21 अप्रैल को, हम हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी की 108वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। उत्तरी अमरीका में रहने वाले हिन्दोस्तानी मेहनतकश लोगों ने, औपनिवेशिक शासन से हिन्दोस्तान की मुक्ति और एक ऐसे नये हिन्दोस्तान को बनाने के लिए, जिसमें हमारे लोगों के श्रम और संसाधनों का शोषण नहीं होगा, के लिए इसका गठन किया था। ऐसे समय, जब हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों और जमींदारों का प्रमुख राजनीतिक संगठन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ब्रिटिश सम्राट और ब्रिटिश संसदवाद का गुणगान कर रही थी, ग़दर पार्टी ने, इस औपनिवेशिक शासन, जिससे हिन्दोस्तानी लोग सख़्त नफरत करते थे, ऐसी राज्यसत्ता को उखाड़ फेंकने का अपना स्पष्ट लक्ष्य, लोगों के सामने रखा। इस लक्ष्य में, वे 1857 के ग़दर के क्रांतिकारियों से प्रेरित थे। नई पार्टी ने, 1857 के ग़दर के, अधूरे कार्य को पूरा करने का संकल्प लिया। उपनिवेशवादियों द्वारा ग़दर पार्टी के ख़िलाफ़ किए गए क्रूर दमन के बावजूद, ग़दर पार्टी, अपने इस उद्देश्य से कभी भी विचलित नहीं हुई।
विदेशी हुकूमत के ख़िलाफ़ अपने अटूट और दृढ़ निश्चय के लिए, एक नए हिन्दोस्तान की अपनी बुलंद कल्पना और दूरदर्शिता के लिए और अपने सेनानियों की निडर बहादुरी और बलिदान के लिए, हिन्दोस्तानी लोगों ने हमेशा हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी की स्मृति को बहुत आदर से सम्मानित किया है।
ग़दर पार्टी और हिन्दोस्तानी लोगों के अन्य देशभक्त संगठनों द्वारा किए गए महान बलिदानों के बावजूद, कड़वा सच तो यह है कि आज भी हमारे लोग, दुनिया में सबसे अधिक शोषित और उत्पीड़ित लोगों में से एक हैं। आज, सत्ता में बैठे, हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधियों ने, मेहनतकश लोगों के शोषण को उस स्तर तक पहुंचाया है जो औपनिवेशिक काल में भी नहीं देखा गया था। जो भी उनका विरोध करतें हैं उनको सबक सिखाने के लिए वे इतने क्रूर तरीके अपनाते हैं, जिनकी कल्पना उपनिवेशवादी हुकूमत ने भी नहीं की थी। इन परिस्थितियों में, आज ग़दरी बाबाओं की विरासत का सम्मान करने का अर्थ है कि उनसे प्रेरणा लेकर, उन्ही की तरह काम करना, जैसा उन्होंने अपने समय में किया था – यानी स्वयं के बारे में सोचे बिना, अथक प्रयास करना, उन ताकतों के ख़िलाफ़ जो लोगों को बांटने और उनके शोषण और दमन को और भी तीव्र करने की कोशिश कर रही हैं। इसका अर्थ है, अत्याचारियों और उनके एजेंटों के सामने दृढ़ रहना और बिल्कुल निडर होकर पेश आना। इसका अर्थ है अपने देश, हिन्दोस्तान के नवनिर्माण के लिए, पूरी लगन से काम करना।
हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी ने हिन्दोस्तान और विदेशों में अपने लोगों के शोषण और दमन को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया
उन्नीसवीं शताब्दी में जैसे-जैसे ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने हिन्दोस्तान का शोषण बढ़ाया, देश के बड़े हिस्से को, आर्थिक तबाही का सामना करना पड़ा। इससे, हमारे देशवासियों को अपनी आजीविका कमाने की कोशिश में, बड़े पैमाने पर, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जाना पड़ा। उपनिवेशवादियों ने इसे प्रोत्साहित किया, क्योंकि उन्हें अपने बाग़ानों में काम करने, नई भूमि पर खेती करने के लिए, जंगलों को साफ करने, रेलमार्ग बिछाने और अपने कारख़ानों में काम करने के लिए सस्ते या बंधुआ श्रम की जरूरत थी। लेकिन हमारे लोग, जहां भी गए, उन्हें उपनिवेशवादियों और साम्राज्यवादियों के हाथों, नस्ली भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा और एक गुलाम देश के लोगों के रूप में ही, उनको हर जगह बेइज़्ज़ती झेलनी पड़ी।
