दूसरे देशों व लोगों की आज़ादी और संप्रभुता का आदर करने के असूल की पूरी तरह अवहेलना करते हुए, अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्रों ने सीरिया की सरकार का तख्ता पलट करने और उस देश पर अपना प्रभुत्व जमाने के इरादे से, अपना सैनिक और राजनीतिक अभियान तेज कर दिया है। अपने इस अभियान को सही ठहराने के लिए अमरीकी साम्राज्यवाद यह ऐलान कर रहा है कि ''जिसकी लाठी उसकी भैंस'', कि अपनी अधिक सैनिक
दूसरे देशों व लोगों की आज़ादी और संप्रभुता का आदर करने के असूल की पूरी तरह अवहेलना करते हुए, अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्रों ने सीरिया की सरकार का तख्ता पलट करने और उस देश पर अपना प्रभुत्व जमाने के इरादे से, अपना सैनिक और राजनीतिक अभियान तेज कर दिया है। अपने इस अभियान को सही ठहराने के लिए अमरीकी साम्राज्यवाद यह ऐलान कर रहा है कि ''जिसकी लाठी उसकी भैंस'', कि अपनी अधिक सैनिक ताकत की वजह से अमरीकी साम्राज्यवाद को पूरा ''अधिकार'' है कि अपने हित के अनुसार एक नयी विश्वव्यवस्था का गठन करे, चाहे लोगों की मुक्ति और आज़ादी व विश्वशांति के लिए यह कितना ही खतरनाक क्यों न हो।
अगस्त 2012 के दूसरे हफ्ते में सीरिया के सबसे बड़े शहर एलेप्पो में सरकारी सैनिक बलों और बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादी समर्थित बागी दलों के बीच घमासान लड़ाई होती रही। जैसे-जैसे एलेप्पो में हिंसा फैलती जा रही है, वैसे-वैसे और ज्यादा पश्चिमी साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का खतरा बढ़ता जा रहा है।
अगस्त, 2012 के आरंभ में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने इस संकट में सीरिया की सरकार की भूमिका की निंदा करते हुए, एक प्रस्ताव पास किया जिसके पक्ष में 133 मत थे। इससे पूर्व सीरिया के खिलाफ़ अमरीका नीत जंग के समर्थकों ने उस देश में और ज्यादा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के लिए उचित हालात पैदा करने के इरादे से, बड़े पैमाने पर और बड़े जोर-शोर से प्रचार किया। परंतु इसके बावजूद, 12 देशों ने उस प्रस्ताव का विरोध किया और 31 देशों ने मतदान नहीं किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अमरीकी साम्राज्यवाद के इस हमलावर, जंग-फरोश रास्ते के परिणामों के बारे में बहुत से देश काफी चिंतित हैं।
9 अगस्त 2012 को ईरान ने रूस, चीन, क्यूबा, इराक, वेनेजुएला, अफगानिस्तान, एल्जीरिया, हिन्दोस्तान, इंडोनेशिया, श्रीलंका, पाकिस्तान और जिम्बाब्वे समेत 29 देशों की तेहरान में एक गोष्ठी की। गोष्ठी के बाद एक संयुक्त बयान जारी किया गया जिसमें सीरिया में शामिल सभी पक्षों से अनुरोध किया गया कि तीन महीने के अंदर हिंसा को खत्म करें ताकि बातचीत हो सके और यह जोर दिया गया कि ''दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप न करने और राष्ट्रीय संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता का आदर करने के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय कानून के असूलों का पालन करना जरूरी है, कि हथियारबंद गिरोहों को सैनिक मदद बंद करके दुश्मनियों को समाप्त करना जरूरी है, क्योंकि हथियारबंद गिरोहों को समर्थन का इस इलाके में शांति और सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक असर हो सकता है।'' ईरान और दूसरे देशों ने यह भी कहा कि इस इलाके की परिस्थिति को हल करने के लिए आपसी बातचीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, वे मक्का में 14-15 अगस्त को होने वाली आरगेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-आपरेशन (ओ.आई.सी.) की आपातकालीन बैठक जैसे अन्य मंचों का पूरा इस्तेमाल करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र आम सभा में प्रस्ताव पर मतदान से कुछ ही दिन पहले यह स्पष्ट हुआ कि अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने सीरिया में सरकार विरोधी ताकतों को गुप्त समर्थन देने के लिए अमरीकी खुफिया दलों को एक आदेश पर खुद हस्ताक्षर किया था। बर्तानवी विदेश सचिव विलियम हेग ने इस बात की पुष्टि की कि ब्रिटेन सीरिया में सरकार विरोधी दलों को गुप्त समर्थन दे रहा है। कई समाचार सूत्रों से पता चला है कि तुर्की,सऊदी अरब और कतर भी सीरिया में सरकार विरोधी दलों को हथियार पहुंचा रहे हैं। इसके अलावा पश्चिमी देशों में मीडिया को यह भी मानना पड़ा है कि बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके मित्रों द्वारा समर्थित "विरोधी"दल कोई आम "लोकतंत्र पसंद"योद्धा नहीं हैं। बल्कि,उनमें से बहुत सारे ऐसे दल हैं जिन्होंने बीते दिनों में अपने राजनीतिक विपक्ष का बड़े पैमाने पर जनसंहार किया है और सीरिया के आम नागरिकों में भी मार-काट मचायी है। इनमें से कुछ "विरोधी"गिरोहों को पहले अमरीका और उसके मित्र खुद "आतंकवादी"मानते थे,जिससे यह स्पष्ट होता है कि बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादी सीरिया में बलपूर्वक सत्ता परिवर्तन करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
