अमरीका हिन्दोस्तान और चीन के बीच में विवाद भड़का रहा है

एशिया की इन दोनों बड़ी ताकतों को कमजोर करके अमरीकी साम्राज्यवाद को फायदा है
आपसी विवाद को बढ़ाने से न तो हिन्दोस्तान को फायदा है और न ही चीन को

15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में, हिन्दोस्तानी और चीनी सैनिकों के बीच में सीमा विवाद को लेकर जो मुठभेड़ हुयी थी, उसमें दोनों देशों के कई सैनिक मारे गए थे। जबकि हिन्दोस्तान और चीन की सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए इंतजाम कर रही हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर फिर से इस तरह की खूनी झड़पें न हों, तो अमरीका एशिया के इन दो पड़ोसी देशों के आपसी विवाद को भड़काने की भरसक कोशिश कर रहा है।

अमरीका के नेता चीन को हिन्दोस्तान की संप्रभुता का हनन करने के लिए दोषी ठहरा रहे हैं और बड़े जोर-शोर से हिन्दोस्तान के लिए अपने “समर्थन” का ऐलान कर रहे हैं। अमरीकी नेता हिन्दोस्तान से यह मांग कर रहे हैं कि रूस-चीन-हिन्दोस्तान के बहुदेशीय समूहों से वह बाहर निकल जाए और अमरीका के साथ अपने रणनैतिक सैनिक गठबंधन को मजबूत करे। वे मांग कर रहे हैं कि चीन को घेरने के इरादे से गठित, अमरीका की अगुवाई वाले सैनिक गठबंधन में हिन्दोस्तान और ज्यादा सक्रियता के साथ भाग ले। अमरीका ने दक्षिण चीनी समुद्र में अपने युद्ध पोतों को एक भड़काऊ मिशन पर भेजा है और वहां के दूसरे तटवर्ती देशों को चीन के खिलाफ उकसा रहा है।

अमरीका का हिन्दोस्तान को चीन के खिलाफ भड़काना, यह अमरीका की एशिया व पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व जमाने की हमलावर रणनीति का हिस्सा है। इसमें अमरीका चीन को अपने लिए एक मुख्य खतरा मानता है। चीन न सिर्फ पूरी दुनिया की फैक्ट्री के रूप में उभर कर आगे आया है, बल्कि वह दूर-संचार (टेली-कम्यूनिकेशन) और सौर ऊर्जा के क्षेत्रों में तेज गति से नवीनतम टेक्नोलॉजी में सबसे आगे बढ़ रहा है। अमरीका ने हुअवेइ और हिक-विजन जैसी चीनी हाई-टेक कंपनियों पर पाबंदी लगाने के लिए दुनिया भर में एक अभियान चला रखा है।

अमरीकी नेता हिन्दोस्तान को उकसा रहे हैं ताकि हिन्दोस्तान चीनी वस्तुओं और सेवाओं का बहिष्कार करके, चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को खत्म कर दे। इस बात को नजरंदाज नहीं करना चाहिए कि अमरीकी विदेश सचिव माइक पोम्पेओ ने रिलायंस जिओ को एक “स्वच्छ टेलिकॉम कंपनी” बताकर उसकी तारीफ की है क्योंकि वह हुअवेइ जैसी चीनी कंपनियों के साथ व्यवसाय नहीं करती है। पोम्पेओ ने हिन्दोस्तानी सरकार की भी तारीफ की है क्योंकि उसने चीनी कंपनियों के बनाये हुए 59 मोबाइल फोन एप्प पर पाबंदी लगा दी है।

बीते कई सालों से हिन्दोस्तान और चीन के बीच व्यापार क्रमशः बढ़ता जा रहा है। हिन्दोस्तान और चीन के आपसी आर्थिक संबंधों के मजबूत होने की इस प्रक्रिया को अमरीका अपने हितों के खिलाफ मानता है। अमरीका चाहता है कि हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों पर अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का दबदबा हो। इसलिए अमरीका जानबूझकर विभिन्न क्षेत्रों में चीनी कंपनियों से हिन्दोस्तान की सुरक्षा को खतरे पर रोशनी डाल रहा है। परन्तु अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से हिन्दोस्तान की सुरक्षा को खतरे के बारे में कोई बात नहीं की जा रही है।

