आल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ असोसिएशन (साउथ ज़ोन) ने सफलता पूर्वक एक दिवसीय सभा का आयोजन किया

24 अगस्त, 2012 को ए.आई.एल.आर.एस.ए. के पश्चिम विभाग ने एक दिवसीय ट्रेड यूनियन गोष्ठी का आयोजन किया। ए.आई.एल.आर.एस.ए. के सक्रिय कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए अलग-अलग वक्ताओं को आमंत्रित किया गया था।

24 अगस्त, 2012 को ए.आई.एल.आर.एस.ए. के पश्चिम विभाग ने एक दिवसीय ट्रेड यूनियन गोष्ठी का आयोजन किया। ए.आई.एल.आर.एस.ए. के सक्रिय कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए अलग-अलग वक्ताओं को आमंत्रित किया गया था।

केरल के एर्नाकुलम में आयोजित इस गोष्ठी में 100 से ज्यादा कार्यकर्ता शामिल हुए। वैसे तो ओणम के त्योहार के लिए एक दिन और इस सभा के लिए एक दिन इस तरह की छुट्टी लगातार लेना रेल चालकों के लिए बहुत ही मुश्किल होता है। मगर इसके बावजूद बड़ी तादाद में युवा रेल चालक भी सभा में शामिल हुए। इससे स्पष्ट होता है कि खुद के सामने तथा श्रमिक वर्ग के सामने जो हालात हैं उसके बारे में जानकारी लेने के लिए वे कितने उत्सुक हैं।

मुंबई के एक अनुभवी ट्रेड यूनियन नेता तथा लोक राज संगठन के एक नेता कॉमरेड मैथ्यू तथा राज्य सभा के पुराने सांसद माकपा के नेता कॉमरेड के.सी. चंद्रन पिल्लई, ये दो वक्ता थे।

सभा की शुरुआत सुबह 11 बजे हुई। सभा मंच पर कॉमरेड मैथ्यू, कॉमरेड पिल्लई, आल इंडिया स्टेशन मास्टर्स असोसिएशन पश्चिम ज़ोन के अध्यक्ष कॉमरेड राजगोपाल, तथा ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेतागण उपाध्यक्ष कॉमरेड मणि, कॉमरेड के.सी. जेम्स, पश्चिम विभाग सचिव कॉमरेड जिओमी जॉर्ज, एर्नाकुलम डिविजन के अध्यक्ष कॉमरेड एल रोली आदि मौजूद थे।

हिन्दोस्तान तथा दुनियाभर में मौजूदा आर्थिक संकट, इस विषय पर कॉमरेड मैथ्यू ने दो घंटे की प्रस्तुति दी। उनकी प्रस्तुति के लिए एक विशेष बोर्ड रखा गया था। संकट के लिए मूल कारण क्या है और उसका क्या समाधान है इसका विवरण प्रस्तुति में बखूबे ढंग से उन्होंने किया।

सरमायदार वर्ग किस तरह बेशुमार दौलत पर कब्ज़ा करता है तथा राज्य की उसमें क्या भूमिका होती है यह समझना श्रमिक वर्ग के सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिए जरूरी है ताकि श्रमिक वर्ग मुंहतोड़ जवाब दे सके, ऐसा उन्होंने समझाया।

प्रस्तुति की शुरुआत करते हुए उन्होंने हिन्दोस्तान के प्राचीन समय की संकल्पना “आवागमन” के बारे में समझाया। इस संकल्पना के मुताबिक सभी वस्तुएं या चीजें तथा घटनाएँ अस्तित्व में आती हैं और नष्ट हो जाती हैं, और कुछ भी हमेशा के लिए स्थाई या चिरकाल नहीं होता। लगातार बदलाव, यही एक अचल या अनवरत है, ऐसा हमारे पुरखों ने बताया है। अब तो हम यह भी जानते हैं कि सूरज भी भविष्य में एक दिन खत्म होगा। मगर आज के सत्ताधारी हमें यह यकीन दिलाना चाहते हैं कि शोषण की उनकी मौजूदा व्यवस्था चिरकाल कायम रहेगी। इससे बड़ा झूठ कुछ हो ही नहीं सकता! सत्ताधारी यह भी कहते हैं कि आर्थिक सिद्धांत बहुत ही जटिल है और आम लोग उसे समझ नहीं सकते और इसीलिए उसके बारे में सोचने का काम सत्ताधारियों के बड़े-बड़े विद्वानों पर छोड़ दिया जाये। मगर चूंकि ये विद्वान बड़े ही मक्कार तथा धोखेबाज़ हैं इसलिए श्रमिक वर्ग के अगुवा दस्ते के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है कि वह मूलभूत आर्थिक सिद्धांत को समझे जो कि असल में काफी सरल है, श्रमिक वर्ग के समझने के लिए।

