मुंबई इलेक्ट्रिक कर्मचारी यूनियन के मजदूरों पर महाराष्ट्र सरकार की सक्रिय मदद से मैनेजमेंट ने “मेस्मा” का उपयोग करके हमला किया। हमारे संवाददाता ने यूनियन नेता श्री. शंकर से वार्तालाप किया, उसके कुछ अंश …
म.ए.ल.: आप हमें अपनी यूनियन के बारे में कुछ बताइये।
मुंबई इलेक्ट्रिक कर्मचारी यूनियन के मजदूरों पर महाराष्ट्र सरकार की सक्रिय मदद से मैनेजमेंट ने “मेस्मा” का उपयोग करके हमला किया। हमारे संवाददाता ने यूनियन नेता श्री. शंकर से वार्तालाप किया, उसके कुछ अंश …
म.ए.ल.: आप हमें अपनी यूनियन के बारे में कुछ बताइये।
शंकरजी: हमारी यूनियन मुंबई इलेक्ट्रिक कर्मचारी यूनियन रिलायन्स एनर्जी लिमिटेड के मजदूरों को संगठित कर रही है।
म.ए.ल.: रिलायन्स एनर्जी लिमिटेड के बारे में तथा उसमें कितने कर्मचारी हैं इसके बारे में कुछ बताइये।
शंकरजी: पहले बी.एस.ई.एस. के नाम से मशहूर कंपनी को अंबानी उद्योग समूह ने खरीद लिया और सन् 2003 में उसका नाम बदलकर रिलायन्स एनर्जी लिमिटेड कर दिया। बांद्रा से भायंदर और कुर्ला से विक्रोली इलाके के मुंबई के कई उपनगरों को यह कंपनी बिजली सप्लाई करती है। इस कंपनी में करीब 3500 स्थाई तथा 4000 अस्थाई कर्मचारी नौकरी करते हैं। अस्थाई कर्मचारियों में 90 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी दक्षिण भारतीय हैं।
म.ए.ल.: हमें बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों के संघर्ष के बारे में कुछ बताइए।
शंकरजी: बेहतर वेतन तथा स्थाई नौकरी यही हमारे संघर्ष की प्रमुख माँगें हैं। बांद्रा की अदालत में स्थाई नौकरी के लिए 1140 मुकदमे हम लड़ रहे हैं। कंपनी हजारों मजदूरों को एक ठेकेदार के ज़रिये नियुक्त नहीं करती बल्कि कई ठेकेदारों के ज़रिये नियुक्त करती है। हमारी एकता की ताकत कमजोर हो यही गंदा मकसद इसके पीछे है। 89 ठेकेदारों के ज़रिये, हर ठेकेदार के जरिये 20 से 40, इस तरह हजारों अस्थाई मजदूरों को काम पर रखा गया है। मजदूरों को रोजाना मात्र 263 रुपये वेतन मिलता है। उनके वेतन से भविष्य निधि काटा जाता है, मगर उन्हें न तो वेतन की कोई पर्ची मिलती है और न ही भविष्य निधि की! उन्हें ई.एस.आई. की सुविधा नहीं मिलती।
म.ए.ल.: “मेस्मा” का उपयोग करके आप पर किस तरह का हमला किया गया?
शंकरजी: सन् 2007 में यूनियन के 10-12 कार्यकर्ता कंपनी के मानव संसाधन डिपार्टमेंट के मैनेजर से मिलने गए। सभी मजदूरों को वेतन तथा भविष्य निधि की पर्ची दी जाये यह माँग उन्होंने रखी। इस जायज माँग को स्वीकार करने के बजाय मैनेजमेंट ने कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ झूठे केस दर्ज किये कि उन्होंने कंपनी की गाडि़यों को रोका है, कंपनी के काम में रोड़ा खड़ा किया है, इत्यादि। फिर कंपनी मैनेजमेंट ने पुलिस को एक खत लिखकर यह माँग की कि “मेस्मा” के तहत मजदूरों पर कार्यवाही की जाये। पुलिस ने तुरंत कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। मगर हमारे संघर्ष की वजह से, और चूंकि सभी आरोप झूठे थे इसलिए पुलिस को मजबूरन कार्यकर्ताओं को रिहा करना पड़ा। कंपनी ने बिना किसी पूछताछ या जाँच-पड़ताल के उन्हें नौकरी से निकाल दिया। हम उसके खिलाफ़ अदालत में लड़ रहे हैं। (पाठकों के लिए टिप्पणी: उस समय महाराष्ट्र में “मेस्मा 2005” जारी था)
म.ए.ल.: आपकी मुख्य मांगें क्या हैं?
