मेहनतकश लोगों के ऊपर बढ़ता बोझ

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.)


हिन्दोस्तान के पूंजीपतियों ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.) के लगाने के प्रस्ताव का पूरी तरह से समर्थन किया है। सी.आई.आई., एफ.आई.सी.सी.आई. (फिक्की), एसोचैम, इत्यादि बड़े पूंजीपतियों के संगठनों ने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के संवर्धन में मंदी को खत्म करने के लिये, जी.एस.टी.

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.)


हिन्दोस्तान के पूंजीपतियों ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जी.एस.टी.) के लगाने के प्रस्ताव का पूरी तरह से समर्थन किया है। सी.आई.आई., एफ.आई.सी.सी.आई. (फिक्की), एसोचैम, इत्यादि बड़े पूंजीपतियों के संगठनों ने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के संवर्धन में मंदी को खत्म करने के लिये, जी.एस.टी. लागू करने के कदम को सबसे अहम और अत्यावश्यक “सुधार” बताया है। उन्होंने दावा किया है कि इस कदम से जी.डी.पी. में 2.5 प्रतिशत तक की वृद्धि होगी।


जी.एस.टी. का मतलब होगा कि पूरे देश में, कुछ वस्तुओं को छोड़कर, सभी वस्तुओं और सेवाओं में एक समान कर लगेगा। केन्द्रीय और राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये अलग-अलग प्रकार के मौजूदा विभिन्न करों को हटाया जायेगा। इसको लागू करने में इसीलिये देर लग रही है क्योंकि केन्द्र और राज्य सरकारों में सिर्फ इस बात पर भिन्न मत है कि वसूले गये करों को उनके बीच में कैसे बांटा जायेगा और मौजूदा कर व्यवस्था से नयी कर व्यवस्था में परिवर्तन कैसे लाया जायेगा। जी.एस.टी. उत्पादन और वितरण के हर पड़ाव पर एक मूल्य योगित कर (वैट) है। इसमें हर पड़ाव पर उत्पादनकर्ताओं और सेवा प्रबंधकों को मिलने वाली कीमत में से, उनके द्वारा खरीदे माल व सेवाओं पर चुकाये गये करों की पुनः प्राप्ति की अनुमति है। उत्पादक या सेवा प्रबंधकों को सिर्फ उसके द्वारा जोड़े गये मूल्य पर ही कर देना होगा। अंतिम खरीददार पर जी.एस.टी. की पूरी अदायगी का बोझ पड़ेगा। वस्तुओं और सेवाओं पर आम तौर पर वर्तमान राज्य कर 12 प्रतिशत है (पिछले संघ बजट में इसे 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया था)।  हालांकि अभी तक निर्णय नहीं लिया गया है, जी.एस.टी. की दर 15 से 20 प्रतिशत अपेक्षित है।


पूंजीपतियों ने जी.एस.टी. का स्वागत अलग-अलग कारणों से किया है। परन्तु मज़दूर वर्ग और जनता को यह साफ होना चाहिये कि जी.एस.टी. एक अप्रत्यक्ष कर है और इसकी व्याप्ति यह सुनिश्चित करेगी कि, बिना किसी अपवाद के, हरेक वस्तु और सेवा पर हमसे कर वसूला जायेगा। राज्यकर, सेवाकर, बिक्रीकर (वैट), आदि की जगह एक सर्वव्यापक कर, जी.एस.टी. लगेगा। ये सब  अप्रत्यक्ष कर हैं, जो सभी वस्तुओं की कीमतों के अंदर शामिल हैं और अलग से नज़र नहीं आते हैं। जबकि आयकर और कंपनीकर (कंपनियों के मुनाफे पर लगाया कर) प्रत्यक्ष कर हैं, जो भुगतान करने वाले को साफ पता चलते हैं और उनकी आय या मुनाफे के आधार पर लगाये जाते हैं।


एक अप्रत्यक्ष कर, खरीददार की आय या वेतन पर निर्भर नहीं होता है, अतः मज़दूर और पूंजीपति किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिये एक ही कर की अदायगी करेंगे। उनकी आय के अनुपात में अमीरों पर कर का बोझ कम होता है जबकि मेहनतकश लोगों के लिये इसका बोझ बहुत भारी पड़ता है। परिवार की आय जितनी कम होती है, उपभोग की वस्तुओं और सेवाओं पर आय का उतना ही बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है। हमें तकरीबन अपनी पूरी आय जीवनावश्यक चीजों पर खर्च करनी पड़ती है। अप्रत्यक्ष कर आम लोगों पर एक बहुत बड़ा बोझ है और इसीलिये यह अत्याधिक असमानतापूर्ण और प्रतिगामी है। कर का भार, किसी भी वस्तु या सेवा के अंतिम खरीदार पर पड़ता है। सरकार को भुगतान करने वाले कर की गणना में, हर पड़ाव पर, बिक्री में मिले कर में से खरीदी वस्तुओं पर दिया गया कर वापस हो जाता है।