उसके बाद उन्होंने 2012-13 के बजट, हाल ही में पारित अलग-अलग कानूनों तथा विधानों, जिनसे स्पष्ट होता है कि सरकार की नीति क्या होगी, इन तथ्यों को आधार बनाकर बताया कि अपने देश की अर्थनीति की दिशा क्या है। उन्होंने समझाया कि हिन्दोस्तानी राज्य के राजस्व का मुख्य स्रोत श्रमिकों की मेहनत है मगर उस राजस्व को अनुत्पादक, भ्रष्ट, तथा अनावश्यक तरीके से खर्च किया जाता है। सरकारी राजस्व सबसे पहले बड़े पूँजीपति, बैंक तथा हथियारों एवं फौज़ पर खर्च किया जाता है।

उसके बाद उन्होंने यह बताया कि किस तरह किसी एक उद्योग में और पूरे समाज में मुनाफा या बेशी मूल्य पैदा होता है। श्रमिक वर्ग का अतिरिक्त श्रम ही इस मुनाफे का स्रोत है। शोषण की दर लगातार बढ़ रही है जबकि अतिरिक्त मूल्य की तुलना में वेतन का प्रमाण घट रहा है। इसके लिए उन्होंने मारुति सुजुकी के श्रमिकों का उदाहरण दिया जिनके शोषण की दर 650 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि वेतन में जब किसी श्रमिक को 1रुपया दिया गया तो उसने सरमायदार मालिक के लिए 6 रुपये 50 पैसे का मुनाफा पैदा किया!  हाल ही में मारुति सुजुकी में जो असंतोष भड़क उठा था उसकी जड़ में यही भयानक शोषण था।

प्रस्तुति के अंत में उन्होंने सरमायदारी विद्वान जो सुझाव दे रहे हैं उनकी तुलना उन सुझावों से की जिनकी श्रमिकों के सामूहिक हित के लिए जरूरत है। उन्होंने बताया कि उन विद्वानों के सुझावों से श्रमिक जनता की मुश्किलें और भी बढ़ेगी। वे विद्वान यह सुझाव दे रहे हैं कि श्रम कानूनों में इस तरह के सुधार किये जायें जिससे मजदूरों को काम से निकालना तथा ठेका मजदूरों को काम पर रखना पूँजीपतियों के लिए और भी आसान हो जाये। उनका दूसरा सुझाव है कि बैंक, इंश्योरेंस तथा दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण किया जाये। इन दोनों कदमों से श्रमिकों का शोषण और भी बढे़गा तथा सरमायदारों का मुनाफा भी बढे़गा, जबकि आज के आर्थिक संकट की वजह तो यही है! इन हालातों में जंग का खतरा बहुत बढ़ा है यह बताते हुए उन्होंने उदाहरण दिया कि 1930 के दशक में जब दुनियाभर में आर्थिक संकट बहुत बढ़ा तब किस तरह दुनिया की साम्राज्यवादी शक्तियों ने दूसरे विश्वयुद्ध को दुनिया पर थोप दिया था और पूरे यूरोप तथा एशिया में तबाही हुई थी। फिर उस जंग से तबाह हुए देशों में पुनर्निर्माण का काम करने से साम्राज्यवादी देशों में आर्थिक तेजी आई थी जिसकी कीमत लाखों लोगों की मौत थी! सरमायदार तथा उनके विद्वानों द्वारा बताये इन सभी समाज-विरोधी सुझावों को हमें ठुकराना चाहिए।

