पेंशन फंड का चोरी-छिपे निजीकरण का विरोध करो!

पेंशन फंड रेग्यूलेटरी एण्ड डेवलपमेंट अथारिटी (पी.एफ.आर.डी.ए.) विधेयक के ज़रिये पेंशन “सुधार“ हिन्दोस्तानी बड़े पूंजीपतियों के तात्कालिक वैधानिक एजेंडा के लिये एक अहम विषय है।

पी.एफ.आर.डी.ए. विधेयक के मूल लक्षण इस प्रकार हैं:

पेंशन फंड रेग्यूलेटरी एण्ड डेवलपमेंट अथारिटी (पी.एफ.आर.डी.ए.) विधेयक के ज़रिये पेंशन “सुधार“ हिन्दोस्तानी बड़े पूंजीपतियों के तात्कालिक वैधानिक एजेंडा के लिये एक अहम विषय है।

पी.एफ.आर.डी.ए. विधेयक के मूल लक्षण इस प्रकार हैं:

  1. पेंशन किसी भी मज़दूर के द्वारा अपनी रोजगार की जिन्दगी में जोड़ी रकम पर आधारित होगी और सेवा निवृत्ति के वक्त उसकी रकम शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर होगी। दूसरे शब्दों में मज़दूरों की बचत सुरक्षित नहीं रहेगी तथा उसको एक पूर्व-निश्चित पेंशन या वेतन का निश्चित भाग मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
  2. सरकार मज़दूरों की बचत के मूल्य को सुरक्षित करने की अपनी भूमिका त्याग देगी; इसकी जगह वह प्रभार विभिन्न वित्तीय संस्थाओं को सौंप देगी, जो राज्य व निजी हाथों में होंगे तथा हिन्दोस्तानी व विदेशी होंगे।
  3. मज़दूरों के योगदान का एक हिस्सा शेयर बाजार में निवेश किया जायेगा, तथा योगदान करने वाले हरेक सदस्य को अपनी बचत को सरकारी कर्ज़, निजी कंपनियों के शेयर और वित्तीय साधनों के मनपसंद संयोजन को चुनने की कुछ छूट होगी।

मज़दूर वर्ग के सभी संगठनों ने इस विधेयक का व्यापक विरोध किया है।

अस्थायी पी.एफ.आर.डी.ए. का गठन 2003 में किया गया था। इसे कानूनी दर्जा देने के लिये एक विधेयक 2005 में लाया गया था परन्तु लोगों के व्यापक विरोध की वजह से इसे पारित नहीं किया जा सका; 2010 में यह रद्द हो गया। मार्च 2011 को, संसद में एक नया विधेयक पेश किया गया; संसदीय स्थायी समिति ने इसे अनुमति दी। पुराने विधेयक की तुलना में इस नये विधेयक में एक अहम बदलाव यह है कि इसमें पेंशन निधियों के लिये प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की बात नहीं की गयी है; ऐसा लगता है कि विदेशी वित्तीय पूंजी के लिये सरकार एक और कानून बनायेगी।

इस विधेयक के ज़रिये बड़े पूंजीपति हिन्दोस्तानी मज़दूर वर्ग की बचत की पूंजी तक पहुंचना चाहते हैं जो अब तक सिर्फ राज्य के नियंत्रण में रही है। विधेयक में पेंशन निधियों की पहुंच के विस्तारण का और इन्हें इजारेदार पूंजीपतियों के उद्यमों के लिये वित्त में परिवर्तित करने का प्रयास है। इसका लक्ष्य है, वृद्ध मज़दूरों से सुनिश्चित आय की गारंटी छीन कर पूंजीपति वर्ग के लिये सस्ते में पूंजी उपलब्ध कराना।

राज्य की मालिकी के और वित्तीय पूंजी के निजी संस्थान, आज बड़े दफ्तरों के 11 लाख मज़दूरों की 7000 करोड़ रुपये की पेंशन रकम संभालते हैं। इनमें भारतीय स्टेट बैंक, आई.डी.एफ.सी., आई.सी.आई.सी.आई. प्रूडेंशियल जीवन बीमा, कोटेक महिन्द्रा बैंक, रिलायंस केपीटल और भारतीय जीवन बीमा निगम शामिल हैं। 23 जीवन बीमा कंपनियां, जिनमें अधिकांश में 26 प्रतिशत विदेशी पूंजी लगी है, वे सभी पेंशन निधि बाजार में आने के लिये आतुर हैं।

बड़े पूंजीपतियों के एक संगठन, एसोचैम ने अनुमान लगाया है कि हिन्दोस्तानी पेंशन फंड (पी.एफ.) बाजार अगले कुछ वर्षों में 20 लाख करोड़ का हो सकता है। हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों को पेंशन योजनाओं के कार्यक्षेत्र व्याप्ति में 30 करोड़ नये मज़दूरों व स्वरोजगारी लोगों को लाने की बड़ी संभावना दिख रही है, जो आज नयी पेंशन योजना (एन.पी.एस.) में शामिल नहीं हैं।

