिक्री केन्द्र खोलने की अनुमति नहीं दी गयी है। हाल के सितम्बर में मंत्रीमंडल के फैसले ने इसकी संभावना बना दी है। |
शीतकालीन सत्र के 4 सप्ताहों में से एक सप्ताह बहुब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश (एफ.डी.आई.) के मुद्दे पर हो रहे घमासान में निकल गया। इस घमासान में लड़ रहे दोनों पक्षों ने दावा किया है कि वे मेहनतकश लोगों के हित में लड़ रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी और उसके वाणिज्य मंत्री का दावा है कि वैश्विक व्यापारी कंपनियों के आने से सुपर बाजारों, शीतगृहों, और इससे संबंधित दूसरी कार्यवाइयों में एक करोड़ नयी नौकरियां उत्पन्न होंगी। उनके कहने के अनुसार, बड़े पैमाने के आधुनिक खुदरा बिक्री केन्द्रों के बढ़ने से “बिचैलियों का खात्मा” होगा, गैर टिकाऊ माल के खराब हो जाने से होने वाला नुकसान कम होगा, किसानों को बेहतर कीमतें मिलेंगी और शहरी उपभोक्ताओं के लिये कीमतों में कमी होगी।
भाजपा और सी.पी.आई.(एम.) के नेतृत्व में विपक्ष के खेमें का दावा है कि इस नीति पर चलने से करोड़ों छोटे दुकानदारों व किसानों की रोजी-रोटी का नाश होगा। तुलना के लिये वे बर्तानवी ईस्ट इंडिया कंपनी की मिसाल देते हैं, जो व्यापार के लिये आयी और अंत में अपने देश को गुलाम बना लिया।
सच्चाई क्या है? युद्धरत खेमें और उनकी विचार पद्धतियां किसके हित का प्रतिनिधित्व करती हैं?
सत्ताधारी खेमें का दृष्टिकोण
कांग्रेस पार्टी के दावे में कुछ थोड़ी सच्चाई है, परन्तु वह बहुत बड़े झूठ की परछायी में है।
यह सच है कि अपने देश में व्यापार व्यवस्था को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है और उसका प्रबंधन बड़े पैमाने पर, शीतगृहों के साथ होना चाहिये, ताकि गैर टिकाऊ माल को खराब होने से बचाया जा सके। इस तरह के नुकसान का खर्चा समाज को उठाना पड़ता है और यह मेहनतकश लोगों द्वारा दी कीमतों को बढ़ाता है।
बड़ा झूठ यह कहता है कि व्यापार के आधुनिकीकरण का सिर्फ यही रास्ता है, जिसमें इसे अधिकतम मुनाफे के लिये चलने वाली निजी कंपनियों के हाथ सुपुर्द किया जायेगा। कारोबार के पैमाने और व्यापार की मालिकी व नियंत्रण का समाजीकरण इसका तर्कसंगत और सर्वोत्तम समाधान होगा। इसका मतलब है कि विभिन्न सरकारी और निजी खुदरा बिक्री केन्द्रों के माध्यम से सार्वजनिक खरीद और वितरण प्रस्थापित करना होगा।
जहां वॉलमार्ट व दूसरी कोर्पोरेट इजारेदार व्यापारी कंपनियों ने खुदरा व्यापार में अपना हिस्सा बढ़ाया है, वहां अधिकांश लोगों के लिये इसका नतीजा रोजी-रोटी की बरबादी का रहा है। व्यापार के परंपरागत बिचैलियों की जगह आधुनिक पूंजीवादी बिचौलिये ले लेते हैं, जो अपनी विशाल बाजार शक्ति से उत्पादकों और उपभोक्ताओं को निचोड़ कर, थोक से खुदरा व्यापार के विभिन्न पड़ावों को एक साथ जोड़ देते हैं।
उत्तरी अमरीका और यूरोप में वैश्विक संकट की गहराती परिस्थिति में, वॉलमार्ट, करेफोर, मेट्रो व टेस्को जैसी खुदरा व्यापार की प्रमुख वैश्विक श्रृंखलायें हिन्दोस्तानी बाज़ार में घुसने के लिये आतुर हैं। उन्हें दिखता है कि हमारे देश में यह क्षेत्र इतना विकसित नहीं है और यहां बड़े पैमाने पर आधुनिक खुदरा बिक्री केन्द्रों की श्रृंखलायें स्थापित करके अधिकतम मुनाफे बनाये जा सकते हैं।
