रेलवे गार्ड के मुखिया से साक्षात्कार

कॉमरेड ए. के. श्रीवास्तव, ऑल इंडिया गार्ड्स काऊंसिल (ए.आई.जी.सी.) के महासचिव हैं। हमारे संवाददाता ने पिछले 20 वर्षों की आर्थिक सुधार नीति और रेलवे के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में काम की परिस्थिति के बारे में सूचना लेने के लिये उनसे साक्षात्कार किया।

कॉमरेड ए. के. श्रीवास्तव, ऑल इंडिया गार्ड्स काऊंसिल (ए.आई.जी.सी.) के महासचिव हैं। हमारे संवाददाता ने पिछले 20 वर्षों की आर्थिक सुधार नीति और रेलवे के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में काम की परिस्थिति के बारे में सूचना लेने के लिये उनसे साक्षात्कार किया।

म.ए.ल.: पिछले साल, नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी द्वारा शुरू की उदारीकरण और निजीकरण के जरिये वैश्वीकरण की नीति के 20 वर्ष पूरे हुये। उस वक्त, वर्तमान प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। इस नीति का क्या असर हुआ है?

ए.के. श्रीवास्तव (ए.के.एस.): उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये वैश्वीकरण की नीति के कारण श्रम-शक्ति में गिरावट आयी है और बेरोज़गारी बढ़ी है। इस नीति ने मध्यम वर्ग का विनाश किया है और उन्हें मज़दूर वर्ग की श्रेणी में डाल दिया है। कुछेक उच्च वर्ग के लोगों के पास सब पैसा है तथा वे दिन-ब-दिन और अमीर हो रहे हैं। दूसरे लोगों के पास कुछ नहीं है तथा वे दिन-ब-दिन और गरीब हो रहे हैं। लोगों को मिलने वाले 3000 से 5000 रु. के वेतन से अब गुजारा नहीं होता है। गुनाहों की दर में बहुत वृद्धि हुई है। अगर लोग कानूनी तौर पर कमा नहीं पायेंगे, तो होगा भी और क्या?

म.ए.ल.: इस नीति का रेलवे, और खास तौर पर गार्डों पर क्या असर हुआ है?

ए.के.एस. : इस दौर में, रेलगाडि़यों के चलाने से संबंधित कार्यों और सहयोगी सेवाओं के अलग-अलग कामकाजों को निजी ठेकेदारों को सौंप दिया गया है। हिन्दोस्तान में करीब 15,000 रेलगाडि़यां चलती हैं। हर दिन इनमें करीब 10 लाख टन सामान ढोया जाता है और करीब 1 करोड़ लोग यात्रा करते हैं। करीब 65,000 किमी की दूरी तय होती है। वर्तमान में लगभग 15.2 लाख रेलवे  कर्मचारी हैं। प्रशासन चाहता है कि इन्हें छांट कर 8 लाख से कम कर दिया जाये और ज्यादा से ज्यादा काम ठेके पर करवाया जाये। इससे पूंजीपतियों को फायदा है, परन्तु मज़दूरों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। विश्व बैंक की नीतियों से कर्मचारियों में कटौती होती है। हर वर्ष रेलगाडि़यों की संख्या बढ़ा दी जाती है। आज 36,000 गार्ड और 72,000 रेल चालक हैं। 10,000 से 15,000 पद खाली हैं। इतने सारे रिक्त पदों की वजह से ओवरटाईम करना पड़ता है और सुरक्षा में कमी होती है। अभी तक की सारी जांच-पड़तालों ने दिखाया है कि अधिकतर दुर्घटनायें कार्यकाल के अतिरिक्त घंटों की वजह से होती हैं, फिर भी इस समस्या के बारे में कुछ नहीं किया गया है।

म.ए.ल.: क्या आप हमें गार्ड के कार्यों के बारे में बता सकते हैं?