इससे पहले, जुलाई 2012 में, साम्राज्यवादी दलालों ने सीरिया की सरकार के कुछ मुख्य सदस्यों पर हमले किये और कुछ मुख्य नेताओं की हत्या की। साम्राज्यवादी समर्थित गिरोहों ने सीरिया की सरकार पर भारी साइबर हमले भी छेड़ रखे हैं और उनके बहुत सारे वेब साइट का इस समय हैकिंग हुआ है।
अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके मित्र यह दावा करते हैं कि सीरिया की ''तानाशाह'' सरकार के खिलाफ़ ''लोकतंत्र'' को बढ़ावा देने के लिए वहां हस्तक्षेप करना जरूरी है। परंतु यह असूल का मामला है कि किसी देश में कैसी राजनीतिक व्यवस्था होगी या कैसी सरकार होगी, कैसी उसकी नीतियां होंगी, ये उस देश की जनता के अंदरूनी मामले हैं जिन पर उन्हें विदेशी हस्तक्षेप के बिना फैसला करना होगा।
जब से साम्राज्यवादियों ने सीरिया की सत्ता को पलटने के लिए वहां विरोधी गिरोहों को संगठित करना, हथियार देना और भड़काना शुरू किया है, उस समय से दसों-हजारों लोग वहां चल रहे झगड़ों में घायल हुए हैं और मारे गये हैं। पूरे-पूरे शहर नष्ट पड़े हैं, दसों-हजारों लोग अपने घर-बार को छोड़ने को मजबूर हुए हैं। मानवीय मामलों पर संयुक्त राष्ट्र समन्वय कार्यालय के अनुसार, 15,00,000 सीरिया के नागरिकों को मदद की सख्त जरूरत है।
सीरिया के खिलाफ़ आज किये जा रहे हमले उस खतरनाक धारा के हिस्से हैं जिसे अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्रों ने लगभग 11 वर्ष पहले, 2001 में अफगानिस्तान पर नाटो नीत हमले के साथ शुरू किया था। आज तक उस देश पर कब्जा है और वहां जंग चल रही है। 2002 में अमरीका और उसके मित्र देशों ने इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार के खिलाफ़ जलील प्रचार किया और उसे ''जनसंहार के हथियारों'' को रखने का दोषी करार दिया। इस तरह उन्होंने 2003 में इराक पर हमला करने के हालात तैयार किये। इराक भी आज तक अमरीकी कब्जे के परिणामों से पीड़ित है। अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके मित्र अब ईरान और सीरिया पर निशाना साध रहे हैं क्योंकि इन दोनों देशों की सरकारों ने पश्चिमी एशिया के इलाके में साम्राज्यवादी इरादों का सख्त विरोध किया है। साम्राज्यवादी ताकतें इन दोनों देशों में बलपूर्वक ''सत्ता परिवर्तन'' करने की कोशिश कर रही हैं ताकि वहां साम्राज्यवाद परस्त सरकारें लायी जा सकें। सीरिया में असाद की सरकार ईरान का निकट मित्र है, इसलिए अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके मित्र पश्चिम एशिया के रणनीतिक और तेल संपन्न क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व जमाने के रास्ते में इन दोनों सरकारों को रुकावट मानते हैं।
बर्तानवी-अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके मित्रों के बड़े-बड़े दावों के बावजूद, यह स्पष्ट है कि उनका इरादा सीरिया के लोगों को लोकतंत्र या आज़ादी दिलाना नहीं है उनका इरादा है सीरिया पर अपना कब्ज़ा जमाना, ताकि अपने हितों को बढ़ावा दे सकें। अफगानिस्तान, इराक और लीबिया में उन्होंने ऐसा ही किया है और अब ईरान में भी ऐसा करना चाहते हैं। विदित है कि कई दूसरे देश बर्तानवी अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके मित्रों की इन शैतान हरकतों को मूकदर्शक बनकर बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सीरिया के खिलाफ़ बढ़ते साम्राज्यवादी हमलों, हत्याओं, साइबर हमलों, बम हमलों आदि की कड़ी निंदा करती है। साम्राज्यवादियों को किसी भी बहाने, किसी दूसरे देश के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। हिन्दोस्तान की सरकार संयुक्त राष्ट्र आम सभा और सुरक्षा परिषद जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सीरिया की मुक्ति और आज़ादी की हिफ़ाज़त में तथा वहां साम्राज्यवादी हस्तक्षेप के खिलाफ़ अपनी आवाज़ नहीं उठा रही है, जिसके लिए उसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।