मुज़फ्फरनगर में किसान-मज़दूर महापंचायत

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में संयक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) द्वारा आयोजित “किसान-मज़दूर महापंचायत” के लिए शक्ति और एकता के विशाल प्रदर्शन में 5 सितंबर को देशभर से 10 लाख से अधिक किसान एक साथ आए। इस आयोजन में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित देशभर के 15 राज्यों के 300 से अधिक किसान यूनियनों और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के कई सामुदायिक संगठनों ने भाग लिया। हरियाणा और पंजाब के किसानों का एक विशाल जत्था वहां पहंुचा था। विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों की ट्रेड यूनियनों और संगठनों ने भी अपने प्रतिनिधिमंडलों को महापंचायत में भेजा और किसान संघर्ष को अपना समर्थन प्रकट किया।
प्रतिभागियों के लिए 5,000 ‘लंगर’ स्थल स्थापित किए गए थे। स्थानीय किसान संगठनों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों से आये प्रतिभागियों का स्वागत और मेजबानी की गई। महापंचायत में प्रतिभागियों का संघर्ष करने का साहसी जज्बा और संघर्ष को अंत तक ले जाने का संकल्प साफ दिखाई दिया।
रैली को देश के विभिन्न हिस्सों से आए किसान नेताओं ने संबोधित किया। उन्होंने अपनी मांगें दोहराई कि केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों किसान-विरोधी कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए, बिजली संशोधन विधेयक 2021 को वापस लिया जाना चाहिए और देश के सभी हिस्सों में सभी कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाला कानून पारित किया जाना चाहिए। उन्होंने गन्ने की खेती करने वाले किसानों की मांग का समर्थन किया, जो गन्ने के लिए 450 रुपये प्रति क्विंटल एस.ए.पी. (राज्य परामर्श मूल्य) के लिए उत्तर प्रदेश में आंदोलन कर रहे हैं।
किसान नेताओं ने सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की जो बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीपति कारपोरेट घरानों के मुनाफ़े को सुनिश्चित करने के पक्ष में हैं, और जो हमारे देश के किसानों और सभी लोगों को बर्बाद कर रही हैं। वे राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एन.एम.पी.) के नाम से प्रचारित किए जा रहे सरकार के निजीकरण और विनिवेश कार्यक्रम के ख़िलाफ़ भी आवाज़ उठा रहे हैं। उन्होंने लोगों की संपत्ति को सबसे बड़े निजी कॉरपोरेट घरानों को बेचने के कार्यक्रम के रूप में इसकी आलोचना की।
महापंचायत के प्रतिभागियों ने संघर्ष में सभी समुदायों के लोगों की एकता पर जोर दिया। उन्होंने लोगों को साम्प्रदायिक आधार पर बांटने, साम्प्रदायिक घृणा फैलाने और साम्प्रदायिक हिंसा को आयोजित करने की राज्य की कायराना कोशिशों का करारा जवाब दिया है।
सरकार को मज़दूर-विरोधी और किसान-विरोधी बताते हुए, एस.के.एम. ने संघर्षरत ट्रेड यूनियनों, कृषि मज़दूरों के संगठनों, छात्रों, युवाओं, महिलाओं और अन्य वर्गों को शामिल करने के अपने फ़ैसले की घोषणा की, जिनके जीवन, आजीविका और बुनियादी अधिकारों पर सरकार की नीतियों से हमला हो रहा है।
एस.के.एम. ने देशभर के सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शनों का विस्तार करने के अपने निर्णय की घोषणा की। घोषणा की गई कि किसान मज़दूर महासंघ द्वारा 28 सितंबर को छत्तीसगढ़ में एक और किसान महापंचायत का आयोजन किया जाएगा।
