इंसाफ पाने के लिये वर्तमान व्यवस्था को ठुकराकर, एक नयी दुनिया को जन्म दें!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी नवंबर 1984 में सिखों के जनसंहार के गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिये अनेक इंसाफ पसंद लोगों तथा उनके संगठनों द्वारा तीन हफ्तों तक चलाये गये प्रबल जन अभियान की सराहना करती है। दिल्ली में 10 नवम्बर को की गयी जन सुनवाई में यह फैसला लिया गया कि 1984 के जनसंहार के ग
इंसाफ पाने के लिये वर्तमान व्यवस्था को ठुकराकर, एक नयी दुनिया को जन्म दें!
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी नवंबर 1984 में सिखों के जनसंहार के गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिये अनेक इंसाफ पसंद लोगों तथा उनके संगठनों द्वारा तीन हफ्तों तक चलाये गये प्रबल जन अभियान की सराहना करती है। दिल्ली में 10 नवम्बर को की गयी जन सुनवाई में यह फैसला लिया गया कि 1984 के जनसंहार के गुनहगारों को सज़ा दिलाने के संघर्ष को जारी रखा जाये तथा और तेज़ किया जाये। लोगों ने उस अपराध के मुख्य आयोजकों के खिलाफ़ सभी अदालती मामलों को फिर से खुलवाने का प्रण लिया। इंसाफ के इस संघर्ष में सभी तबकों के लोगों को एकजुट करने की अपनी दृढ़ता को प्रकट करते हुये, लोक अदालत ने यह फैसला लिया कि 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के ध्वंस की 20वीं सालगिरह के अवसर पर लोगों की एकता का एक और प्रबल प्रदर्शन किया जायेगा, ताकि गुनहगारों को सज़ा सुनिश्चित की जा सके।
लोक राज संगठन, सिख फोरम, बेटर सिख स्कूल, बचपन बचाओ आंदोलन, सिखी सिदक और सोशलिस्ट युवजन सभा द्वारा आयोजित तीन हफ्ते के अभियान का आरंभ अमृतसर के ऐतिहासिक जलियांवाला बाग से हुआ, जहां 19 अप्रैल, 1919 को बर्तानवी उपनिवेशवादियों ने सैकड़ों महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को गोलियों से भून डाला था। जैसे-जैसे कारवां पंजाब के शहरों से गुजरते हुये दिल्ली पहुंचा, वैसे-वैसे इसका जन समर्थन बढ़ता गया। नवंबर 1984 के भयानक और अमानवीय हत्याकांड पर चित्र प्रदर्शनी एक ऐसा प्रबल माध्यम था, जिससे नौजवानों को यह सीखने को मिला कि उनके माता-पिताओं को किस भयानक दौर से गुज़रना पड़ा था।
3 नवंबर को जंतर-मंतर पर उपस्थित बहुधर्मी व बहु-भाषी जन समूह इस बात का सबूत था कि गुनहगारों को सज़ा दिलाने के संकल्प में सभी राष्ट्रों व धर्मों के लोग एकजुट हैं। अधिक से अधिक लोग यह समझ रहे हैं कि एक पर हमला सब पर हमला है! अभियान के दौरान प्रधान मंत्री को संबोधित एक ज्ञापन पर 40,000 से अधिक लोगों के हस्ताक्षर प्राप्त किये गये। 3 नवंबर को यह ज्ञापन प्रधान मंत्री के कार्यालय को सौंपा गया। (ज्ञापन पृष्ठ 6 पर प्रकाशित है)।
दिन-ब-दिन जैसे-जैसे यह अभियान और शक्तिशाली होता गया, वैसे-वैसे अधिकारियों की ओर से तरह-तरह के दबाव आने लगे, जैसे कि पुलिस अनुमति न दिया जाना या इंसाफ की मांग करने वालों को रूढ़ीवादी या आतंकवादी करार कर उनके खिलाफ़ ज़लील प्रचार करना। बीते 28 वर्षों से सच्चाई और इंसाफ के लिये संघर्ष करने वालों ने काफी अत्याचार और उत्पीड़न का सामना किया है। विभिन्न सरकारी नेताओं ने सांप्रदायिक हत्याकांड के शिकार बने लोगों को नसीहत दी है कि “माफ कर दो और भूल जाओ”। अक्तूबर-नवम्बर 2012 के दौरान चलाये गये प्रबल अभियान ने सभी को समझा दिया कि लोग इन अपराधों को कभी नहीं भूलेंगे, न ही इनके अपराधियों को कभी माफ करेंगे। बल्कि लोगों ने यह साफ कर दिया कि जब तक गुनहगारों को सज़ा नहीं दी जाती, तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे।
इस अभियान के दौरान गुनहगारों को सज़ा दिलाने के संघर्ष के अनुभव से निकलने वाले कई महत्वपूर्ण सबकों को दोहराया गया और तरह-तरह से प्रकट किया गया।
