18 से अधिक मज़दूर संगठनों, महिला संगठनों तथा अन्य जन संगठन फासीवादी महाराष्ट्र इसेंशियल सर्विसेज मेंटनेंस एक्ट (एम.ई.एस.एम.ए. या मेस्मा) 2011 के लागू किये जाने के विरोध में एक साथ आये। उन्होंने एक आयोजन समिति में एक साथ आकर, 21 जुलाई के दिन मुंबई में एक आमसभा का आयोजन किया और मेस्मा को वापस लिये जाने तक लड़ने की शपथ ली।
18 से अधिक मज़दूर संगठनों, महिला संगठनों तथा अन्य जन संगठन फासीवादी महाराष्ट्र इसेंशियल सर्विसेज मेंटनेंस एक्ट (एम.ई.एस.एम.ए. या मेस्मा) 2011 के लागू किये जाने के विरोध में एक साथ आये। उन्होंने एक आयोजन समिति में एक साथ आकर, 21 जुलाई के दिन मुंबई में एक आमसभा का आयोजन किया और मेस्मा को वापस लिये जाने तक लड़ने की शपथ ली।
21 जुलाई की सभा में जिन संगठनों ने चर्चा और फैसला लेने में भाग लिया, उनमें शामिल थे इन सबके यूनियन – पश्चिम रेलवे के रेलचालक, एयर इंडिया के कर्मचारी, मुंबई हवाई अड्डे के मज़दूर, एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स, वोल्टास के मज़दूर, मुंबई महानगर पालिका कर्मचारी, बोम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाई एण्ड ट्रांसपोर्ट मज़दूर, पोस्ट व दूरसंचार मज़दूर, अस्पताल कर्मचारी, पेट्रोलियम प्रयोगशाला के तकनीकी कर्मचारी, इत्यादि। इसमें हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, सी.पी.आई. (एम.एल., लिबरेशन), रिपब्लिकन पेंथर्स, कामगार एकता चलवल, मुंबई लेबर यूनियन, ए.आई.एफ.टी.यू., पुरोगामी महिला संगठन, हिन्द नौजवान एकता सभा, फोरम अगेंस्ट ओप्रेशन ऑफ विमेन तथा लोक राज संगठन के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। सभा की अध्यक्षता जस्टिस हॉस्बेट सुरेश ने की, जो लोक राज संगठन के अवैतनिक अध्यक्ष हैं।
मेस्मा का विरोध करने और मज़दूरों के यूनियन बनाने व हड़ताल करने के अधिकारों की रक्षा करने के लिये एक संगठनात्मक समिति के गठन की इन पहलकदमियों की मज़दूर एकता लहर सराहना करती है। मेस्मा का पुन: लागू किया जाना, यह इजारेदार पूंजीपतियों का फाशीवादी हमला है जिसे केन्द्र व राज्य की सरकारें अमल में ला रही हैं। इस हमले का लक्ष्य है, मज़दूरों के बढ़ते शोषण के खिलाफ़ सभी तरह के संघर्षों का अपराधीकरण करना।
21 जुलाई की सभा में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के स्थानीय वक्ता ने अपने भाषण में ध्यान दिलाया कि उद्योगों, परिवहन, बैंकिंग, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा के संगठित मज़दूरों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिन मज़दूरों ने अपनी यूनियनें स्थापित की हैं और संगठित संघर्षों में अनुभव पाया है, वे जानते हैं कि मज़दूरों को इज्जत का जीवन जीने के लिये यूनियन बनाने और हड़ताल करने का अधिकार जरूरी है। अगर सभी यूनियनों के मज़दूर एकजुट हों और बिन समझौते संघर्ष करें तो मेस्मा को लागू होने से रोका जा सकता है और इसे वापस भी कराया जा सकता है। इसके लिये मज़दूरों के सभी तबकों की एकता अनिवार्य है, चाहे वे सार्वजनिक क्षेत्र में हों या निजी क्षेत्र में, उद्योगों में हों या परिवहन या दूसरी सेवाओं में। इसके साथ ही, समाज में न्याय और मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा चाहने वाले, समाज के सभी लोगों को मेस्मा के विरोध में एकजुट होना चाहिये।
