परिवहन आयुक्त द्वारा दिये गये आश्वासन के आधार पर मुंबई के करीब 3 लाख ऑटोरिक्शा चालकों ने, 13 सितंबर को होने वाली अपनी प्रस्तावित हड़ताल वापस ली। जीवनयापन के बढ़ते खर्चे के कारण, ऑटोरिक्शा चालकों ने सरकार से ऑटोरिक्शा के भाड़े में बढ़ोतरी की मांग रखी है। वे हकीम समिति की सिफारिशों को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस समिति का गठन ऑटोरिक्शा चालकों के पिछले आंदोलन के प
परिवहन आयुक्त द्वारा दिये गये आश्वासन के आधार पर मुंबई के करीब 3 लाख ऑटोरिक्शा चालकों ने, 13 सितंबर को होने वाली अपनी प्रस्तावित हड़ताल वापस ली। जीवनयापन के बढ़ते खर्चे के कारण, ऑटोरिक्शा चालकों ने सरकार से ऑटोरिक्शा के भाड़े में बढ़ोतरी की मांग रखी है। वे हकीम समिति की सिफारिशों को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस समिति का गठन ऑटोरिक्शा चालकों के पिछले आंदोलन के पश्चात किया गया था। ऑटोरिक्शा चालकों को गुस्सा इस बात पर है कि परिवहन मंत्रालय सीधे तौर पर मुख्यमंत्री के नियंत्रण में है, फिर भी हकीम समिति की सिफारिशों को महीनों-महीनों लागू करने का कोई कदम नहीं उठाया गया है।
न केवल महाराष्ट्र सरकार हकीम समिति की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाले हुये है, बल्कि उसने गुपचुप इजारेदार मीडिया के ज़रिये एक अभियान चलाया है जिसके ज़रिये ऑटोरिक्शा चालकों को “बेईमान“ दिखाया जा रहा है, जो लोगों से फिरौती ऐंठते हैं। हर तरह के लोग जो “नागरिक समितियों का प्रतिनिधित्व“ करने का दावा कर रहे हैं, उन्हें इजारेदार मीडिया में अपनी भड़ास निकालने के लिये और ऑटोरिक्शा चालकों व उनके नेताओं पर मेस्मा (एम.इ.एस.एम.ए.) कानून लगाने की मांग करने के लिये स्थान दिया जा रहा है। ऑटोरिक्शा चालकों पर जबरदस्त दबाव डाला गया है कि वे अपनी प्रस्तावित हड़ताल वापस लें।
इस परिस्थिति में, ऑटोरिक्शा चालकों के हड़ताल पर उतरने पर, टैक्सी चालकों का, उनकी सहानुभूति में काम पर न जाने का, दृढ़ निर्णय सकारात्मक था। यह लोगों की एकता का एक सकारात्मक उदाहरण है।
इससे मेहनतकश लोगों के लिये दो सबक निकलते हैं।
पहला, कि महाराष्ट्र सरकार ने मेस्मा 2012 कानून इसीलिये बनाया है ताकि अपने अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे मेहनतकश लोगों के विभिन्न तबकों को कुचला जा सके। अतः यह परिस्थिति की मांग है कि सभी मेहनतकश लोग मिलकर मेस्मा के रद्द करने के संघर्ष को तीव्र करें। उन्हें राजनीतिक पार्टियों और अपने क्षेत्र के विधायकों को मेस्मा को रद्द करने का दबाव बनाने के लिए संघर्ष करना होगा।
दूसरा, यह साफ है कि सरकार और इजारेदार पूंजीपति कभी भी मेहनतकश लोगों के अधिकारों की पुष्टि के संघर्ष का समर्थन नहीं करेंगे। इसके विपरीत, चाहे वो टैक्सी चालक हों या ऑटोरिक्शा चालक, बस चालक हो या बिजली क्षेत्र के मज़दूर, सरकारी अस्पताल के चिकित्सक हों या सरकारी स्कूलों व कॉलेजों के शिक्षक, जब भी मेहनतकश लोगों का कोई सा भी तबका अपनी जायज मांगों के लिये हड़ताल करने का ऐलान करेगा तो, सरकार व इजारेदारी मीडिया उनकी सेवा का लाभ उठाने वाले आम आदमियों की मुश्किल पर मगरमच्छ के आंसू बहायेंगे और भरसक कोशिश करेंगे कि उस हड़ताल पर उतरने वाले तबके को अकेला कर दिया जाये।
मेहनतकश लोगों के संगठनों को बहुत ही सक्रियता से इसका सामना करना होगा। मुंबई लोको चालकों द्वारा, रेल से नियमित आने-जाने वाले लोगों के संगठनों के साथ बैठ कर, उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में समझाने का हाल का सकारात्मक उदाहरण दोहराने योग्य है, जिसके फलस्वरूप इन संगठनों ने लोको चालकों की जायज़ तकलीफों को अधिकारियों तक ले जाने का फैसला लिया था।