किसान आंदोलन : वर्तमान स्थिति और आगे की रास्ता

मज़दूर एकता कमेटी द्वारा आयोजित सभा

25 अगस्त को दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों को नौ महीने पूरे हुए – मज़दूर एकता कमेटी (एम.ई.सी.) ने 6 सितंबर को “किसान आंदोलन – ”वर्तमान स्थिति और आगे का रास्ता“ विषय पर एक सभा आयोजित की। यह सभा ऑनलाइन आयोजित की गई थी।

देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ ब्रिटेन, कनाडा, अमरीका और अन्य देशों के सैकड़ों लोगों ने इसमें भाग लिया और चर्चा में हिस्सा लिया। यह सभा कई सार्वजनिक क्षेत्र की यूनियनों के नेताओं की भागीदारी के लिए उल्लेखनीय थी जो निजीकरण के खि़लाफ़ एक बहादुर और एकजुट संघर्ष कर रहे हैं।

सभा का संचालन एम.ई.सी. की ओर से बिरजू नायक ने किया। उन्होंने मुख्य वक्ता बतौर भारतीय किसान यूनियन (एकता) उग्राहां के अध्यक्ष श्री जोगिंदर सिंह उग्रहां का परिचय कराया जो इस समय किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठनों में से एक हैं – उन्होंने कई अन्य संगठनों के कार्यकर्ताओं के नामों की भी घोषणा की, जिन्हें किसान आंदोलन के समर्थन में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। जिनमें शामिल थे: लोक राज संगठन की उपाध्यक्ष संजीवनी, इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन ग्रेट ब्रिटेन के दलविंदर, कामगार एकता कमेटी के सचिव डॉ. मैथ्यू अब्राहम, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स के महासचिव अभिमन्यु धनखड़, महाराष्ट्र स्टेट बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव देवदास तुलजापुरकर, अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी संघ के शरद बोरकर, ग़दर इंटरनेशनल से सालविंदर, पुरोगामी महिला संगठन से पूनम, कनाडा से गुरदेव और मज़दूर एकता कमेटी की सुचरिता।

बिरजू नायक ने संक्षिप्त समीक्षा पेश की जो किसान आंदोलन ने पिछले एक साल में किया है, खासकर पिछले 9 महीनों में जब से किसान दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं देने और विरोध करने वाले किसानों पर राज्य का दमन शुरू करने के लिए सरकार की आलोचना की, जैसा कि अभी कुछ दिन पहले करनाल में किसानों पर लाठी चार्ज किया गया था। इसके बाद उन्होंने श्री जोगिंदर सिंह उग्राहां को मुख्य प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित किया।

श्री जोगिंदर सिंह उग्राहां ने एम.ई.सी. को किसान आंदोलन को लगातार समर्थन देने और इस सभा के आयोजन के लिए धन्यवाद दिया। जिसमें विभिन्न संगठनों के लोगों के साथ-साथ, सैकड़ों नागरिक, महिलाएं और युवा भाग ले रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़े-बड़े पूंजीवादी निगमों के इशारे पर काम कर रही है। यही कारण है कि किसानों के इतने पुरजोर विरोध के बाद भी वे ऐसे कानून पारित कर रहे हैं, क्योंकि कॉरपोरेट घराने चाहते हैं कि ये कानून उन्हें भारी मुनाफ़ा कमाने में सक्षम बनाएं। हमारे शासकों के लिए ”विकास“ का वास्तविक अर्थ कॉर्पोरेट घरानों के मुनाफ़े में वृद्धि सुनिश्चित करना है। सरकार बनाने के लिए संघर्ष कर रहे सभी राजनीतिक दल जब चुनाव में लोगों के वोट मांगते हैं तब यह दिखावा करते हैं कि वे लोगों के लिए हैं, लेकिन एक बार जब कोई पार्टी चुनकर सरकार में आ जाती है, तो वह बड़े कॉरपोरेट घरानों के लिए ही काम करती है।

श्री जोगिंदर सिंह ने घोषणा की कि संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) जो आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है, वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब में प्रचार करेगा और आने वाले महीनों में न केवल चुनाव वाले राज्यों में बल्कि राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में भी अभियान का विस्तार करेगा। उन्होंने कहा कि लोगों को प्रभावित करने वाली सभी प्रमुख समस्याओं, जैसे निजीकरण और राष्ट्रीय संपत्ति की बिक्री, सांप्रदायिक और जातिगत हिंसा, महिलाओं का उत्पीड़न, बेरोज़गारी, भुखमरी और शिक्षा की कमी को संघर्ष का हिस्सा बनाया जायेगा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसका उद्देश्य सत्तारूढ़ ताक़तों के खि़लाफ़ सभी को एक मंच पर लाना है। उन्होंने किसान आंदोलन को हर क्षेत्र में ले जाने के लिए हमारे देश की विभिन्न भाषाओं में सूचना सामग्री तैयार करने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए अपने विचार और सुझाव सामने रखने का आह्वान किया।