पहला सबक यह है कि नवम्बर 1984 के कांड को सिख विरोधी दंगा कहने का मतलब है सच को तोड़मरोड़ कर पेश करना। वह कांड सत्ता पर बैठी राजनीतिक पार्टी के नेताओं द्वारा बड़े सुनियोजित तरीके से आयोजित, बड़े पैमाने पर हत्याकांड था। कानून और व्यवस्था की मशीनरी का लोगों को बचाने के लिये इस्तेमाल करने के बजाये, उसे लोगों पर हमला करने और लोगों की हत्या करने के लिये इस्तेमाल किया गया। लोगों ने आपस में नफरत के साथ प्रतिक्रिया नहीं की, बल्कि अपने पड़ौसियों और मित्रों को बचाने की पूरी कोशिश की, जैसे कि बहादुरी और भाईचारे के बहुत से उदाहरणों से देखा जाता है, जिनकी सरकारी खातों में कोई रिपोर्ट या रिकार्ड नहीं है।
दूसरा सबक यह है कि 1950 के संविधान पर आधारित मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के अंदर, सांप्रदायिक और समुदायिक हिंसा के पीडि़तों और मूल मानव अधिकारों की रक्षा करने वालों के लिये इंसाफ पाने तथा गुनहगारों को सज़ा दिलाने का कोई रास्ता नहीं है। इस लोकतंत्र में लोग शक्तिहीन और बेसहारा रह जाते हैं, जबकि चंद शोषकों को पूरी छूट दी जाती है कि वे लोगों को बांटने और सांझे दुश्मनों के खिलाफ़ संघर्ष के रास्ते से गुमराह करने के लिये किसी भी प्रकार का अपराध कर सकें।
तीसरा सबक यह है कि कांग्रेस पार्टी और भाजपा, दोनों अलग-अलग से तथा मिलकर, राजनीति के अपराधीकरण में तथा सांप्रदायिक आधार पर लोगों को बांटने में अहम भूमिका निभाती हैं। जब ये दोनों पार्टियां आपस में झगड़ रही होती हैं और जब वे अपने सांझे हितों की रक्षा के लिये मिली भगत करती हैं, दोनों हालतों में लोग ही पीडि़त होते हैं।
चौथा सबक यह है कि बार-बार दोहराया जाने वाला मंत्र, कि हिन्दोस्तानी गणराज्य धर्मनिरपेक्ष है, यह सरासर झूठ है। इस राज्य के संस्थान और इसके हर कदम के पीछे सिद्धांत उस उपनिवेशवादी विरासत के हिस्से हैं, जिसके अनुसार राज्य सांप्रदायिक सद्भावना का प्रचार करता है और मध्यस्तता का दिखावा करता है जबकि वास्तव में लोगों के बीच नफ़रत फैलाने और सांप्रदायिक हिंसा छेड़ने में राज्य पूरी इज़ाज़त और सक्रिय समर्थन देता है।
इसमें से कई सबकों पर 4 नवम्बर को हुई एक अहम विचार गोष्ठी में चर्चा हुई। यह विचार गोष्ठी सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ़ कानूनी संघर्ष के सवाल पर आयोजित की गयी थी। विधिशास्त्र, न्यायव्यवस्था और राजनीति से संबंधित कई जाने-माने व्यक्तियों ने इस विचार गोष्ठी में भाग लिया और गुनहगारों को सज़ा दिलाने तथा कमान को जिम्मेदार ठहराने की समस्याओं पर चर्चा की। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के प्रवक्ता, कामरेड प्रकाश राव ने पैनेलिस्ट बतौर अपनी प्रस्तुति में यह सच्चाई बलपूर्वक स्थापित की कि इस समस्या का स्थाई समाधान एक ऐसे नये संविधान और नयी बुनियादों पर स्थापित ऐसे नये समाज के गठन से ही हो सकता है, जो जनता के हाथ में संप्रभुता दिलाने के असूल पर आधारित होंगे।
उन्होंने जोर दिया कि गुनहगारों को सज़ा दिलाने का संघर्ष हिन्दोस्तान के नवनिर्माण के संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है (कामरेड प्रकाश राव द्वारा 4 नवम्बर को दिया गया भाषण पृष्ठ 1 पर प्रकाशित है; विचार गोष्ठी की विस्तृत रिपोर्ट के लिये देखिये (http://www.lokraj.org.in/)।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सभी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जनसंगठनों से आह्वान करती है कि इंसाफ के इस संघर्ष में शामिल हों। इंसाफ के लिये यह जरूरी है कि 1984, 1992-93, 2002, असम में 2012 तथा अन्य समय-समय पर मानवता के खिलाफ़ अपराध करने वाले गुनहगारों को पकड़ा जाये और कड़ी सज़ा दी जाये। यह उपनिवेशवादी विरासत को हमेशा के लिये खत्म करने और शोषण-दमन से मुक्त, मानवता और सभ्यता पर आधारित समाजवादी समाज बनाने की नयी नींव डालने के संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है।