सिर्फ एकजुट मजदूर वर्ग ही हिन्दोस्तान को बचा सकता है!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 30 अगस्त, 2012

देश भर से मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि 4 सितम्बर को नई दिल्ली में एकत्रित हो रहे हैं, ऐसे समय पर जब हमारे देश में घमासान संघर्ष चल रहा है। यह अधिकतम मेहनतकश और शोषित लोगों तथा मुट्ठीभर शोषकों के बीच संघर्ष है। यह दौलत का विस्तार करने के लिये श्रम करने वालों तथा निजी जायदाद और सत्ता के आधार पर इस दौलत का फल हड़पन

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का बयान, 30 अगस्त, 2012

देश भर से मजदूर वर्ग के प्रतिनिधि 4 सितम्बर को नई दिल्ली में एकत्रित हो रहे हैं, ऐसे समय पर जब हमारे देश में घमासान संघर्ष चल रहा है। यह अधिकतम मेहनतकश और शोषित लोगों तथा मुट्ठीभर शोषकों के बीच संघर्ष है। यह दौलत का विस्तार करने के लिये श्रम करने वालों तथा निजी जायदाद और सत्ता के आधार पर इस दौलत का फल हड़पने वालों के बीच संघर्ष है।

स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि तथाकथित आर्थिक प्रगति को ”रोकने वाले” ”राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरे हैं“। यह मजदूर वर्ग के सबसे संगठित भाग पर खुलेआम हमला है, जो अतिशोषण की अमानवीय हालतों को मानने को तैयार नहीं है। यह किसानों, आदिवासियों और दूसरे समुदायों पर भी हमला है, जो बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार, आर्थिक प्रगति का मतलब है हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़े-बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के विस्तार के लिये अनुकूल हालतें पैदा करना। जो मजदूर अपने अधिकारों की हिफ़ाज़त करते हैं और इसके लिये संघर्ष करते हैं, चाहे यह टेªड यूनियन बनाने का अधिकार हो या ठेके पर सालों-साल काम करने वाले मजदूरों को नियमित करने की मांग का अधिकार है, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बताया जा रहा है!

आधुनिक औद्योगिक क्षेत्रों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज़) और सेवा निर्यात केन्द्रों में श्रम कानूनों का खुलेआम हनन हो रहा है। सरकार की पुलिस के अलावा निजी सशस्त्र सुरक्षा गार्ड मजदूरों को डराने धमकाने के लिये रखे जाते हैं। मानेसर में मारुति सुजुकी के सैकड़ों मजदूरों को जेल में डाल दिया गया है। लम्बे अरसे से काम करने वाले मजदूरों को बड़ी संख्या में, कानूनी कार्यवाही किये बिना और किसी अपराध के सबूत के बिना निकाल दिया गया है। नये मजदूरों को बंदूक की नली के निशाने पर काम पर लगाया गया है और फैक्ट्री परिसर के अंदर मजदूरों की संख्या से सुरक्षा कर्मियों की संख्या ज्यादा है।

बहुत सी सार्वजनिक सेवाओं में मजदूरों को हड़ताल करने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है, क्योंकि एक के बाद दूसरी राज्य सरकार आवश्यक सेवा कानून (एस्मा) को लागू करने जा रही है। सत्ता में बैठे लोग यह दावा करते हैं कि ”आवश्यक सेवाओं“ में हड़ताल की इजाज़त नहीं होनी चाहिये क्योंकि इससे आम जनता को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वास्तव में सरकारी अस्पतालों, जन परिवहन, बैंकों और तमाम अन्य सेवाओं के मजदूरों की दुखद हालत और अतिशोषण की हालतों से यह ज़ाहिर होता है कि जनता को मुहैया करायी जा रही सेवाओं के प्रत्येक अधिकारियों की कितनी चिंता है।

एस्मा का उद्देश्य जनता के लिये आवश्यक सेवाएं सुनिश्चित कराना नहीं है। एस्मा का उद्देश्य है इन सेवा क्षेत्रों में मजदूरों के किसी भी संघर्ष को अवैध करार करना।

