इजारेदार पूंजीपतियों की सेवा में कोयला सम्पन्न क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक 2021

कोयला सम्पन्न क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम 1957 में 2021 का संशोधन निजी मुनाफ़ा बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण करने को सुगम बनाने का हिन्दोस्तानी राज्य का एक स्पष्ट कदम है। हिन्दोस्तान में बड़े इजारेदार पूंजीपति चाहते हैं कि हिन्दोस्तानी राज्य न्यूनतम संभव दर पर भूमि अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करे, और इसके उपयोग पर किसी भी प्रतिबंध के बिना इसका स्वतंत्र रूप से इसका इस्तेमाल करने का अधिकार हो। पहले, सरकार ने कोयला खदानों की नीलामी के माध्यम से कोयला खदानों को वाणिज्यिक खनन के लिए खोल दिया था। अब इस संशोधन के माध्यम से ऐसा किया है। हाल की नीलामी में कोयला ब्लॉकों के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाने वाले कॉर्पोरेट दिग्गजों को इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका और हितों की बलि चढ़ा कर अधिकतम मुनाफ़ा कमाने को आसान बनया जा रहा है।

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कोयला खनन से जीवन अस्त व्यस्त होने के विरोध में जनजातियां प्रदर्शन करते हुए

हिन्दोस्तान में भूमि दुर्लभ है और यह एक अत्यंत कीमती संसाधन है। कोल इंडिया, एन.टी.पी.सी., रेलवे और रक्षा प्रतिष्ठानों जैसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास हजारों हेक्टेयर भूमि है। कोयला सम्पन्न क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 में संशोधन के सरकार के कदम को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यह कोयला खदानों के पूंजीपति मालिकों को न्यूनतम संभव दर पर भूमि अधिग्रहण करने में सक्षम बनाने और इसके उपयोग पर बिना किसी प्रतिबंध के इसका स्वतंत्र रूप से लाभ उठाने का अधिकार देने के लिए एक कदम है।

प्रस्तावित संशोधन को सरकार द्वारा नवंबर 2020 से पूंजीपतियों को कोयला खदानों की नीलामी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। जब सरकार ने निजी पूंजीपतियों को कोयला खदानों का अधिग्रहण करने की अनुमति देने के लिए अपने कानूनों में बदलाव किया, तो उसने दावा किया कि पूंजीपति मालिक कोयला क्षेत्र में कोयला खनन के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी और कोयले की बढ़ती जरूरत को पूरा करेंगे। प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य कोयला सम्पन्न भूमि को पूंजीपतियों को सौंपना है और पूंजीपति मालिकों को इससे कोयला उत्पादन करना अनिवार्य तक नहीं है। अगर कोयले का उत्पादन करना लाभदायक होगा तो वे ऐसा करेंगे। यदि पूंजीपतियों को लगता है कि भूमि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया जा सकता है, तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।

कोयला मज़दूर कोयला खनन को नियंत्रित करने वाले कानूनों में ऐसे बड़े बदलाव का विरोध करते रहे हैं। जनवरी, 2018 में निरस्तीकरण और संशोधन (द्वितीय) अधिनियम, 2017 के द्वारा कोकिंग कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 और कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 को निरस्त कर दिया गया। 20 फरवरी 2018 को, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सी.सी.ई.ए.) ने निजी कंपनियों को हिन्दोस्तान में वाणिज्यिक कोयला खनन उद्योग में प्रवेश करने की अनुमति दी। 28 अगस्त, 2019 को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला खनन में 100 प्रतिषत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) को मंजूरी दी। 18 जून, 2020 को प्रधानमंत्री ने निजी पूंजीपतियों को वाणिज्यिक खनन के लिए 41 कोयला खनन ब्लॉकों की नीलामी की घोषणा की। कोयला खदान मज़दूरों ने 2-4 जुलाई, 2020 को तीन दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया, जिससे कोयला उत्पादन ठप्प हो गया। उस हड़ताल को सफल बनाने के लिए कोयला मज़दूरों की सभी यूनियनों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। फिर से, 18 अगस्त, 2020 को कोल इंडिया लिमिटेड (सी.आई.एल.) और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एस.सी.सी.एल.) के पांच लाख से अधिक मज़दूर एक दिन की हड़ताल पर चले गए।