शंकरजी: हमारी एक प्रमुख माँग है कि हमारा वेतन बढ़ाया जाये। मौजूदा रोजाना 263 से बढ़ाकर रोजाना 317रुपये मैनेजमेंट ने मंजूर किया है, मगर हमारी माँग उससे कहीं ज्यादा बढ़ोतरी की है, “समान काम को समान वेतन” इस नियम के आधार पर। मजदूरों ने बहुसंख्या से मैनेजमेंट के प्रस्ताव को नकारा है। कंपनी तुरंत अदालत में गई यह माँग लेकर कि जो मैनेजमेंट का प्रस्ताव ठुकरा रहे हैं उनपर “मेस्मा” के तहत कार्यवाही की जाये। चूंकि उस वक्त “मेस्मा 2005” की अवधि खत्म हुई थी, अदालत ने इंकार कर दिया और मैनेजमेंट को मुकदमा पीछे लेना पड़ा। हम अब भी लड़ रहे हैं और हमारी एकता तोड़ने की मैनेजमेंट की सभी साजिशों का मुकाबला कर रहे हैं। (पाठकों के लिए टिप्पणी: “मेस्मा 2005” की अवधि 2010 में खत्म हुई थी और इसीलिए अदालत ने केस को खारिज कर दिया। मगर अब “मेस्मा 2012” महाराष्ट्र विधान सभा तथा विधान परिषद ने पारित किया है और राष्ट्रपति ने भी 2अगस्त को उस पर दस्तख़त किये हैं। बिजली सप्लाई को आवश्यक सेवा करार दिया गया है और इसीलिए इन बहादुर मजदूरों के सर पर इस फासीवादी कानून की तलवार है!)
म.ए.ल.: आपकी राय में, राव-मनमोहन सिंह की नई आर्थिक नीति से किसे लाभ हुआ है और आपके उद्योग क्षेत्र के मजदूरों पर क्या असर हुआ है?
शंकरजी: राव-मनमोहन सिंह की नई आर्थिक नीति से देशी और विदेशी पूंजीपतियों को बेशुमार लाभ हुआ है। हमारा शोषण बढ़ाकर उन्होंने बहुत भारी मुनाफे कमाए हैं। मेहनतकश श्रमिकों पर हमले ज्यादा तेजी से बढे़ हैं। नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद ज्यादा से ज्यादा काम अस्थाई कर्मचारियों से लिया जाता है। ठेका पद्धति को सुनियोजित तौर से मजबूत किया गया है। हम वही काम, उसी जगह पर, उसी कंपनी के लिए कई वर्षों से कर रहे हैं, मगर फिर भी हमें स्थाई नौकरी नहीं दी जाती। इसीलिए हम अदालत में लड़ रहे हैं। मगर अदालत में भी कई वर्षों तक हमारा मुकदमा सुनवाई के लिए भी नहीं लिया जाता! हममें से कइयों को न्यूनतम वेतन कानून के अनुसार न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता। स्थाई कर्मचारियों को जो थोड़ी कानूनी सुरक्षा मिलती है वह भी हम अस्थाई कर्मचारियों को नहीं मिलती। मालिकों को मालूम है कि मजदूर तो जरूर लड़ेंगे। इसीलिए वे श्रमिकों से संबधित कानूनों में इस तरह के सुधार लाना चाहते हैं कि संघर्ष करना हमारे लिए और मुश्किल हो जाये। “मेस्मा” उसी तरह का एक हमला है। मगर हम दबे नहीं रहेंगे! हमारा संघर्ष न्याय के लिए है और इसी से हमें शक्ति मिलती है।
म.ए.ल.: आपके न्यायोचित संघर्ष के लिए हमारी शुभ कामनाएं! “एक पर हमला सब पर हमला” इस नज़रिये से हम हमेशा ही आपके संघर्ष में आपका साथ निभाएंगे!