श्री उग्राहां के भाषण के बाद, कई आमंत्रित वक्ताओं ने किसान आंदोलन के समर्थन में अपनी बातें रखीं।

लोक राज संगठन (एल.आर.एस.) की उपाध्यक्ष संजीवनी जैन ने किसान आंदोलन के समर्थन में एल.आर.एस. द्वारा चलाए गए देशव्यापी अभियान के बारे में बताया। एल.आर.एस. दृढ़ता से इस बात की वकालत करता रहा है कि संप्रभुता, निर्णय लेने की सर्वोच्च शक्ति लोगों के हाथों में होनी चाहिए। सत्ता में बैठी सरकार को बड़े कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में और बहुसंख्यक लोगों के हितों के ख़िलाफ़ निर्णय लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि किसानों की ये मांगें पूरी तरह से जायज़ हैं कि केंद्र सरकार ने जो क़ानून किसानों की चिंताओं का उल्लंघन करते हुए पारित किए हैं, उन्हें निरस्त किया जाना चाहिए।

ब्रिटेन और कनाडा में भारतीय मज़दूरों के प्रतिनिधियों ने किसान आंदोलन के लिए अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया।

इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन, ग्रेट ब्रिटेन के दलविंदर ने ब्रिटेन में मौजूद हिन्दोस्तानी मज़दूर जिनका हिन्दोस्तान के किसानों के साथ खून का रिश्ता है उसके बारे में और शोषण तथा उत्पीड़न के खि़लाफ़ आम संघर्ष के बारे में बताया। कनाडा के गुरदेव ने किसानों की एकता, लड़ाई की भावना और संकल्प की सराहना की और विश्वास व्यक्त किया कि संघर्ष को सफलता का ताज ज़रूर हासिल होगा। ग़दर इंटरनेशनल के सालविंदर ने हिन्दोस्तान के किसानों के संघर्ष के साथ ब्रिटिश मज़दूर वर्ग की एकजुटता व्यक्त की।

कामगार एकता कमेटी के सचिव डॉ. मैथ्यू अब्राहम ने नौ महीने से अधिक समय तक बिना रुके चल रहे किसानों के साहसिक संघर्ष की सराहना की। उन्होंने बड़े कारपोरेट घरानों द्वारा कृषि भूमि और उपज के साथ-साथ हमारे लोगों की सभी क़ीमती संपत्तियों पर इजारेदारी नियंत्रण हासिल करने के प्रयासों के खि़लाफ़ मज़दूरों और किसानों के आम संघर्ष की बात की। विशेष रूप से, उन्होंने शासकों के निजीकरण कार्यक्रम को रोकने के लिए एकजुट होकर लड़ने के लिए एक संयुक्त मंच, निजीकरण के खि़लाफ़ सर्व हिन्द मंच (ए.आई.एफ.ए.पी.) पर सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूरों के 50 से अधिक ट्रेड यूनियनों के एक साथ आने पर प्रकाश डाला।

बिजली और पावर इंजीनियरों के प्रतिनिधियों, रक्षा कर्मचारियों और आयुध निर्माणी मज़दूरों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, रेलवे और अन्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने बैठक को संबोधित किया और किसानों के संघर्ष के समर्थन में बात की।

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स के महासचिव अभिमन्यु धनखड़ ने बिजली संशोधन विधेयक-2021 के खि़लाफ़ किये गये संघर्ष का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि यह विधेयक किसानों पर सीधा हमला है। विधेयक में किसानों के लिए प्रदान की जाने वाली बिजली के लिए सरकारी सब्सिडी को हटाने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि इससे कृषि उत्पादन की लागत में काफी वृद्धि होगी और बड़ी संख्या में छोटे और सीमांत किसान कर्ज़ में डूबेंगे। उन्होंने किसानों के संघर्ष के लिए अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया।

महाराष्ट्र स्टेट बैंक एम्प्लाइज फेडरेशन के महासचिव देवदास तुलजापुरकर ने निजीकरण के कार्यक्रम के खि़लाफ़ किसानों और श्रमिकों के आम संघर्ष और हमारी सबसे क़ीमती संपत्ति को निजी कॉरपोरेट घरानों को सौंपने के हमारे शासकों के प्रयासों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि किस तरह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर बड़े से बड़े कर्ज़ न चुकाने वाले पूंजीपतियों के हजारों करोड़ रुपये के कर्ज़ को बट्टे खाते में डालने का भारी दबाव है। लेकिन ग़रीब किसान जो चंद हजार रुपये का कर्ज़ नहीं चुका पाते हैं, उन्हें दंडित किया जाता है। उनकी ज़मीन और संपत्ति जब्त कर ली जाती है और उन्हें आत्महत्या करने के लिए मज़बूर कर दिया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय और निजीकरण चिंता का विषय है, न केवल बैंक कर्मचारियों के लिए बल्कि उन लोगों के लिए भी जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई इन बैंकों के हाथों में सौंप दी है। उन्होंने हमारे संघर्ष को लोगों के सभी वर्गों के बीच व्यापक रूप से ले जाने की आवश्यकता की बात कही।

अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (ए.आई.डी.ई.एफ.) के शरद बोरकर ने करोड़ों रुपयों की सार्वजनिक सम्पति को सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों का मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए बेच देने के सरकार के आपराधिक इरादों और उसे जायज़ ठहराने के रूप में मुद्रीकरण पाइपलाइन कार्यक्रम का खुलासा किया। यहां तक कि रक्षा जैसे सामरिक महत्व के क्षेत्रों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। उन्होंने संघर्ष को लोगों के बीच व्यापक रूप से ले जाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि मज़दूर और किसान भाई-भाई हैं और हमारा संघर्ष एक है।

पुरोगामी महिला संगठन (पी.एम.एस.) की पूनम ने किसान आंदोलन में महिलाओं की प्रेरक भूमिका पर प्रकाश डाला। महिलाओं ने पुराने सामाजिक रीति-रिवाजों को चुनौती दी है और बड़ी संख्या में आगे आई हैं, अपनी फ़सलों और खेतों को संभालने के साथ-साथ आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में भी शामिल हुई हैं। इतनी बड़ी संख्या में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी ने भारी कठिनाइयों के बावजूद संघर्ष को बनाए रखने में मदद की है। महिलाओं के संघर्ष की भावना पर पूर्ण विश्वास के साथ उन्होंने घोषणा की कि इससे निश्चित रूप से संघर्ष की जीत सुनिश्चित होगी।

पंजाब के विभिन्न हिस्सों से बैठक में बीकेयू एकता उग्राहां की महिला कार्यकर्ता शामिल हुईं। उन्होंने संघर्ष में महिलाओं को लामबंध करने के महत्व और आंदोलन को दी गई ताक़त के बारे में बड़े साहस और स्पष्टता के साथ बात की।

एम.ई.सी. की सुचरिता ने बताया कि इजारेदार घरानों के नेतृत्व वाला पूंजीपति वर्ग मज़दूरों, किसानों और सभी उत्पीड़ितों का मुख्य और साझा दुश्मन है। इसलिए किसानों के लिए आगे का रास्ता इजारेदार घरानों और उनके जन-विरोधी एजेंडे के खि़लाफ़ मज़दूर वर्ग के साथ एक मजबूत राजनीतिक गठबंधन बनाना और मजबूत करना है।

उन्होंने अगाह करते हुए कहा कि इस समय किसानों के संघर्ष के सामने सबसे बड़ा ख़तरा उन पार्टियों से है जो इस बात को बढ़ावा दे रही हैं कि भाजपा मुख्य दुश्मन है। भाजपा को मुख्य दुश्मन के रूप में पहचानने का मतलब है कि एक बार फिर से धोखा खाना और इस झूठी उम्मीद से धोखा खाना कि भाजपा की जगह कांग्रेस पार्टी या कोई भाजपा विरोधी गठबंधन किसानों के हितों को आगे बढ़ाएगा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि विकल्प मज़दूरों और किसानों के गठबंधन को मजबूत करना है, ताकि वे राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले सकें, इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों और अन्य सभी निजी मुनाफ़ाखोरों द्वारा हमारे लोगों की लूट को समाप्त कर सकें और सभी कामकाजी लोगों के लिए सुरक्षित आजीविका और प्रगति का गारंटी दे सकें।

कई प्रतिभागियों ने अपने मत रखे और सवाल किया कि हमारे देश में किस तरह की राजनीतिक व्यवस्था है, जो सरकार को इजारेदार कॉरपोरेट घरानों और मुनाफ़े के उनके कभी न ख़त्म होने वाले लालच के पक्ष में लाखों किसानों की मांगों को अनदेखा करने में सक्षम बनाती है? उन्होंने एक नई राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया की वकालत की जिसमें मज़दूर और किसान निर्णय लेने वाले होंगे और अर्थव्यवस्था इजारेदार पूंजीपतियों के अति-मुनाफ़े की लालच के बजाय बहुसंख्यकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार होगी।

सभा के अंत में, श्री जोगिंदर सिंह उग्राहां ने प्रतिभागियों द्वारा उठाई गई कई चिंताओं को संबोधित किया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा ने हिन्दोस्तान के हर राज्य में लोगों को संगठित करने के लिए एक ज़ोरदार देशव्यापी अभियान चलाने का फ़ैसला किया है।

बिरजू नायक ने इस प्रेरक संभावना के साथ कार्यवाही का समापन किया कि किसान आंदोलन के दौरान आज मज़दूरों और किसानों की एकता, मज़दूर-किसान शासन की स्थापना की ओर ले जाएगी, जो सभी के लिए सुख (समृद्धि) और रक्षा (संरक्षण) सुनिश्चित करेगी।

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