पी.एफ.आर.डी.ए. विधेयक, पेंशन निधियों की चोरी-छुपे निजीकरण की एक कोशिश है। मज़दूरों की विशाल बचत को दुनियाभर के शेयर बाजारों की सट्टेबाजी में लगाने की यह एक दुष्ट कोशिश है। राज्य हिन्दोस्तानी व वैश्विक वित्तीय पूंजी के आदेशों पर चल रहा है।

नयी पेंशन योजना को “वित्तीय समावेश“ के नाम पर बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके ज़रिये करोड़ों लोगों को पेंशन की सुविधा उपलब्ध होगी जो आज किसी भी पेंशन योजना में नहीं हैं। परन्तु, मज़दूरों व स्वरोजगारी लोगों, दोनों के लिये एक ही पेंशन योजना देने से, असलियत में, रोजगार देने वाले पूंजीपतियों को अपने स्थायी तथा ठेके के अस्थायी कर्मचारियों की पेंशन में योगदान देने की जिम्मेदारी से मुक्त किया जा रहा है। दूसरे शब्दों में, इस योजना के तहत अब से जो भी भविष्य में पेंशन पायेगा वह सिर्फ उसी के योगदान से आयेगी। इसके लिये कोई और योगदान नहीं देगा, केन्द्र या राज्य सरकारें भी नहीं। मज़दूरों को ऐसी योजना में शामिल ही क्यों होना चाहिये? इसकी जगह उनको अपनी बचत लम्बे समय वाले मियादी जमाखातों (फिक्स्ड डिपोजिटों) में, या सोने के रूप में या उनकी पसन्द के किसी और साधन में क्यों नहीं रखना चाहिये?

दुनियाभर के मज़दूरों के संघर्षों से 1950 के दशक में, सामाजिक सुरक्षा में काफी उन्नति हुयी जब इस सिद्धांत को स्वीकृति मिली कि पेंशन की मात्रा सेवानिवृत्ति के वक्त के वेतन के अनुपात में होना चाहिये, न कि रोजगारी जीवन के औसत वेतन के अनुपात में। जब महंगाई काबू के बाहर होने लगी तब मज़दूर वर्ग ने संघर्ष किया और पेंशन को महंगाई से एक नियमानुसार जोड़ने में सफल हुआ। पी.एफ.आर.डी.ए. विधेयक लम्बे वर्षों की इन सभी प्राप्तियों को वापस ले लेगा। यह मज़दूरों की मेहनत की कमाई छीन कर उनको वित्तीय पूंजी की सट्टेबाज चालबाजियों के अधीन करेगा।

प्रस्तावित विधेयक, पेंशन के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के पहले के फैसलों के सिद्धांत का उल्लंघन करता है कि पेंशन एक मज़दूर का अधिकार है। चैथे वेतन आयोग की रिपोर्ट में भी स्पष्टता से कहा गया है कि “… पेंशन उदारता या अनुग्रह अदायगी या सिर्फ सामाजिक कल्याण का कदम नहीं है, बल्कि इसे एक अधिकार मानना उचित है जो कानून द्वारा लागू करने योग्य है।“ एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि “पेंशन एक इनाम नहीं है जो सरकार की कृपा और इच्छा पर निर्भर हो और … पेंशन सरकारी सेवकों का बहुमूल्य अधिकार है।“

सिर्फ सरकारी सेवकों का ही नहीं बल्कि पेंशन सभी मज़दूरों का अधिकार है। अपने देश के कानून में एक बड़ी समस्या है कि यह पेंशन को मज़दूरों के सिर्फ एक छोटे हिस्से का अधिकार मानता है। पेंशन को सभी मेहनतकश लोगों के लिये उपलब्ध कराने के नाम पर, केन्द्र सरकार इस अधिकार को उसका उल्टा बनाने की कोशिश कर रही है – एक ऐसी योजना बनाकर जिसके ज़रिये पूंजीपति वर्ग के हित में मज़दूरों की डकैती होगी।

एक कपटपूर्ण तरीके से पेंशन निधि के निजीकरण का मज़दूर वर्ग को पूरी तरह से अस्वीकार करना चाहिये। मज़दूरों की बचत को हिन्दोस्तानी या विदेशी पूंजीपतियों के हाथ खिलवाड़ के लिये नहीं सौंपा जा सकता है। पेंशन मज़दूरों का अधिकार है और यह राज्य का दायित्व है कि मज़दूरों की बचत के मूल्य को बरकरार रखा जाये और सेवानिवृत्ति पर इससे नियमित आय सुनिश्चित हो। पेंशन पहले से तय होनी चाहिये और किसी भी “शेयर बाजार के जोखिम“ से मुक्त होनी चाहिये।

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