कातिलों का सहयोग करने के लिए हिन्दोस्तानी राज्य की निंदा करें!

26 जून को अमरीका की एक अदालत ने यह फैसला जारी किया कि अमरीका स्थित यूनियन कारबाइड कारपोरेशन (यू.सी.सी.) और उसके भूतपूर्व प्रधान वारेन एंडरसन भोपाल में छोड़े गये जहरीले अवशेषों के द्वारा हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। न ही उन्हें सफाई करने का आदेश दिया जा सकता है, ऐसा अदालत ने कहा।

26 जून को अमरीका की एक अदालत ने यह फैसला जारी किया कि अमरीका स्थित यूनियन कारबाइड कारपोरेशन (यू.सी.सी.) और उसके भूतपूर्व प्रधान वारेन एंडरसन भोपाल में छोड़े गये जहरीले अवशेषों के द्वारा हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। न ही उन्हें सफाई करने का आदेश दिया जा सकता है, ऐसा अदालत ने कहा।

2-3 दिसम्बर, 1984 को भोपाल में यूनियन कारबाइड इंडिया लिमिटेड (यू.सी.आई.एल.) संयंत्र से मिथाइल आइसोसायनेट और अन्य जहरीले गैसों के मिश्रण के रिसाव की वजह से 5 लाख से अधिक लोगों पर भारी असर पड़ा। उसके बाद अब 28 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। संयंत्र में तथा उसके आस-पास रहने वाले 35,000से ज्यादा लोग गैस संबंधी बीमारियों से मर गये हैं, जबकि लगभग 3लाख लोग आजीवन लाइलाज बीमारियों के शिकार बने हुए हैं। इनमें से बहुत से लोग संयंत्र में काम करने वाले मजदूर थे, जो संयंत्र के आस-पास की बस्तियों में रहते थे।

इस त्रासदी के प्रति हिन्दोस्तानी राज्य की प्रतिक्रिया बेहद निष्ठुर रही है। केन्द्र और राज्य में आयी विभिन्न सरकारों ने इन 28 वर्षों में जो ढेर सारे आश्वासन दिये और वादे किये थे, उन सभी का हनन किया गया है। उस घातक रात से जिंदा बच निकलने वाले लोग आज भी पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा और पुनर्वास की मांग को लेकर संघर्ष करते आ रहे हैं। जिनके प्रियजन या परिवार के कमाने वाले मरे, वे आज भी उस मुआवजें के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिसका वादा किया गया था। उस समय से लेकर आज तक उन्हें द्वार-द्वार खटखटाने पड़े हैं। विधवाओं को अभी तक उनका पेंशन नहीं मिला है। राज्य ने अभी भी घटनास्थल से जहरीले अवशेषों को नहीं हटाया है और भोपाल वासियों को स्वच्छ पानी दिलाने का कोई प्रबंध नहीं किया है।

हिन्दोस्तानी राज्य अपनी जनता की उपेक्षा करके, हिन्दोस्तानी और विदेशी साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के हितों की हिफाजत करता है। इसका सबूत इस बात में है कि हिन्दोस्तानी राज्य ने यहां स्थित मुख्य कंपनी यूनियन कारबाइड इंडिया लिमिटेड या अमरीका स्थित कंपनी यूनियन कारबाइड कारपोरेशन को उस जनसंहार के लिये दोषी नहीं ठहराया। बल्कि हिन्दोस्तानी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि यूनियन कारबाइड कारपोरेशन (यू.सी.सी.) का तत्कालीन प्रधान, वारेन एंडरसन हिन्दोस्तान छोड़ कर भाग सके। यू.सी.सी. का प्रधान गैस कांड के ठीक बाद, ''क्षति का जायज़ा लेने'' का कारण बताकर, भोपाल गया था। वहां उसे ''गिरफ्तार'' किया गया था। भोपाल व पूरे देश के लोग जो गुस्से में थे और यह मांग कर रहे थे कि यू.सी.सी. और यू.सी.आई.एल. को दोषी ठहराया जाए, उन्हें शांत कराने के लिए यह एक बड़ा नाटक था। परंतु उसे कुछ ही घंटों में जमानत पर रिहा किया गया और देश से भागने की इज़ाज़त दी गई। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और गृहमंत्री नरसिंह राव के आदेशों से किया गया।

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित और देश तथा विदेश में उनके अनगिनत समर्थक यू.सी.सी. और यू.सी.आई.एल. को सज़ा देने तथा मुआवजा के लिये अपना संघर्ष नहीं छोड़ा है। समय-समय पर हिन्दोस्तानी सरकार को कुछ-कुछ घोषणाएं करके इस विषय को उठाना पड़ा है, परन्तु इन घोषणाओं पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे राज्य का जनविरोधी चरित्र फिर स्पष्ट होता है।