मज़दूरों की प्रमुख मांगों में कोयले का वाणिज्यिक खनन शुरू करने के निर्णय को तत्काल वापस लेना और सी.आई.एल. के शेयरों की बिक्री के माध्यम से कोयला खनन के निजीकरण पर तत्काल रोक लगाना शामिल था।

हालांकि, सरकार ने इन मांगों को नजरअंदाज कर दिया और कोयला खदानों की नीलामी के साथ आगे बढ़ गई, अब इस संशोधित विधेयक को पूंजीपतियों की और ज्यादा सेवा में पेश किया है।

कोयला खदानों की नीलामी

पहले दौर (नवंबर 2020) में नीलामी के लिए 41 कोयला खदान ब्लॉक रखे गए थे। इनमें मध्य प्रदेश में 11, छत्ताीसगढ़ में 9, झारखंड में 9, ओडिशा में 9 और महाराष्ट्र में 2 शामिल हैं। पहले दौर में नीलामी के लिए रखी गई 41 में से केवल 19 खदानें ही बेची जा सकीं।

कोयला मंत्रालय ने अपने दूसरे दौर की नीलामी में 67 कोयला ब्लॉकों की नीलामी के लिए प्रस्ताव किया है। केवल 8 कोयला ब्लॉक बेचे गए। (नीचे बॉक्स देखें)।

पहले दौर के कोयला खदानों की नीलामी के विजेता (नवंबर 2020)
अरबिंदो रियल्टी (2), अदानी समूह (1), स्ट्रैटटेक मिनिरल रिसोर्सेस (1), चैगुले समूह, एमिल माइन्स (2), हिंडालको (1), फेयरमाइन कार्बन (1), जिंदल पावर (1), जे.एम.एस. माइनिंग (2), वेदांत समूह (1), एपी मिनरल डेव कार्पोरेशन (1), शारदा एनर्जी मिन (2), यज्दानी इंटरनेशनल (1)
दूसरे दौर के कोयला खदानों की नीलामी के विजेता (अगस्त 2021)
अदानी पावर (1), अदानी ग्रुप (सीजी नेचुरल रिसोर्सेस) (2), सनफ्लैग आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (2), साउथवेस्ट पिनाकर एक्सप्लोरेशन (1), प्रकाश इंडस्ट्रीज (1), श्रीसत्य माइंस प्राइवेट लिमिटेड (2)

कोयला खदानों का अधिग्रहण करने वाले पूंजीपतियों ने मांग की है कि सरकार उनके अधिग्रहण से अधिकतम लाभ कमाने में उन्हें सक्षम बनाने के लिए परिस्थितियां तैयार करे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे कोयले के खनन में रुचि रखते हैं, जो कि स्टील, सीमेंट और बिजली उत्पादन जैसे विभिन्न उद्योगों के लिए आवश्यक है। इजारेदार पूंजीपति अपने इस्पात और सीमेंट संयंत्रों के लिए कोयला उपलब्ध कराने के लिए बंदी खदानें रखना चाहेंगे। साथ ही वे अधिगृहीत ज़मीन में बड़े मुनाफ़े बनाने की संभावनाएं देख रहे हैं।

एक बार यह संशोधन पारित हो गया तो, कोल इंडिया और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों को हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी कंपनियों को ज़मीन बेचने के लिए कहा जाएगा।

बड़े निगमों को बड़ी छूटें दी जाएंगी

कोयला सम्पन्न क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास संशोधन विधेयक 2021) बड़े कॉरपोरेट घरानों को भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार और पुनर्वास अधिनियम 2013 (एल.ए.आर.आर. अधिनियम 2013) के उचित मुआवजा और पारदर्शिता के बंधन से मुक्त कर देगा, जब वे वाणिज्यिक कोयला खनन के लिए भूमि का अधिग्रहण करेंगे। पहले एल.ए.आर.आर. 2013 से यह छूट केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, उदाहरण के लिए, कोल इंडिया, के लिए उपलब्ध थी।

