बिजली वितरण के निजीकरण का विरोध करें!

कामगार एकता कमेटी द्वारा आयोजित “निजीकरण के ख़िलाफ़ एकजुट हों!” श्रृंखला की 11वीं सभा

25 अप्रैल 2021 को बिजली वितरण के निजीकरण का विरोध करने के लिए कामगार एकता कमेटी ने एक आम सभा का आयोजन किया। “निजीकरण के खिलाफ़ एकजुट हों” के शीर्षक के तले होने वाली यह 11वीं सभा थी। इससे पहले आयोजित सभाएं, रेलवे, बँक, बीमा, कोयला, तेल उद्योग, बंदरगाह तथा शिक्षा क्षेत्रों के निजीकरण के बारे में थीं। निजीकरण के खिलाफ सार्वजनिक क्षेत्र के विविध यूनियनों तथा फेडरेशनों को एक संयुक्त संघर्ष में एक साथ लाना, इन सभाओं को आयोजित करने का उद्देश्य है।

वक्ताओं तथा सहभागियों का स्वागत करते हुए कामगार एकता कमेटी के सचिव, कॉ. मेथ्यू ने कहा कि कोविड महामारी के राष्ट्रीय संकट के दौरान हम मिल रहे हैं। यह आपदा पूरी तरीके से सरकार की लापरवाही की वजह से है। बिजली, स्वास्थ्य, रेलवे, बैंक, बीमा, कोयला, इस्पात तथा अन्य क्षेत्रों के हजारों मज़दूर बीमार हुए हैं और अनेकों की मौत हो गयी है। लेकिन इन सब कठिनाइयों का सामना करते हुए, इन क्षेत्रों के मज़दूरों ने समाज की सेवा जारी रखी है।

कॉ. मेथ्यू ने कामगार एकता कमेटी की ओर से कॉ. गिरिश को विषय पर प्रस्तुती पेश करने के लिए आमंत्रित किया। कॉ. गिरिश ने देश में बिजली के निजीकरण की पृष्ठभूमि तथा अलग-अलग राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के इसके अनुभव के बारे में जानकारी दी। (इसी वेबसाइट पर “बिजली वितरण के निजीकरण का विरोध करें – कामगार एकता कमेटी द्वारा प्रस्तुति“ लेख को पढ़ें)

इस प्रस्तुति के बाद निम्नलिखित वक्ताओं ने अपना संबोधन रखा।

श्री शैलेंद्र दुबे, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (ए.आई.पी.ई.एफ.) और संयोजक, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, यूपी;कॉमरेड मोहन शर्मा, महासचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज (ए.आई.टी.यू.सी.) और अध्यक्ष, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (ए.आई.टी.यू.सी); कॉमरेड प्रशांत चौधरी, इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव (सी.आई.टी.यू.); श्री अभिमन्यु धनखड़, महासचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स और राज्य अध्यक्ष, हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड डिप्लोमा इंजीनियर्स एसोसिएशन और कॉमरेड कृष्णा भोयर, राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज (ए.आई.टी.यू.सी.) और महासचिव, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (ए.आई.टी.यू.सी.)।

(इन वक्ताओं के बयानों के मुख्य बिंदु इसी लेख में आगे दिये गए हैं।)

वक्ताओं ने अपने संबोधन में इस बात पर गौर फरमाया कि महामारी का फ़ायदा उठा कर सरकार बिजली संशोधन विधेयक 2021 पारित करवाने की कोशिश कर रही है। सब मज़दूरों के विरोध से ही सरकार के इन हमलों का विरोध कामयाब हो पाया है। राज्य स्तर के यूनियनों से लेकर सर्व हिंद यूनियनों तक, सब निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में मज़दूर निजीकरण को रोकने में कामयाब हो गये हैं। निजीकरण को रोकने के लिए महाराष्ट्र में तथा पूरे देश में भी अनेक हड़तालें हुई हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के सभी उद्योगों को निजीकरण का सामना करना पड़ रहा है। हर क्षेत्र के मज़दूर जी-जान से लड़ रहे हैं। अगर सब मज़दूर एक झंडे तले आते हैं, तो हम सब सरकार का निजीकरण कार्यक्रम रोक सकते हैं।

वक्ताओं का कहना था कि उपभोक्ताओं को निजीकरण के खिलाफ संघर्ष में जोड़ने की जरूरत है। उसके लिए जरूरी है कि जनता के बीच निजीकरण के हानिकारक परिणामों के बारे में जानकारी का प्रचार किया जाए।