जनता के हित के प्रति सत्ता चलाने वाले कितने उदासीन हैं, यह अधिकतम आवश्यक सेवाओं का निजीकरण करने की कोशिशों से स्पष्ट हो जाता है। बिजली सप्लाई, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, जल-आपूर्ति, शौच व्यवस्था और अन्य शहरी सेवाओं का निजीकरण होने जा रहा है। जहां भी इजारेदार पूंजीपति सस्ते में संसाधनों को खरीदने और मोटे मुनाफे बनाने की संभावना देखते हैं, वहीं पर सरकार विनिवेश करना शुरू कर देती है या जानबूझकर नुकसान पैदा करती है और फिर उसका निजीकरण करती है। इस निजीकरण के चलते, इन सेवाओं की कीमतें आसमान छूने लगी हैं और लोगों को प्रदान की गई सेवाएं भी घटिया से घटिया होती गयी हैं।

हमारे देश के नेता हिन्दोस्तानी पूंजी के उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण के चल रहे समाज-विरोधी कार्यक्रम को और तेजी से चलाने की मांग कर रहे हैं। केन्द्रीय और राज्य स्तरों पर, आर्थिक नीति को हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़ी-बड़ी इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों की लालच के अनुसार बदला जा रहा है।

मजदूर वर्ग इसके खिलाफ़ संघर्ष कर रहा है। पूरे देश में, अलग-अलग पार्टियों और टेªड यूनियनों से जुड़े हुये मजदूर मिलकर अपने सांझे हितों की हिफ़ाज़त के लिये संघर्ष कर रहे हैं। “एक पर हमला सब पर हमला”!, इस नारे से प्रेरित होकर, अधिक से अधिक क्षेत्रों के मजदूर संघर्ष में आगे आ रहे हैं और यह समझ रहे हैं कि सभी मजदूरों पर बड़े-बड़े पूंजीपति मिलकर हमले कर रहे हैं।

शासक वर्ग को इस खतरनाक, अलोकप्रिय रास्ते के खिलाफ़ बढ़ते प्रतिरोध की हालतों में, शासक पूंजीपति वर्ग फिर से राज्य द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक और सामुदायिक हिंसा के अपने पसंदीदा हथियार को लागू कर रहे हैं, ताकि मेहनतकश और दबे-कुचले लोगों की एकता तोड़ी जाये। गुप्त तरीके से साम्प्रदायिक हत्याकांड भड़काना, अफवाहों के ज़रिये जहर फैलाना, अराजकता फैलाना और फिर कानून-व्यवस्था कायम करने के नाम पर राजकीय आतंकवाद फैलाना – इन तरकीबों के द्वारा पूंजीपतियों के हमलों का विरोध करने वालों को गुमराह किया जा रहा है और बांटा जा रहा है।

असम की घटनायें, उसके बाद पूर्वोत्तर के मजदूरों और छात्रों के भारी तादाद में पलायन को जानबूझकर आयोजित करना, मुसलमानों और पाकिस्तान पर निशाना साधना ये सब हमारी एकता को तोड़ने की सोची-समझी साजि़श है। हमें पूंजीपति वर्ग और उनकी राजनीतिक पार्टियों को अपने नापाक इरादों में फिर से सफल नहीं होने देना चाहिये।

साथियो!

अपने संघर्ष को एक नये व उच्चतर पड़ाव तक बढ़ाने के लिये, हमारे सामने इस समय सबसे महत्वपूर्ण काम है फैक्टरी, औद्योगिक क्षेत्र, शहर, जिला, राज्य व सर्व-हिंद स्तर पर मजदूर एकता समितियां बनाना। यह निहायत जरूरी है ताकि हम ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते हैं और पूंजीपतियों के खिलाफ़ अपने हमले की तैयारी कर सकते हैं।

इस दिशा में हमारे सामने पहले से ही कई सकारात्मक उदाहरण हैं। एक ऐसा उदाहरण है महाराष्ट्र में मेस्मा के खिलाफ़ विभिन्न टेªड यूनियनों का एकजुट होना। देश के कोने-कोने में कई ऐसी पहल ली जा रही हैं। मजदूर वर्ग के सांझे दुश्मन के खिलाफ़ संघर्ष में मजदूरों की एकता बनाने व मजबूत करने के लिये समितियां बनायी जा रही हैं। इन समितियों का यह महत्व है कि इनके ज़रिये मजदूर अलग-अलग टेªड यूनियनों और पार्टियों के साथ संबंधों के आधार पर दुश्मनी से ऊपर उठने में सक्षम होते हैं।

