दिल्ली सरकार ने आशा मज़दूरों को वादा किए गए प्रोत्साहन भत्ते का भुगतान नहीं किया

दिल्ली में लगभग 6,000 मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को अप्रैल 2021 से मासिक प्रोत्साहन भत्ते का भुगतान नहीं किया गया है। यह प्रोत्साहन भत्ता उनको, कोविड-19 के रोगियों को घर पर ही इलाज़ उपलब्ध कराने के लिए और नियंत्रण क्षेत्रों में सर्वेक्षण करने के लिए दिया जाना चाहिए था।

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9 अगस्त, 2021 को संसद के सामने आशा कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया

आशा कार्यकर्ताओं को नियमित कर्मचारियों की तरह निश्चित वेतन नहीं मिलता। सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें सरकार द्वारा प्रोत्साहन भत्ते का भुगतान किया जाता है। कोविड-19 महामारी के दौरान उन्हें विशेष प्रोत्साहन भत्ता देने का वादा किया गया था। सरकारी नियमों के अनुसार, घर में आइसोलेशन के तहत रह रहे कोविड-19 के रोगी के यहां जाकर मुआयना के लिये प्रत्येक बार के 100 रुपये और इसके अतिरिक्त, जलपान के लिए प्रति दिन के 100 रुपये का भुगतान एक आशा कार्यकर्ता को किया जाना है। प्रतिबंधित क्षेत्र (कंटेनमेंट जोन) में किए गए सर्वेक्षण के लिए एक आशा कार्यकर्ता को एक दिन में 50 से कम घरों का सर्वेक्षण करने के लिए 500 रुपये का भुगतान किया जाना है। यह सब देखते हुए, एक आशा कार्यकर्ता महीने में कम से कम 3000-5000 रुपये कमा सकती थी।

आशा कार्यकर्ता भी अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (फ्रंट लाइन वर्कर्स) में से एक हैं, जो घर-घर सर्वेक्षण और दवा-किट वितरित करने, ऑक्सीजन का स्तर मापने, नियंत्रण क्षेत्रों की निगरानी करने और टीकों के बारे में जागरुकता फैलाने से लेकर, इस महामारी से संबधित कई ज़िम्मेदारियों को निभाते आये हैं।

महामारी के बाद से इन श्रमिकों ने चौबीसों घंटे काम किया है, कभी-कभी रात को 10 बजे भी लोगों का फोन आने पर, मरीजों को उनके घर दवा देने के लिए गए हैं। सरकार ने उन्हें पी.पी.ई. किट तक नहीं दिया और कर्मचारी अपने पैसे से सैनिटाइज़र, दस्ताने और मास्क खरीद कर अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं।

महामारी के मद्देनज़र आशा कार्यकर्ताओं के नियमित काम में गिरावट आई है। अधिकारियों का दावा है कि प्रोत्साहन भत्ते का भुगतान इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि नियमित काम, जिससे आशा कार्यकर्ता महामारी से पहले प्रोत्साहन भत्ता पाते थे, वह मार्च से फिर शुरू हो गया है। यह एक बहाना है, क्योंकि देश में महामारी के दूसरी लहर आई और आशा कर्मचारी एक बार फिर से उन्हीं ज़िम्मेदारियों से घिर गईं। दिल्ली सरकार ने पिछले साल अगस्त में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने वाले श्रमिकों की मांगों के जवाब में 3,000 रुपये का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की थी। इस साल महामारी की दूसरी लहर आई लेकिन सरकार ने 3,000 रुपये का भुगतान नहीं किया है ।

अपने अधिकारों की मांग को लेकर आशा कार्यकर्ता बार-बार सड़कों पर उतर रही हैं। उनमें से 70,000 आशा कार्यकर्ता, जून 2021 में महाराष्ट्र में ज्यादा वेतन, काम के नियमितीकरण और सामाजिक सुरक्षा की मांग को लेकर हड़ताल पर गए थे। अगस्त 2020 में 6 लाख आशा कार्यकर्ताओं ने अखिल भारतीय हड़ताल की थी। पिछले एक साल में, आशा कार्यकर्ताओं ने गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश और पंजाब सहित कई राज्यों में कई हड़तालें और विरोध प्रदर्शन किए हैं।