इस संशोधन से उन कॉरपोरेट दिग्गजों को फ़ायदा होगा, जिन्होंने हाल की नीलामियों में कोयला ब्लॉकों के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाई थी, ताकि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के हितों और आजीविका की बलि चढ़ाकर अधिकतम मुनाफ़ा बनाया जा सके। यह एक मिसाल भी कायम करेगा जो बड़े कॉरपोरेट घरानों को सार्वजनिक उद्देश्य की आड़ में खनन या औद्योगीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण किए जाने पर एल.ए.आर.आर., 2013 से छूट देगा।

संशोधन निम्नलिखित छूटें देने के लिए है –

  • निजी कंपनियों को सामाजिक प्रभाव आकलन करवाने से छूट
  • इन क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोगों की और ग्राम सभा की सहमति प्राप्त करने से छूट
  • कोयला खनन के लिए भूमि का अधिग्रहण करने से पहले पर्याप्त मुआवजा देने से छूट

प्रस्तावित संशोधन में पी.ई.एस.ए., 1996 अधिनियम (अनुसूचित क्षेत्र अधिनियम के लिए पंचायत विस्तार) और वन अधिकार अधिनियम, 2006 का कोई संदर्भ नहीं है। इसका मतलब है कि गरीब आदिवासियों और अन्य वनवासी समुदायों को विस्थापित किया जाएगा और उनके जीवन को बिना कोई राहत दिये नष्ट कर दिया जाएगा।

प्रस्तावित संशोधन, निजी कंपनियों को एल.ए.आर.आर. अधिनियम से छूट देने के अलावा, खनन के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित भूमि का उपयोग करने का अधिकार भी प्रदान करता है। मौजूदा कोयला सम्पन्न क्षेत्रों (अधिग्रहण और विकास अधिनियम), 1957 में इसकी अनुमति नहीं थी। वास्तव में, एम.एम.डी.आर. (खान और खनिज विकास और विनियमन) अधिनियम के तहत, खनन कंपनियां खनन का पूरा होने (खान के जीवन के अंत में) के बाद भूमि को उसकी पूर्व स्थिति में बहाल करने के लिए बाध्य हैं।

कोयला सम्पन्न क्षेत्र अधिनियम 1957, ”सर्वोपरि अधिग्रहण अधिकार“ (जिसे भूमि अधिग्रहण के लिए ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने अपने आप को दिया था) के सिद्धांत पर आधारित था, जिसके तहत सरकार के पास सार्वजनिक उपयोग के लिए निजी मालिकों से जबरन भूमि अधिग्रहण करने की शक्ति होती है। इस अधिनियम को इस आधार पर न्यायोचित ठहराया गया था कि देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए कोयले की आवश्यकता है और यही वह आधार है जिसके बल पर कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1973 द्वारा कोयला खनन का राष्ट्रीयकरण किया गया था।

इसके विपरीत, प्रस्तावित संशोधन के अनुसार जब इजारेदार पूंजीपति भूमि का अधिग्रहण करते हैं और वे मुनाफा कमाने के लिए कोयला बेचने के लिए स्वतंत्र हैं, तो एल.ए.आर.आर. अधिनियम के उल्लंघन का मतलब है कि गरीब लोगों (ज्यादातर आदिवासी) को मुआवजे (एल.ए.आर.आर. अधिनियम के अनुसार अधिग्रहित की जा रही भूमि के बाजार मूल्य का गुणा कम से कम चार की दर) से वंचित किया जाना, और इस तरह बड़े व्यापारिक घरानों के लाभ की गारंटी तय की गयी है। प्रस्तावित संशोधनों में लिग्नाइट (पहले के अधिनियम में शामिल नहीं) भी शामिल होगा और इस प्रकार आदिवासी और वन भूमि के बड़े हिस्से को निजी मालिकों को उनकी पसंद के अनुसार मुनाफ़ा कमाने के लिए सौंपने का प्रावधान है।

