हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव : लोग विकल्प तलाश रहे हैं

हिमाचल प्रदेश में 4 नवम्बर, 2012 को चुनाव होने वाला है। देखने में लगता है कि पूंजीपतियों की दो मुख्य पार्टियों, कांग्रेस पार्टी और भाजपा के बीच यह स्पर्धा है। सुचारू चुनाव मशीनरी, धनबल, इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया के समर्थन के साथ तथा मतदाताओं को लुभाने वाले तमाम वादों के साथ, ये दोनों पार्टियां अभियान में लगी हुई हैं। ये दोनों पार्टियां हिमाचल प्रदेश के चुनावों को, लोक सभा के

हिमाचल प्रदेश में 4 नवम्बर, 2012 को चुनाव होने वाला है। देखने में लगता है कि पूंजीपतियों की दो मुख्य पार्टियों, कांग्रेस पार्टी और भाजपा के बीच यह स्पर्धा है। सुचारू चुनाव मशीनरी, धनबल, इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया के समर्थन के साथ तथा मतदाताओं को लुभाने वाले तमाम वादों के साथ, ये दोनों पार्टियां अभियान में लगी हुई हैं। ये दोनों पार्टियां हिमाचल प्रदेश के चुनावों को, लोक सभा के आम चुनाव में अपनी सफलता के लिये, बहुत महत्व दे रही हैं। दोनों पार्टियां भरपूर प्रचार कर रही हैं कि राज्य और केन्द्र में दूसरी पार्टी के नेता अपनी पार्टी के नेताओं से ज्यादा भ्रष्ट हैं।

इन दोनों पार्टियों ने बीते कई दशकों से, बारी-बारी से हिमाचल प्रदेश की सरकार चलायी हैं। लोग इन दोनों पार्टियों के भ्रष्टाचार और बेशर्मी से पूरी तरह तंग आ गये हैं। अधिक से अधिक संख्या में लोग यह समझ रहे हैं कि इन दोनों में से जो भी पार्टी सत्ता में आये, वह एक ही कार्यक्रम लागू करेगी। वह है निजीकरण का कार्यक्रम, राज्य की भूमि, नदियों, वनों और दूसरे कुदरती संसाधनों को अधिक से अधिक शोषण के लिये विभिन्न पूंजीवादी घरानों को सौंप देना, और साथ ही साथ अपने मंत्रियों तथा समर्थकों की जेबें भरना। जैसा कि इन पार्टियों ने बीते वर्षों में किया है, आगे भी सत्ता में आकर वे भूमि सौदा करके, जल बिजली परियोजनाओं में कमीशन कमाकर, सीमेंट घोटालों में, तमाम निजी शिक्षा संस्थानों और सुपर विशेषता अस्पतालों का निर्माण करके तथा राजकीय तिजौरी को लूटकर बेशुमार दौलत कमाती रहेंगी। इनमें से जो पार्टी “विपक्ष” में होगी, वह अगले 5 वर्षों तक भ्रष्टाचार और कमीशन के बारे में चिल्लाती रहेगी, ताकि अगली बारी में उसे लूटने का मौका मिले।

परन्तु इन सबके पीछे, लोग विकल्प तलाश रहे हैं। लोग कांग्रेस पार्टी या भाजपा की जगह पर सिर्फ किसी नयी पार्टी या गठबंधन को नहीं तलाश रहे हैं, बल्कि वह तरीका तलाश रहे हैं जिसके जरिये यह सुनिश्चित किया जाये कि जिसे चुना जाता है, वह लोगों के प्रति जवाबदेह हो। लोग अपने बीच में से उम्मीदवारों का चयन करके उन्हें चुनाव में खड़ा करना चाहते हैं, चुने गये प्रतिनिधि को जवाबदेह ठहराना चाहते हैं, कानूनों का प्रस्ताव करना चाहते हैं और जनता के खिलाफ़ काम करने वाले प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की ताकत चाहते हैं। लोग खुद फैसले लेने का अधिकार चाहते हैं, खुद हुक्मरान बनना चाहते हैं।

