पूंजीपति वर्ग का भ्रष्ट और परजीवी शासन मुर्दाबाद! देश की दौलत पैदा करने वालों को देश का मालिक बनना होगा!

 हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान, 10 फरवरी, 2011
मजदूर साथियों!
हमने अपने मूल अधिकारों की मांग को लेकर, देश के कोने-कोने से 23 फरवरी को दिल्ली में एकत्रित होने का फैसला किया है। सुरक्षित रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा सिर

 हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान, 10 फरवरी, 2011
मजदूर साथियों!
हमने अपने मूल अधिकारों की मांग को लेकर, देश के कोने-कोने से 23 फरवरी को दिल्ली में एकत्रित होने का फैसला किया है। सुरक्षित रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा सिर्फ कुछ मुट्ठीभर लोगों का ही अधिकार नहीं हो सकता। ये सभी मजदूरों के मूल अधिकार हैं। खाद्य एक विलासिता की चीज़ नहीं बल्कि एक मूल जरूरत है। यह हर इंसान का मूल अधिकार है। इन अधिकारों को सुनिश्चित करना राज्य का फ़र्ज है।
हम हर प्रकार के निजीकरण – सार्वजनिक संसाधनों, वनों, नदियों, खनिज संसाधनों आदि जो जनता की संपत्ति है, को निजी मुनाफाखोरों के हाथों सौंपने की प्रक्रिया को फौरन रोकने की मांग कर रहे हैं। सामाजिक उत्पादन के अधिक से अधिक क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने से सिर्फ अति मालदार पूंजीपतियों को ही फायदा हुआ है, जबकि मेहनतकशों की पीड़ा बढ़ती रही है।
मनमोहन सिंह सरकार को हमारी मांगें पूरी करने की न तो कोई रुचि है, न कोई इरादा, हालांकि वह आम आदमी की सेवा करने का दावा करती है। सभी तथ्यों से यह साबित होता है कि यह सरकार टाटा, अंबानी, बिरला और दूसरे इजारेदार घरानों की अमीरी बढ़ाने को वचनबध्द है। हमारे श्रम का और ज्यादा शोषण करके, हमारे किसान भाइयों को और ज्यादा लूटकर, देश के पूंजीपतियों को विश्व स्तरीय ताकत बनने में मदद करने के कार्यक्रम पर यह सरकार वचनबध्द है।
सभी निजी पूंजीवादी कंपनियों को मिलाकर, सकल मुनाफों और कुल वेतनों का अनुपात 2001 में 44 प्रतिशत से 2008 में 176 प्रतिशत तक बढ़ गया। इससे पता चलता है कि हाल के वर्षों में हमारा शोषण कितना बढ़ गया है। मजदूर बतौर हमारे मूल अधिकारों, जिनमें नये उद्योगों में यूनियन बनाने के अधिकार, काम के घंटों को सीमित करने का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं, इन पर हमले करके यह अतिशोषण किया जा रहा है।
मजदूर साथियों!