अपने अपमान और मातृभूमि की गुलामी से नाराज, अमरीका के पश्चिमी तट पर बसे देशभक्त हिन्दोस्तानियों ने, 1913 में, एक साथ मिलकर, हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी बनाने का काम अपने हाथ में लिया। शुरू से ही, ग़दर पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनका उद्देश्य, हिन्दोस्तान से ब्रिटिश शासन को पूरी तरह से उखाड़ फेंकना था। अपनी प्रसिद्ध पत्रिका ग़दर के मास्टहेड पर, उन्होंने बड़ी बहादुरी से, खुद को ‘‘अंग्रेजी राज का दुश्मन’’ के रूप में पहचान दी। ग़दर का पहला अंक ही इन प्रेरणादाई शब्दों से शुरु हुआः
हमारा नाम क्या है? ग़दर।
हमारा काम क्या है? ग़दर।
क्रांति कहां होगी? हिन्दुस्तान में।
ग़दर के पन्नों के साथ-साथ, ग़दर पार्टी द्वारा निकाले जाने वाले अन्य साहित्य ने, देशभक्त हिन्दोस्तानियों को शिक्षित और प्रेरित किया। ग़दर पार्टी ने, हिन्दोस्तान पर जबरन क़ब्ज़ा जमाई ब्रिटिश उपनिवेशवादी हुकूमत के जुल्मों का पर्दाफाश किया और लोगों को समझाया कि शोषण की साम्राज्यवादी व्यवस्था कैसे काम करती है और एक नए हिन्दोस्तान के उज्जवल भविष्य की कल्पना और उसको हक़ीक़त में हासिल करने की योजना पेश की। इससे पता चलता है कि ग़दरी, न केवल ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जुझारू कार्रवाई के हिमायती थे, बल्कि अपनी सोच में भी बहुत उन्नत थे। उन्होंने, संयुक्त राज्य हिन्दोस्तान (यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इंडिया) के एक संघीय गणराज्य स्थापित करने का प्रस्ताव सामने रखा, जिसमें सभी लोगों को समान दर्जा मिलेगा। उन्होंने उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ संघर्ष में, हिन्दोस्तान में विभिन्न भाषाओं, धर्मों और समुदायों के बावजूद, सभी हिन्दोस्तानी लोगों की एकता को बरकरार बनाये रखा। उनका लक्ष्य था – सामाजिक और राष्ट्रीय मुक्ति और एक ऐसे नए समाज की रचना जिसमंे गरीबी और असमानता हमेशा के लिए खत्म की जायेगी।
इसके साथ ही, हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी ने विदेशों में बसे हिन्दोस्तानियों को नस्लीय भेदभाव और दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़, जुझारू रूप से, अपना बचाव करने के लिए, संगठित किया। पार्टी ने उन्हें समझाया कि कैसे विदेशों में हो रहे उनके उत्पीड़न का, उनकी अपनी मातृभूमि की गुलामी से सीधा संबंध था। 1914 में, कोमागाटा मारू की घटना में ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कनाडा में वैंकूवर के लिए जा रहे, कोमागाटा मारू नामक एक जापानी जहाज पर सैकड़ों हिन्दोस्तानी यात्रियों को, इतनी लंबी यात्रा करने के बाद भी, जहाज से उतरने की अनुमति नहीं दी गयी। इसका कारण था-कनाडा की राज्य सत्ता ने हिन्दोस्तानियों के ख़िलाफ़, नस्लवादी कानून बनाये थे। दो महीने की अवधि के दौरान, जिसमें हिन्दोस्तानी यात्रियों को, हिन्दोस्तान वापस जाने के लिए और जहाज पर ही बने रहने के लिए मजबूर किया गया था, ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने, कनाडा में, हिन्दोस्तानी समुदाय के बीच, कोमागाटा मारू में फंसे हिन्दोस्तानियों के लिए सामग्री, नैतिक और कानूनी सहायता का आयोजन किया।
हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने, हिन्दोस्तान की मुक्ति के लिए हर जगह, हिन्दोस्तानियों को एकजुट करने के लिए अथक परिश्रम और कुशलता से काम किया। ग़दर पार्टी के क्रांतिकारी नेटवर्क कई जगहों पर सक्रिय थे, जहां-जहां हिन्दोस्तानी लोग विदेशों में रहते थे। इसमें चीन, जापान, सियाम, मलाया, फिलीपींस, सिंगापुर, ईरान, अफग़ानिस्तान के साथ-साथ अफ्रीका और लैटिन अमरीका के देश भी शामिल थे। ग़दर की दसों-हजारों प्रतियां इन स्थानों पर, हिन्दोस्तानियों के बीच, नियमित तरीके से बांटी जाती थी और गुप्त तरीके से, हिन्दोस्तान में भी वापस लायी जाती थी। यह जानते हुए कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद, हिन्दोस्तान में और अन्य देशों में भी, लोगों की गुलामी क़ायम रखने के लिए हिन्दोस्तानियों के इस्तेमाल करने पर निर्भर था, हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी ने विशेष रूप से, हिन्दोस्तानी सैनिकों और पुलिसकर्मियों को उनके ब्रिटिश मालिकों के ख़िलाफ़ लामबंद करने के भी प्रयास किये। उनका यह काम इतना कामयाब रहा कि अंग्रेजों को, कई सेना टुकड़ियों को, ग़दर प्रचार द्वारा भ्रष्ट होने के कारण पूरी की पूरी, रेजिमेंट को भी भंग करने और उनको सज़ा देने पर मजबूर होना पड़ा। 