इस राज्य के लोगों के सामने अनेक समस्याएं हैं, जिन पर वे आंदोलित हैं। नौजवानों की बेरोजगारी एक मुख्य मुद्दा है। यह समस्या कितनी विशाल है, यह कांग्रेस पार्टी और भाजपा द्वारा किये गये झूठे वादों से पता चलता है। भाजपा, जो पिछले पांच वर्षों से यहां सरकार चला रही है, उसने वादा किया है कि अगले पांच वर्षों में दस लाख नौकरियां पैदा करेगी! कांग्रेस पार्टी ने वादा किया है कि वह प्रतिवर्ष एक लाख नौकरियां पैदा करेगी। रिपोर्टों के अनुसार, सत्ताधारी भाजपा बीते पांच वर्षों में सिर्फ 45,000 नौकरियां पैदा कर पायी है! दोनों में से कोई भी पार्टी यह नहीं बता रही है कि ये नौकरियां, जिनका वे वादा कर रही हैं, किस क्षेत्र में दी जायेंगी। भाजपा ने वादा किया है कि राज्य के निवासियों को सभी उद्योगों में नौकरियों में 80 प्रतिशत कोटा दिया जायेगा। परन्तु चण्डीगढ़ के साथ सटे हुये इलाके के अलावा हिमाचल प्रदेश में खास कोई उद्योग नहीं है और इस समय स्थानीय निवासियों के लिये जो 70 प्रतिशत कोटा है, वह भी पूरा नहीं किया गया है।

उच्च तकनीकी शिक्षा के निजीकरण, राज्य में अनगिनत इंजिनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों के खोले जाने, 20 नये निजी विश्वविद्यालयों के खोले जाने की वजह से शिक्षा की गुणवत्ता बहुत घट गयी है, शुल्क बहुत बढ़ गये हैं तथा शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। हिमाचल प्रदेश के छात्रों को अब उच्च शिक्षा के लिये दूसरे राज्यों में जाने की जरूरत नहीं है। परन्तु नौकरियों की कमी एक ज्वलंत मुद्दा है क्योंकि अधिकतर नौकरियां अभी भी सरकारी क्षेत्र में हैं।

बीते तथा वर्तमान बिजली परियोजनाओं की वजह से बडे़ पैमाने पर लोगों का विस्थापन हुआ है, जिसके बारे में प्रभावित क्षेत्रों के लोग आंदोलित हैं। बहुत सारी बड़ी और छोटी जल बिजली परियोजनाएं निर्माण की विभिन्न हालतों में हैं। इनमें से अधिकतर निजी पूंजीपतियों की या निजी-सार्वजनिक सांझेदारी (पी.पी.पी) परियोजनाएं हैं। मिसाल के तौर पर, करचम वांगचू परियोजना एक ऐसी विशाल परियोजना है जो एक वर्ष पहले समाप्त हो गयी थी। उसकी वजह से बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन हुआ और उस इलाके के हजारों लोगों की रोजी-रोटी छिन गयी। हिमाचल की जल बिजली परियोजनाओं द्वारा पैदा की गयी बिजली का अधिकतम भाग दूसरे राज्यों को बेचा जाता है, जिससे हिमाचल के लोगों को बहुत कम लाभ होता है। दूसरी ओर, इनमें से कई परियोजनाओं पर बांध बनाये गये हैं, जिनकी वजह से किसानों की सदियों से चली आ रही प्राकृतिक जल सिंचाई व्यवस्थाएं नष्ट हो गयी हैं।

राज्य में सड़कें बहुत ही खराब हालत में हैं, जिनकी वजह से बहुत सी घातक दुर्घटनाएं होती हैं। यह भी लोगों के लिये एक मुख्य समस्या है। सड़क निर्माण और मरम्मत एक और मुख्य तरीका है जिसके द्वारा शासक पार्टी और उसके पसंद के ठेकेदार राजकोष को लूटते हैं।