मानव तथा श्रम अधिकारों की रक्षा करने वाले एक वकील, मिहिर देसाई ने मेस्मा के विशेषताओं पर ध्यान दिलाया। इस निष्ठुर कानून के तहत, महाराष्ट्र सरकार द्वारा घोषित किसी भी ''अत्यावश्यक सेवा'' के किसी भी कर्मचारी को हड़ताल की कार्यवाई में शामिल होने के लिये सज़ा दी जा सकती है। इस कानून के तहत, पुलिस को बिना वारंट के किसी को भी हिरासत में लेने की छूट है, उसे 6 महीने की कैद हो सकती है। अगर मालिक को लगता है कि मज़दूरों द्वारा ओवरटाईम न करने की वजह से उत्पादकता में नुकसान हो रहा है तो ओवरटाईम न करना भी हड़ताल के बराबर समझा जा सकता है और इस कानून के तहत उसे भी सज़ा दी जा सकती है।
वैस्टर्न रेलवे मोटरमैन्स एसोसियेशन (डब्ल्यू.आर.एम.ए.) के महासचिव, कॉमरेड पी.एन. गुप्ता ने समझाया कि अपनी मांगों पर सिर्फ गौर कराने के लिये रेलचालकों को अचानक हड़ताल करनी पड़ी है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि मेस्मा का इस्तेमाल ऐसी हड़ताल की कार्यवाइयों को कुचलने के लिये किया जायेगा।
मुंबई लेबर यूनियन के कार्यवाहक अध्यक्ष, कॉमरेड शंकर साल्वी ने विधायकों की निंदा करते हुये कहा कि कहने को तो वे अपने आप को ''श्रमिक नेता'' कहते हैं परन्तु उन्होंने मेस्मा पारित किये जाने का विरोध नहीं किया। वोल्टास एम्प्लोईज़ यूनियन के कॉमरेड नायर ने मेस्मा के विरोध में आंदोलन को पूरा समर्थन देने की घोषणा की।
मुंबई इलेक्ट्रिक एम्प्लोईज़ यूनियन के कॉमरेड गायकवाड़ ने समझाया कि अनिल अंबानी गुट की रिलायंस एनर्जी लिमिटेड के कहने पर महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें निशाना बनाया था। उनकी समिति के सदस्यों को मेस्मा 2005 के तहत बर्खास्त कर दिया गया था। उनका इतना ही जुर्म था कि वे ठेका मज़दूर कानून के नियम 25 के आधार पर बराबर काम के लिये बराबर वेतन की मांग कर रहे थे। वे सिर्फ रिलायंस एनर्जी में काम करने वाले कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे थे। जब रिलायंस ने यह जायज मांग नहीं मानी तब उन्हें हड़ताल पर उतरना पड़ा। रिलायंस ने महाराष्ट्र सरकार से मेस्मा लगाने को कहा और सरकार ने तुरंत वैसा किया। 2007 में एक दर्जन मज़दूरों को जेल में डाला गया और उन्हें अभी तक वापस नहीं लिया गया है। उन्होंने विश्वास जताया कि मेस्मा के नये अवतार के विरोध में बिजली सप्लाई मज़दूर सक्रियता से हिस्सा लेंगे।
हवाई अड्डा कर्मचारियों की ओर से दीप्ती ने बताया कि 2003 में मुंबई के हवाई यातायात नियंत्रकों ने एक यूनियन बनाई थी और हड़ताल की थी। इससे हवाई यातायात पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया था। प्राधिकारियों ने बहुत ही निर्दयता से यूनियन के प्रतिनिधियों पर हमला किया। इससे हमने एक सबक सीखा कि आंदोलन शुरू करने के पहले दूसरे मेहनतकश लोगों के सभी तबकों का समर्थन जुटाना अति-आवश्यक होता है, खास तौर पर अपने ही क्षेत्र के।
