पेंशन और बीमा “सुधारों” के ज़रिये जनता के पैसे के साथ खिलवाड़

उदारीकरण कदमों का दूसरा दौर 4 अक्तूबर, 2012 को लागू हुआ, जब संप्रग सरकार ने यह घोषणा की कि बीमा क्षेत्र में विदेशी वित्त मालिकी की सीमा 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत तक बढ़ायी जायेगी और पेंशन फंड में शून्य प्रतिशत से 49 प्रतिशत तक बढ़ायी जायेगी। बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश में सीमा की बढ़ोतरी के साथ-साथ कुछ और “बीमा सुधार” भी किये जायेंगे, जिनसे सार्वजनिक क्षेत्र का जनरल इंश्योरें

उदारीकरण कदमों का दूसरा दौर 4 अक्तूबर, 2012 को लागू हुआ, जब संप्रग सरकार ने यह घोषणा की कि बीमा क्षेत्र में विदेशी वित्त मालिकी की सीमा 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत तक बढ़ायी जायेगी और पेंशन फंड में शून्य प्रतिशत से 49 प्रतिशत तक बढ़ायी जायेगी। बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश में सीमा की बढ़ोतरी के साथ-साथ कुछ और “बीमा सुधार” भी किये जायेंगे, जिनसे सार्वजनिक क्षेत्र का जनरल इंश्योरेंस कारपोरेशन (जी.आई.सी.) भावी जरूरतों के लिए बाजार से पूंजी एकत्रित कर सकेगा। न्यूनतम 51 प्रतिशत पूंजी सरकार की होगी। विदेशी बीमा कंपनियों को हिन्दोस्तान में पुनः बीमा का काम करने की भी इजाजत दी जायेगी।


इससे पूर्व, मंत्रीमंडल ने संसद में पेश करने के लिए, पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण विधेयक पर अपनी सहमति दे दी। इस विधेयक के ज़रिये पूंजीपति जनता की बचत की उस विशाल राशि पर हाथ मारना चाहते हैं, जो अब तक राज्य के नियंत्रण में रहा है। यह विधेयक पेंशन सेवा को और विस्तृत करेगा और जनता की बचत के धन को इजारेदार पूंजीपति वर्ग के लिए वित्त के सस्ते स्रोत में बदल देगा।


इन कदमों पर कई महीनों से चर्चा चल रही है और इन सुधारों का भारी विरोध किया गया है। बीमा क्षेत्र के कर्मचारी और सभी औद्योगिक क्षेत्रों के मजदूर इन कदमों का विरोध करते आये हैं क्योंकि वे इसे अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। परंतु इसके बावजूद और इस विषय पर गठित संसदीय समिति की सिफारिशों के खिलाफ़, सरकार इन कदमों को लागू करने जा रही है।


इससे पहले जब सरकार ने खुदरा व्यापार और उड्डयन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की घोषणा की थी, तब उसने यह औचित्य दिया था कि इन कदमों से देश में वह विदेशी पूंजी आयेगी जिसकी बहुत जरूरत है और यहां हजारों नौकरियां पैदा होंगी। इस बार, बीमा और पेंशन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की सीमा की वृद्धि को उचित ठहराने के लिए संप्रग सरकार यह कह रही है कि इससे स्पर्धा बढ़ेगी, कार्यकुशलता बढ़ेगी और अधिक से अधिक लोगों को बीमा और पेंशन की सुविधा प्राप्त होगी। पूंजीपति इसे “वित्तीय समावेश”  का नाम दे रहे हैं और इसे जनता के हित के कदम बतौर बढ़ावा दे रहे हैं।


बीमा और पेंशन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की सीमा की वृद्धि इन क्षेत्रों का निजीकरण करने की संपूर्ण योजना का एक हिस्सा है। कार्यकुशलता और विस्तृत सेवा का औचित्य देकर क्रमशः हिन्दोस्तानी और विदेशी निजी पूंजी के प्रवेश के रास्ते में सभी बाधाओं को हटाया जा रहा है। पूंजीपतियों का असली मकसद है मेहनतकशों की कमाई और बचत से निर्मित इस विशाल राशि के साथ वित्त बाजार में सट्टेबाजी करना। यह सरासर धोखे के सिवाय कुछ और नहीं है।


कुछ समय पहले तक हिन्दोस्तान में पेंशन और बीमा सार्वजनिक क्षेत्र में शामिल थे और उन पर काफी नियंत्रण था। इनकी धनराशि सुरक्षित होती थी और पेंशन फंड या बीमा योजना से मजदूर को सीमित आमदनी मिलती थी। पेंशन फंड के निजीकरण और इन दोनों क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को बढ़ाने के लिए यह बहाना दिया जा रहा है कि पेंशन भोगियों और बीमा करने वालों को अपने पेंशन के योगदान या बीमा के प्रीमियम पर सीमित आमदनी से ही संतुष्ट नहीं रहना होगा। वित्त बाजार में तरह तरह के वैत्तिक साधनों में पूंजी निवेश करके उन्हें ज्यादा आमदनी मिल सकती है। परंतु जो सच्चाई छिपाई जा रही है वह यह है कि वित्त बाजार में पूंजी निवेश भारी खतरों से भरपूर है और मेहनतकश लोग वह सब कुछ खो सकते हैं जो उन्होंने इतनी कठिनाई से बचाया है। साथ ही साथ, बीमा के लिए प्रीमियम भी बढ़ जायेगा। हिन्दोस्तान में कई बीमा योजनाओं में प्रीमियम, बीमा क्षेत्र के इसके पूर्व उदारीकरण के दौर के समय ही, 40 प्रतिशत बढ़ गई थी।