बीते 20 वर्षों में कई बार सरकार बदली है, पर हमारा देश लगातार इसी रास्ते पर चलता रहा है। सरकार की अगुवाई चाहे कांग्रेस पार्टी कर रही हो, या भाजपा या तीसरा मोर्चा, पर निजीकरण और उदारीकरण का कार्यक्रम अनवरत जारी रहा है। इसकी यह वजह है कि इजारेदार घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग का, राज्य और पूरी राजनीतिक व्यवस्था पर, कब्ज़ा बना हुआ है। जो राडिया टेप्स से खुलासा हुआ है, उससे स्पष्ट होता है कि टाटा, अंबानी आदि ही इस देश को चला रहे हैं, हर सरकार के गठन में, मंत्रियों के चयन में तथा नीति निर्धारण में उन्हीं की निर्णायक भूमिका रही है। मौजूदा लोकतंत्र वास्तव में इजारेदार घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की हुक्मशाही है।
हमारे देश में प्रतिनिधित्व के लोकतंत्र की व्यवस्था और राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत तब हुई जब बर्तानवी उपनिवेशवादियों ने 1857 के महान ग़दर को कुचलने के बाद, अपनी दमनकारी हुक्मशाही को सजा-संवार कर पेश करने का प्रयास किया था। 1947 के बाद, पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधियों ने उसी व्यवस्था को बरकरार रखने तथा उसे और विकसित करने का फैसला किया।
अत: हमारा संघर्ष सिर्फ किसी एक खास पार्टी या सरकार के खिलाफ़ नहीं है। हमारा संघर्ष सत्ता पर बैठे पूंजीपति वर्ग के खिलाफ़ है। यह इस संपूर्णतया भ्रष्ट और परजीवी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ़ संघर्ष है।
अपनी जायज़ मांगों के लिये संघर्ष को तेज़ करने के साथ-साथ, हमें इस दृष्टिकोण के साथ संघर्ष करना होगा कि इस देश की दौलत पैदा करने वाले मजदूरों और किसानों को इसका मालिक बनना होगा। तभी हम यह सुनिश्चित कर पायेंगे कि हमारी मांगें पूरी होंगी और हमारे अधिकारों की रक्षा की जायेगी। तभी हम अर्थव्यवस्था को नई दिशा दिला सकेंगे, ताकि हमारी सारी जरूरतें पूरी हो सकें और मेहनतकश जनसमुदाय को चूसकर एक परजीवी वर्ग की अमीरी न बढ़ती रहे।
हमें एक नई राजनीतिक व्यवस्था और चुनाव प्रक्रिया के लिये संघर्ष करना होगा, जिसमें चुने गये प्रतिनिधियों को मेहनतकश जनसमुदाय के सामने जवाबदेह होना होगा, न कि मुट्ठीभर शोषकों के सामने, जैसा कि आज होता है। हमें प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में सभाओं और समितियों के जरिये, चुनाव के लिये उम्मीदवारों का चयन करने और चुने गये प्रतिनिधियों को किसी भी समय वापस बुलाने के अधिकार के लिये संघर्ष करना होगा।
पूंजीपतियों के प्रचार में 'भ्रष्टाचार' को मुख्य समस्या बताया जाता है। सच तो यह है कि पूंजीवाद के वर्तमान पड़ाव में भ्रष्टाचार निहित है। सभी इजारेदार घराने अपना काम करवाने के लिये नेताओं और अफसरों को रिश्वत देते हैं। पूरी व्यवस्था प्रतिदिन ऐसे ही काम करती है। कांग्रेस पार्टी और भाजपा एक दूसरे पर कीचड़ उछालती हैं परंतु समस्या की जड़, यानि पूंजीवादी व्यवस्था को नहीं छूना चाहती हैं। वे इस बात को छुपाना चाहती हैं कि इस भ्रष्टाचार को खत्म करने का एकमात्र रास्ता पूंजीवादी व्यवस्था को ही खत्म करना है।
आज विश्व स्तर पर क्रान्तिकारी तूफान उठ रहा है। यह टयूनीसिया और मिस्र में जनसमूह की बगावत में देखा जा सकता है। यह साम्राज्यवादी जंग के खिलाफ़, बढ़ते शोषण और असहनीय खाद्य कीमतों के खिलाफ़, इजारेदार कंपनियों और बड़े-बड़े बैंकों के प्रभुत्व के खिलाफ़ दुनिया भर में फैले जन-विरोध में देखा जा सकता है। हमारा संघर्ष इस क्रान्तिकारी तूफान का हिस्सा है। यह दुनिया की पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ़ संघर्ष है।
मजदूर साथियों!
