27 सितंबर का ‘भारत बंद’ हार्दिक समर्थन के योग्य है

मज़दूर एकता कमेटी का बयान 8 सितंबर, 2021

किसान यूनियनों के संयुक्त संगठन, संयुक्त किसान मोर्चा ने 27 सितंबर, 2021 को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। पिछले साल इसी दिन हिन्दोस्तान के राष्ट्रपति ने संसद द्वारा पारित तीनों किसान-विरोधी कानूनों को मंजूरी दी थी। यह बंद दिल्ली की सीमाओं पर किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर किये जा रहे विरोध प्रदर्शन के 10 महीने पूरे होने का प्रतीक होगा।

25-26 अगस्त को सिंघू बार्डर पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया। इस सम्मेलन में 22 विभिन्न राज्यों की किसान यूनियनों के 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।

सम्मेलन में पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है कि हिन्दोस्तान को बड़े निगमों को सौंपा जा रहा है और यह न केवल किसानों, बल्कि मज़दूरों, छात्रों, युवाओं और आदिवासियों की आजीविका को भी प्रभावित करेगा। सम्मेलन ने हाल ही में घोषित मुद्रीकरण योजना सहित सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण और मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किए। सम्मेलन ने केंद्र सरकार की जन-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ करने का संकल्प किया।

किसान तीनों किसान-विरोधी कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, इन कानूनों के परिणामस्वरूप कृषि व्यापार और कृषि वस्तुओं के भंडारण पर हिन्दोस्तानी और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का वर्चस्व स्थापित हो जाएगा। किसान राज्य से कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं कि यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी किसान अपनी उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से कम क़ीमत पर बेचने के लिए मजबूर न हो। इसके अलावा एम.एस.पी. को उस स्तर पर निर्धारित किया जाना चाहिए जो किसानों के लिए लाभकारी हो। किसान बिजली संशोधन अधिनियम-2021 को वापस लेने की मांग भी कर रहे हैं, जिससे किसानों की उत्पादन लागत काफी बढ़ जाएगी और वे बर्बाद हो जाएंगे।

किसानों ने चिलचिलाती गर्मी, कड़ाके की ठंड और मानसून की बारिश को दस महीने तक झेला है। इस संघर्ष में 1000 से अधिक किसानों ने अपने प्राणों की आहूती दी है। फिर भी केंद्र सरकार ने उनकी जायज़ मांगों को पूरा करने से साफ इनकार कर दिया है। उसने आंदोलन को बदनाम करने और किसानों को विभाजित करने के लिए विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल किया है। सरकार के ये तरीके़ किसानों को आंदोलन करने और मांगें पूरी हो जाने तक आंदोलन को जारी रखने के संकल्प से हिलाने में विफल रहे हैं।

किसान आंदोलन की मांगों को देशभर के मज़दूरों की यूनियनों का हार्दिक समर्थन मिला है।

हमारे देश में जो संघर्ष चल रहा है वह शोषक अल्पसंख्यक और शोषित बहुसंख्यकों के बीच है। एक तरफ टाटा, अंबानी, बिरला, अडानी और अन्य इजारेदार घरानों के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग खड़ा है। दूसरी तरफ मज़दूर, किसान और तमाम मेहनतकश और उत्पीड़ित लोग खड़े हैं।

27 सितंबर को होने वाले भारत बंद को मज़दूर एकता कमेटी का हार्दिक समर्थन है!

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