अप्रैल में, सीमा पर झड़प होने से पहले ही, सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी पूंजीनिवेश (एफ.डी.आई.) के नियम बदल दिए थे। बदलाव यह था कि आटोमेटिक रूट से इजाजत प्राप्त एफ.डी.आई. के लिए भी सरकार की मंजूरी लेना बाध्यकारी बना दिया गया, अगर एफ.डी.आई. ऐसे देश से आ रहा हो जिसका हिन्दोस्तान के साथ जमीनी सरहद है। यह स्पष्ट है की ऐसा कदम चीन से आने वाले एफ.डी.आई. पर नियंत्रण करने के लिए लिया गया, क्योंकि किसी और पड़ौसी देश से हिन्दोस्तान को कोई एफ.डी.आई. नहीं आता है।

2008-2013 के दौरान चीन हिन्दोस्तान के साथ व्यापार में सबसे बड़ा सांझेदार था। 2018-19 में, हिन्दोस्तान के साथ व्यापार में, अमरीका सबसे आगे था और चीन उससे थोड़ा सा ही पीछे, दूसरे स्थान पर। हिन्दोस्तान चीन से आयातों पर भारी रूप से निर्भर है, न सिर्फ उपभोग की सामग्रियों के लिए बल्कि कई पूंजीगत व अन्य सामग्रियों के लिए भी। चीन हिन्दोस्तान को अपनी सारी उत्पादित वस्तुओं के लिए तथा पूँजी निर्यात के लिए एक विशाल बाजार मानता है।

2018-19 में हिन्दोस्तान ने चीन (हांगकांग समेत) से 88 अरब डॉलर की कीमत की चीजों का आयात किया था। यह हिन्दोस्तान के कुल आयातों के 17 प्रतिशत से ज्यादा था, यानि चीन आयातों का सबसे बड़ा स्रोत था। उसी वर्ष में, हिन्दोस्तान ने चीन को लगभग 30 अरब डॉलर की कीमत की चीजों का निर्यात किया था।

हिन्दोस्तानी कम्पनियां चीन से अपना सामान खरीदना पसंद करती हैं क्योंकि उनकी कीमतें कम होती हैं। हिन्दोस्तान के बाजार चीनी उत्पादों — पटाखों से लेकर देवी-देवताओं की मूर्तियों और हाई-टेक टेलिकॉम यंत्रों – से भरे हुए हैं।

हिन्दोस्तान की ऑटोमोबाइल कंपनियां कई निर्णायक पुर्जों का आयात चीन से करती हैं। हिन्दोस्तानी दवाई कंपनियां चीन से बड़े पैमाने पर दवाइयों का आयात करती हैं। हिन्दोस्तान की टेलिकॉम कंपनियां, जैसे कि एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया, चीनी सामग्रियों का इस्तेमाल करके, अपने नेटवर्क को विस्तृत कर रही हैं और कम कीमत पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रही हैं।

हिन्दोस्तान के निर्यातक चीन से आयात की हुई चीजों पर भारी रूप से निर्भर हैं। यह निर्भरता सालों-साल बढ़ता जा रहा है। हिन्दोस्तानी निर्यातों में चीन से आयातित वस्तुओं का हिस्सा, जो 2009 में 2 प्रतिशत से कम था, अब बढ़कर 2019 में 34 प्रतिशत हो गया था।

हिन्दोस्तान में चल रही बहुत सारी बड़ी-बड़ी ढांचागत परियोजनाओं में चीनी कंपनियां सामग्रियां और निर्माण सेवाएं प्रदान कर रही हैं। नए बिजली संयंत्रों का लगभग एक-तिहाई सामान चीन से आयात किया जाता है। चीनी पूंजीगत वस्तुओं की कीमतें अक्सर अमरीकी या यूरोपीय सप्लायरों की चीजों की कीमतों के आधे से भी कम होती हैं।

100 से अधिक चीनी कंपनियां हिन्दोस्तान में कार्यरत हैं। इनमें कुछ प्रमुख कंपनियां हैं साइनोस्टील, शोउगैंग इंटरनेशनल, बओशान आयरन एंड स्टील, सेनी हैवी इंडस्ट्री, चोंगकिंग लिफान इंडस्ट्री, चाइना डोंगफैंग इंटरनेशनल और साइनो हाइड्रो कारपोरेशन। हमारे मोबाइल हैंडसेट के बाजार का 50 प्रतिशत हिस्सा तीन चीनी टेलिकॉम कंपनियों – सिओमी, विवो और ओप्पो – के हाथों में है।