रिलायंस, टाटा, बिड़ला, भारती तथा दूसरों के साथ हिन्दोस्तानी कॉर्पोरेट घराने पिछले 10 वर्षों से खुदरा व्यापार में रहे हैं और अभी तक उन्होंने 5 प्रतिशत से भी कम बाज़ार पर कब्ज़ा जमाया है। अभी तक वे कहते आये थे कि एफ.डी.आई. की अनुमति सिर्फ एकल ब्रांड के व्यापार में होनी चाहिये, न कि बहुब्रांड में, ताकि वे अपने इलाके में विदेशी स्पर्धा से बचाव कर सकें। अब उन में से अधिकांश ने समझ लिया है कि बड़ी वैश्विक कंपनियों के साथ 49 प्रतिशत सांझेदारी के ज़रिये वे अपने देश के खुदरा व्यापार में तेजी से नियंत्रण पा सकते हैं।
विपक्षी खेमें का दृष्टिकोण
संसद की विपक्षी पार्टियों के कहने में जो सच्चाई है, वह इस चेतावनी में है कि हिन्दोस्तान का उपनिवेशीकरण वैश्विक व्यापारी इजारेदारों के आने से ही हुआ था। कुछेक साम्राज्यवादी शक्तियों के हित में, एशिया, अफ्रीका और लातिन अमरीका के देशों की नवउपनिवेशवादी लूटपाट में आज के वैश्विक व्यापारी इजारेदारों की बड़ी भूमिका है।
इस सच्चाई पर इशारा करते हुये, विपक्षी पार्टियां दो अहम सच्चाइयों को छुपाती हैं। एक, कि हिन्दोस्तानी कोर्पोरेट इजारेदार, जिन्होंने देश में व्यापारी श्रृंखलाओं में अपने आप को प्रस्थापित कर लिया है, वे भी विस्तारवादी साम्राज्यवादी रास्ते पर चल रहे हैं। व्यापार पर कब्ज़ा जमाने के इजारेदार पूंजीवादी आक्रमण में वे भी 49 प्रतिशत हिस्सेदार हैं। अतः सिर्फ एफ.डी.आई. के खिलाफ़ ही नहीं बल्कि खुदरा व्यापार में हिन्दोस्तानी कोर्पोरेट इजारेदारों के खिलाफ़ भी लड़ना ज़रूरी है।
दूसरी अहम सच्चाई है कि इजारेदार पूंजीवादी आक्रमण कृषि और उद्योग के पारंपरिक व पूंजीवादी थोक व्यापारियों के लिये उतना ही खतरा पैदा करता है जितना वह पारंपरिक खुदरा व्यापारियों के लिये करता है। पूंजीपतियों का यह हिस्सा एफ.डी.आई. को रोकना चाहता है ताकि वह बाजार में उत्पादकों और उपभोक्ताओं को निचोड़ कर अपनी स्थिति मजबूत कर सके।
द्रमुक, जो संप्रग सरकार में कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा सहयोगी है, उसके नेता एम. करुणानिधि ने 25 नवम्बर को कहा कि, “तमिल नाडु का हमारा राजनीतिक मतदान क्षेत्र खुदरा व्यापर में एफ.डी.आई. का जोर-शोर से विरोध करता है।” उन्होंने माना कि उनकी पार्टी के समर्थन आधार में, शहरों के थोक के पूंजीवादी व्यापारी और गांवों के विभिन्न पारंपरिक व्यापारी बिचैलिये शामिल हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में जेडीयू, आदि की भी यही परिस्थिति है।
राज्यों की सरकारों पर पूंजीवादी व्यापारियों का काफी दबदबा रहता है, जिसकी वजह से बहुत सी क्षेत्रीय पार्टियां बहुराष्ट्रीय व्यापारी कंपनियों के आने का विरोध करती हैं। वे बिना किसी पर्याय के इस नीतिगत सुधार का विरोध करती हैं, जिससे पता चलता है कि वे पूंजीपति वर्ग के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं जो मौजूदा परिस्थिति से संतुष्ट हैं और जो इसमें कोई बदलाव नहीं लाना चाहते हैं।