अस्पतालों को निरंतर बिजली उपलब्ध कराने के दौरान जिन बिजली क्षेत्र के मज़दूरों तथा इंजीनीयरों ने अपनी जानें गंवाई थी, उन्हें सभा ने श्रद्धांजलि दी। सुरक्षा किट्स की पर्याप्त आपूर्ति के बिना बिजली अधिकारियों को तथा मज़दूरों को काम करने के लिए कहा गया। वक्ताओं ने मांग की कि बिजली मज़दूरों को केंद्र तथा सभी राज्य सरकारों को अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धाओं का दर्जा देना चाहिए और जिनकी मौत हुई है, उनके परिजनों को पर्याप्त मुआवजा मिलना चाहिए।

वक्ताओं ने कामगार एकता कमेटी के प्रति आभार व्यक्त किये कि उसने निजीकरण के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध सभाओं का आयोजन किया है ताकि अलग-अलग सार्वजनिक क्षेत्रों के मज़दूरों की एकता बन सकें।

फेडरेशनों के नेताओं के संबोधन के बाद अनेक सहभागियों ने भी अपने अपने विचार रखे। कामगार एकता कमेटी के एक नौजवान कार्यकर्ता ने एक ऑडियो विज़ुअल प्रस्तुति की, जिसमें उन्होंने ठाणे शहर के उपनगर, कलवा में बिजली वितरण के निजीकरण के खिलाफ जो प्रदर्शन हुए थे, वे दिखाए। ढाई साल पहले, कामगार एकता कमेटी तथा लोक राज संगठन ने अन्य संगठनों के साथ मिल कर, कलवा, मुंब्रा तथा शील प्रभागों के बिजली वितरण को टॉरेंट पॉवर को सौंपे जाने के विरोध में मुहिम छेड़ी थी। आम लोगों के बीच पर्चे बांटे गये थे, जिसमें निजीकरण के क्या बुरे परिणाम होंगे, यह समझाया गया था। लोग बहुत जल्दी समझ गये और कई दिनों में ही 5,000 से ज्यादा हस्ताक्षर इकट्ठा किये गये थे। खारेगांव से कलवा तक एक 10 किलोमीटर लम्बा मोर्चा भी आयोजित किया गया था। परिणामतः सरकार को एक साल के लिए टोरेंट पर स्टे लगाना पड़ा। लेकिन पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान सरकार ने उसे टोरेंट को सौंप दिया। इस मुहिम से यह भी सिद्ध हुआ कि हम प्रमुख राजनैतिक पार्टियों पर निर्भर नहीं रह सकते। मुहिम के दौरान विधानसभा में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा शिव सेना विपक्ष में थी और उन्होंने मुहिम का समर्थन किया था। लेकिन जैसे ही वे सत्ता में आए, वे भी निजीकरण का कार्यक्रम लागू कर रही हैं!

इसके अलावा अनेक अन्य सहभागियों ने भी अपनी अपनी बातें रखी। सभासदों में जोश के चलते सभा तकरीबन 4 घंटे तक चली। मीटिंग का समापन करते हुए कॉ. मेथ्यू ने घोषणा किया कि ‘निजीकरण के खिलाफ़ एकजुट हों!’ के शीर्षक के तले 12वीं सभा, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आर.आई.एन.एल.), विशाखापटनम के निजीकरण के विरोध में होगी।

श्री शैलेंद्र दुबे, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) और संयोजक, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के संबोधन की मुख्य विशेषताएं

बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण करने वाली राज्य बिजली बोर्डों को लगभग दो दशक पहले तोड़ने शुरुआत, निजीकरण की दिशा में सिर्फ एक बीच का कदम था।

1999 के बाद से ओडिशा बिजली वितरण पहले सार्वजनिक से निजी और फिर सार्वजनिक हो गया। फिर 2020 में फिर से निजी हो गया! निजी कंपनियों द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में बार-बार विफल होने के बावजूद, सरकार ने निजीकरण के अपने प्रयास जारी रखे हैं। ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन (टी एंड डी) घाटे में कमी नहीं आई और न ही आश्वासित पूंजी निवेश किया गया। इसके विपरीत, वितरण को वापस अपने हाथों में लेने के लिए मजबूर होने पर सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

