कर्नाटक राज्य में एक गंभीर संकट उभरकर आया है, जिसकी वजह से बैंगलोर में व आसपास उच्च कोटि की भूमि के आवंटन में अपने परिजनों के साथ पक्षपात करने के आरोपी मुख्यमंत्री श्री बी.एस. येदयूरप्पा पर राज्यपाल श्री एस.आर.
कर्नाटक राज्य में एक गंभीर संकट उभरकर आया है, जिसकी वजह से बैंगलोर में व आसपास उच्च कोटि की भूमि के आवंटन में अपने परिजनों के साथ पक्षपात करने के आरोपी मुख्यमंत्री श्री बी.एस. येदयूरप्पा पर राज्यपाल श्री एस.आर. भारद्वाज ने कानूनी कार्यवाही चलाने की अनुमति दे दी है। भाजपा ने इसके विरोध में पूरे राज्य में बंद आयोजित किया है और राज्यपाल पर कांग्रेस का दलाल होने का आरोप लगाया है। भाजपा का कहना है कि राज्यपाल का एक ही इरादा है, कि कैसे भाजपा सरकार को हटाया जाये और कांग्रेस सरकार लाने की हालत तैयार की जाये।
यह याद रखा जाये कि कर्नाटक की भाजपा सरकार कुछ सालों से विवादों से घिरी रही है। राज्य में उसके मुख्य प्रतिस्पर्धी, कांग्रेस पार्टी और जद (सेकुलर) सरकार को डांवाडोल करने का अनवरत अभियान चलाती आयी हैं। 2008 में कर्नाटक में भाजपा की सरकार कुछ निर्दलीय विधायकों की सहायता से बनी थी, जब जद (सेकुलर) के साथ मिलकर सत्ता बांटने पर आधारित उसकी गठबंधन टूट गयी थी और उसके बाद चुनाव करवाये गये थे। 2004 के चुनावों के बाद, जद (सेकुलर) का पहले कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन था और बाद में उसी विधानसभा की अवधि के दौरान भाजपा के साथ गठबंधन था। वर्तमान सरकार के चलते, कुछ महीने पहले सरकार को गिराने की विपक्षी दलों ने कोशिश की तब एक घटिया नाटक लोगों को देखने को मिला। सरकार ने पुलिस का इस्तेमाल करके विद्रोही विधायकों को वोटिंग कक्ष में घुसने से रोक दिया, जिसमें श्री येदयूरप्पा अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे थे और उस पर मतदान होने वाला था।
इन तीन मुख्य राजनीतिक पार्टियों की आपसी दुश्मनी बीते कुछ सालों से तीखी होती रही है, जिसकी वजह से आज यह हालत है। यहां मुद्दा भ्रष्टाचार का है, एक ऐसा विषय जिस पर अब तक भाजपा ऊंची नैतिकता का दावा करती आयी है। अब अपनी ही पार्टी का मुख्यमंत्री खुलेआम भ्रष्टाचार के मामले में रंगे हाथों पकड़ा गया है।
एच.डी. देवगौड़ा, जो कर्नाटक के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, और उनका पुत्र एच.डी. कुमारस्वामी की अगुवाई में जद (सेकुलर) यह दावा करती है कि वह ग्रामीण क्षेत्र के हितों का रक्षक है। यह पार्टी 2004 में एस.एम. कृष्णा नीत कांग्रेस सरकार की पराजय के बाद आगे आयी थी। यह कहा गया था कि कृष्णा सरकार शहरों से पक्षपात कर रही थी और कृषि क्षेत्र की उपेक्षा कर रही थी, जबकि भाजपा उन हितों को बढ़ावा देगी जिसकी कांग्रेस सरकार ने उपेक्षा की थी।
कृषि में पूंजीवाद के बढ़ने से और बैंगलोर शहर के एक वैश्विक आई.टी. केन्द्र बन जाने से वहां भूमि और संसाधनों पर तीखे अंतर्विरोध और गलाकाट स्पर्धा पैदा हुई हैं। मिसाल के तौर पर खनन क्षेत्र एक बहुत लुभावना क्षेत्र बन गया है और खनन उद्योग के पूंजीपतियों की नीति-निर्धारण में अहम भूमिका हो गयी है। अत: यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कर्नाटक में बहुत से घोटाले जमीन और रियल इस्टेट को लेकर हुए हैं, क्योंकि जमीन की कीमत आसमान छूने लगी हैं। कर्नाटक में पूंजीवादी विकास शांतिपूर्ण नहीं बल्कि एन.आई.सी.ई. आधारभूत ढांचा गलियारे से लेकर, शुरू से ही विवाद और त्रासदी से भरपूर रहा है। वहां किसानों की आत्महत्या एक दैनिक घटना बन गयी है।
