प्रिय संपादक महोदय,
आपके अखबार में मैंने “मेस्मा” कानून के बारे में पढ़ा। तब मुझे लगा कि शायद आप सरकार पर बेबुनियादी इल्जाम लगा रहे हैं कि सरकार इस कानून का गलत इस्तेमाल कर्मचारियों के खिलाफ़ करेगी। मगर मुंबई के डॉक्टरों के साथ हाल ही में जो किया गया उससे मेरा संदेह दूर हो गया।
प्रिय संपादक महोदय,
आपके अखबार में मैंने “मेस्मा” कानून के बारे में पढ़ा। तब मुझे लगा कि शायद आप सरकार पर बेबुनियादी इल्जाम लगा रहे हैं कि सरकार इस कानून का गलत इस्तेमाल कर्मचारियों के खिलाफ़ करेगी। मगर मुंबई के डॉक्टरों के साथ हाल ही में जो किया गया उससे मेरा संदेह दूर हो गया।
मुंबई के सायन हस्पताल के 500 से ज्यादा रजिडेंट डॉक्टरों ने होस्टल वार्डन की ज्यादती के खिलाफ़ कई बार शिकायतें करने के बावजूद व्यवस्थापन ने उनसे बात तक करने से इंकार कर दिया। तब विवश होकर उन डॉक्टरों के संगठन “मार्ड” ने हड़ताल करने की बात उठाई। तुरंत मुंबई हाई कोर्ट ने पुलिस से जवाब माँगा कि उन डॉक्टरों के खिलाफ़ पुलिस “मेस्मा” के तहत कार्यवाही क्यों नहीं कर रही है? “मेस्मा“ पर राष्ट्रपति ने अगस्त के पहले हफ्ते में दस्तख़त किये और तुरंत सरकारी महकमा ने ऐसा कदम उठाया! इससे मुझे स्पष्ट हो गया कि “मेस्मा” का गलत इस्तेमाल ही होगा अगर सभी नागरिक सचेत रहकर सरकार पर नियंत्रण नहीं रखेंगे। तब से कई खबरें अखबारों में आ रही हैं कि मुंबई ग्राहक पंचायत जैसे कुछ नागरिक संगठन “मेस्मा” के लिए सरकार का अभिनंदन कर रहे हैं। इनसे सरकार की चाल मुझे स्पष्ट हो गयी है कि सरकार नागरिकों की आड़ में कर्मचारियों पर हमला करेगी फिर चाहे कर्मचारी जायज हकों के लिए लड़ रहे हों। जरूरत है कि अलग-अलग कर्मचारियों के संगठन नागरिकों के साथ प्रत्यक्ष संवाद छेड़े। उपभोक्ता नागरिक और कर्मचारी दोनों की भलाई इसी में है।
आपका पाठक,
डॉक्टर अमित, मुंबई