दिल्ली की आशा कार्यकर्ताओं को भी सरकार की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि कौन सा कार्यालय उन्हें उन जिम्मेदारियों को निभाने के लिए, प्रोत्साहन भत्ते का भुगतान करेगा, जिन्हें निभाने के लिए उन्हें कहा गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री को अपनी समस्याओं के बारे में लिखा है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं आया है।

दिल्ली सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों को वेतन न देने का कोई औचित्य नहीं है। श्रमिकों को भुगतान से इनकार करना, विशेष रूप से उन लोगों को, जिन्होंने महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को दिए गए आह्वान को बखूबी निभाया है, श्रमिकों के अधिकारों का घोर उल्लंघन है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन

हिन्दोस्तान की सरकार ने 2005 से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एन.आर.एच.एम.) के तहत आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्ति शुरू की थी।

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) एक सर्व-महिला स्वास्थ्य सेवा कार्यबल है जो हिन्दोस्तान में जन समुदायों और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करती हैं। भले ही उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार “स्वास्थ्य कार्यकर्ता“ के रूप में जाना जाता है, लेकिन फ्रंटलाइन वर्कर्स (अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता) के रूप में पहचाने जाने और उसके अनुसार, उनको उनकी बुनियादी आवश्यकताओं और सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए, उनका संघर्ष लंबे समय से चला आ रहा है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थय मिशन (एन.आर.एच.एम.) के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि आशा कार्यकर्ता एक ’माननीय स्वयंसेवक’ होगी, उसे कोई वेतन नहीं मिलेगा और उसका काम उसकी ’सामान्य आजीविका’ को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाएगा। कभी-कभी कुछ अतिरिक्त कार्यक्रमों के साथ, आशा कार्यकर्ताओं के काम का बोझ, सप्ताह में केवल चार दिन और प्रतिदिन सिर्फ दो-तीन घंटे होना चाहिए था। यह वर्गीकरण इस धारणा पर आधारित है कि आशा कर्मचारी का कार्य, कार्यकर्ता की मुख्य आजीविका नहीं बल्कि उसके अलावा एक अतिरिक्त ज़िम्मेदारी है। हालांकि, हक़ीक़त में यह देखा गया है कि अधिकांश आशा कार्यकर्ता सप्ताह में 25-28 घंटे काम कर रही हैं, और कहीं-कहीं, उससे भी अधिक समय तक। 2020 में यह पाया गया कि महामारी से संबंधित अतिरिक्त ज़िम्मेदारियों के कारण पूरे देश में आशा कार्यकर्ता सप्ताह के सातों दिन, क्षेत्र में औसतन 8-14 घंटे प्रतिदिन काम कर रही हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एन.आर.एच.एम.) के तहत 60 से अधिक कार्य हैं जिनके लिए राज्य, आशा कार्यकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन भत्ता निर्धारित कर सकते हैं। यह भत्ता, ओ.आर.एस. पैकेट, कंडोम या सैनिटरी नैपकिन जैसे सामान घर-घर में वितरित करने के लिए 1 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक (जैसे कि किसी दवा-प्रतिरोधी टीबी रोगी को उपचार और सहायता की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए) हो सकता है। 2018 में केंद्र सरकार ने नियमित और आवर्ती आशा गतिविधियों के एक निश्चित सेट के लिए प्रोत्साहन भत्ता को दोगुना कर दिया – 1000 रुपये से बढ़ाकर 2000 रुपये कर दिया।

’कर्मचारियों’ के रूप में वर्गीकृत न होने के कारण, आशा कर्मचारियों के पास किसी भी सामाजिक सुरक्षा (बीमारी की छुट्टी, मातृत्व अवकाश, पेंशन, पी.एफ., आदि) के अधिकार नहीं हैं। इसके बजाय उन्हें तदर्थ, अस्थायी कल्याण उपायों पर निर्भर रहना पड़ता है।

 

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