मान लो कि जी.एस.टी. की दर 10 प्रतिशत है। एक कपास ओटने की मिल, ओटने के लिये 100 रु. का कपास खरीदती है और उस पर 10 रु. का जी.एस.टी. भरती है। मान लो कि ओटने की प्रक्रिया में 30 रु. मूल्य वृद्धि होती है और इसे कताई मिल में बेच दिया जाता है, जिससे बेचने वाले को 13 रु. जी.एस.टी. स्वरूप प्राप्ति होती है। इस 13 रु. में से ओटने की मिल का मालिक सिर्फ 3 रु. सरकार को देता है और कपास खरीदने में जी.एस.टी. का 10 रु. उसे वापस मिल जाता है। जब कताई मिल (मान लो) 20 रुपये की मूल्य वृद्धि करके धागे को कपड़ा मिल को बेचती है, तो वह सरकार को सिर्फ 2 रुपये कुल जी.एस.टी. देती है और कपड़ा मिल से वसूले गये 15 रुपये सकल जी.एस.टी. में से 13 रुपये प्राप्त कर लेता है। इसी तरह, जब कपड़ा मिल रंगाई और कटाई जैसी प्रक्रियाओं के बाद, मान लो 10 रुपये मूल्य वृद्धि करके, कपड़े को बेचता है, तो कपड़ा मिल मालिक सिर्फ एक रुपया कुल जी.एस.टी. देता है और कपड़े के खरीदार से वसूले गये 16 रुपये के सकल जी.एस.टी. से 15 रुपये प्राप्त कर लेता है। अतः हर पड़ाव पर, ओटने वाला, कातने वाला और कपड़ा मिल मालिक, खरीदने के समय चुकाये जी.एस.टी. को बेचने के समय वापस प्राप्त कर लेता है। हर पड़ाव पर बेचने वाले को, उसके द्वारा खरीदी पर दिये कर से ज्यादा प्राप्ति होती है और वह इनके अंतर को ही सरकार को जमा करता है। उन पर कर का बोझ शून्य है। अप्रत्यक्ष कर का पूरा का पूरा अंतिम बोझ, यानि 16 रुपये, बजार से खरीदने वालों पर पड़ता है जिनमें से अधिकांश मेहनतकश लोग होते हैं।  सारांश में सरकार विभिन्न पड़ावों को मिलाकर 16 रुपये कर वसूलती है और उपभोक्ता द्वारा दी कीमत में यह शामिल होता है।


पूंजीपति दावा करते हैं कि जी.एस.टी. से देश में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम होंगी और इसीलिये इससे लोगों को फायदा होगा। इसके विपरीत, जी.एस.टी. के ज़रिये अप्रत्यक्ष करों की वसूली में वृद्धि अपेक्षित है, जिसका मतलब है कि अंतिम उपभोक्ता पर बोझ बढ़ेगा और यह बोझ अमीरों के मुकाबले में मेहनतकश लोगों पर ज्यादा पड़ेगा। पूंजीपतियों को और भी कई फायदे होंगे। पूरा देश एक एकीकृत बाजार बन जायेगा जिसमें वस्तुयें और सेवायें पूरे देश में स्वतंत्रता से ले जायी जायेंगी और वितरण पर कोई अतिरिक्त कर नहीं लगेगा। करों की इस व्यवस्था का पालन करने में उनके खर्चे कम होंगे। जो पूंजीपति निर्यात करते हैं, वे भी चाहते हैं कि जी.एस.टी.  लागू हो क्योंकि उनके खर्चे कम होने से उन्हें विदेशी बाज़ार में अपना प्रसार करने और ज्यादा मुनाफे बनाने में मदद मिलेगी।


मज़दूर वर्ग को बड़े पूंजीपतियों की इच्छा के अनुसार जी.एस.टी. लगा के अपनी जीविका पर इस हमले का कड़ा विरोध करना चाहिये, जब सभी जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से वे पहले से ही परेशान हैं। कर व्यवस्था को सरल बनाने के नाम पर वस्तुओं और सेवाओं में कर बढ़ाने को हम मंजूर नहीं करते। इसके विपरीत, मज़दूर वर्ग चाहता है कि राज्यकर, सेवाकर, आदि, जैसे अप्रत्यक्ष करों को खत्म किया जाये, जिनसे पूंजीपतियों के मुकाबले मज़दूर वर्ग पर ज्यादा बोझ पड़ता है। आज के समाज में लोगों को मनुष्यों जैसी जिन्दगी जीने के लिये जिन सभी चीज़ों की ज़रूरत है, उस सब पर अप्रत्यक्ष करों को संपूर्णतः मिटाने की ज़रूरत है। करों की आय में कमी की पूर्ति के लिये सरकार को पूंजीपतियों को दी हुई सभी कर छूटों को वापस लेना चाहिये, जो सरकार के अनुसार ही सालाना 5 लाख करोड़ से ज्यादा हैं। हमें एक समानतापूर्ण और न्यायसंगत कर व्यवस्था के लिये लड़ना चाहिये और सभी अप्रत्यक्ष करों को समाप्त करने के लिये संघर्ष करना चाहिये। हमें यह भी मांग करनी होगी कि सम्पत्ति और धन-दौलत पर कर होने चाहिये और सिर्फ सबसे ज्यादा स्तर की आयों पर ही आयकर लगना चाहिये।

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