1914 में, हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी की प्रेरणा से, सिंगापुर में तैनात 5वीं लाइट इन्फैंट्री के सैकड़ों सैनिकों ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। 1857 के महान ग़दर के बाद, हिन्दोस्तानी सैनिकों द्वारा यह पहला विद्रोह था।
ग़दर पार्टी का राष्ट्रवाद बिलकुल संकीर्ण नहीं था, बल्कि उन्होंने अन्याय, शोषण और दमन के ख़िलाफ़, हर जगह लोगों के संघर्षों का समर्थन किया था। उदाहरण के लिए, ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने, अपने को बड़े जोखि़म में डाल कर, चीन में ब्रिटिश रेजिमेंट में सेवारत हिन्दोस्तानी सिपाहियों में घुसकर, पूरी की पूरी सेना और पुलिस की टुकड़ियों को, चीन के लोगों पर, गोली चलाने से मना करने के लिए राजी कर लिया था। ‘‘अरे भाई’’, ग़दर की गूंज में, एक कविता के शब्द हैं, ‘‘चीनी लोगों के ख़िलाफ़ युद्ध में मत लड़ो। शत्रु से सावधान रहो जिससे वह आपको धोखे से भी, अपने चीनी भाइयों से लड़ने के लिए न उकसा पाए। शत्रु, भाईयों को बांटता है और उन्हें एक-दूसरे को मार डालने तक के लिए मजबूर करता है। हिन्द, चीन और तुर्की के लोग सगे-भाई हैं।“
ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने, अन्य देशों में, साम्राज्यवाद-विरोधी और प्रगतिशील संघर्षों में सक्रिय, कार्यकर्ताओं और नेताओं से, संपर्क किया और उनके साथ मिलकर काम किया।
हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी को, अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति की अच्छी समझ थी। जब प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा, तो उन्होंने तुरंत ऐसे समय, जब ब्रिटिश औपनिवेशिक शासक, स्वयं दबाव में थे ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़, संघर्ष और तेज़ करने के लिए एक सुनहरे अवसर के रूप में देखा। उन्होंने, अपने सभी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को, ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह में भाग लेने के लिए हिन्दोस्तान वापस जाने का आह्वान किया। कुछ ही समय में हज़ारों की संख्या में हिन्दोस्तानी, विदेशों से, वापस आ गए। उन्होंने हिन्दोस्तान में, अन्य उपनिवेशवादी-विरोधी संघर्षरत ताकतों के साथ संपर्क बनाया और सशस्त्र विद्रोह शुरू करने की तैयारी की। दुर्भाग्य से, विश्वासघात के कारण, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों को, उनकी योजनाओं के बारे में पता चल गया और इस तरह, इस संघर्ष में, शामिल लोगों के ख़िलाफ़, ब्रिटिश हुकूमत ने उनको कुचलने के लिए, तुरंत एक हमला किया। 1915 और 1917 के बीच, ग़दर पार्टी के सैकड़ों सेनानियों को पकड़ कर, ब्रिटिश हुकूमत ने उनको, अंडमान के जेलों में निर्वासित कर दिया, उनको या तो, कठोर कारावास की सजा दी गई या उन्हें जान से मार दिया गया।
अंग्रेजों को लगा कि उन्होंने ग़दर पार्टी को कुचल कर खत्म कर दिया है। हालांकि, ऐसा कुछ नहीं हुआ, उनका संघर्ष जारी रहा। पार्टी के सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हिन्दोस्तान और दुनिया भर में सभी हिन्दोस्तानियों, को सक्रिय रूप से संगठित करना जारी रखा। उन्होंने उपनिवेशवादी हुक्मरानों को एक पल के लिए भी, चैन की सांस नहीं लेने दी।
