ओडिशा के मानव अधिकार संगठनों, ट्रेड यूनियनों, वकीलों, पत्रकारों और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं का एक गठबंधन ओडिशा सरकार द्वारा पारित एक क्रूर विधेयक के विरोध में लड़ रहा है। वे राज्यपाल पर दबाव डाल रहे हैं कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार करे।
ओडिशा के मानव अधिकार संगठनों, ट्रेड यूनियनों, वकीलों, पत्रकारों और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं का एक गठबंधन ओडिशा सरकार द्वारा पारित एक क्रूर विधेयक के विरोध में लड़ रहा है। वे राज्यपाल पर दबाव डाल रहे हैं कि वह इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार करे।
28 अगस्त, 2012 को ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार ने औद्योगिक इकाइयों की तथाकथित सुरक्षा हेतु एक विशेष बल गठन करने के लिये एक नया विधेयक, ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल विधेयक 2012, पारित किया। विधेयक के मार्गदर्शी मंत्री रधुनाथ मोहन्ती ने कहा, “राज्य में तेजी से औद्योगिकीकरण के कारण और उद्योगों व दूसरे महत्वपूर्ण संस्थापनों पर विभिन्न सुरक्षा ख़तरों के कारण, ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल जैसे एक विशेष बल की अविलंब जरूरत है।”
इस विधेयक को बिना किसी चर्चा के वाक मत से पास कर दिया गया, जब विपक्षी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हंगामा कर रहे थे। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने पत्रकारों को बताया कि सरकार ने उनके द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर चर्चा करने का कष्ट नहीं किया। अतः अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने साफ कर दिया कि उन्हें इस विधेयक को पास करने के तरीके से एतराज है, न कि इस विधेयक से।
इस विधेयक में, ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल नामक एक विशेष बल का विचार आगे रखा गया है जो राज्य और निजी मालिकी की औद्योगिक इकाइयों को पर्याप्त और विश्वसनीय व आसान सुरक्षा प्रदान करेगा। इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, पुलिस इंस्पेक्टर जनरल के तहत एक विशेष बल का गठन किया जायेगा। कोई भी औद्योगिक संस्थापन, चाहे वह सरकारी हो या निजी, इसकी मदद के लिये अर्जी दे सकता है। वह औद्योगिक संस्थापन इस बल का खर्चा उठायेगा। परन्तु एक बार इस बल को जब औद्योगिक संस्थापन में लगाया जायेगा तब यह पूरी तरह से संस्थापन के नियंत्रण में रहेगा। इस बल के कर्मचारियों को बिना किसी वारंट के और बिना किसी न्यायालय या दंडाधिकारी के आदेश के किसी व्याक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार होगा! यह विधेयक इस बल को, बिना वारंट के, किसी व्यक्ति या किसी के घर की तलाशी लेने की ताकत देता है! इसके कर्मियों के पास राज्य सरकार के पुलिस कर्मियों से भी ज्यादा अधिकार होंगे, और वह भी पूरी तरह औद्योगिक संस्थापन के नियंत्रण में! इस बल के कर्मियों को, अपने कर्तव्य पालन में प्रतिरक्षा दी जायेगी और इस बल के सदस्यों के खिलाफ, बिना राज्य सरकार की अनुमति के, कोई भी न्यायालय जुर्म का संज्ञान नहीं ले सकता है! इस बल के पास राज्य सरकार की पुलिस से ज्यादा ताकत होगी पर इसे अभियोग से मुक्ति होगी।
मज़दूर एकता लहर ओडिशा सरकार द्वारा पारित इस क्रूर फासीवादी विधेयक की भत्र्सना करती है। मेहनतकश लोगों के अतिशोषण के विरोध को कुचलने के लिये यह हिन्दोस्तानी राज्य की एक और कोशिश है। ओडिशा में लाखों आदिवासी और विभिन्न औद्योगिक इकाइयों के मज़दूर भी, टाटा, बिड़ला, वेदांत, जिंदल घरानों तथा पॉस्को जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ़ अपने जीवन के अधिकार के लिये लड़ रहे हैं। ओडिशा सरकार ने औद्योगिक घरानों के साथ विभिन्न समझौते किये हैं जिसमें सरकार ने उनके उद्यमों की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली है। उदाहरण के लिये पॉस्को और ओडिशा राज्य सरकार के बीच 22 जून, 2005 के समझौते ज्ञापन की 17वीं धारा में लिखा है, “… ओडिशा की सरकार परियोजना से सभी भागों में परिचालन के दौरान, कानून के मुताबिक कार्यवाही करके, समस्त सुरक्षा प्रदान करेगी। इस संदर्भ में सरकार सभी जरूरी कदम लेगी जिसमें जरूरत के अनुसार पुलिस स्टेशन लगाना शामिल है।”
इस तरह के समझौतों के तहत, ओडिशा सरकार ने बहुत सी औद्योगिक इकाइयों के परिसरों के अंदर पुलिस स्टेशन बनाये हैं। अगर आम नागरिकों को किसी औद्योगिक संस्थापन के खिलाफ़ मामला दर्ज करना हो, तो वे ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें पहले उस औद्योगिक इकाई की सुरक्षा व्यवस्था को पार करना पड़ता है! अब इस नये क्रूर कानून से सरकार जन सुरक्षा के दिखावे को भी त्याग देना चाहती है।
एक तरफ लाखों मेहनतकश लोग, किसान, आदिवासी, विभिन्न अधिकार संगठनों के समर्थन से, अपने अधिकारों की रक्षा में पूरी ताकत से लड़ रहे हैं। दूसरी तरफ हिन्दोस्तानी बडे़ पूंजीपति आक्रमक तरीके से उदारीकरण और निजीकरण के कार्यक्रम को लागू करना चाहते हैं। मेहनतकश लोगों के संघर्ष से शासक वर्ग की योजनाओं में बाधा आ रही है। इसीलिये अब उन्होंने अपने भरोसेमंद राजनीतिक मुखियों, जिनका प्रतिनिधित्व विभिन्न केन्द्रीय व प्रांतीय संसदीय पार्टियां करती हैं, उनको आदेश दिया है कि मेहनतकश लोगों के अधिकारों पर आक्रमक धावा बोलें। इस मुद्दे पर ये सभी संसदीय पार्टियां एक ही आवाज में बोलती हैं और एक ही धुन में गाती हैं! महाराष्ट्र आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून (मेस्मा) 2012 के जैसे कठोर कानूनों के ज़रिये वे मेहनतकश लोगों का संगठित होना मुश्किल बनाना चाहते हैं। साथ ही ओडिशा औद्योगिक सुरक्षा बल विधेयक 2012 के ज़रिये वे बड़े पूंजीपतियों को कानूनी ताकत देना चाहते हैं ताकि वे अपने शोषण के साम्राज्यों को निजी नागरिक सेना के बलबूते पर बचाये रख सकें। दुनियाभर ने देखा है कि मारुति सुज़ुकी के बहादुर मज़दूरों पर हिन्दोस्तानी राज्य ने कैसे क्रूरता से हमला किया है। पूरी दुनिया यह भी देख रही है कि इन हमलों ने मेहनतकश लोगों को और भी दृढ़ बनाया है और उनकी एकता और मजबूत की है। मजदूर एकता लहर को कोई संदेह नहीं है कि हिन्दोस्तानी शासक वर्ग हिन्दोस्तानी मज़दूरों को कुचलने की इस कोशिश में नाकामयाब होगा। हम सभी मेहनतकश लोगों और उनके संगठनों को बुलावा देते हैं कि ‘एक पर हमला सब पर हमला’ की भावना से इस विधेयक और ऐसे सारे कानूनों का एकताबद्ध विरोध करें।