8 तथा 9 नवम्बर, 2012 को गुड़गांव के मानेसर स्थित मारुति-सुजुकी के मजदूरों ने बर्खास्त मजदूरों को काम पर वापस लेने व जेल में बंद मजदूरों को अविलंब रिहा करने की मांग को लेकर, मारुति-सुजुकी वर्कर्स यूनियन की अगुवाई में, जिला श्रम आयुक्त कार्यालय के बाहर दो दिवसीय भूख हड़ताल की।
इस भूख हड़ताल में पीडि़त परिवारों के सदस्यों के अलावा, विभिन्न ट्रेड यूनियनों व मजदूर संगठनों ने भाग लिया।
8 तथा 9 नवम्बर, 2012 को गुड़गांव के मानेसर स्थित मारुति-सुजुकी के मजदूरों ने बर्खास्त मजदूरों को काम पर वापस लेने व जेल में बंद मजदूरों को अविलंब रिहा करने की मांग को लेकर, मारुति-सुजुकी वर्कर्स यूनियन की अगुवाई में, जिला श्रम आयुक्त कार्यालय के बाहर दो दिवसीय भूख हड़ताल की।
इस भूख हड़ताल में पीडि़त परिवारों के सदस्यों के अलावा, विभिन्न ट्रेड यूनियनों व मजदूर संगठनों ने भाग लिया।
हरियाणा की फासीवादी सरकार ने भूख हड़ताल शुरू करने से पहले ही, उसे खत्म करने की पूरी कोशिश की। मजदूरों को डराने के लिये श्रम आयुक्त दफ्तर के बाहर भारी पुलिस मौजूद थी। जैसे मजदूर भूख हड़ताल के लिए एकत्रित हुए, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन जैसे-जैसे मजदूरों की संख्या बढ़ती गई, बहादुरी के साथ भूख हड़ताल शुरू हो सका।
विदित रहे कि 18 जुलाई को मारुति के मानेसर प्लांट में आगजनी की घटना में दम घुटने से एक प्रबंधक की मौत हुई। हरियाणा सरकार ने बिना किसी खोज-बीन के, 655 (55 नामशुदा व 600 अन्य) मजदूरों के खिलाफ़ हत्या की साजिश व हत्या जैसी संगीन धाराओं का मुकदमा दर्ज कर, 160 मजदूरों को यातना देकर जेल में डाल दिया। कपंनी ने बिना किसी नोटिस के 546 मजदूरों को बर्खास्त कर दिया। इसके अलावा, 2000 से ज्यादा कैजुएल मजदूरों को बाहर कर दिया। यहां के प्रबंधक, मजदूरों की अपनी पसंद की यूनियन बनाने के खिलाफ़ थे।
भूख हड़ताल पर बैठे मजदूरों को संबोधित करते हुए, मजदूर एकता कमेटी के प्रतिनिधि ने कहा कि मारुति-सुजुकी के मजदूरों के संघर्ष पर देश के मजदूरों और पूंजीपतियों, दोनों की नज़र है।
उन्होंने बताया कि पूंजीपतियों की कोशिश है, इस संघर्ष को किसी भी कीमत पर दबा दिया जाये, ताकि मजदूरों के खुद के संगठन बनाने के अधिकार, अन्याय के विरुद्ध न्याय के लिए संघर्ष करने के अधिकार तथा शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने के मजदूरों के अधिकारों के प्रति मजदूरों में निराशा लायी जा सके। इसलिए, मारुति-सुजुकी के प्रबंधन और सरकार ने मजदूरों की जीत की ओर बढ़ते कदम को रोकने के लिए, विध्वंसकारी षड्यंत्र को रचा ताकि जनता की नज़रों में मजदूरों को बदनाम किया जा सके।
सरकार खुद पूंजीपतियों द्वारा शोषण और लूट बढ़ाने के लिए, बीते कई सालों से, वर्तमान श्रम कानूनों को देश के विकास में बाधा बताकर, देश के लोगों को गुमराह कर रही है। दूसरे शब्दों में, वह कह रही है, कि पूंजीपतियों की उन्नति में ही देश की उन्नति है। सरमायदारी राजनीतिक पार्टियां, देश के पूंजीपतियों को विश्वस्तर के पूंजीपति के रूप में देखना चाहती हैं। लेकिन यदि इसमें कोई बाधा है तो वह है देश के मजदूर वर्ग का अपने शोषण के खिलाफ़ संघर्ष।
उन्होंने बताया कि मारुति-सुजुकी के मजदूरों का संघर्ष मजदूर वर्ग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ मानेसर, गुड़गांव का संघर्ष नहीं है, बल्कि फरीदाबाद से लेकर बावल तक व पूरे देश के तमाम मेहनतकशों व मजदूर वर्ग की लड़ाई है। हमें इसे जीतना ही होगा। तभी हम आगे की ओर बढ़ सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि, हम देश को पूंजीपतियों व उनकी पार्टियों के हवाले करके, सिर्फ पांच साल में एक बार वोट देकर, राजनीति के किनारे पर नहीं रह सकते हैं। हम देश की दौलत को पैदा करते हैं और हमारे श्रम के आधार पर देश चलता है। देश के मजदूर वर्ग को एक राजनीतिक ताकत बतौर आगे आना होगा और खुद देश का मालिक बनना होगा।
दो दिवसीय भूख हड़ताल के दौरान धरने को देश के अलग-अलग भागों से आये ट्रेड यूनियनों व मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया।
9 नवंबर को मजदूरों ने श्रम आयुक्त के दफ्तर से लेकर स्थानीय सांसद के घर तक मार्च निकाला।