एक और निजीकरण का मॉडल कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से शहरी इलाकों में वितरण व्यवसाय को निजी संस्थाओं को सौंपना है, जिन्हें फ्रेंचाइजी कहा जाता है। 2007 और 2012 के बीच फ्रेंचाइजी का अनुभव ज्यादातर मामलों में विनाशकारी रहा है। केवल महाराष्ट्र के भिवंडी में इसे ‘सफल’ घोषित किया गया है। भिवंडी में ‘सफलता’ ग्राहकों और श्रमिकों की कीमत पर हासिल की गई है। ग्राहकों को टोरेंट द्वारा अधिक बिल दिया जाता है और ग्राहकों ने बताया है कि कंपनी बकाया वसूलने के लिए बाहुबलियों का उपयोग करती है। अधिकांश श्रमिकों को अनुबंध पर रखा जाता है, और बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम पर रखा जाता है। ऐसे कई मज़दूरों की करंट लगने से मौत हो चुकी है।

आगरा में, टोरेंट द्वारा अधिग्रहण के बाद, बिजली वितरण में तकनीकी और व्यवसायिक घाटा (ए.टी. एंड सी.) 2010-11 में 58-77 प्रतिशत से बढ़कर 61-44 प्रतिशत हो गया। औरंगाबाद और जलगाँव में, क्रमशः जी.टी.एल. लिमिटेड और क्रॉम्पटन ग्रीव्स लिमिटेड को दी गई फ्रैंचाइजी को, डिस्कॉम को देय राशि का भुगतान न करने के कारण रद्द करना पड़ा। नागपुर और कानपुर में, क्रमशः क्रॉम्पटन ग्रीव्स लिमिटेड और टोरेंट पावर लिमिटेड को प्रदान की गई फ्रेंचाइजी को अधिग्रहण में देरी के कारण रद्द करना पड़ा। उज्जैन में, एस्सेल यूटिलिटीज को प्रदान की गई फ्रैंचाइजी को खराब सेवा गुणवत्ता और ग्राहकों के विरोध के कारण रद्द करना पड़ा। रांची और जमशेदपुर में, सी.ई.एस.सी. लिमिटेड और टाटा पावर लिमिटेड को दी गई फ्रेंचाइजी को अमल करने में देरी के कारण रद्द करना पड़ा।

निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया एक अन्य तरीका समानांतर लाइसेंसिंग की अनुमति देना है। इसे सबसे पहले मुंबई में शुरू किया गया, जहां उपभोक्ता अपना बिजली आपूर्तिकर्ता चुन सकते हैं। दावा है कि इस तरह का विकल्प देने से प्रतिस्पर्धा होती है जो कार्यक्षमता बढ़ाती है और टैरिफ को कम करती है। हालांकि, वास्तविक व्यवहार में मुंबई में समानांतर लाइसेंसिंग के संचालन के परिणामस्वरूप आसमान छूते खर्च, भारी उपभोक्ता शुल्क और नियामक विफलताओं के उलटे परिणाम सामने आए हैं। आज मुंबई में सभी वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के औसत टैरिफ अधिक हैं और आपूर्तिकर्ता को बदलने से उपभोक्ताओं को लाभ नहीं हुआ है।

नए बिजली संशोधन विधेयक 2021 से समानांतर लाइसेंसिंग को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, भले ही मुंबई में अनुभव पूरी तरह से असंतोषजनक रहा हो।

कॉ. मोहन शर्मा, महासचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज (ए.आई.टी.यू.सी.) और अध्यक्ष, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (ए.आई.टी.यू.सी.) के संबोधन की मुख्य विशेषताएं

पिछले 4 वर्षों में हमारे फेडरेशन ने हजारों पुस्तिकाओं का वितरण कर बिजली कर्मचारियों के साथ-साथ ग्राहकों को बिजली वितरण के निजीकरण के ख़तरों के बारे में सूचित करने के लिए कई पहल की हैं। हमने देश भर के विभिन्न राज्यों के सांसदों और मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा और उन्हें बिजली वितरण के निजीकरण के सभी दुष्प्रभावों के बारे में बताया।

महाराष्ट्र में, फेडरेशन ने कलवा, मुंब्रा क्षेत्र में बिजली वितरण के निजीकरण के खिलाफ उपभोक्ताओं को 25,000 पत्रक (लिफलेट) वितरित किए। यह फ्रेंचाइजी मॉडल उपभोक्ताओं के लिए फ़ायदेमंद नहीं है लेकिन सरकार ने इस पर आंखें मूंद ली हैं।

नया बिल साफ तौर पर रिलायंस और टाटा जैसे कॉरपोरेट घरानों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है।

इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीटू) के महासचिव कामरेड प्रशांत चौधरी के भाषण की मुख्य विशेषताएं

सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण इसलिए किया गया था क्योंकि हमारे पूंजीपति स्वतंत्रता के समय बिजली, रेलवे, इस्पात, कोयला, तेल, दूरसंचार, विमानन, बंदरगाह, आदि जैसे पूंजी-गहन उद्योगों में निवेश करने के लिए बहुत कमजोर थे। इन क्षेत्रों को जनता के पैसे से वित्त पोषित और विकसित किया गया था। सभी हाई-टेंशन बिजली लाइनों को विकसित किया गया और बिजली उत्पादन क्षमता में जबरदस्त वृद्धि हुई ।

अब हिन्दोस्तानी पूंजीपति इन क्षेत्रों को संभालने के लिए काफी बड़े हो गए हैं, चाहे बिजली, रेलवे और अन्य क्षेत्र। जब नरसिम्हा राव सरकार ने 1992 में निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नई आर्थिक नीति की घोषणा की, तो उन्होंने दावा किया कि सरकार के पास पैसा नहीं है इसलिए हमें पैसा पाने के लिए निजी निवेश को आमंत्रित करने की आवश्यकता है। लेकिन वास्तव में, भारत और विदेशों की कंपनियों ने अपने पैसे का बहुत कम निवेश किया। यह हिन्दोस्तानी लोगों का पैसा था जिसका उपयोग बैंक कर्ज के माध्यम से किया गया था। जब भी ये निजी कंपनियां संकट में होती हैं, तो सरकारी कंपनियों को उन्हें बचाने के लिए कहा जाता है लेकिन सरकारी कंपनियों के साथ बिल्कुल विपरीत होता है। उदाहरण के लिए, बीएसएनएल संकट में है लेकिन सरकार को इसे बचाने की कोई जल्दी नहीं है।

अब यह पका हुआ खाना पूंजीपतियों को अपनी पूंजी बढ़ाने के लिए परोसा जा रहा है। इस तरह वे पूंजी जमा कर रहे हैं।

राज्य बिजली बोर्डों को सबसे तेज गति से शहरों से देश के सुदूर इलाकों तक बिजली का विस्तार करने के लिए कहा गया था, न केवल अमीरों और उद्योगों के लिए बल्कि गरीबों, ग्रामीणों और कृषि शक्ति के लिए भी। बिजली बोर्डों ने हरित क्रांति लाने में मदद की। अब उन्हें बताया जा रहा है कि वे बेकार हैं क्यों कि वे लाभ नहीं कमा सकते हैं, इसलिए उनका निजीकरण किया जाना चाहिये।

बिजली बोर्ड, रेलवे और स्टील और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों ने शायद लाभ नहीं कमाया हो। लेकिन फिर लाभ किसके लिए? एक कंपनी के लिए लाभ, राज्य के लिए लाभ या देश की अर्थव्यवस्था के लिए?

2021 के बिजली संशोधन के तहत हमारे किसानों के बिजली के अधिकार को खत्म किया जा रहा है।

श्री अभिमन्यु धनकड़, महासचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स और राज्य अध्यक्ष, हरियाणा राज्य विद्युत बोर्ड डिप्लोमा इंजीनियर्स एसोसिएशन के भाषण की मुख्य विशेषताएं

सरकार 2014 से बिजली अधिनियम में संशोधन करने की कोशिश कर रही है लेकिन बिजली मज़दूरों के एकजुट विरोध के कारण सफल नहीं हो सकी। 2021 में लाया गया संशोधन पांचवां प्रयास है और इसे मज़दूरों या उपभोक्ताओं या राज्यों के साथ परामर्श के बिना आगे बढ़ाया जा रहा है।

यह सरकार पूंजीपतियों के इशारे पर काम कर रही है। 2020 में लाए गए मानक बोली दस्तावेज (एस.बी.डी.) में उल्लिखित सभी प्रावधान केवल इजारेदार पूंजीपतियों के लाभ के लिए हैं।

17 फरवरी, 2021 की बैठक में ऊर्जा मंत्री ने कहा कि डिस्कॉम की अक्षमता नुकसान का मुख्य कारण है, न कि सरकार की नीति। यह समझना मुश्किल है कि निजी खिलाड़ी मौजूदा व्यवस्था को कैसे लाभ में लाएंगे। जैसा कि एस.बी.डी. में उल्लेख किया गया है, सरकार निजी भुगतानकर्ताओं को उस तरह की सुविधाएं प्रदान करने की योजना बना रही है जो राज्य के स्वामित्व वाली वितरण कंपनियों को नहीं दी जाती हैं, और फिर भी सरकार चाहती है कि वे निजी खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा करें!