आज यह वक्त की मांग है कि मजदूर वर्ग की सभी पार्टियां और जन संगठन सचेत और सुनियोजित आधार पर मजदूर एकता समितियां बनाने व मजबूत करने के काम के इर्द-गिर्द, राजनीतिक आधार पर एकजुट हों। इन समितियों में जिस क्षेत्र के मजदूरों पर उस समय हमला हो रहा है, उनके समर्थन में क्या करना जरूरी है, इस पर चर्चा होना आवश्यक है। इन समितियों में वर्ग संघर्ष की रणनीति व कार्यनीति के सवालों पर मजदूर वर्ग के संगठनकर्ता चर्चा कर सकते हैं। इन समितियों के ज़रिये मजदूर वर्ग बतौर एकजुट हो सकते हैं तथा देश की बागडोर अपने हाथों में ले सकते हैं।

शासक वर्ग की बहुत सी पार्टियां हैं परन्तु वे सभी एक ही कार्यक्रम पर वचनबद्ध हैं। यह उदारीकरण व निजीकरण के ज़रिये हिन्दोस्तानी पूंजी के भूमंडलीकरण का कार्यक्रम है, जिसे इस समय मनमोहन सिंह की सरकार लागू कर रही है। हमारे समाज का वर्तमान गहरा राजनीतिक व आर्थिक संकट इसी का परिणाम है। कोई भी पूंजीवादी पार्टी या गठबंधन हमारे समाज को इस संकट से बाहर नहीं निकाल सकता है।

सिर्फ मजदूर वर्ग ही हिन्दोस्तानी समाज को इस संकट से बाहर निकाल सकता है। अब हमें पूंजीपतियों की राजनीति से बांधने वाली जंजीरों को तोड़ना होगा, जो हमें आपस में बांटती हैं। हमें अपने यूनियनों और संगठनों को पार्टियों की आपसी दुश्मनी या वोट बैंक की राजनीति का शिकार नहीं बनने देना चाहिये।

अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्रों और शहरों में हम जिन मजदूर एकता समितियों का गठन करेंगे, उनका काम होगा मजदूरों के सामने लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था और उसकी राजनीतिक प्रक्रिया का खुलासा करना, मजदूरों को शिक्षित व संगठित करना, यह स्पष्ट करना कि कैसे वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया के चलते, अधिकतम मेहनतकशों को सत्ता से दूर रखा जाता है। हमें लोकतंत्र की एकता उन्नत व्यवस्था और एक ऐसी राजनीतिक प्रक्रिया जिसमें जनता खुद अपने फैसले ले सकेगी, इसकी स्थापना करने के लिये मजदूर वर्ग को लामबंध करना पड़ेगा। ऐसी उन्नत व्यवस्था की स्थापना करके ही मजदूर वर्ग सभी मेहनतकशों और उत्पीडि़त लोगों को समाजवाद और कम्युनिज़्म के रास्ते पर अगुवाई दे सकेगा।

साथियो!

हिन्दोस्तान का जवान मजदूर वर्ग इस संकट ग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था और पूंजीपतियों के समाज-विरोधी कार्यक्रम का विकल्प तलाश रहा है। हमारी शोषित-पीडि़त जनता एक विकल्प तलाश रही है। अपने वर्ग के एकजुट संघर्ष के संगठनों – मजदूर एकता समितियों का निर्माण करें। वैज्ञानिक और विश्वसनीय आधार पर राजनीतिक विकल्प, हिन्दोस्तान के नवनिर्माण की दिशा में यही फौरी अगला कदम है।

श्रम का अतिशोषण हिन्दोस्तान के उज्ज्वल भविष्य की शर्त नहीं है!

मजदूर एकता समितियों को बनायें और मजबूत करें!

हम मजदूर समाज को संभालें और हिन्दोस्तान की दिशा को बदल दें!

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