ए.के.एस.: एक गार्ड रेलगाड़ी के लिये जिम्मेदार होता है। ख़तरे के संकेत की अवहेलना दंडनीय हैः रेलवे इसे एक “दुर्घटना”  समझती है और उसी के अनुसार कदम लेती है।

समतल क्रोसिंग पर रेलगाड़ी को जाने का हरा संकेत तभी मिलता है जब नाका बंद हो। अगर वह बंद न हो तो रेलगाड़ी को रोक दिया जाता है। अगर नाके का संकेत बहुत देर तक लाल रहता है तो रेलचालक गार्ड को सूचना देता है और गार्ड को रेलगाड़ी के आगे जा कर परिस्थिति का मुआयना करना पड़ता है और फिर रेलचालक को रेलगाड़ी चलाने के निर्देश देने पड़ते हैं; उसे प्रमाणित करना पड़ता है कि रेलगाड़ी चलायी जा सकती है।

समतल क्रोसिंग पर रेलगाड़ी की रफ्तार दिन में 15 किमी प्रति घंटा और रात में 8 किमी प्रति घंटा सीमित रखी जाती है जब तक अगला हरा संकेत नहीं मिलता है।

जब कोई व्यक्ति पटरियां पार करते हुये दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है, तब रेलगाड़ी को रोक दिया जाता है और रेलचालक गार्ड को बुलाने के लिये एक भौंपू बजाता है। अगर वह व्यक्ति घायल हो तो उसे प्राथमिक चिकित्सा देने का काम गार्ड का होता है; उसे इसके लिये प्रशिक्षण दिया जाता है। फिर रेलगाड़ी को अगले स्टेशन पर रोका जाता है जहां उपचार उपलब्ध हो और वहां घायल को स्टेशन मास्टर के सुपुर्द किया जाता है।

अगर कोई रेल दुर्घटना में मारा जाता है, तब रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सी.आर.एस.) द्वारा जांच होती है। सी.आर.एस. यातायात के किसी दूसरे क्षेत्र से होता है, अधिकतर विमानन से।  उस वक्त जिससे पूछताछ की जाती है वह गार्ड ही है। घटनास्थल पर लिखी रिपोर्ट को बदलने की अनुमति नहीं है।

अगर कोई गर्भवती महिला का प्रसव रेलगाड़ी में करना पड़े तो गार्ड को बुलाया जाता है। गार्ड को रेलगाड़ी रोकनी पड़ती है, डब्बे के एक भाग को बंद करना पड़ता है और वहां मौजूद महिलाओं की मदद से, उसे सुरक्षित प्रसव के लिये हर संभव प्रयास करना पड़ता है।

अगर किसी व्यक्ति की रेलगाड़ी में मृत्यु हो जाती है, तब गार्ड को स्टेशन मास्टर को बुला कर पंचनामे का इंतजाम करना पड़ता है। उसे स्टेशन मास्टर या पुलिस से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना होता है। सिर्फ उसी के बाद रेलगाड़ी चलाई जा सकती है।

गार्ड को हर वक्त बगल की पटरियों पर निगरानी रखनी पड़ती है और गुजरने वाली रेलगाडि़यों की जांच भी रखनी पड़ती है। 2 से 7 मिनट में एक स्टेशन निकलता है और उसे वहां के स्टेशन मास्टर को हरा संकेत देना होता है।

शुरुआती स्टेशन छोड़ने के पहले, गार्ड और रेलचालक को जांच करनी पड़ती है और सब ठीक होने की रिपोर्ट देनी होती है। उनकी रिपोर्ट, सवारी और माल डिब्बों कर्मचारियों के रेलगाड़ी निरीक्षक की जांच के आधार पर होती है। हरेक रेलगाड़ी को छूटने से पहले प्रमाणित करना पड़ता है।

गार्ड को लगातार प्रेशर गेज़ पर निगरानी रखनी होती है जिससे ब्रेक की सही अवस्था के होने का पता चलता है।

अगर आग जैसी समस्या हो तो गार्ड को सहायक लोको पायलट की मदद से प्रभावित डब्बों को अलग कर देना पड़ता है।