ए.आई.एल.आर.एस.ए. के सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं तथा नेताओं से उन्होंने आह्वान किया कि एक वैकल्पिक कार्यक्रम को विकसित करने में योगदान दें। एक ऐसा कार्यक्रम जो हिन्दोस्तान को मौजूदा आर्थिक संकट से बाहर निकालेगा और साथ-साथ सर्वांगीण विकास का, सभी के लिए सुख और सुरक्षा का रास्ता खोल देगा।

कॉमरेड पिल्लई ने उनकी प्रस्तुति में इंजन चालकों के लड़ाकू संघर्ष को सलाम किया। इंजन चालकों का संघर्ष पूरी तरह जायज़ है यह बताते हुए उन्होंने आह्वान किया कि रेलवे के दूसरे श्रमिकों के साथ इंजन चालक जुड़ जायें। बैंक कर्मचारियों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह उनकी अलग-अलग यूनियनों ने यू.एफ.बी.यू. (यूनाईटेड फोरम ऑफ बैंक एम्प्लोईज़) स्थापित किया है और 22 तथा 23 अगस्त को दो दिन की सर्व हिंद हड़ताल सफलता से आयोजित की। उन्होंने बताया कि हिन्दोस्तान के बड़े सरमायदारों ने बेशुमार दौलत इकट्ठा की है और अब वे दुनिया के दूसरे देशों में जाकर तेल खदाने, कोयला खदाने, लोहा खदाने तथा बड़ी-बड़ी कंपनियां खरीद रहे हैं। उन्होंने अमरीकी साम्राज्यवादियों की कड़ी आलोचना भी की और बताया कि किस तरह चीन के खिलाफ़ हिन्दोस्तान को भड़काने की कोशिश वे कर रहे हैं ताकि दोनों देशों को कमजोर बनाकर एशिया में स्वयं की चैधराहट स्थापित कर सकें। लातिन अमरीका का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह से वहाँ के लोगों में साम्राज्यवाद विरोधी भावना बहुत तीखी है जिसकी वजह से क्यूबा के साथ-साथ बोलिविया, वेनेजुएला, ब्राजील आदि देशों में वामपंथी शक्तियों की सरकारें स्थापित हुई हैं।

कॉमरेड रोली ने संबोधित करते हुए समझाया कि सिग्नल पासिंग एट डेंजर (एस.पी.ए.डी.) प्रणाली का क्या असर होने वाला है। रेलवे के मौजूदा नियमों के अनुसार अगर इंजन चालक लाल सिग्नल (डेंजर) तोड़ता है तो उसे काम से तुरंत निलंबित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि किस तरह काम के बढ़ते बोझ तथा ठीक तरह से आराम न मिलने की वजह से देशभर में इस तरह की घटनायें बढ़ गयी हैं। मगर घटनायें क्यों बढ़ रही हैं? उन मूल समस्याओं की खोजबीन करने के बजाय रेलवे का प्रशासन इंजन चालकों को तंग करने पर तुला हुआ है। इससे इंजन चालकों पर तनाव और भी बढ़ गया है जिससे रेल यात्रियों की सुरक्षा और भी खतरे में आ गई है। इंजन चालकों की काम की हालतों को सुधारने के लिए ए.आई.एल.आर.एस.ए. जो लगातार संघर्ष कर रही है उसकी सराहना करते हुए उन्होंने बताया कि मुंबई में अभी जो नैशनल ट्रिब्यूनल नियुक्त किया गया है वह इसी संघर्ष का नतीजा है।

आल इंडिया स्टेशन मास्टर्स असोसिएशन की ओर से कॉमरेड राजगोपाल ने इस बात पर जोर दिया कि उनके संगठन तथा ए.आई.एल.आर.एस.ए. के बीच एकता निहायत ज़रूरी है। इंजन चालकों के जायज संघर्ष को उनके संगठन की पूरी हिमायत हमेशा रही है ऐसा उन्होंने घोषित किया।

गोष्ठी बहुत ही आशादायी भावना से समाप्त हुई। इंजन चालकों की राजनीतिक चेतना बढ़ाने के लिए ए.आई.एल.आर.एस.ए. द्वारा उठाये गये इस कदम की सभी उपस्थित इंजन चालकों ने सराहना की।

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