अमरीका, इंग्लैंड तथा अन्य देशों जहां बीमा व पेंशन क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण हटाया गया है और निजीकरण किया गया है, वहां के लोगों का अनुभव यह साफ-साफ दिखाता है। अमरीका में फेडरल पेंशन एक्ट 2006 के तहत 2006 से राजकीय, निगमीय तथा निजी पेंशन फंड को सट्टेबाजी के लिए खोले जाने से और वित्तीय नियंत्रण हटाये जाने से, इनमें से कई धनराशियां दिवालिया होने के खतरे में हैं (ए.आई.जी. का उदाहरण देखिए), जबकि कुछ और दिवालिया हो गई हैं (एनरॉन का उदाहरण देखिए)।


मेहनतकशों के लिए इन सुधारों का मतलब है अपने पूरे भविष्य को खतरे में डालना। उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला है। जिन “ऊंची आमदनियों” का वादा किया जा रहा है, उनकी कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने कठिनाई से बचाये गये धन से जो बीमा खरीदे हैं और पेंशन फंड में जो जमा किये हैं, वे अब खतरे में होंगे और ऐसा भी हो सकता है कि लाभ के बजाय उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़े। उदारीकरण और निजीकरण के पूंजीपतियों के इस कार्यक्रम के खिलाफ़ मेहनतकशों को अपना विरोध और तेज करना होगा। मेहनतकशों को सभी श्रमिकों के हित में, सुरक्षित वर्तमान और भविष्य के लिए, एक वैकल्पिक कार्यक्रम के लिए संघर्ष करना होगा। मेहनतकशों को सरकार से यह मांग करनी होगी कि पेंशन फंड और बीमा का निजीकरण फौरन रोका जाये तथा वापस लिया जाये और भविष्य में लोगों की आमदनी को मुद्रास्फीति से सुरक्षित किया जाये। निजी मुनाफाखोरों को जनता के धन से खिलवाड़ करने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए।


ए.आई.जी. और एनरॉन के उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पेंशन फंड के निजीकरण से मजदूरों की आमदनी सुरक्षित नहीं हो सकती। यह सुरक्षा प्रदान करना सरकार का दायित्व है। जब पेंशन फंड का सट्टाबाजार में निवेश किया जाता है, तो किसी खास शेयर या पूरे शेयर बाजार के संभावित गिरावट से कोई सुरक्षा नहीं होती है।


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एनरॉन का किस्सा


दिसम्बर 2001 में जब गैस और व्यापार की विशाल कंपनी, एनरॉन दिवालिया हो गया तो उसके हजारों कर्मचारी व भूतपूर्व कर्मचारी अपने जीवन भर की बचत का पैसा खो बैठे। रिकार्ड के अनुसार, यह भी पता चला कि इससे पूर्व के वर्षों में एनरॉन के कई उच्च अधिकारियों ने सैकड़ों और हजारों लाखों डालर कमाये और कंपनी की असली वित्तीय स्थिति को छिपाया। दिसम्बर, 2001 में एनरॉन ने दिवालियापन से रक्षा की मांग की याचिका दर्ज की और उससे कुछ हफ्तों पहले एनरॉन ने यह स्वीकार किया कि 1997 से वह कंपनी की आमदनी को असली आमदनी से 58.6 करोड़ डालर अधिक घोषित करता रहा है। कंपनी के दसों-लाखों मजदूर उसकी पेंशन योजना में योगदान देते आ रहे थे और उनकी इस बचत के धन को कंपनी के शेयरों में निवेश किया गया था। मजदूरों पर यह शर्त लागू थी कि उन्हें कुछ निर्धारित वर्षों तक या किसी निर्धारित उम्र तक अपना धन कंपनी के शेयरों में ही लगाये रखना होगा। इस योजना के तहत हजारों कर्मचारियों को अपने शेयर बेचने से रोका गया, उस समय भी जब कर्मचारियों को स्पष्ट दिख रहा था कि कंपनी दिवालिया होने जा रही है। बाद में, उन कर्मचारियों को अपने भावी लाभ का सिर्फ एक तिहाई ही मिला।


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ए.आई.जी. का किस्सा


अमरीकन इंटरनेशनल ग्रुप (ए.आई.जी.) एक विशाल बीमा कंपनी है जिसने और पैसा कमाने की लालच में, कुछ खतरों से भरे निवेश किये थे जो नुकसानजनक निकले। इस वजह से कंपनी दिवालिया होने जा रही थी। कई पेंशन योजनाओं में ए.आई.जी. का योगदान लुप्त होने वाला था, जिससे पेंशन भोगियों को भारी नुकसान होने वाला था। दसों-लाखों अमरीकी नागरिक, जिन्होंने, वित्त बाजार म्युचुवेल फंड में अपना पैसा जमा किया था, अपनी जीवन भर की पूरी बचत खोने के खतरे में थे।


अमरीकी सरकार ने ए.आई.जी. को दिवालिया होने से बचाने के लिए उसे बेलआउट किया क्योंकि वह एक “बहुत बड़ी कंपनी” थी जो “फेल नहीं हो सकती थी”  और जिसका दिवालिया होना पूंजीपतियों के लिए बहुत तबाहकारी होता। वह बेलआउट दसों-लाखों आम अमरीकी नागरिकों से टैक्स वसूली करके किया गया।


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