7 अक्टूबर को दिल्ली में, अपने प्यारे शहीद भगत सिंह की 105वीं वर्षगांठ के अवसर पर हिन्द नौजवान एकता सभा और पुरोगामी महिला संगठन ने शाह सभागृह में एक रंगारंग और प्रेरणाजनक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया।
कार्यक्रम में राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और तमिल नाडू सहित, अपने देश के विभिन्न इलाकों के लोकनृत्य शामिल थे। लघु नाटकों में देश की भ
7 अक्टूबर को दिल्ली में, अपने प्यारे शहीद भगत सिंह की 105वीं वर्षगांठ के अवसर पर हिन्द नौजवान एकता सभा और पुरोगामी महिला संगठन ने शाह सभागृह में एक रंगारंग और प्रेरणाजनक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया।
कार्यक्रम में राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और तमिल नाडू सहित, अपने देश के विभिन्न इलाकों के लोकनृत्य शामिल थे। लघु नाटकों में देश की भ्रष्ट व अपराधी राजनीतिक व्यवस्था का पर्दाफाश किया गया और अपने शहीदों के क्रांतिकारी आदर्शों व लड़ाकू जोश की परिपुष्टि की। सभी प्रस्तुतियां राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों के स्कूल व कॉलेज जाने वाले युवक और युवतियों के समूहों ने पेश की थीं। 800 की क्षमता वाला सभागृह नौजवानों से लबालब भरा हुआ था और बहुतों को सामने फर्श पर और गलियारों में बैठना पड़ा।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पाटी की ओर से बोलते हुये नौजवान संगठक बिरजू नायक ने महिलाओं और नौजवानों को, लोगों के हाथों में सर्वोच्च सत्ता अधिकृत करने के संघर्ष में कूद पड़ने का बुलावा दिया। उन्होंने तर्क दिया कि बड़े पूंजीपतियों के भ्रष्ट और अपराधी राज, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहते हैं, उसका एक ही इलाज है, और वह है, लोक राज स्थापित करना। हमें राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेनी होगी, ताकि अपने समाज के आगे बढ़ने की दिशा को उस दृष्टि की ओर मोड़ दें, जिसके लिये शहीद भगत सिंह ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। हमारी पार्टी का उद्देश्य अपने आप को सत्ता में लाना नहीं है, बल्कि मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों को हिन्दोस्तान का मालिक बनाने की स्थिति में लाना है, ऐसी उन्होंने घोषणा की।
सभा को संबोधित करते, पुरोगामी महिला संगठन की संस्थापक सदस्य और वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नौजवानों को समाज की प्रगति के लिये एक ताकत बनने में शिक्षा और संस्कृति के महत्व पर जोर दिया। जबकि औपचारिक शिक्षा महत्व रखती है, परन्तु यह काफी नहीं है। नौजवानों को यथास्थिति पर प्रश्न उठाना चाहिये; उसे ऐसे ही स्वीकार नहीं करना चाहिये। उपनिवेशवादी राज से आज़ादी के 65 वर्ष के बाद भी अपने शहीदों का सपना, एक सपना ही क्यों रह गया है? परिस्थिति एक क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये पुकार रही है, और नौजवान युवतियों और युवकों को अपने आप को शिक्षित और सशक्त बनाना होगा ताकि परिवर्तन के हितसमर्थक बन सकें।
“कब कटेगी चैरासी …“ पुस्तक के लेखक और एक सुप्रसिद्ध पत्रकार, जरनैल सिंह ने सबके अधिकारों की रक्षा करने, सभी प्रकार के दमन के खिलाफ़ खड़े होने, सच्चाई पर बने रहने और अधिकारियों को न्याय देने के लिये बाध्य करने की बात रखी। उन्होंने गृहमंत्री पर जूता फेंका था और उन पर अधिकारियों का अनादर करने का इल्ज़ाम लगाया गया था, इसके बारे में उन्होंने समझाया कि अगर अधिकारी जानबूझकर सभी आवाज़ों को अनसुना कर देते हैं, तब सबसे ईमानदार और सच्चे लोगों को भी अवज्ञा की कार्यवाइयां करनी पड़ती हैं। उन्होंने याद दिलाया कि क्यों भगत सिंह ने विधान सभा में बम फेंका था और गांधी को भी कुछ नाजायज उपनिवेशवादी शासन के कानूनों को तोड़ना पड़ा था। उन्होंने सभी उपस्थित लोगों को, न्याय और नवम्बर 1984 के कत्लेआम के गुनहगारों को सज़ा देने के जारी अभियान के हिस्से बतौर, 3 नवम्बर को जंतर-मंतर पर आयोजित जन प्रदर्शन में शामिल होने का बुलावा दिया।
चार घंटे का पूरा का पूरा कार्यक्रम 15 से 25 वर्ष के युवकों और युवतियों ने आयोजित किया था। साफ दिखायी दे रहा था कि आयोजन के हर पहलू का कार्यभार उन्होंने उठाया था, शहर के विभिन्न इलाकों से सहभागियों के आने-जाने के इन्तजाम से लेकर, सभागृह में व्यवस्थित और स्वस्थ्य वातावरण बनाये रखने तक, और साथ ही मंच का संचालन व सूत्रधारण। यह आगे बढ़ती युवा पीढ़ी की आयोजन क्षमता की एक शक्तिशाली झलक थी।
जो भी यहां मौजूद था उनको इस कार्यक्रम से भविष्य के लिये क्रांतिकारी आशावाद से ओतप्रोत जोश मिला।