मुख्यमंत्री इस समय जिस भ्रष्टाचार कांड में फंसा हुआ है, वह ठीक इसी प्रकार का कांड है, यानि अपने परिजनों के लिए अच्छी-अच्छी भूमि को हड़पने की कोशिश। यह मुद्दा कुछ हफ्तों पहले सामने आया था, जब केन्द्र में राडिया टेप्स के मसले ने कर्नाटक में हो रहे हंगामे को पीछे हटा दिया गया था। परंतु जैसे-जैसे राडिया टेप्स पर शोर-गुल ठंडा हुआ, वैसे-वैसे कर्नाटक का मामला फिर आगे आने लगा। यह स्पष्ट है कि वर्तमान संकट के पीछे दो मुख्य पार्टियां कांग्रेस पार्टी और भाजपा हैं, जो दोनों एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रही हैं और जद (सेकुलर) इन अस्थिर हालतों में अपना मौका ढूंढ़ रही है।
वर्तमान मामले से हिन्दोस्तान के लोगों के सामने संभावनाएं और खतरे, दोनों पैदा होते हैं। एक तरफ जनता की नज़रों में सभी राजनीतिक पार्टियों और उन्हें धन देने वालों का पर्दाफाश हो रहा है। सार्वजनिक पद पर बैठे अधिकारियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने की मांग बढ़ रही है। यह स्पष्ट हो रहा है कि संपूर्ण पूंजीपति वर्ग लालची लुटेरों का दल है और राजनीतिक पार्टियां उन्हीं की बनायी गयी नीतियों के कारक हैं। दूसरी ओर, वर्तमान मामले से यह भ्रम भी पैदा किया जा रहा है कि इस व्यवस्था के अंदर भ्रष्टाचार को रोकने के तंत्र मौजूद हैं, जो दोषियों को सज़ा दे सकते हैं। मिसाल के तौर पर, लोकायुक्त अपनी जांच से क्या हासिल कर पायेगा या मुख्यमंत्री पर कानूनी कार्यवाही चलाने का आदेश जांच से पहले दिया जाना जायज़ है या नहीं, इन विषयों पर बहुत प्रचार और गलत-गलत विचार फैलाये जा रहे हैं। इस तरह पूरा वाद-विवाद सिर्फ इसी बात पर टिका हुआ है कि क्या राज्यपाल ने अपनी संविधानीय पाबंदियों का उल्लंघन किया है या क्या उसका कदम जायज़ है, जबकि असली मुद्दों पर पर्दा डाला जा रहा है।
अगर यह स्पष्ट समझा जाये कि वर्तमान व्यवस्था किस तरह चलती है, तो यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि इस व्यवस्था के चलते, भ्रष्टाचार की समस्या का कोई समाधान नहीं हो सकता है। इस व्यवस्था में पूंजीपतियों का यह या वह गुट अपना काम करवाने के लिये इस या उस राजनीतिक पार्टी को समर्थन देता है। भ्रष्टाचार इस मशीन को चालू रखने वाला तेल है। अत:, मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि क्या भाजपा अब ऊंची नैतिकता का दावा कर सकेगी या क्या राज्यपाल ने अपनी पाबंदियों से आगे बढ़कर कदम उठाया है। मुद्दा यह है कि वर्तमान व्यवस्था में लोग पूरी तरह दर-किनार कर दिये गये हैं और सत्ता से दूर हटाये गये हैं। पहले बंद का आह्वान देकर और लोगों के लिये दुविधा और असुविधा का माहौल पैदा करके, और फिर ”स्वाभाविक हालत” वापस लाकर इन घटनाओं के मुख्य कारणों पर पर्दा डाला जा सकता है। हमें यह स्पष्ट करने के लिए संघर्ष को तेज़ करना होगा कि पूंजीवादी व्यवस्था और पूंजीवादी पार्टियों के प्रतिनिधित्व वाले लोकतंत्र की इस व्यवस्था के चलते, न तो भ्रष्टाचार मिटेगा और न ही गुनहगारों को सज़ा होगी। इसलिए हमें इस या उस पार्टी का पक्ष लेने के बजाय, इस व्यवस्था का पर्दाफाश करने का आंदोलन आगे ले जाना होगा।