महाराष्ट्र सरकार ने खुदरा श्रृंखलाओं के बड़े पूंजीपतियों के पक्ष में ए.पी.एम.सी. कानून को कमज़ोर किया

9 अगस्त, 2020 को शिव सेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस-कांग्रेस मोर्चे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने कृषि उपज विपणन समिति (ए.पी.एम.सी.) कानून में बदलाव करके बड़ी खुदरा श्रृंखलाओं सहित व्यापारियों को मंडियों की मध्यस्तता बिना अनाजों, तिलहनों और दालों को किसानों से सीधा खरीदने की अनुमति दे दी। जुलाई 2016 में भाजपा-शिवसेना मोर्चे की सरकार ने ए.पी.एम.सी. कानून को बदलकर फलों और सब्जियों को सीधे खरीदने की अनुमति दे दी थी।

मौजूदा राज्य सरकार का यह निर्णय केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में ए.पी.एम.सी. कानून में किये गए इसी तरह के बदलाव पर आधारित है।

वर्तमान और पिछली दोनों सरकारों ने यह दावा किया कि ये बदलाव राज्य के किसानों को अपनी उपज पर अधिक क़ीमत पाने में सहायक होंगे। परन्तु, जिन राज्यों में ए.पी.एम.सी. कानून को बदला गया उनका अनुभव दिखाता है कि ऐसा नहीं होता है।

खुद महाराष्ट्र में, 2016 में फलों और सब्जियों के लिए बदली गई नीति ने किसानों को अधिक क़ीमत पाने में सहायता नहीं की है। मुंबई के सबसे बड़े थोक बाज़ार में प्याज की क़ीमत अगस्त के उसी सप्ताह में गिरकर 1 रुपए प्रति किलो हो गई जिस सप्ताह में अनाजों को ए.पी.एम.सी. कानून के दायरे से बाहर कर दिया गया।

इन बदलावों से वास्तव में अंबानी, टाटा, बिड़ला और वॉलमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मालिकी में बड़ी खुदरा श्रृंखलाओं को लाभ हुआ है। उनके लिए अब बिचैलियों के बिना सीधे किसानों से खरीदना संभव हो गया है। वे अपनी बड़ी क्रय शक्ति का उपयोग खेत के बाहर उपज के मूल्य को न्यूनतम स्तर पर लाने के लिए करते हैं। बड़ी खुदरा श्रृंखलाओं की खरीद नीतियों से हिन्दोस्तान और विश्वभर में उत्पादकों को कभी ज्यादा क़ीमत नहीं मिली है।

किसान यही मांग करते आए हैं कि यदि बाज़ार भाव निश्चित मूल्य से कम हो जाए तो उनकी उपज को निश्चित मूल्य पर खरीदने की गारंटी होनी चाहिए। लेकिन राज्य उनकी इस जायज़ मांग को स्वीकार करने से मना कर रहा है। इसके विपरीत, राज्य किसानों की मदद करने के नाम पर हिन्दोस्तानी और विदेशी बड़े पूंजीपतियों की सहायता कर रहा है।

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