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ए.आई.एफ.टी.यू.,) के कॉमरेड प्रवीण नाड़कर ने हस्पतालों के 1000 बदली मज़दूरों के सफलतापूर्ण संघर्ष पर ध्यान दिलाया, जिन्होंने राज्य सरकार के विरोध के बावजूद स्थायी मज़दूरों का दर्जा पाया। उन्होंने एयर इंडिया के 1800 भारकों का और सी.पी.डब्ल्यू.डी. के मज़दूरों का उदाहरण भी दिया,जिन्होंने एस्मा का सामना करते हुये अपनी मांगों की लड़ाई जीती थी।
अन्य कार्यकर्ता जिन्होंने मेस्मा के विरोध में संघर्ष का समर्थन किया उनमें शामिल थे ऑल इंडिया रेलवे एम्प्लोईज़ कन्फेडरेशन के कॉमरेड रथ और ए.आई.यू.टी.यू.सी. के कॉमरेड अनिल त्यागी।
लोक राज संगठन की महाराष्ट्र राज्य परिषद के मैथ्यू ने शिक्षकों, चिकित्सकों, नगरपालिका मज़दूरों, भारतीय रेलवे के मज़दूरों, एयर इंडिया के मज़दूरों, बैंक तथा दूरसंचार मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा की बात रखी। उन्होंने कहा कि अपने काम की शर्तों को बेहतर बनाने और इज्जत की जिन्दगी जीने का प्रयत्न करना, सभी का जन्मसिध्द अधिकार है। जायज़ संघर्षों को दबाने और अपने दायित्व को नहीं निभाने के लिये उन्होंने सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने ध्यान दिलाया कि सरकार अत्यधिक जरूरी सेवाओं को मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारियों को त्याग कर उन्हें निजी पूंजीपतियों के हवाले कर रही है। लोक राज संगठन सैध्दांतिक तौर पर निजीकरण का विरोध करता आया है, और यह कहता रहा है कि सरकार को लोगों की सहमति के बगैर जनसम्पत्ति बेचने का कोई अधिकार नहीं है। मेस्मा जैसे फाशीवादी कानून को लाने के मकसदों में एक निजीकरण के विरोध को कुचलना है। जिस तरह से यह कानून पारित किया गया है उसको अस्वीकार्य बताते हुये उन्होंने कहा कि इसे लोगों से बगैर पूछे और लोगों की पीठ पीछे बनाया गया है।
अपने समाप्ती भाषण में जस्टिस सुरेश ने दोहराया कि मेस्मा मेहनतकश लोगों के बुनियादी अधिकारों पर एक कठोर हमला है। उन्होंने समझाया कि हड़ताल करने के अधिकार में तीन स्वतंत्रताओं का समावेश है – सम्मिलित होने की स्वतंत्रता, जबरन श्रम से स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अत: यह जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग है। उन्होंने अपने देश के मज़दूरों तथा सभी न्यायप्रिय लोगों को बुलावा दिया कि वे जी जान से मेस्मा का विरोध करें।
सभा के अंत में चार प्रस्ताव पारित किये गये। पहले प्रस्ताव में मेस्मा की, हड़ताल करने के मौलिक अधिकार पर हमला बतौर, निंदा की गयी और सभी लोकतांत्रिक व प्रगतिशील संगठनों व व्यक्तियों को बुलावा दिया गया है कि वे इस कानून को वापस लेने की मांग करें। दूसरे प्रस्ताव में सरकार से मांग की गयी है कि अत्यावश्यक सेवाओं में काम करने वाले मज़दूरों को तुरंत स्थायी नौकरियां दी जायें तथा उनके काम करने व रहने के हालतों में सुधार हो ताकि वे सर्वश्रेष्ठ तरीके से समाज की सेवा कर सकें। तीसरे प्रस्ताव में सरकार से मांग की गयी है कि कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण के लिये उचित तंत्र हों ताकि वे हड़ताल पर उतरने के लिये मज़बूर न हों। अन्तिम प्रस्ताव में मारुति-सुजुकी के मज़दूरों को पूरा समर्थन दिया गया है और मारुति-सुजुकी के प्रबंधन, हरियाणा सरकार और हिन्दोस्तानी सरकार की, मज़दूरों का अतिशोषण करने और उनके अधिकारों को दबाने के लिये, निंदा की गयी।