1917 में रूस में अक्टूबर क्रांति की जीत के बाद, ग़दर पार्टी के कई सदस्य, समाजवाद और साम्यवाद के आदर्शों से बहुत प्रेरित हुए। पार्टी के कार्यक्रम और उसके उद्देश्यों का विस्तार हुआ-हर प्रकार के पूंजीवादी और साम्राज्यवादी शोषण से मुक्त, एक नए हिन्दोस्तान की कल्पना अपनाई गयी, एक ऐसे हिन्दोस्तान की रचना करना, जहां लोग अपने श्रम और संसाधनों के मालिक खुद होंगे। ग़दर पार्टी के काम और विचारों का, शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों और अन्य क्रांतिकारी संगठनों पर बहुत प्रभाव पड़ा। इस तरह से ग़दर पार्टी ने, हिन्दोस्तान में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ बढ़ते संकट को और भी गहरा करने में, अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1947 में सत्ता में आए, पूंजीपति वर्ग ने सच्ची आज़ादी के लिए लड़ रहे हिन्दोस्तानियों की तमन्नाओं के साथ विश्वासघात किया।
हिन्दोस्तान ग़दर पार्टी के काम में एक बात जो सबसे अलग, स्पष्ट नज़र आती है, वह यह है कि वह आम हिन्दोस्तानी मज़दूरों, किसानों, सैनिकों और देशभक्त बुद्धिजीवियों के समर्थन पर आधारित थी। दूसरी बात जो भी स्पष्ट नजर आती है वह यह है कि उसने उत्पीड़क के साथ समझौता करने, उपनिवेशवादी हुकूमत या लूट और शोषण की साम्राज्यवादी व्यवस्था के साथ, समझौता करने की कोशिश करने के रास्ते को पूरी तरह से ठुकरा दिया था। पार्टी ने, मौजूदा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर उससे पूरी तरह नाता तोड़कर, एक नई नींव पर बने, एक नए हिन्दोस्तान की स्थापना के लिए संघर्ष किया।
यह रास्ता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले पूंजीवादी-राष्ट्रवादी संगठनों की गतिविधियों के बिल्कुल विपरीत था। हिन्दोस्तानी पूंजीपति वर्ग ने, अपने संगठनों के माध्यम से, हर समय उपनिवेशवादी व्यवस्था के साथ और उसके भीतर काम करने के तरीको को ढूंढने की हर संभव कोशिश की। पूंजीपति वर्ग का, उपनिवेशवादी व्यवस्था और औपनिवेशिक राज्य के ख़िलाफ़ विरोध केवल यहां तक ही सीमित था कि उसे स्वयं सत्ता में आना था और हिन्दोस्तानी लोगों की लूट, शोषण और दमन को अपनी राज्य सत्ता के द्वारा जारी रखना था। हक़ीक़त तो यही है कि 1947 में यही वर्ग सत्ता में आया था।
इसीलिए, ग़दर पार्टी जैसी देशभक्त और क्रांतिकारी ताक़तों द्वारा किए गए भारी बलिदानों और संघर्षों के बावजूद, हिन्दोस्तानी लोगों की अपनी परिस्थितियों में पूर्ण-परिवर्तन की आकांक्षाएं पूरी नहीं हुईं। नए पूंजीपति-शासक वर्ग ने उपनिवेशवादी हुकूमत द्वारा स्थापित, आम मेहनतकश लोगों के शोषण और दमन के ढांचे को बचाकर सुरक्षित रखा और इसे और भी विकसित किया। उन्होंने हिन्दोस्तान के नए गणराज्य की कानूनी प्रणाली और संविधान में, लोगो के ख़िलाफ़ शोषण और दमन के लिए बनाये गए, उपनिवेशवादी व्यवस्था के कानूनों और नियमों को भी शामिल किया। वेस्टमिंस्टर संसदीय प्रणाली, जिसमें पूंजीपति वर्ग के विभिन्न दल बारी-बारी से शासन करते हैं और लोगों पर शोषण, दमन और अत्याचार का दौर जारी रखते हैं, ऐसी व्यवस्था को अपनाया गया और इसे और भी मजबूत करने की कोशिश लगातार जारी है।
समय की मांग है कि हम, ग़दरियों के आदर्शों के प्रति, फिर एक बार एक नए सिरे से समर्पित हों, उनको हासिल करने के लिए संघर्ष करें। हमें शोषण और दमन की इस सड़ी-गली व्यवस्था से अपना नाता तोड़ने और एक नई राजनीतिक राज्य सत्ता स्थापित करने के लिए संघर्ष करना चाहिए जो हक़ीक़त में, इस देश के मेहनतकश लोगों की हो। हमारा भविष्य, हिन्दोस्तानी समाज के लिए, एक नई नींव रखने में निहित है, एक नया राज्य स्थापित करने में, जो लोगों के हितों में दूरगामी सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन ला सकने के काबिल हो, न कि मुट्ठी भर शोषकों के निजी मुनाफों के लिए काम करे। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, हिन्दोस्तानी जनता से आह्वान करती है कि वह इस संघर्ष को, ग़दर सेनानियों की तरह उसी साहस] हठ और हौसले से लड़े, ताकि हर तरह के शोषण और दमन से मुक्त, एक नये हिन्दोस्तान के सपने को साकार किया जा सके।