23 अगस्त को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक संपत्ति का “मुद्रीकरण” करने की योजना की घोषणा की। उन्होंने दावा किया कि सरकार को इस योजना से चार साल में 6 लाख करोड़ रुपये एकत्र होने की उम्मीद है।
इस योजना के तहत बुनियादी ढांचे की संपत्ति जैसे कि सड़कों, रेलवे स्टेशनों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, कोयला खदानों, बिजली लाइनों, तेल और गैस पाइपलाइनों, दूरसंचार नेटवर्क, खाद्य गोदामों और खेल स्टेडियमों को निजी कंपनियों को लीज पर दिया जाएगा। कंपनियां 30 से 60 वर्ष की निश्चित अवधि के लिए संपत्ति रखने और उपयोग करने के अधिकार के लिए अग्रिम भुगतान करेंगी। इस अवधि के दौरान पूंजीवादी कंपनियों को निजी लाभ कमाने के लिए संपत्ति का प्रबंधन और विकास करने की पूरी छूट होगी। लीज की अवधि ख़त्म हो जाने के बाद पूंजीवादी कंपनी को उन संपत्तियों को सरकार को वापस करना होगा।
वित्त मंत्री सीतारमण का कहना है कि यह निजीकरण नहीं है क्योंकि संपत्ति केवल लीज पर दी जा रही है, बेची नहीं जा रही है। लेकिन संपत्ति को बेचा जाए या लंबी अवधि के लिये लीज पर दी जाए, यह निजी पूंजीवादी लाभ के लिए सार्वजनिक संपत्ति को सौंपने की ही योजना है। किसी भी हाल में लोगों को इन संपत्तियों का इस्तेमाल करने के लिए अधिक भुगतान करना होगा, ताकि निजी कंपनियां लीज के लिये दिये गये पैसों से ज्यादा पैसे कमा सकें।
फिलहाल निजी कंपनियों को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) के तहत 26,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों को दिया गया है। सरकार को इससे 1-6 लाख करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है। निजी कंपनियां सड़क किनारे होटल और दुकान खोल कर या संभावित रूप से टोल शुल्क लगाकर भी पैसा कमा सकती हैं।
लगभग 400 रेलवे स्टेशनों, 90 यात्री रेलगाड़ियों, 741 किलोमीटर कोंकण रेलवे और 15 रेलवे स्टेडियम और असंख्य रेलवे हाउसिंग कॉलोनियों को 1-2 लाख करोड़ रुपये में निजी कंपनियों को सौंपने की योजना है। निजी कंपनियां रेल किराए और उपयोगकर्ता शुल्क में बढ़ोतरी करके पैसा कमाएंगी।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण चेन्नई, भोपाल, वाराणसी और वडोदरा सहित 25 हवाई अड्डों को लीज पर देगा। हवाई अड्डे के मुद्रीकरण से 20,782 करोड़ रुपये मिलेंगे। हवाई अड्डों के कर्मियों की आवासीय कॉलोनियों को भी लीज पर दी जाने वाली संपत्तियों में शामिल किया गया है। जैसा कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद में हवाई अड्डों के निजीकरण के अनुभव से पता चलता है, वैसे ही इन सभी हवाई अड्डों पर भी उपयोगकर्ता शुल्क बहुत बढ़ जाएगा।
लीज पर दी जाने वाली अन्य संपत्तियों में 28,000 सर्किट किलोमीटर बिजली प्रसार लाइनें, 2.86 लाख किलोमीटर भारत नेट फाइबर, बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल. के 14,917 सिग्नल टावर, 8,154 किलोमीटर नेचुरल गैस पाइपलाइन, भारतीय खाद्य निगम के गोदाम, दो राष्ट्रीय स्टेडियम और दिल्ली की सात आवासीय कॉलोनियां शामिल हैं।
निजी पूंजीपति एक परियोजना को तभी हाथ में लेंगे जब उन्हें उससे मुनाफ़ा कमाने की गारंटी होगी। इसके लिए सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि लीज फीस कम रखी जाए और निजी कंपनी को जनता से अत्यधिक शुल्क वसूलने की अनुमति दी जाए। जब कोई कंपनी अपेक्षा से कम मुनाफ़ा कमाती है, तब इस नुकसान की भरपाई की उम्मीद सरकार से होती है।
इन बुनियादी सुविधाओं की संपत्ति को बनाए रखने में वर्तमान में कार्यरत मज़दूरों को अपनी नौकरी खोने का ख़तरा होगा। निजी कंपनियां उनकी जगह पर ठेका मज़दूरों को रखेंगी जिन्हें बिना सामाजिक सुरक्षा के कम से कम वेतन पर लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
मुद्रीकरण योजना और कुछ नहीं बल्कि निजीकरण का दूसरा रूप है। मज़दूर वर्ग और लोगों द्वारा इसकी निंदा और विरोध किया जाना चाहिए।