चाइना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर, जो 10 करोड़ डॉलर से अधिक पूंजीनिवेश का हिसाब रखता है, के अनुसार 2007-19 के दौरान चीनी कंपनियों ने हिन्दोस्तान में 14.5 अरब डॉलरों का निवेश किया। इनमें से अधिकतम निवेश ऊर्जा, प्रौद्योगिकी (टेलीकम्युनिकेशन), उपभोग की वस्तुओं, धातुओं और रियल एस्टेट में हैं।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, चीनी पूंजीनिवेश को आकर्षित करने वाले मुख्य क्षेत्र हैं ऑटोमोबाइल, बिजली के सामान, किताबों की छपाई और इलेक्ट्रॉनिक्स।

चीनी पूंजीपतियों ने हिन्दोस्तानी स्टार्ट-अप कंपनियों में 1 अरब डॉलर (7,500 करोड़ रूपए) का निवेश किया है। चीन के सबसे बड़े तथा एशिया के सबसे धनवान पूंजीपतियों में से एक, जैक मा की अली बाबा कंपनी ने पेटीएम, बिग बास्केट और जोमाटो में भारी पूंजीनिवेश कर रखा है। एक और चीनी कंपनी, टेनसेंट ने ओला, फ्लिपकार्ट और बयिजू में भारी पूंजीनिवेश कर रखा है।

हिन्दोस्तानी बड़े पूंजीपतियों ने भी चीन में काफी पूंजीनिवेश किया है। इनमें शामिल हैं अगुवा आई.टी. कंपनियां जैसे कि इनफोसिस, टी.सी.एस., एपटेक, विप्रो, एन.आई.आई.टी. और महिन्द्रा, तथा बड़ी-बड़ी दवाई कंपनियां जैसे कि डा। रेड्डीज लैबोरेट्रीज, औरोबिन्दो फार्मा और मैट्रिक्स फार्मा। 2017 में सी.आई.आई. के किये गए सर्वेक्षण में यह पाया गया था कि 54 हिन्दोस्तानी कंपनियां चीन में, विनिर्माण, स्वास्थ्य सेवा, आई.टी. और वित्त सेवाओं में कार्यरत हैं। सर्वेक्षण से यह भी जाना गया कि इनमें से ज्यादातर कंपनियां चीन में अपना पूंजीनिवेश बढ़ाने वाली हैं।

यह स्पष्ट है कि हिन्दोस्तान और चीन को आपस में बाँधने वाले, ढेर सारे व तरह-तरह के आर्थिक हित हैं। दोनों देशों की आपसी आर्थिक निर्भरता बढ़ रही है। चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का हिन्दोस्तान में उत्पादन और निर्यातों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हिन्दोस्तानी उत्पादों की कीमतें बहुत बढ़ जायेंगी।

हिन्दोस्तानी दवाई कंपनियों ने कहा है कि चीन से आयातों की जांच करने के सरकार के फैसले की वजह से, कविड-19 के मरीजों का इलाज करने के लिए जरूरी दवायियों को बनाने में देर हो सकती है, जिसका नकारात्मक असर होगा। ऑटोमोबाइल कॉम्पोनेन्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स ने चिंता प्रकट की है कि आयातों के कस्टम क्लीयरेंस में हो रही देरी के कारण, उनका मैन्युफैक्चरिंग का काम रुक रहा है।

हिन्दोस्तान और चीन के आपसी झगड़े को और भड़काना हमारे दोनों देशों के हित में नहीं है। सभी गतिविधियों से यह स्पष्ट हो रहा है कि अमरीकी साम्राज्यवाद अपने हितों को बढ़ावा देने के लिए, हिन्दोस्तान और चीन के बीच में विवाद खड़ा करने की पूरी कोशिश कर रहा है।

अमरीका दुनिया के मामलों में अपना प्रभुत्व बरकरार रखना चाहता है। इसलिए वह एशिया की इन दोनों बड़ी ताकतों के बीच में आपसी झगड़ा भड़काना चाहता है, ताकि दोनों कमजोर हो जायें और इस उप-महाद्वीप पर अमरीका का सम्पूर्ण वर्चस्व हो। हिन्दोस्तान को अमरीकी साम्राज्यवाद के इस जाल में नहीं फंसना।

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