बिजली अधिनियम 2003 का उद्द्येश्य ‘सभी के लिए सस्ती बिजली’ कहा गया था, लेकिन निजीकरण के बाद से दिल्ली में टैरिफ को 7 बार संशोधित किया गया है।

विद्युत संशोधन विधेयक 2021 का वास्तविक उद्देश्य न केवल निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति का विकल्प प्रदान करना है, बल्कि निजी खिलाड़ियों को डिस्कॉम के मौजूदा बुनियादी ढांचे तक गैर-भेदभावपूर्ण पहुंच की अनुमति देना है। बिजली वितरण कारोबार में कोई भी निजी खिलाड़ी बिजली के बुनियादी ढांचे में पैसा खर्च करने नहीं आएगा।

वर्तमान में, निजी उत्पादन कंपनियां लोगों को सीधे बिजली बेचने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन उनके पास अपना नेटवर्क नहीं है। अब जबकि सभी बुनियादी ढांचे का निर्माण जनता के पैसे से हो गया है, तब अति अमीरों की योजना इससे लाभ उठाने की है। राज्य की डिस्कॉम के तहत उपयोग में आने वाली भूमि का किराया वर्तमान बाजार मूल्य के हिसाब से बहुत ज्यादा है लेकिन इन सभी चीजों को निजी अति अमीर इजारेदार घरों को प्रति माह एक रुपये की दर से देने की परिकल्पना की जा रही है।

कहा जा रहा है कि राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियां गायब नहीं होंगी लेकिन बी.एस.एन.एल. का उदाहरण वास्तविकता बताता है। सभी निजी कंपनियों को 4जी मिला लेकिन बी.एस.एन.एल. को नहीं मिला। निजी कंपनियों ने बी.एस.एन.एल. के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया और अति अमीर बन गई हैं।

इसी तरह बिजली वितरण पर भी उनकी नजर है। उनका उद्देश्य सरकारी इजारेदारी को निजी इजारेदारी में बदलना है।

कृतिदेव यहां कॉमरेड कृष्णा भोयर, राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज (ए.आइ.र्टी.यू.सी.) और महासचिव, महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (एम.एस.ई.डब्ल्यू.एफ.) के भाषण की मुख्य विशेषताएं

इस क्षेत्र में ठेकेदारों के लिए काम करने वालों सहित 15 लाख से अधिक कर्मचारी हैं। बी.जे.पी. हो या कांग्रेस, दोनों की नीतियां एक जैसी हैं। बिजली पहला क्षेत्र था जिसे 1990 में निजीकरण के लिए प्रस्तावित किया गया था और यह एनरॉन परियोजना के माध्यम से किया गया था। बिजली कर्मचारियों ने इसका विरोध किया और भारी विरोध के कारण उन्हें इसे रद्द करना पड़ा लेकिन बाद में उन्होंने इसे फिर से चालू कर दिया।

आज बिजली उत्पादन का बड़े पैमाने पर निजीकरण किया गया है। वे 1,76,000 मेगावाट (थर्मल, पवन उर्जा और सौर उर्जा सहित) से अधिक का उत्पादन कर रहे हैं। वर्तमान में एक लाख मेगावाट बिजली का अतिरिक्त उत्पादन होता है। इस बिजली को कोई नहीं खरीद रहा है और इसका खर्च सरकारी वितरण कंपनियां वहन करती हैं। कई बार सरकारी स्वामित्व वाली उत्पादन कंपनियों को निजी बिजली पैदा करने वाली कंपनियों से उनकी ऊंची कीमत के बावजूद बिजली खरीदने के लिए अपना बिजली उत्पादन करने से रोक दिया जाता है। महाराष्ट्र में डिस्कॉम्स द्वारा एकत्रित रु. 86,000 करोड़ राजस्व का 85 प्रतिशत बिजली की खरीद में जाता है और बाकी का उपयोग मज़दूरों को भुगतान करने और बुनियादी ढांचे को बनाए रखने के लिए किया जाता है।

यह सुनिश्चित करने के लिए बिजली बिल संशोधन लाए गए हैं कि निजी इजारेदार पूंजीपति वितरण के माध्यम से खुद को समृद्ध कर सकें। सरकार इजारेदार पूंजीपतियों के एजेंडे को ही पूरा कर रही है।

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