एस.के.एम. ने संघर्ष के समर्थन में 27 सितंबर को देशव्यापी बंद का आह्वान किया है।
करनाल में किसान महापंचायत
28 अगस्त को हरियाणा सरकार द्वारा विरोध कर रहे किसानों पर क्रूर हमले के जवाब में किसानों ने हरियाणा सरकार को एस.डी.एम. और अन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए एक अल्टीमेटम जारी किया था। ये वे अधिकारी हैं जिन्होंने किसानों पर हमले का नेतृत्व किया था और किसानों के ‘सिर फोड़ने’ के आदेश दिए थे। किसानों ने मांग की थी कि अधिकारियों को निलंबित किया जाए और दोषी एस.डी.एम. के ख़िलाफ़ हत्या का मामला दर्ज किया जाए। उन्होंने हमले में मारे गए किसान के परिवार को 25 लाख रुपये और राज्य की हिंसा में घायल हुए किसानों को 2 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की भी मांग की थी।

लेकिन हरियाणा सरकार ने किसानों के साथ तीन दौर की बातचीत के बाद भी किसानों की मांगों को मानने से इनकार कर दिया और इसकी बजाय एस.डी.एम. के कार्यों का समर्थन किया। अल्टीमेटम की समय सीमा 6 सितंबर को समाप्त हो गई, जिसके बाद किसानों ने 7 सितंबर को करनाल में महापंचायत आयोजित करने की अपनी योजना की घोषणा की।
करनाल के जिला प्रशासन ने इलाके में धारा 144 लागू कर दी और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं और प्रदर्शनकारियों पर आई.पी.सी. की धारा 188 लगाने की धमकी दी; जिसके तहत, किसानों पर एक प्राधिकरण के आदेशों की अवज्ञा करने का आरोप लगाया जाएगा और उन्हें छः महीने के कारावास या एक हजार रुपये तक के जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा। हरियाणा सरकार ने सभी पड़ोसी जिलों में इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया और लोगों को विरोध स्थल पर पहुंचने से रोकने के लिए दिल्ली-अंबाला राजमार्ग पर करनाल से यातायात को मोड़ दिया।
राज्य के दमन का डटकर मुक़ाबला करते हुए, हजारों किसान 7 सितंबर को करनाल में महापंचायत स्थल पर अपनी ताक़त और अपने विरोध को तेज़ करने के लिए पहुंचे। उन्होंने करीब 5 किलोमीटर दूर लघु सचिवालय भवन तक मार्च किया और लघु सचिवालय भवन का घेराव किया। संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) ने घोषणा की है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करती तब तक वे अनिश्चितकाल के लिए धरना स्थल पर धरने पर बैठेंगे।
आंदोलनकारी किसानों ने सरकार के इस झूठे प्रचार को ख़ारिज़ कर दिया है कि उसने रबी की फसल के मौसम में विभिन्न फ़सलों के एम.एस.पी. में बढ़ोतरी की है। उन्होंने बताया है कि बढ़ती महंगाई को देखते हुए, एम.एस.पी. में घोषित बढ़ोतरी के बाद भी गेहूं, चना और कई अन्य उत्पादों के खरीद मूल्य घटे हुए ही हैं। घोषित एम.एस.पी. बढ़ोतरी में बढ़ती कृषि लागत, पेट्रोल, डीजल और अन्य दैनिक आवश्यकताओं की बढ़ती क़ीमतों को ध्यान में नहीं रखा गया है।
पंजाब में संगरूर, बठिंडा और कई अन्य जगहों पर भी पिछले कुछ हफ्तों में किसानों के विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं। हरियाणा में झज्जर, बहादुरगढ़, शाहजहांपुर, कुरुक्षेत्र, महेंद्रगढ़ और अन्य जगहों पर किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री का पुतला फूंका। एस.के.एम. ने राज्य सरकार और उसकी राजनीतिक पार्टियों के सभी आयोजनों का विरोध करने के अपने फैसले की घोषणा की।
देश के अन्य हिस्सों में भी किसानों और किसान आंदोलन के समर्थन में विरोध प्रदर्शन जारी है।