“पूंजी की कमी” का हौवा

खुदरा व्यापार और अन्य क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के द्वार खोलने की कोशिश की सफाई में, प्रधान मंत्री व तथाकथित अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि अगर अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाना है तो अधिक मात्रा में विदेशी पूंजी जरूरी है। वे ऐसी धारणा बनाते हैं मानो हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था और उसकी वृद्धि की संभावनाओं में “पूंजी की कमी”  की गंभीर समस्या है।


इस तर्क का प्रभावशाली

खुदरा व्यापार और अन्य क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के द्वार खोलने की कोशिश की सफाई में, प्रधान मंत्री व तथाकथित अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि अगर अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाना है तो अधिक मात्रा में विदेशी पूंजी जरूरी है। वे ऐसी धारणा बनाते हैं मानो हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था और उसकी वृद्धि की संभावनाओं में “पूंजी की कमी”  की गंभीर समस्या है।


इस तर्क का प्रभावशाली खंडन हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के प्रवक्ता कॉमरेड प्रकाश राव ने मज़दूर एकता कमेटी द्वारा 21 अक्तूबर को आयोजित सम्मेलन में दिये अपने भाषण में किया था। उन्होंने ध्यान दिलाया था कि अपने देश में हर 100 डॉलर की विदेशी पूंजी के आगमन के लिये हिन्दोस्तानी पूंजी के 60 डॉलरों का बहिर्गमन होता है। कई हिन्दोस्तानी कंपनियों ने बहुत से देशों में खदानें और कारखाने खरीद लिये हैं। 2008-09 में पूंजी का निर्यात 19.4 अरब अमरीकी डॉलर पहुंच गया था। यह करीब 1 लाख करोड़ रु. के बराबर है। जैसा कि उन्होंने जोर दिया था, अगर सच में पूंजी की कमी की इतनी चिंता है, तो प्रधान मंत्री टाटा, रिलायंस व दूसरे पूंजी के निर्यातकों को इतनी भारी मात्रा में पूंजी का निर्यात करने से रोकने के लिये कदम क्यों नहीं उठाते हैं?”


दो दशक पहले शुरू किये तथाकथित सुधारों के कार्यक्रम के ज़रिये, टाटा और अंबानी की अगुवाई में अपने देश के बड़े इजारेदार पूंजीपति घरानों ने पहले ही वैश्विक दर्जा पा लिया है। इसके उदाहरण इस्पात, रसायन व औषधि, कच्चे तेल की खोज तथा उसके शुद्धिकरण के उद्योगों में हैं। इन क्षेत्रों में वे विदेशों में पूंजी निवेश कर रहे हैं ताकि वे पूंजी की सघनता, उत्पादन के पैमाने व विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकों से लैस होकर वैश्विक दर्जा पा सकें। उन्होंने यूरोप व उत्तरी अमरीका में कंपनियां खरीदी हैं तथा पूर्वी एशिया, लातिन अमरीका व मध्य एशिया में तेल के कुएं खरीद रहे हैं। वैश्विक पूंजीवादी इजारेदारों के साथ होड़ व मिलीभगत से, वे अपनी वैश्विक मौज़ूदगी स्थापित करने तथा विश्व बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाने और कच्चे माल के स्रोतों पर अपना नियंत्रण जमाने के भरसक प्रयास कर रहे हैं।


अपने देश के ऐसे क्षेत्रों में जहां पूंजी की सघनता का स्तर व उत्पादन का पैमाना अंतर्राष्ट्रीय मानकों से पीछे है, बड़े पूंजीपति उनमें दुनियाभर के सबसे बड़े इजारेदारों को यहां आने व पूंजी निवेश करने के लिये आकर्षित करना चाहते हैं, ताकि वैश्विक मानकों को जल्दी से जल्दी पाया जा सके। यही कारण है कि वे खुदरा व्यापार और बीमा व पेंशन निधि के व्यवसायों में विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिये आतुर हैं।


खुदरा व्यापार में, हिन्दोस्तानी इजारेदार घराने विशाल वैश्विक कंपनियों के सांझेदार बनना चाहते हैं ताकि देश और विश्व स्तर पर तेज़ी से अपना कारोबार बढ़ा सकें। घरेलू खुदरा बाज़ार को वॉल-मार्ट व दूसरे वैश्विक इजारेदारों के लिये खोलने से, न केवल अपने देश में भारी मात्रा में विदेशी पूंजी आयेगी, बल्कि अपने देश से भारी मात्रा में पूंजी बाहर देशों में भी जायेगी।


गाडि़यों व उसके पुर्जों का उत्पादन, बी.पी.ओ. व कॉल सेंटरों के साथ सेवाओं का निर्यात, कुछ ऐसे क्षेत्र हैं – जिनमें दुनिया के सबसे बड़े इजारेदारों के लिये हिन्दोस्तान को “सबसे पसंदीदा मंजिल”  बनाने के लिये पहचाना गया है। मज़दूरों को उनके अधिकारों से वंचित करने, ताकि विदेशी पूंजीवादी इजारेदारों द्वारा अति शोषण करने के लिये कौडि़यों के मोल श्रम उपलब्ध हो, इस लक्ष्य के लिये केन्द्र व राज्य सरकारें एक साथ मिल कर काम कर रही हैं।


हाल में नीतियों में बदलाव का असली उद्देश्य, हमारी जनता के शोषण को तीव्र करना और श्रम व भूमि की लूट-खसौट बढ़ाना है, ताकि विदेशी इजारेदारों और टाटा, रिलायंस, बिड़ला व अन्य हिन्दोस्तानी इजारेदार घरानों का मुनाफा प्रचूर हो सके। अपने देश के बड़े पूंजीपति, प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी के आगमन को बढ़ावा देना चाहते हैं, ताकि वे विदेशों में अपना बाज़ार और वर्चस्व बढ़ा सकें। आर्थिक नीति उनके द्वारा तय की जा रही है जिनका विश्वास है कि हर हालत में हिन्दोस्तानी बड़े व्यवसायों का अधिकतम संवर्धन करना जरूरी है चाहे दूसरों को इससे कितना भी नुकसान क्यों न हो।


अपनी अर्थव्यवस्था में पूंजी की कमी मुख्य समस्या नहीं है। मुख्य समस्या है कि अर्थव्यवस्था को मेहनत करने वाले अधिकांश लोगों की जरूरतों की बली चढ़ाकर, मुट्ठीभर अतिअमीर अल्पसंख्या के असीमित लोभ और साम्राज्यवादी लक्ष्य के लिये दौड़ाया जा रहा है।


अपने लोभी और साम्राज्यवादी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये, अपने देश के बड़े पूंजीपतियों ने एक ऐसा रास्ता अपनाया है, जिससे विदेशी साम्राज्यवादी वर्चस्व और अपने देश की लूट-पाट बढ़ेगी।

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