आज हमारी लड़ाकू एकता को मजबूत करने के लिये हमें अपने बीते अनुभव से सीखना होगा। हमें उन राजनीतिक धाराओं को पराजित करना होगा, जो हमें बांटती हैं और पूंजीपति वर्ग के खिलाफ़ संघर्ष के रास्ते से हमें गुमराह करती हैं।
अगर हम बीते 10 वर्षों के अनुभव को देखें, तो हम यह देख सकते हैं कि 2004 में हमारा संघर्ष चरम सीमा तक पहुंच गया था। हमने हड़ताल करने के अधिकार की हिफ़ाज़त करने के लिये और तत्कालीन भाजपा नीत राजग सरकार द्वारा लाये जा रहे ''सुधारों के दूसरे दौर'' के खिलाफ़, एक वर्ग बतौर अपनी एकता बनाई थी। परन्तु 2004 में लोक सभा चुनावों के बाद हमारा संघर्ष कमज़ोर हो गया। इसकी वजह यह थी कि हमें उन लोगों ने गुमराह किया, जिन्होंने यह दावा किया कि हमारा तत्कालीन काम भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस पार्टी को समर्थन देना था। हमने देखा है कि कांग्रेस पार्टी नीत संप्रग सरकार ने ''मानवीय चेहरे के साथ सुधार'', ''सबको शामिल करके संवर्धन'' और ''राष्ट्रीय सांझा न्यूनतम कार्यक्रम'' के नारों की आड़ में, मेहनतकशों को लूट कर इजारेदार घरानों की अमीरी बढ़ाने का ठीक वही कार्यक्रम लागू किया है। हम फिर से उस तरह गुमराह नहीं हो सकते।
हम मजदूरों को खुद को एक एकजुट और प्रभावशाली राजनीतिक ताकत में तब्दील करना होगा, जो पूरे समाज का अजेंडा तय कर सकती है और पूंजीवाद व इजारेदार कंपनियों के खिलाफ़ संघर्ष में किसानों, आदिवासियों तथा अन्य शोषितों को अगुवाई दे सकती है।
मजदूर साथियों!
कुछ तत्कालीन मांगों के इर्द-गिर्द एकजुट होकर हमने एक महत्वपूर्ण प्रगति हासिल कर ली है। हमें इस सांझे कार्यक्रम से अपना ध्यान हटाने की किसी को इज़ाज़त नहीं देनी चाहिये।
हम जरूरी सामग्रियों की कीमतें घटाने के तत्कालीन कदमों की मांग लेकर एकजुट हुये हैं। हम यह मांग कर रहे हैं कि खाद्य पदार्थों और आम उपभोग की दूसरी जरूरी चीजों के प्रापण और वितरण को जनता के नियंत्रण में लाया जाये। इसके लिये, घरेलू व विदेशी थोक व्यापार में निजी संस्थानों की भूमिका को सीमित करना और खत्म करना होगा। तभी यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सभी जरूरी चीजें – गेहूं, चावल, दाल, चीनी, तेल, दूध, सब्ज़ी, मांस, इत्यादि पर्याप्त मात्रा में, अच्छी गुणवत्ता के साथ, प्रत्येक परिवार को मुनासिब दाम पर उपलब्ध हों। खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने वाले किसानों को सुरक्षित रोजगार की गारंटी भी तभी मिल सकती है।
हम बेरोज़गारी से मजदूरों की रक्षा करने के फौरी कदमों की मांग लेकर एकजुट हुये हैं। हम काम और सामाजिक सुरक्षा के अधिकार के लिये संविधानीय गारंटी और उसे लागू करने के तंत्रों की मांग कर रहे हैं।
हम यह मांग कर रहे हैं कि जो भी मालिक श्रम कानूनों का उल्लंघन करता है – जैसे कि यूनियन बनाने का अधिकार, न्यूनतम वेतन का अधिकार, 8 घंटे काम के दिन का अधिकार, इत्यादि – उसे कड़ी सज़ा दी जाए। हम ठेका मजदूरी को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
हम किसी भी रूप से सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण को रोकने की मांग कर रहे हैं। हम यह मांग कर रहे हैं कि बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, नगर निगम सेवाओं तथा परिवहन जैसी सार्वजनिक सेवाओं को निजी हाथों से वापस सरकार के हाथों में लाया जाये।
अपने कार्यक्रम का प्रचार करने और अपनी मांगों के इर्द-गिर्द अपनी एकता बनाने के लिये, हम प्रत्येक औद्योगिक क्षेत्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र में मजदूर एकता परिषद बनायें। इन परिषदों को पार्टी और टे्रड यूनियन के आधार पर बंटना नहीं चाहिये।
मजदूरों और किसानों का शासन स्थापित करने के क्रान्तिकारी नज़रिये के साथ, हम अपनी तत्कालीन मांगों के लिये संघर्ष करें।
मजदूर एकता जिन्दाबाद!
इंकलाब जिन्दाबाद!

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *