टयूनिशिया में जन-विद्रोह

समाचार लिखे जाने तक, उत्तरी अफ्रीकी देश टयूनिशिया में मेहनतकश लोगों का जबरदस्त विद्रोह चल रहा है। पूर्व राष्ट्रपति, जिसने 1987 से अब तक राज किया, उसे साउदी अरब भागना पड़ा है।
टयूनि

समाचार लिखे जाने तक, उत्तरी अफ्रीकी देश टयूनिशिया में मेहनतकश लोगों का जबरदस्त विद्रोह चल रहा है। पूर्व राष्ट्रपति, जिसने 1987 से अब तक राज किया, उसे साउदी अरब भागना पड़ा है।
टयूनिशिया की बगावत तब शुरू हुयी, जब एक 26 वर्षीय आई.टी. इंजीनियर ने 17 दिसम्बर को अपने शहर के नगर-निगम दफ्तर के सामने दिन दहाड़े आत्मदाह किया। इसका कारण था – बेरोजगारी में जब उसने सब्ज़ी बेचने की कोशिश की तब नगर-निगम के अधिकारियों ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। इसके बाद, लोग, खासतौर पर मज़दूर वर्ग के नौजवान, देश की दमनकारी, लोक-विरोधी सत्ता के खिलाफ़ सड़कों पर उतर आये।
सड़क पर प्रदर्शनकारियों का नारा है – ”चोरों के गिरोह, रोजगार सबका अधिकार है!” उनका निशाना भ्रष्टाचार, अन्याय तथा रोजगार के अवसरों की कमी पर है। चोरों के गिरोह से उनका मतलब ”ट्राबेलसीज” घराने से है, यानि राष्ट्रपति बेन अली की पत्नी के परिवार से है।
पिछले 24 वर्षों में टयूनिशिया का शासक परिवार देश के संसाधनों पर अपने एकाधिकारी कब्जे के जरिये मोटा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि आज के पूरे टयूनिशिया पर 100 लोगों का नियंत्रण है और उनके व्यक्तिगत फायदों के लिए लोगों पर मनमानी से नीतियां लादी जाती हैं।
कुछ सप्ताहों तक, अमरीकी साम्राज्यवाद, यूरोपीय संघ तथा अरब के प्रतिक्रियावादी हुकूमतों के समर्थन से टयूनिशियाई सरकार यह सुनिश्चित कर पायी थी कि टयूनिशिया में हो रही हलचल प्रसार माध्यमों तक न पहुंचे। इसके लिये उसने साम्राज्यवादी ताकतों, खासतौर पर, अमरीकी और फ्रांसीसी साम्राज्यवाद, से उसके नज़दीकी रिश्तों का सहारा लिया।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि बेन अली की हुकूमत न केवल टयूनिशिया की धन-दौलत व श्रम को बे-रोकटोक लूटती आयी है बल्कि उन सब पर वहशी हमला करती आयी है जिन्होंने इस्लाम धर्म का आचरण करके अपने ज़मीर के अधिकार को दर्शाया था। महिलाओं और लड़कियों के बुरका पहनने पर रोक है। टयूनिशिया के शासक अपनी प्रतिक्रियावादी और शोषण वाली हुकूमत के सभी विरोधों को जानबूझकर ”पिछड़ी”, ”विदेशी साज़िश”, ”अल कायदा समर्थित”, आदि, बताते आये हैं।
यूरोपीय देशों के समर्थन से साहस लेकर, टयूनिशिया की हुकूमत मानो पगला गयी – प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध
गोलियां बरसाने से तीन रातों में पचास लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। जब लोगों को इनके दर्दनाक विडियो देखने को मिले, जिनमें नौजवानों के सिर पर और हृदय के आरपार गोलियां मारी गयी थीं, तब सड़कों पर और भी ज्यादा लोग उतर आये। जो पहले एक स्वयं-स्फूर्त प्रदर्शन के रूप में था अब एक बगावत का रूप धारण कर रहा था। विद्रोह भौगोलिक तौर से फैलने लगा और राजधानी टयूनीश पहुंचा। वहां दमन की प्रचण्डता के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहे कलाकारों को पुलिस ने जोर से मारा-पीटा और उनका अपमान किया। राजधानी टयूनीश के सबसे बड़े प्रदर्शन, तीन बड़ी आबादी वाले स्थानों, अल ताडामोन, अल ताहरीर और अल इन्तीलाका में हुये। ऐसा लगता है कि 25 दिनों के बाद भी विद्रोह की लहर आगे बढ़ती ही जा रही है।
प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार करने के कारण एक सेनापति को बर्खास्त करने पर, अब सेना की कई टुकड़ियों में असंतोष फैलने लगा है।
इस बीच, टयूनिशिया की खबरें अरब देशों के मेहनतकश लोगों के बीच सहानुभूति के साथ देखी जा रही हैं। अन्य अरब देशों में भी उसी तरह की गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और साम्राज्यवाद द्वारा समर्थित मनमानी करने वाले शासक हैं।
अल्जीरिया की सड़कों पर इन्हीं मांगों को लेकर हजारों की संख्या में नौजवान पुलिस से जूझ रहे हैं। इसे यहां ”टयूनिशियाई इंतीफादा” का नाम दिया जा रहा है। सभी अरब लोगों में आशा की किरण चमकी है और सभी अरब हुकूमतों में डर छाया हुआ है।
मानव अधिकार संगठन, बेन अली हुकूमत की क्रूरता का निरंतर पर्दाफाश और निंदा करते रहे हैं। परन्तु अमरीका और यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतें चुप्पी साधे रही हैं, क्योंकि ऐसा करना उनके हित में था।
टयूनिशिया की विस्फोटक परिस्थिति दुनियाभर के स्तर पर साम्राज्यवादी व्यवस्था के अंतरविरोधों के तीखे होने को दर्शाती हैं। यह दिखाती है कि क्रांति की लहर, लम्बे अरसे से दबाये रखने के गुस्से की बौखलाहट, और इस व्यवस्था के दबे-कुचले पीड़ितों के अरमानों की प्रचंडता, से फिर उठने वाली है।

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