2002 में सरकार ने यह घोषणा की थी कि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के संबंध में उसने यूनियन कारबाइड के भूतपूर्व प्रधान वारेन एंडरसन के खिलाफ़ प्रत्यर्पण की कार्यवाही शुरू करने का फैसला किया है। 2010 में ''त्रासदी पर सरकार को सलाह देने के लिये'' गठित मंत्री समूह ने यह दावा किया था कि ''हमने सभी मुद्दों को उठा लिया है – मुआवजा, कानूनी मामले, वारेन एंडरसन का प्रत्यर्पण, हिन्दोस्तानी सरकार के पास उपलब्ध कानूनी रास्ते और पुन: मध्यस्थता तथा स्वास्थ्य-संबंधी मामले''!

एंडरसन का प्रत्यर्पण और मुकदमा अब तक एक खोखला वादा ही रहा है। अमरीका में हाल में जारी किये गये अदालती फैसले से यह सुनिश्चित हुआ है कि यू.सी.सी. इस पूरे मामले से अपने हाथ धो सकती है। डाव केमिकल्स, जिसने 2001 में यू.सी.सी. का टेकओवर किया था, उसने 2006 में हिन्दोस्तानी सरकार से यह आश्वासन हासिल किया कि भोपाल के जनसंहार के लिये उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जायेगा। इससे पहले यू.सी.सी. ने जहरीले अवशेषों को साफ करने की कोई भी जिम्मेदारी उठाने से इंकार किया था। जांच से पता चला है कि यू.सी.आई.एल. ने, यू.सी.सी. की सहमति के साथ, कई सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया था, क्वालिटी कन्ट्रोल और प्रशिक्षण तरीकों में काफी लापरवाही की थी, कि उसी संयंत्र से पहले भी मौत और चोट पहुंचाने वाली कई दुर्घटनाओं की रिर्पोटें मिली थीं, परन्तु इन्हें नज़रंदाज किया गया था।

त्रासदी के बाद यूनियन कारबाइड से मुआवजे के लिये पीड़ितों तथा घायलों के परिवारों की मांगों के जवाब में हिन्दोस्तानी सरकार ने यह दावा किया था कि वह उन सभी के पक्ष में काम करेगी और अपने अधिकार का प्रभाव डालकर कंपनी से मुआवजे के लिये मुकदमा चलायेगी। परन्तु 1989 में लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद एक समझौता हुआ जिसके अनुसार यूनियन कारबाइड सिर्फ 47 करोड़ डालर देकर ही बच निकला। अनेक संगठनों ने कहा है कि यह समझौता हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा पीड़ितों और उनके परिवारों के हितों के साथ विश्वासघात था और इसके लिये हिन्दोस्तानी सरकार की निंदा की गई है। इस समझौते के अनुसार बीमार पीड़ितों को 25हजार रुपये दिये गये और मृतकों के सबसे नजदीकी परिजन को 1लाख रुपये दिये गये। जैसा कि रिपोर्ट किया गया है, अनेक मामलों में यह मुआवजा अभी भी लोगों तक नहीं पहुंचा है।

जायज़ मुआवजे के लिये पीड़ितों के परिवारों की मांगों के चलते, हिन्दोस्तानी सरकार ने दिसम्बर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज की जिसमें सरकार ने पीड़ितों की असली संख्या के पूर्व संख्या से ज्यादा होने के आधार पर मुआवजे में वृध्दि की मांग की। परन्तु यह जनता के गुस्से को ठण्डा करने तथा अपने अपराधों पर पर्दा डालने की फिजूल की कोशिश थी। यू.सी.सी. ने एक उल्टी याचिका दर्ज की जिसमें उसने दावा किया कि मुआवजा गैस कांड के चार साल के बाद दिया गया था और पीड़ितों की असली संख्या का जायज़ा लेने के लिये सरकार को काफी समय दिया गया था। इस तरह यू.सी.सी फिर बच निकली।

मजदूर एकता लहर भोपाल के कातिलों के साथ केन्द्र और राज्य सरकारों की मिली भगत की निंदा करती है। लोगों में कोई भ्रम नहीं होना चाहिये कि यह पूंजीपतियों की हुक्मशाही चलाने वाला राज्य कभी भी लोगों के हितों की रक्षा करेगा और जन संहार के अपराधियों को सज़ा देगा। सिर्फ मजदूरों और किसानों का राज्य ही यह काम कर सकता है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *