प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसौट व दुर्दशा के विरोध में हिमाचल के लोग

हिमाचल प्रदेश के मुख्य प्राकृतिक संसाधन उसकी नदियां और जंगल हैं। जैसा कि दूसरे पहाड़ी राज्य, उत्तराखंड, में है, अपने देश के पूंजीपति हिमाचल की नदियों को, बिजली उत्पादन के और दूसरे इस्तेमाल के ज़रिये विशाल मुनाफे के संभावित स्रोत की तरह देखते हैं।

हिमाचल प्रदेश के मुख्य प्राकृतिक संसाधन उसकी नदियां और जंगल हैं। जैसा कि दूसरे पहाड़ी राज्य, उत्तराखंड, में है, अपने देश के पूंजीपति हिमाचल की नदियों को, बिजली उत्पादन के और दूसरे इस्तेमाल के ज़रिये विशाल मुनाफे के संभावित स्रोत की तरह देखते हैं।

हिमाचल प्रदेश की नदियों पर बहुत सी बड़ी और छोटी पनबिजली परियोजनायें आ रही हैं। सतलुज नदी पर 135 से भी अधिक प्रकल्पों की योजना है जो या बनायी जा रही हैं या चालू हो चुकी हैं। इसमें देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का नाप्था झाकरी हाईड्रो इलेक्ट्रिक प्रकल्प (एच.इ.पी.), और करचम वांग्टू में स्थित निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा पनबिजली प्रकल्प शामिल हैं। इन परियोजनाओं के कार्यस्थलों में, जिनके घर उजाड़ दिये गये हैं और जिनकी रोजीरोटी छीनी गयी है, वे अपने आप को संगठित कर रहे हैं ताकि लोगों के संसाधनों की बेरोकटोक हो रही डकैती का तथा उनकी रोजीरोटी व पर्यावरण के हो रहे विनाश का वे पर्दाफाश कर सकें। लोगों का डर है कि जब ये 135 परियोजनायें पूरी होंगी, तब सतलुज नदी एक के बाद एक प्रकल्पों के प्रपात में अधिकांश तौर पर गायब हो जायेगी।

एस.जे.वी.एन.एल., जो एक ऐसा निगम है जिसके तहत ये सारी परियोजनायें बनाई जा रही हैं, उसने हिन्दोस्तानी वन शोधन व शिक्षा परिषद को नियुक्त किया है कि वे सतलुज की घाटी में इन परियोजनाओं के संचयी प्रभाव का अध्ययन करे। इस अध्ययन में वनस्पति, इस इलाके की लुप्त हो रही प्रजातियां, मछलियों के प्रजनन स्थल, प्रभावित मानव बस्तियों तथा जंगलों की सूची तैयार की जायेगी। ऐसा कहा जा रहा है कि ऐसे अध्ययनों के आधार पर तथा मानव जीवन पर हो रहे गलत असर को ठीक करने वाले कदमों के आधार पर ही पर्यावरण निर्बाधन दिया जायेगा। परन्तु हिमाचल के लोग इन आश्वासनों को सच्चा नहीं मान रहे हैं। पहले के अनुभव उन्हें सिखाते हैं कि राज्य ऐसे संगठनों से अध्ययन करवाता है और साफ आदेश देता है कि परियोजनायें स्वीकार हो जानी चाहिये।

लाहौल घाटी में भी, ग्रामवासियों ने अपनी रोजी-रोटी के नष्ट होने तथा बड़े व छोटे पनबिजली प्रकल्पों के ज़रिये अपने संसाधनों की लूट के खिलाफ़ लड़ने के लिये अपने आप को संगठित किया है। 5 जून को 26 गांवों के लोगों ने कीलोंग जिला मुख्यालय के सामने विशाल प्रदर्शन किया।

पिछले पांच वर्षों में इस इलाके में 24 बड़े और छोटे प्रकल्पों को मंजूरी दी गयी है। यह इलाका चेनाब नदी की घाटी में है। यहां पर निजी पूंजीपति कंपनी मॉसर बेयर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड तथा राज्य की कंपनी, हिमाचल प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन (एच.पी.पी.सी.एल.) द्वारा बनाये जा रहे विशाल प्रकल्पों से पारंपरिक जल संसाधनों का सूखना अपेक्षित है। इससे लाहौल घाटी के 26 गांवों के 6000 से भी अधिक लोगों की रोजी रोटी छिन जायेगी। चेनाब नदी पर एच.पी.पी.सी.एल. के 300 मेगावॉट जिस्पा प्रकल्प के जलाशय से गांव के 200 से भी अधिक परिवार विस्थापित होंगे। मॉसर बेयर के दो और एच.पी.पी.सी.एल. के एक आने वाले विशाल प्रकल्प मियार, सेली तथा उदयपुर इलाकों में स्थित हैं।

चेनाब नदी की घाटी लहौल व स्पिति जिलों की अधिकतर ऊंचाई वाले इलाकों में स्थित है। इस इलाके के भू-भाग की विशेषता बहुत ही कमज़ोर तथा आसानी से टूट जाने वाले पर्वत हैं। यहां पर भूस्खलन व बर्फ की चट्टानों के सरकने का ख़तरा रहता है क्योंकि यह भूकंप के ज़ोन-4 में पड़ता है। हिमाचल प्रदेश की सूक्ष्म पनबिजली नीति के अनुसार, किसी भी प्रकल्प पर काम शुरू होने से पहले, प्रभावित गांवों की ग्राम सभाओं (स्थानीय निकायों) की अनुमति जरूरी होती है। परन्तु, अभ्यास में ऐसा नहीं किया जाता है, और प्रकल्प से प्रभावित गांवों के लोगों ने कहा है कि उनसे मशवरा तक नहीं किया गया है।

लाहौल घाटी की तरह, किन्नौर, शिमला, चंबा और कुल्लू जिलों में भी जल संबंधी प्रकल्प आम होते जा रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश के लोग वहां की सम्पत्ति की लूट के बारे में सवाल उठा रहे हैं। यहां से उत्पादित बिजली निजी व सार्वजनिक कंपनियों द्वारा, अधिकतम मुनाफे के लिये दूसरे राज्यों की वितरण कंपनियों को बेची जाती है। हिमाचल प्रदेश के लोगों को इससे कोई फायदा नहीं होता। कांग्रेस व भाजपा जैसी पार्टियों के नेताओं ने राज्य के संसाधनों को पॉवर, सीमेंट तथा दूसरे उद्योगों के बड़े पूंजीपतियों को बेच कर और लूट का हिस्सा पाकर, अपार धन कमाया है।

अपने देश में बहुत से राष्ट्र, राष्ट्रीयतायें तथा लोग रहते हैं, जो अपने इलाके में सदियों से रहते आये हैं और उन्होंने अपनी-अपनी संस्कृति विकसित की है। परंपरागत प्राकृतिक संसाधनों पर इन सभी को अधिकार है कि वे फैसला लें कि उनका इस्तेमाल कैसे हो। वर्तमान हिन्दोस्तानी संघ में बड़े पूंजीपति केन्द्रीय राज्य व्यवस्था पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल करके लोगों के और पूरे देश के प्राकृतिक संसाधनों को लूटते हैं। हर एक राष्ट्र, राष्ट्रीयता और लोगों के अधिकारों में, अपने संसाधनों के इस्तेमाल पर नियंत्रण रखने का अधिकार अवश्य शामिल है। अत: सबसे बड़े पूंजीपतियों और उनके इशारों पर नाचने वाली केन्द्र सरकार द्वारा जन संसाधनों की लूट का विरोध करना, हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिये पूरी तरह से जायज है।

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