हरियाणा सरकार द्वारा किसानों की ज़मीन के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ़ आंदोलन करते किसानों पर 22 जुलाई को रेवाड़ी की पुलिस ने गोली चलाई। रिपोर्टों के अनुसार इस गोलीबारी में 30 से भी अधिक किसान जख्मी हुये। हरियाणा सरकार ने किसानों पर झूठे मुकदमे चला कर एक डराने-धमकाने वाला अभियान चलाया है ताकि किसानों के बीच विभाजन करके उनके संघर्ष को कुचला जा सके। मज़दूर एकता लहर रेवाड़ी के किसानों पर राजकीय ह
हरियाणा सरकार द्वारा किसानों की ज़मीन के जबरन अधिग्रहण के खिलाफ़ आंदोलन करते किसानों पर 22 जुलाई को रेवाड़ी की पुलिस ने गोली चलाई। रिपोर्टों के अनुसार इस गोलीबारी में 30 से भी अधिक किसान जख्मी हुये। हरियाणा सरकार ने किसानों पर झूठे मुकदमे चला कर एक डराने-धमकाने वाला अभियान चलाया है ताकि किसानों के बीच विभाजन करके उनके संघर्ष को कुचला जा सके। मज़दूर एकता लहर रेवाड़ी के किसानों पर राजकीय हिंसा की कड़ी निंदा करती है।
पूंजीवादी मीडिया ने पीड़ितों को ही दोषी ठहराया है, जैसा कि हमेशा किया जाता है। मीडिया और हरियाणा सरकार के अनुसार, किसानों ने दिल्ली जयपुर राष्ट्रीय महामार्ग पर रास्ता रोको किया था और इसे जबरन साफ करना जरूरी था। वे इस सच्चाई पर पर्दा डाल रहे हैं कि किसान ऐसा प्रदर्शन करने के लिये मज़बूर सिर्फ इसलिये हुये क्योंकि उनकी आवाज और किसी तरह से सुनी नहीं जा रही थी।
रेवाड़ी का संघर्ष, बड़े पूंजीपतियों के मुनाफों को अधिकतम बनाने के लिये देश भर में राज्य द्वारा जबरन हो रहे भूमि अधिग्रहण के विरोध के संघर्ष का एक हिस्सा है। हरियाणा राज्य में, राष्ट्रीय महामार्गों और राष्ट्रीय राजधानी के पास के महत्वपूर्ण इलाकों में, बड़े पूंजीपति तरह तरह की परियोजनायें लगा रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकारें उनके हित से मेल खाते हुये काम कर रही हैं। राज्य की सरकार की, दिल्ली जयपुर महामार्ग पर रेवाड़ी जिले में एक औद्योगिक क्षेत्र बनाने की योजना है। इसके लिये वहां के 21 गांवों में 3700 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने का उसका प्रस्ताव है।
2010 में, भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 4 के तहत उन्होंने उन सब भूमि के मालिकों के लिये एक सूचना पत्र जारी किया, जिनकी जमीन इस हेतु चुनी गयी थी। अधिकांश किसानों को अपनी उपजाऊ जमीन देना मंजूर नहीं था। इसके अलावा उन्हें मालूम था कि इस क्षेत्र में रोब-दाब वाले कई मालिकों की ज़मीनों को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से बक्शा गया था। ऐसा भूमि अधिग्रहण कानून के मुताबिक किया जा सकता है, और यह एक माध्यम है जिसके ज़रिये कुछ बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध रखने वाले लोग बड़ा भारी मुनाफा बनाते हैं, जबकि अधिकांश किसान अपनी रोजी-रोटी खो बैठते हैं।
जून 2012 में, प्राधिकारियों ने गांवों में ज़मीन पर कब्ज़ा करना शुरू किया। तब किसान सचेत हो गये कि भूमि अधिग्रहण के उनके विरोध को एक संगठित रूप देना होगा नहीं तो राज्य उनको बांट कर आसानी से कुचल देगा। 20 जून को उन्होंने उचित प्राधिकारियों को भूमि अधिग्रहण करने के फैसले को रद्द करने के लिये एक 20 दिन का अल्टीमेटम दिया। उन्होंने मांग की कि जब तक केन्द्रीय कानून पास नहीं होता अधिग्रहण की कार्यवाई स्थगित की जाये। किसानों ने राज्य सरकार से निवेदन किया कि उनकी आवाज़ पर ध्यान दिया जाये। परन्तु राज्य ने उत्तर में भूमि अधिग्रहण की धारा 6 के तहत उन सब को सूचना पत्र भेजा जिनकी भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा था।
इससे किसान आग बबूला हो गये। गुस्से में गांव वासियों ने रेवाड़ी के लघु सचिवालय पर धरना शुरू किया। धरने के पांच दिन के बाद पुलिस ने किसानों को भिड़न्त के लिये उकसाया। इन मुठभेड़ों में बहुत से लोग जख्मी हुये। इन घटनाओं का बहाना लेकर राज्य ने किसानों और उनके नेताओं पर अपराध के मुकदमे चला कर उन पर हमला किया। किसानों ने अपना संघर्ष और तीखा करने का निश्चय किया। उन्होंने रेवाड़ी और बावल में बंद घोषित किया। 22 जुलाई को भूमि अधिग्रहण संघर्ष समिति के तहत, बावल चौरासी (बावल इलाके के 84 गांव) की महापंचायत बुलाई गयी। हजारों किसान इस महापंचायत में शामिल हुये। इस महापंचायत ने अपना विरोध जताने के लिये दिल्ली जयपुर महामार्ग पर चक्का जाम का बुलावा दिया।
रेवाड़ी के किसानों का संघर्ष एकदम ज़ायज है। राज्य को उन्हें उनकी ज़मीन से बेदखल करने का कोई अधिकार नहीं है। पूरे देश ने उपनिवेशी भूमि अधिग्रहण कानून को और केन्द्रीय मंत्रीमंडल द्वारा संशोधित कानून को नामंजूर किया है। उपनिवेशी भूमि अधिग्रहण कानून को तुरंत रद्द किया जाना चाहिये।
सभी भूमि अधिग्रहण को तुरंत बंद किया जाना चाहिये जब तक कि एक नया कानून नहीं बनाया जाता जो खेती करने वालों के अधिकारों को मान्यता देता और निजी शोषक हितों के अधिग्रहण के अधिकार के दावे को अस्वीकार करता। इस कानून को इस बात को स्वीकार करना होगा कि भूमि प्रकृति की देन है और यह कोई वस्तु नहीं है जिसे खरीदा या बेचा जाये।