15 अगस्त के अवसर पर :
किसानों ने देशभर में रैलियां आयोजित कीं

उपनिवेशवादी राज से आजादी की 74वीं सालगिरह, 15 अगस्त के दिन किसानों ने देशभर में रैलियां आयोजित कीं। इन रैलियों के जरिये उन्होंने तीन किसान-विरोधी कानूनों को रद्द कराने और सभी कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गांरटी के लिये संघर्ष को और तेज करने का संकल्प दर्शाया। इन कार्यक्रमों में लाखों लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

Vgha Border
किसान मज़दूर संघर्ष समिति द्वारा 15 अगस्त को वाघा बार्डर से मोटर साइकिल रैली का आयोजन

हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) ने 15 अगस्त को मेगा ”तिरंगा यात्रा“ का आयोजन किया। अनेक जिलों में किसानों ने दर्जनों मोटर साइकलों और ट्रेक्टरों की रैलियां निकाली। उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) ने ट्रेक्टरों की रैलियां निकाली।

इस अवसर पर पंजाब के शहरों व गांवों में सैकड़ों सभाएं और रैलियां आयोजित की गयीं।

भारतीय किसान यूनियन (एकता) सिद्धूपुर के अध्यक्ष श्री जगजीत सिंह डल्लेवाल ने खटकर कलां में एक विशाल किसान रैली का संबोधन किया। शहीद-ए-आजम भगत सिंह को श्रद्धांजली देते हुए, उन्होंने समझाया कि सरहद पर किसानों का संघर्ष सिर्फ तीन किसान-विरोधी कानूनों को रद्द करने तक सीमित नहीं है। साथ ही, उस बर्बादी के रास्ते के ख़िलाफ़ भी संघर्ष है जो लोगों को गुलाम बनायेगा। उन्होंने ध्यान दिलाया कि लोगों के आर्थिक रीढ़ की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की बहाली की सुनिश्चिति और सड़ी हुई साम्राज्यवादी संस्कृति से अपनी सांस्कृतिक विरासत का बचाव बहुत ही अहमियत रखते हैं।

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किसान मज़दूर संघर्ष समिति द्वारा 15 अगस्त को वाघा बार्डर से एक मोटर साइकिल रैली का आयोजन

किसान मज़दूर संघर्ष समिति ने अटारी-वाघा सीमा से ब्यास तक एक मोटर साइकिल रैली का आयोजन किया, जिसमें हज़ारों युवाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। उन्होंने ज़िन्दादिली से गीत गाए और अपनी मांगों को लेकर नारेबाजी की। इस अवसर पर स्वर्ण द्वार पर, वर्तमान भ्रष्ट सरकार का पुतला दहन किया गया। जालंधर, होशियारपुर, कपूरथला और फाजिल्का सहित, किसान मज़दूर संघर्ष समिति के जिला मुख्यालयों पर भी विशाल रैलियां आयोजित की गईं।
किसान मज़दूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि “ग़दरी बाबाओं और अन्य शहीदों ने एक आज़ाद हिन्दोस्तान का सपना देखा था, लेकिन वह सपना साकार नहीं हुआ। आज भी अंग्रेजों के काले कानून देश की जनता पर थोपे जाते हैं। देश के मज़दूर वर्ग की लूट आज भी जारी है। हजारों मोटर साइकिलों का एक विशाल काफिला सरकार को यह बताने के लिए सड़कों पर उतर आया कि हम अधूरी आज़ादी से संतुष्ट नहीं हैं।”

Ugrahan photo Meeting
भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) ने किसान-मज़दूर मुक्ति-संघर्ष दिवस के रूप में मनाया

इस अवसर पर किसानों को संबोधित करते हुए, गुरबचन सिंह चब्बा ने कहा, “देश की सत्तारूढ़ सरकार 15 अगस्त को 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रही है, लेकिन यह अधूरी आज़ादी है। 1947 के बाद भी, देश का मज़दूर वर्ग और किसान, पूरी आज़ादी के लिए आज तक संघर्ष करते आये हैं।” केंद्र सरकार के किसान-विरोधी और जन-विरोधी रुख़ की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि “जबकि देश के मेहनतकश किसान लगातार आठ महीने से दिल्ली की सरहदों पर संघर्ष कर रहे हैं, जहां लगभग 600 लोग इस संघर्ष में शहीद हुए हैं, केंद्र सरकार देश के सार्वजनिक और आर्थिक संसाधन कॉरपोरेट घरानों को देने पर अड़ी हुई है”।

भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहां) ने दिल्ली की सरहद, पकौड़ा चौक पर एक मेगा रैली आयोजित की। भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहां) के अध्यक्ष, श्री जोगिंदर सिंह उग्रहां ने इस मेगा रैली को संबोधित किया। पंजाब के शहरों और सैकड़ों गांवों में भी 15 अगस्त को किसान-मज़दूर मुक्ति-संघर्ष दिवस के रूप में मनाया गया। इन सभाओं में हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया।

सभाओं में वक्ताओं ने इस हक़ीक़त पर विस्तार से बात की कि 1947 में कांग्रेस के नेताओं ने हमारे लोगों की आकांक्षाओं के साथ विश्वासघात किया था, वास्तविक राष्ट्रीय मुक्ति के लिए अंग्रेजों को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने और मज़दूरों और किसानों को सत्ता में लाने के उद्देश्य के लिए लड़ रहे देशवासियों के साथ एक बहुत बड़ा विश्वासघात किया गया था। भगत सिंह और उनके साथियों ने भी इसी क्रांतिकारी मार्ग की हिमायत की थी। लेकिन कांग्रेस के शासकों ने, केवल ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की जगह ले ली। किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बैठकों में विस्तार से बताया कि कैसे औपनिवेशिक व्यवस्था का पूरा ताना-बाना बरकरार रहा – साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा, हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट, कॉर्पोरेट घरानों द्वारा मज़दूरों का शोषण, बेरोज़गारी, फूट डालो और राज करो की राज्य-नीति और सांप्रदायिक हिंसा और जातिगत भेदभाव आयोजित करने की साज़िशें, सभी प्रकार के मतभेदों और असहमतियों का क्रूर दमन आदि, अभी तक लगातार जारी हैं। उन्होंने समझाया कि यही कारण है कि राज्य द्वारा किये जा रहे इस तरह के दमन और अपने अधिकारों का उल्लंघन आज हम देख रहे हैं।

किसान-विरोधी कानूनों का विरोध करते हुए वक्ताओं ने किसानों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कई उदाहरण पेश किये कि कैसे निजीकरण के द्वारा, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, परिवहन और रोज़गार के क्षेत्रों में लोगों के जीवन को बर्बाद किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट रूप से समझाया कि कैसे बैंक ऋण पर ब्याज का भुगतान करने के लिए किसानों को गुलाम बनाया गया था। उन्होंने महिलाओं के उत्पीड़न और उनके साथ किये जाने वाले भेदभाव की निंदा की।

वक्ताओं ने, बड़े कारपोरेट घरानों की तिजोरी भरने के लिए लोगों की संपत्ति की लूट की कड़ी निंदा की। उन्होंने श्रम संहिता संशोधन, पेंशन योजना संशोधन आदि कानूनों द्वारा किये जाने वाले, मज़दूरों के अत्यधिक शोषण और उनके अधिकारों के उल्लंघन की निंदा की। उन्होंने व्यापार का राष्ट्रीयकरण, भूमि सुधार और भूमिहीन किसानों को भूमि वितरण, कृषि आदानों के लिए सस्ता बैंक ऋण, बेरोज़गारों के लिए रोज़गार, बेरोज़गारी भत्ता की मांग की। उन्होंने जाति और सांप्रदायिक हिंसा, महिलाओं पर हिंसा और लोकतांत्रिक विरोध को कुचलने की क्रूर कोशिशों की निंदा की।

सबसे बड़े कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में सरकार की नीतियों को चुनौती देने के लिए, टोल प्लाजा और सौर-संयंत्रों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। अडानी सेलो डगरू (मोगा), अडानी सोलर पावर प्लांट सरदारगढ़ (बठिंडा) और टोल प्लाजा कालाझार (संगरूर) में हजारों महिलाएं और युवा इकट्ठे हुए। किसान आंदोलन के समर्थन में, ठेका कर्मचारी, शिक्षक, पेंशनभोगी, बेरोज़गार युवा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता, मनरेगा कार्यकर्ता, बिजली कर्मचारी, जलापूर्ति कार्यकर्ता और अन्य उत्पीड़ित वर्ग के लोग भी इन विरोध सभाओं में शामिल हुए।

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