लोगों का अजेंडा
प्राचीन काल से, अपनी सभ्यता इस आधार पर विकसित हुयी है कि निजी हितों की कमियों का फायदा उठाने से राज्य को रोकथाम करनी चाहिये। व्यापार पर हिन्दोस्तानी या विदेशी निजी पूंजीपतियों का वर्चस्व स्थापित होने देने का पूंजीपतियों का अजेंडा समाज के आम हित के खिलाफ़ है। समाज के वास्ते, यानि लोगों का अजेंडा व्यापार को सामाजिक नियंत्रण में लाने का है।
खरीदने और बेचने के व्यवसाय से भौतिक धन-दौलत नहीं बनती है। इससे वस्तुओं का एक हाथ से दूसरे हाथ वितरण होता है; उत्पादकों से लेकर अंतिम उपभोक्ताओं तक। इस क्षेत्र में मुनाफों को निजी हाथों में अधिकतम बनाने की अनुमति क्यों देनी चाहिये? जो भी मुनाफा निजी व्यापारी बनाते हैं वह या तो उत्पादकों से आता है या उपभोक्ताओं से आता है या दोनों से।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का विचार है कि मज़दूरों, किसानों और समाज के मध्यम तबके के लोगों को थोक व्यापार के राष्ट्रीयकरण तथा मज़दूरों और किसानों की देखरेख व नियंत्रण में एक आधुनिक वितरण व्यवस्था की मांग के तले एकजुट होना चाहिये। किसानों की समितियों और सहकारी समितियों को कृषि उत्पादों की उचित लाभकारी खरीद पर दृष्टि रखना चाहिये। नगरों में लोगों की समितियों को उचित दर दुकानों पर दृष्टि रखना चाहिये जहां से वस्तुओं की अंतिम बिक्री होती है। थोक व्यापार पर राज्य की इजारेदारी यह सुनिश्चित करेगी कि सभी खुदरा बिक्री केन्द्रों को एक ही स्रोत से सभी माल उपलब्ध होगा।
निष्कर्ष
मज़दूर वर्ग और लोग, अपने हित की रक्षा के लिये संसदीय विपक्ष पर विश्वास नहीं रख सकते हैं। संसद पूंजीपतियों के प्रतिस्पर्धी हितों के बीच परस्पर विरोधों का समाधान निकालने का अखाड़ा होता है। इसमें अधिकांश शोषित लोगों के हितों के लिये कोई स्थान नहीं होता है।
इजारेदार पूंजीपतियों के आक्रमण का विरोध करने वाले सभी लोगों को हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी बुलावा देती है कि हम एकजुट होकर, थोक व्यापार के राष्ट्रीयकरण तथा एक आधुनिक सर्वव्यापी वितरण व्यवस्था स्थापित करने की मांग रखें, जिसमें सभी कृषि उत्पाद व औद्योगिक वस्तुयें उपलब्ध हों।
मज़दूर वर्ग की सभी पार्टियों और संगठनों को एक साथ आकर, संसद और सड़कों पर पेंशन फंड रेग्यूलेटरी एण्ड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पी.एफ.आर.डी.ए.) विधेयक और बीमा कंपनियों में विदेशी मालिकी को 26 प्रतिशत से बढ़ा कर 51 प्रतिशत करने के विधेयक का अविलंब विरोध करने की जरूरत है।
हालांकि भूमि अधिग्रहण विधेयक इस सत्र में प्रस्तुत नहीं किया जायेगा, फिर भी मज़दूरों और किसानों के संगठनों को इस विधेयक के विरोध में एकजुट होने की जरूरत है। इस पर एकता का सैद्धांतिक आधार होना चाहिये कि जो खेती करते हैं उनको भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता है तथा जो भूमि सार्वजनिक उद्देश्य से अधिग्रहित की जाती है उसे निजी समूहों को नहीं दिया जा सकता है।