उसे रास्ते के सभी स्टेशनों से गुजरने के समय का रिकार्ड रखना पड़ता है और रेलगाड़ी के विलम्ब से चलने का स्पष्टीकरण देना होता है।

स्टेशन मास्टर के न होने पर गार्ड के पास रेलगाड़ी के चलन के विषय में विवेकाधीन शक्तियां होती हैं। उदाहरण के लिये ऐसा बाढ़ की परिस्थिति में हो सकता है जब पटरियां पानी में डूबी हों। वह चालक को रेलगाड़ी को आगे या पीछे ले जा कर ऊंचे स्तर पर ले जाने का निर्देश दे सकता है।

एम.इ.एल.: आपके कहने का मतलब है कि गार्ड की बहुत भारी जिम्मेदारियां होती हैं रेलगाड़ी की सुरक्षा और इस तरह यात्रियों की सुरक्षा में उसकी बड़ी भूमिका होती है।

ए.के.एस.: आपने बिल्कुल सही समझा। गार्ड और रेलचालकों ने सुरक्षा के बारे में अनेक सुझाव दिये हैं। परन्तु उनको अनसुना कर दिया जाता है। क्योंकि वे एक दुर्घटना का इंतजार करते हैं सुरक्षा का कोई नया कदम लेने के पहले? जलती-बुझती रोशनी का इस्तेमाल इटोला (वडोधरा और बरूच के बीच) के पास दुर्घटना के बाद शुरू किया गया। उपनगरीय रेल सेवा में दिशा संकेतकों का इस्तेमाल वसई रोड के करीब दुर्घटना के बाद शुरू किया गया। ट्रैक सर्किट फिरोज़ाबाद के समीप की दुर्घटना के बाद शुरू किये गये। सुरक्षा बेहतर बनाई जा सकती है परन्तु इसके लिये इच्छा होनी चाहिये। परन्तु रेलगाड़ी में चलता कौन है? रेलचालक, गार्ड और, अवश्य, करोड़ों लोग जिनकी देश चलाने के बारे में कोई सुनता ही नहीं है।

म.ए.ल.: क्या आप गार्ड के कामकाज में खतरों के बारे कुछ कहेंगे?

ए.के.एस.: गार्डों को भी रेलचालकों की तरह, निश्चित साप्ताहिक अवकाश की कमी और अमानवीय काम के घंटों के कष्ट सहने पड़ते हैं। गार्ड (और रेलचालक भी) हमेशा 25,000 वोल्ट की ऊंचे तनाव की बिजली की लाईनों के नीचे काम करते हैं। इसका मतलब है कि उन्हें हमेशा विकिरणों को सहना पड़ता है, जिनका उनके रक्तचाप और शुगर स्तर पर दुष्प्रभाव होता है।

इसके अलावा, मालगाडि़यों में सीमेंट, कोयला, इत्यादि भरा रहता है जो समस्यायें पैदा करते हैं। हवा से सारी धूल गार्ड की दिशा में आती है। गार्ड हमेशा अकेला रहता है। खतरनाक इलाकों में कई गार्डों की हत्यायें हो चुकी हैं। गार्ड के डिब्बे में न रोशनी होती है और न ही शौचालय या पंखे। धातु का बना उसका डिब्बा गर्मियों में अत्याधिक गरम हो जाता है।

म.ए.ल.: चूंकि गार्डों और रेलचालकों की काफी एक जैसी समस्यायें हैं, क्या आप इन्हें मिलकर भी उठाते हैं?

ए.के.एस.: हमारी ए.आई.एल.आर.एस.ए. (ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ ऐसोसियेशन) के साथ अच्छी समझ है और हम इन सम्बंधों को और भी मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं।

मैं आपको मेरी एक कविता सुनाना चाहूंगा।

“यदि होश में चलें हम, दुर्घटना कभी न होगी, संकल्प जो दृढ़ होगा, मंजिल करीब होगी …

इकॉनोमी की दया है, मंजिल अजीब होगी”

म.ए.ल.: बहुत शानदार! एक बार फिर शुक्रिया।

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