1984 में सिखों के कत्लेआम के पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करते हुये, एक गंभीर व जोशपूर्ण अभियान 21 अक्तूबर, 2012 को अमृतसर में जलियांवाला बाग से, एक दिल दहलाने वाली चित्र प्रदर्शनी के साथ शुरू हुआ।
1984 के जन संहार, जिसके दौरान दिल्ली, कानपुर और अन्य जगहों पर 7000 से अधिक लोग मारे गये थे, उसके पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करने वाले इस अभियान के संदर्भ में, कई संगठनों और व्यक्तियों न
1984 में सिखों के कत्लेआम के पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करते हुये, एक गंभीर व जोशपूर्ण अभियान 21 अक्तूबर, 2012 को अमृतसर में जलियांवाला बाग से, एक दिल दहलाने वाली चित्र प्रदर्शनी के साथ शुरू हुआ।
1984 के जन संहार, जिसके दौरान दिल्ली, कानपुर और अन्य जगहों पर 7000 से अधिक लोग मारे गये थे, उसके पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करने वाले इस अभियान के संदर्भ में, कई संगठनों और व्यक्तियों ने उसी दिन एक प्रेस वार्ता आयोजित की। प्रेस वार्ता को संबोधित करने वाले संगठनों में बचपन बचाओ आन्दोलन, लोक राज संगठन, सिख फोरम और सोशलिस्ट युवजन भी शामिल थे।
जैसे-जैसे यह कारवां अनेक शहरों से गुज़रते हुये दिल्ली की ओर चला, हजारों-हजारों लोग इसके समर्थन में आगे आये। दिल्ली में इस अभियान के तहत, अक्तूबर के अंत व नवम्बर के आरंभ में कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।
पीडि़तों को बदनाम करना
पंजाब में कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने विभिन्न जन संगठनों द्वारा जून 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार में मारे गये लोगों की याद में एक स्मारक स्थापति करने के फैसले को बदनाम किया है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं के अनुसार, यह “आतंकवादियों को सम्मानित करना” है। यह सरासर झूठ है।
80 के दशक से पंजाब में आतंक फैलाने के लिये कौन जिम्मेदार है? केन्द्रीय राज्य और नई दिल्ली में शासक पार्टी इसके लिये जिम्मेदार है। इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी नीत सरकार ने सिख समुदाय के खिलाफ़ राजकीय आतंक लागू करने, उन पर वहशी हमला करने तथा उनके सबसे पवित्र धर्म स्थल को नष्ट करने की नीति शुरू की थी। अब वे अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिये, पीडि़तों पर इल्ज़ाम लगाना चाहते हैं।
आपरेशन ब्लू स्टार
“आपरेशन ब्लू स्टार” – सिखों के सबसे पवित्र धर्म स्थल, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सशस्त्र हमला, “आतंकवादियों का सफाया करने” के नाम पर, 6 जून, 1984 को किया गया था। आपरेशन ब्लू स्टार सिख गुरु अर्जुन देव के शहादत दिवस पर किया गया था, जिसे सिख धर्म के स्त्रियों व पुरुषों के लिये पवित्र दिन माना जाता है, जब हजारों-हजारों लोग स्वर्ण मंदिर पर इकट्ठे होते हैं। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को भारी टैंकों व बंदूकों से स्वर्ण मंदिर पर हमला करने का आदेश दिया था, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग मारे गये और सिखों के पवित्र धर्म स्थल, अकाल तख्त को बहुत हानि हुई।
स्वर्ण मंदिर पर हमले के बाद, कई वर्षों तक पंजाब, दिल्ली और देश के दूसरे भागों में राजकीय आतंकवाद आयोजित किया गया, जिसके चलते हजारों लोगों, खास तौर पर नौजवानों को मार डाला गया, पीडि़त किया गया और लापता घोषित कर दिया गया। पंजाब और अन्य जगहों पर मजदूरों और किसानों की बगावत और राष्ट्रीय अधिकारों की मांग को कुचलने के लिये यह आतंक की मुहिम चलाई गई। लोगों के जायज़ प्रतिरोध और राजनीतिक मांगों के आन्दोलन को बांटने और गुमराह करने के उद्देश्य से, शासक पार्टी और केंद्र सरकार के संस्थानों ने जानबूझकर हिन्दुओं और सिखों के बीच में बंटवारा करने की कोशिश की। सिख धर्म के लोगों को राष्ट्र विरोधी, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दुश्मन, करार दिया गया।
पंजाब के लोगों की राजनीतिक मांगों के साथ ऐसा बर्ताव किया गया जैसे कि वे “कानून और व्यवस्था की समस्यायें” थीं। “हिन्दोस्तान की एकता और अखंडता के दुश्मनों” को कुचलने के नाम पर, मजदूर वर्ग और किसानों को राजकीय आतंकवाद की नीति के समर्थन में लामबंध किया गया।
सिखों का कत्लेआम
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली, कानपुर और उत्तरी हिन्दोस्तान के अन्य मुख्य शहरों में सिखों का कत्लेआम आयोजित किया। कई हजारों सिखों को बेरहमी से मार डाला गया, हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया, सिखों के घरों, दुकानों व कारोबारों को जला दिया गया। सभी प्राप्त सबूतों से यह स्पष्ट होता है कि यह एक पूर्व नियोजित जन संहार था। तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के उकसाने वाले कथनों से प्रेरित, कांग्रेस पार्टी के सांसदों की अगुवाई में, वोटर लिस्ट और आगजनी के सामान लिये हुये गुंडों ने सिख धर्म के लोगों को जिन्दा जलाया और मार डाला। तत्कालीन गृह मंत्री पी.वी. नरसिंह राव की अगुवाई में पुलिस ने कातिलों को पूरा समर्थन दिया।
गुनहगारों को सज़ा दो – कमान की जिम्मेदारी निभाओ
“गुनहगारों को सज़ा दो!” – उस जनसंहार से बचने वाले लोग तथा देश भर के इंसाफ पसंद लोग बीते 28 वर्षों से डटकर यह मांग उठाते आ रहे हैं। 1984 के पीडि़तों के लिये इंसाफ़ के इस अभियान के समर्थन में हज़ारों-हज़ारों लोगों का आगे आना यह दिखाता है कि लोग 28 वर्ष पहले किये गये भयानक अपराध को आज तक नहीं भूले हैं।
कमान की जिम्मेदारी निभाने के असूल को स्थापित करना ज़रूरी है, यानि मानव जाति के खिलाफ़ इस प्रकार के अपराधों व हत्याकांडों के लिये, सिर्फ इन्हें अंजाम देने वाले गुंडों को ही नहीं बल्कि इन्हें निर्देश देने, आयोजित करने व अगुवाई देने वालों को भी सज़ा दिलाने की सख्त ज़रूरत है।
हमारी मांग है कि पीडि़तों को बदनाम करना फौरन रोका जाये और गुनहगारों को फौरन सज़ा दी जाये!