संपादक महोदय,
3 सितम्बर को प्रकाषित लेख “आज़ादी के 73 साल बाद शोषण और दमन से मुक्त हिन्दोस्तान के लिए संघर्ष जारी है” में बहुत ही स्पष्ट रूप से बताया गया है कि कैसे दो धाराओं के बीच टकराव आज भी बरकरार है। और यह टकराव कोई नई बात नहीं हैं। तथाकथित आज़ादी के पहले और आज तक शासक वर्ग ने समझौते के रास्ते को अपनाया जो कि निजी स्वार्थ और मुनाफे की ओर जाता है। आज हिन्दोस्तान में कुछ मुठ्ठीभर पूंजीपति घराने जो अपने औद्योगिक साम्राज्य को बहुत ही तेजी से बढ़ा रहे हैं के साथ अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिए, अपने आप को सबसे ताकतवर दिखाने की होड़ में दूसरी साम्राज्यवादी शक्ति अमरीका के साथ हाथ मिला रहा है।
हाल की स्थिति में हम देखते हैं कि करोड़ो लोगों का बेरोज़गार होना, षिक्षा न मिल पाना, किसानों का कर्ज़ में डूबना, आत्महत्या करना, अधिक से अधिक निजीकरण को बढ़ावा, लोगों पर जाति-धर्म आधारित हमले करना, महिलाओं पर हमले और इनका विरोध करने पर तरह-तरह के कानून लगाकर उन्हें जेल में बंद कर देना बहुत ही उग्र होकर सामने आ रहा है।
लेकिन इतने शोषण और दमन के बावजूद मज़दूर मेहनतकष, किसान, महिला, छात्र, नौजवान डटकर खड़े है इस नाइंसाफी के ख़िलाफ़ डटकर खड़े है। संविधान जिसमें कहने को है कि अधिकारों की गारंटी है लेकिन वास्तविकता हम सबके सामने है। सच्चाई है कि यही संविधान पूंजीपति और इनके शोषण और दमन को फौज, नौकरषाही, न्यायालय के साथ वैधता प्रदान करता है। यह राज, यह व्यवस्था मज़दूर मेहनतकष विरोधी है इसलिए इस व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए पूंजीपति के राज को खत्म करना जरूरी है। और हमारे संघर्ष को मज़दूरों, किसानो का एक नया राज कायम करने के मकसद से चलाना है, जहां लोगों को सुख और सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की होगी।
शिरीन