कई नयी पार्टियां और दल चुनाव क्षेत्र में आयी हैं। इनमें से कुछ बीते महीनों में गठित स्थानीय दल हैं जो राज्य के लोगों की आकांक्षाओं को बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ और पार्टियां जैसे कि तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल से विस्तृत होकर सर्वहिन्द पार्टी बतौर मान्यता प्राप्त करने के लिये, हिमाचल प्रदेश में स्थापित होने का प्रयास कर रही है। चूंकि वहां के लोग कांग्रेस पार्टी और भाजपा से खुलेआम नफरत करते हैं, अतः ये नयी पार्टियां और दल उनसे मूल रूप से भिन्न होने का दावा कर रही हैं। परन्तु उनमें से ज्यादातर दल इन्हीं पार्टियों से टूटकर बने हुये हैं।

लोग अपने जीवन पर असर डालने वाली नीतियों के फैसले खुद करना चाहते हैं। उनके इस जजबात को उजागर करते हुये, हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हो रहे हैं। संसाधनों की कमी के कारण इन उम्मीदवारों की पहुंच सीमित है। भारी कठिनाइयों को झेलते हुये ये उम्मीदवार अपने-अपने इलाकों के लोगों की चिंताओं व समस्याओं को उठा रहे हैं और चुनाव में खड़े हो रहे हैं।

इन चुनावों में अनेक जन संगठनों ने लोगों को सत्ता में लाने के सवाल को केन्द्रीय सवाल बनाया है। मिसाल के तौर पर, कांगड़ा जिले में, जहां से विधान सभा में 15 विधायक होते हैं, राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जन अधिकार संगठन नामक एक संगठन बनाया है। यह संगठन लोगों को सत्ता में लाने और संप्रभु बनाने के कार्यक्रम को लेकर खड़ा हो रहा है। अन्य बातों के अलावा, वह लोगों से अपील कर रहा है कि सिर्फ उन्हीं उम्मीदवारों को वोट दिया जाये जो:

“जाने-माने और परखे हुये सामाजिक कार्यकर्ता हैं, एक नयी व्यवस्था स्थापित करने के लिये वर्तमान व्यवस्था को जड़ से उखाड़ने को तैयार हैं”।

 “लोगों के नियंत्रण और निगरानी में काम करने को तैयार हैं, अपने काम का समय-समय पर हिसाब देने को तैयार हैं, लोगों को संप्रभु स्वीकार करते हैं मतदाताओं के फैसले को लागू करने को तैयार हैं, लोगों द्वारा कानून प्रस्तावित करने के अधिकार को हासिल करने के लिये उपयुक्त तंत्र स्थापित करने के लिये काम करने को तैयार हैं और मतदाताओं के फैसले के अनुसार अपना पद छोड़ने को तैयार हैं”।

“उन उम्मीदवारों को ठुकराया जाये जो लोगों को पार्टी, जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर बांटकर, लोगों में आतंकवाद और नफरत फैलाकर, या अन्य घटिया तरीकों से चुनाव जीतने की कोशिश करते हैं”।

“उन पार्टियों को ठुकराया जाये जो भ्रष्टाचार के घोटालों में फंसी हुई हैं, जिन्होंने बीते समय में अपनी सत्ता का इस्तेमाल करके राजकोष को लूटा है और जो धनबल तथा बाहुबल का इस्तेमाल करके चुनाव जितना चाहती हैं”।

“अपने-अपने गांवों, मोहल्लों या वार्डों की सभाओं में प्रत्येक उम्मीदवार की जांच की जाये। अगर कोई उचित उम्मीदवार न मिले तो सभी उम्मीदवारों को ठुकराने के अधिकार का प्रयोग किया जाये। अपनी-अपनी सभाओं द्वारा उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया को तथा अनुपयुक्त उम्मीदवारों को वापस बुलाने की संभावना को मजबूती दें”।

प्राप्त सूचनाओं के अनुसार कई निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी पहल पर इस अपील से सहमति जताई है और खुद इसका प्रचार कर रहे हैं। यह भविष्य के लिये सकारात्मक हो सकता है।

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