असम के दक्षिणी भाग में, लाखों बेकसूर पुरुष, स्त्री व बच्चे भयानक समुदायिक जनसंहार के शिकार बने हैं। और अपने गांव, घर, खेत, मवेशी, सब कुछ छोड़ कर भागने को मजबूर हुये हैं। सैकड़ों गांव जला दिये गये हैं। हथियारबंद कातिलाना गुंडों ने अनगिनत लोगों का बेहरमी से कत्ल किया है। बड़े क्रोध के साथ, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी उस इलाके में जानबूझकर समुदायिक जनसंहार आयोजित करने के लिये हिन्दोस्तानी
असम के दक्षिणी भाग में, लाखों बेकसूर पुरुष, स्त्री व बच्चे भयानक समुदायिक जनसंहार के शिकार बने हैं। और अपने गांव, घर, खेत, मवेशी, सब कुछ छोड़ कर भागने को मजबूर हुये हैं। सैकड़ों गांव जला दिये गये हैं। हथियारबंद कातिलाना गुंडों ने अनगिनत लोगों का बेहरमी से कत्ल किया है। बड़े क्रोध के साथ, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी उस इलाके में जानबूझकर समुदायिक जनसंहार आयोजित करने के लिये हिन्दोस्तानी राज्य की कड़ी निंदा करती है। हमारी पार्टी इस दुखद समय पर, पीड़ितों के परिजनों के साथ हार्दिक हमदर्दी प्रकट करती है।
असम प्रांत नाना प्रकार के लोगों का निवास स्थान है, जिनका राष्ट्रीय और सामाजिक मुक्ति के लिये संघर्ष करने का गौरवपूर्ण इतिहास है। बर्तानवी उपनिवेशवादियों द्वारा अधीन बनाये गये लोगों में असम के लोग सबसे अंतिम थे। आज़ादी के बाद भी उन्होंने हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपतियों द्वारा अपनी भूमि और अनमोल कुदरती संसाधनों की लूट व अपनी गुलामी को कभी स्वीकार नहीं किया है।
वहां के लोगों में आतंक फैलाने और उनके संघर्ष को भाई-भाई की हत्या करने के रास्ते पर भटका देने के लिये, केन्द्रीय राज्य ने विभिन्न नस्लों के समुदायों के बीच में हथियारबंद आतंकवादी गिरोहों का गठन करने की नीति अपनायी है। उसने कभी एक नस्ल के समुदाय को खुश करने तो कभी दूसरे नस्ल के समुदाय को खुश करने की नीति अपनायी है, ताकि लोग एक सांझे नज़रिये के इर्द-गिर्द एकजुट न हो सकें। केन्द्र और राज्य सरकारों में अलग-अलग मंत्रियों के अलग-अलग भूमिगत गिरोहों के साथ संपर्क बने हुये हैं।
प्रतिक्रियावादी पूंजीवादी मीडिया यह प्रचार कर रही है कि असम में समस्या यह है कि वहां बहुत से ''आपस में लड़ने वाले समुदाय हैं'', कि नई दिल्ली और गुवाहाटी में सरकार संभालनें वाली कांग्रेस पार्टी की ''सूझबूझ वाली नीति'' की वजह से वहां ''शांति'' बनी हुई है। इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता। यह वैसा ही झूठ है जो बर्तानवी उपनिवेशवादी बार-बार फैलाते थे, कि हिन्दोस्तानी लोग आपस में लड़ने वाले समुदायों में बंटे हुये हैं और उन्हें कुछ पढ़े-लिखे पश्चिमी लोगों की जरूरत है जो उन पर राज करेंगे और उनके बीच में मध्यस्थता करेंगे। यह झूठ इसलिये फैलाया जा रहा है ताकि असम के लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों को नकारा जा सके और पूर्वोत्तर इलाकों में सैनिक शासन को जारी रखना उचित ठहराया जा सके।
यह कोई आकस्मिक बात नहीं है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने पहले जान-बूझकर हालत को बिगड़ने दिया और फिर, जब कुछ दिनों तक जनसंहार चला, इसके बाद अब वहां फौज भेजा और उन्हें 'देखने पर गोली चलाओ' का आदेश दिया।
समुदायिक हिंसा या अंधाधुंध हिंसा फैलाने के लिए भूमिगत हथियारबंद गिरोहों को संगठित करना तथा प्रश्रय देना और फिर शांति कायम करने के काम पर सैनिक आंतक फैलाने का आदेश देना – यह हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपतियों के शासन का परखा हुआ तरीका है। कांग्रेस पार्टी इन 'बांटो और राज करो' की तरकीबों में सबसे अनुभवी है। उसने उपनिवेशवादी राज से इन तरकीबों को विरासत में पाया है और उसके बाद इन्हें कहीं ज्यादा कुशल बना दिया है।
इस तरह धोखाधड़ी और दमन के ज़रिये असम तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के संघर्ष को नष्ट किया जा रहा है। राष्ट्रीय और सामाजिक मुक्ति के लिए वहां के लोगों का आंदोलन गुमराह किया जा रहा है, बांटा जा रहा है और खून में बहाया जा रहा है।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी असम के लोगों के जीवन और खुशहाली के बारे में चिंतित सभी राजनीतिक ताकतों और जन संगठनों से आह्वान करती है कि राज्य द्वारा आयोजित समुदायिक कत्लेआम समेत राजकीय आतंकवाद को फौरन रोकने की मांग के इर्द-गिर्द एकजुट हो जायें।