11 फरवरी, 2011 की शाम 5:30 बजे (मिस्र का समय), होस्नी मुबारक की घिनावनी सत्ता के खिलाफ़ मिस्र की जनता की 18 दिन लम्बी बग़ावत को जीत हासिल हुई। 30 वर्ष लम्बा मुबारक का दमन का शासन काल अब समाप्त हो गया है।
मजदूर एकता लहर मिस्र के बहादुर लोगों को बधाई देती है, जिन्होंने अपने अडिग संघर्ष और एकता द्वारा दमनकारी शासक को बाहर निकाला
11 फरवरी, 2011 की शाम 5:30 बजे (मिस्र का समय), होस्नी मुबारक की घिनावनी सत्ता के खिलाफ़ मिस्र की जनता की 18 दिन लम्बी बग़ावत को जीत हासिल हुई। 30 वर्ष लम्बा मुबारक का दमन का शासन काल अब समाप्त हो गया है।
मजदूर एकता लहर मिस्र के बहादुर लोगों को बधाई देती है, जिन्होंने अपने अडिग संघर्ष और एकता द्वारा दमनकारी शासक को बाहर निकाला।
इन 18 दिनों के दौरान मिस्र के लोग कभी पीछे नहीं हटे। उन्होंने क्षणभर के लिये भी ऐतिहासिक तहरीर (मुक्ति) चौक को नहीं छोड़ा। उन्होंने सत्ता की ओर से लोगों को उकसाने के लिये भेजे गये एजेन्टों को अपना संघर्ष तोड़ने की इजाज़त नहीं दी और उन्होंने अपना ध्यान व एकता कायम रखा। उन्होंने प्रतिदिन मजदूरों, बुध्दिजीवियों, नौजवानों और वरिष्ठ नागरिकों, समाज के हर तबके के पुरुषों और स्त्रियों को अधिक से अधिक संख्या में अपने संघर्ष के साथ जोड़ा।
धूर्त मुबारक और मिस्र के अन्दर व बाहर उनके समर्थकों ने लोगों को अपना संघर्ष छोड़ने और निराश होकर घर वापस जाने को मजबूर करने की हर प्रकार की चाल चली। परन्तु लोगों ने उनकी हर चाल को भांप लिया और ठुकरा दिया। लोगों ने मुबारक और उसके समर्थकों को फौरन सत्ता से हटाने से कम कुछ भी स्वीकार करने से इंकार किया। जुझारू लोगों की दृढ़ता और जागरूकता अवश्य ही सराहनीय थी।
अब मिस्र की जनता के सामने और भी बड़ी चुनौतियां आ गयी हैं, यह सुनिश्चित करने के लिये कि वे अपने संघर्ष के फल पूरी तरह प्राप्त कर सकें। उन्हें संगठित और सतर्क रहना होगा ताकि आगे आने वाली राजनीतिक व्यवस्था में उनकी आवाज़ सुनी जाये। उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिये संघर्ष करना होगा कि अर्थव्यवस्था उस जन समुदाय की जरूरतों और उम्मीदों को पूरा करने की दिशा में काम करे, जो पुरानी सत्ता की अमीर-पक्ष नीतियों के विरोध में सड़कों पर निकल आया था।
यह भूला नहीं जा सकता कि होस्नी मुबारक की सत्ता को अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने कई दशकों तक पूरा-पूरा समर्थन दिया था। अपनी विशाल सेना के साथ मिस्र पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में अमरीकी और यूरोपीय साम्राज्यवादियों के हितों की सेवा में, एक मुख्य सहयोगी रहा है। मिस्र की सेना ने इस्राइल के जाउनवादी राज्य के हितों के अनुसार फिलिस्तीनी लोगों के राष्ट्रीय जज़बातों को कुचला है। मिस्र ने अपने लिये कच्चा तेल की बेरोक सप्लाई सुनिश्चित करने के लिये उस इलाके के तेल उत्पादक देशों पर रौब जमाया है और क्रांति व राष्ट्रीय मुक्ति के लिये वहां के लोगों के संघर्षों को कुचला है। मुबारक के शासन के दौरान मिस्र अमरीकी साम्राज्यवादियों का जैसा परखा हुआ मित्र था, उस मित्र का खोना अमरीकी साम्राज्यवादी आसानी से नहीं मानेंगे। यह स्पष्ट है कि अमरीकी सरकार मिस्र में अपने हितों की रक्षा के लिये, पीछे से नई व्यवस्थाएं लागू करने की तरह-तरह की साज़िशें कर रही है।
अमरीकी, ब्रिटिश और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतें ”सुव्यवस्थित परिवर्तन” की मांग कर रही हैं। जिन ताकतों ने बीते 3 दशकों से मिस्र की जनता के खिलाफ़ मुबारक की खूनी सत्ता को पूरा समर्थन दिया था, वे आज मिस्र में लोकतंत्र के बारे में चिन्ता दिखा रही हैं और घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। वे मिस्र में सभी राजनीतिक ताकतों पर यह दबाव डाल रही हैं कि सत्ता हस्तांतरण का ऐसा समझौता किया जाये ताकि यह सुनिश्चित हो कि (1) नई व्यवस्था के अंतर्गत उस इलाके में अमरीकी तथा अन्य साम्राज्यवादियों के हितों की रक्षा हो (2) मिस्र पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के अन्दर रहे और (3) मिस्र की जनता, खास तौर पर मजदूर वर्ग, जो विद्रोह में आगे आयी थी, उन्हें वापस भेज दिया जाये और देश के भविष्य पर फैसला लेने में उनकी कोई भूमिका न हो। साम्राज्यवादी ताकतें यह चाहती हैं कि जो क्रांति वहां शुरु हुई है, उसे बीच रास्ते में ही रोक दिया जाये और एक ऐसी नयी व्यवस्था बिठायी जाये जो पुरानी व्यवस्था की ही निरंतरता होगी।
परन्तु मिस्र की जनता, जिसने अपनी मुक्ति के लिये इतनी बहादुरी से संघर्ष किया, वे अवश्य ही अमरीका और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतों को पहले की तरह अपने देश को पड़ौस के दूसरे देशों के लोगों की मुक्ति और इंसाफ के हितों के खिलाफ़ इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देंगे। मिस्र के मजदूर वर्ग व लोगों और उनके स्थानीय व विदेशी दुश्मनों के बीच का संघर्ष आने वाले समय में और तीखा होगा।
मिस्र के लोगों का संघर्ष उस इलाके के अन्य देशों के लोगों को अपनी दमनकारी, साम्राज्यवाद परस्त सत्ताओं को मार भगाने को प्रेरित कर रहा है। खबरों के अनुसार, येमेन, एल्जीरिया और कुछ अन्य देशों में संघर्ष शुरु हो गये हैं।
हिन्दोस्तान के लोगों का कई हजारों वर्षों से मिस्र के लोगों के साथ मित्रता के संबंधों का इतिहास है। हम उपनिवेशवाद और बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवाद से समान रूप से नफरत करते हैं। हम मिस्र में अपने भाईयों और बहनों की जीत को सलाम करते हैं। हम लोकतंत्र और खुद अपने भविष्य को तय करने के अधिकार के लिये उनके संघर्ष में उनका हमेशा साथ देंगे।