अधिग्रहित भूमि के लिए केंद्र सरकार ज़िम्मेदार होगी। नीलामी पूरी होने के बाद ज़मीन और खनन के अधिकार राज्यों के ज़रिए निजी कंपनियों को लीज़ पर दिए जाएंगे।

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि खनन ब्लॉकों की नीलामी की तैयारी में, पहले जनवरी 2020 में खनिज कानून (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किया गया था, जिसने खान और खनिज (विकास और विनियमन) – एम.एम.डी.आर. अधिनियम 1957 और कोयला खानों (विशेष प्रावधान) – सी.एम.एस.पी. अधिनियम 2015 में संशोधन किया था।

संशोधन स्पष्ट रूप से उन कंपनियों को नीलामी में हिस्सा लेने की अनुमति देता हैं जिन कंपनियों को हिन्दोस्तान में कोयला खनन का कोई पूर्व अनुभव नहीं है और न ही अन्य खनिजों या अन्य देशों में खनन का अनुभव है, वे कोयला/लिग्नाइट ब्लॉक की नीलामी में भाग ले सकती हैं। जो कंपनियां ‘‘निर्दिष्ट अंतिम उपयोग में संलग्न’’ नहीं हैं, वे भी कोयला खदानों की इन नीलामी में भाग ले सकती हैं। अंतिम उपयोग प्रतिबंध को हटाने से किसी को भी किसी भी उपयोग के लिए कोयला खदानों के मालिक होने की अनुमति मिल जाएगी – अपने स्वयं के बंदी उपभोग, बिक्री या किसी अन्य उद्देश्य के लिए।

कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) संशोधन विधेयक 2021 का मसौदा सार्वजनिक नहीं किया गया है। सरकार ने इस पर कोई जनमत नहीं मांगी है।

अक्षय ऊर्जा संयंत्र

अक्षय उर्जा पर रिन्यू पावर, ग्रीनको, अदानी ग्रीन, टाटा पावर, ए.सी.एम.ई., एस.बी. एनर्जी, एज्यूर पावर, सेम्बकॉर्प ग्रीन इंफ्रा और हीरो फ्यूचर एनर्जी जैसे प्रमुख कॉरपोरेट इजारेदारों का वर्चस्व है और उनकी वैश्विक वित्त पूंजी तक भी पहुंच है। चुनौती पर्याप्त भूमि खोजने की है क्योंकि सौर और पवन आधारित बिजली संयंत्रों के लिए बड़े भूखंडों की आवश्यकता होती है।

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में पूंजीपति कोल इंडिया के स्वामित्व वाली भूमि का अधिग्रहण करने में रुचि रखते हैं। वर्तमान में कोल इंडिया, रेलवे और एनटीपीसी जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां अपनी भूमि का उपयोग अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए कर रही हैं। पूंजीपति कुछ पुरानी कोयला खदानों को बंद करना चाहते हैं और अक्षय ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए भूमि और बुनियादी ढांचे का उपयोग करना चाहते हैं।

संशोधन विशेष रूप से निजी कंपनियों को खनन गतिविधियों के पूरा होने/या ‘‘सहायक गतिविधियों’’ के लिए उपयोग किए जाने के बाद भी अधिग्रहित भूमि पर नियंत्रण रखने के लिए प्रदान करता है।

यह बड़े पूंजीपतियों का एजेंडा है जिसे वर्तमान सरकार द्वारा लागू किया जा रहा है, भूमि सहित सभी सार्वजनिक संपत्तियों को निजी इजारेदारों को सौंप देना ताकि वे लोगों के हितों की कीमत पर अपने मुनाफे को अधिकतम कर सकें। निजीकरण के ख़िलाफ़ कोयला मज़दूरों का संघर्ष पूरे समाज के हित में एक न्यायोचित संघर्ष है।

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