समाचार पत्रों की खबरों के अनुसार, 29 जून, 2012 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स और कोबरा कमांडो यूनिट के लगभग 600 सिपाहियों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में गांव वासियों के समूह पर गोली चलाई, जिसकी वजह से कम से कम 20 गांव वासी मारे गये। इनमें कई बच्चे और वयस्क महिला व पुरुष भी थे। अनेक गांव वासी घायल हुये और सी.आर.पी.एफ. द्वारा जवान लड़कियों के साथ दुष्कर्म भी किया गया।
समाचार पत्रों की खबरों के अनुसार, 29 जून, 2012 को केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स और कोबरा कमांडो यूनिट के लगभग 600 सिपाहियों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में गांव वासियों के समूह पर गोली चलाई, जिसकी वजह से कम से कम 20 गांव वासी मारे गये। इनमें कई बच्चे और वयस्क महिला व पुरुष भी थे। अनेक गांव वासी घायल हुये और सी.आर.पी.एफ. द्वारा जवान लड़कियों के साथ दुष्कर्म भी किया गया।
रिपोर्टों के अनुसार, दक्षिण छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थित गांवों – सिरकेगुडेम, कोठागुडेम और राजुपेंटा – में रहने वाले सैकड़ों आदिवासी किसान 28 जून, 2012 की रात को पारंपरिक बीजपर्व को मनाने की योजना बनाने के लिये इकट्ठे हुये थे। यह बीजपर्व प्रतिवर्ष बीज उगाने से पहले मनाया जाता है। अचानक सुरक्षा बलों ने उन्हें घेर लिया और अंधाधुंध उन पर गोलियां बरसाने लगे। अनेक गांव वासी मारे गये और बहुत से लोग घायल भी हुये। मृतकों की लाशों को एक ट्रक पर लादकर बाहर भेज दिया गया। रातभर सुरक्षा कर्मी महिलाओं और युवतियों से दुष्कर्म करते रहे, घरों को लूटते रहे, गांव वासियों को तड़पाते रहे।
हमेशा की तरह, गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने फौरन मीडिया को कह दिया कि ''मुठभेड़ में तीन माओवादी नेता मारे गये हैं''। उन्होंने दोहराया कि माओवादी देश की सुरक्षा के लिये सबसे बड़े अंदरूनी खतरा है। तथ्य की जांच होने से पहले ही इजारेदार पूंजीपतियों की मीडिया ने सनसनी फैला दी कि ''माओवादियों को सफलतापूर्वक मार गिराया गया है''। परन्तु अनेक स्वतंत्र जांच कर्ताओं ने इस दावे का फौरन खंडन किया है। कत्लेआम के बाद के दिनों में मीडिया ने खूब प्रचार किया कि सुरक्षा बलों ने ''आत्मरक्षा के लिये गोली चलायी थी'' क्योंकि माओवादियों ने उन पर हमला किया था।
मजदूर एकता लहर राज्य के सुरक्षा बलों द्वारा छत्तीसगढ़ में आदिवासी किसानों के इस बेरहम कत्ल और प्रताड़ना की कड़ी निंदा करती है। यह खुलेआम राजकीय आतंकवाद है। राजकीय आतंकवाद का मकसद है मजदूरों, किसानों, आदिवासियों, नौजवानों, महिलाओं तथा अन्य मेहनतकशों द्वारा अपनी रोजी-रोटी और अधिकारों पर बड़े पूंजीपतियों के हमलों के विरोध को कुचलना। यह जानी-मानी बात है कि छत्तीसगढ़ तथा मध्य और पूर्वी हिन्दोस्तान के अन्य राज्यों के खनिज संपन्न इलाकों में बड़ी-बड़ी इजारेदार खनन कंपनियां, राज्यतंत्र की मदद के साथ, वहां के निवासियों की भूमि और अन्य संसाधनों को लूटने की कोशिश कर रही हैं, ताकि वे बेशुमार मुनाफे बना सकें। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहादुरी से इन कोशिशों का विरोध करते आ रहे हैं।
हिन्दोस्तानी राज्य ने पहले बदनाम सलवा जुड़ुम को गठित करके आदिवासियों की एकता को तोड़ने की कोशिश की तथा आदिवासी नौजवानों को अपने ही भाइयों का कत्ल करने को प्रेरित किया। ''नक्सलवादियों को मिटाने'' के नाम पर सलवा जुड़ुम द्वारा हजारों आदिवासी मारे गये। 2009 से हिन्दोस्तानी राज्य ने ''माओवादी खतरे का मुकाबला करने'' के नाम पर ''ऑपरेशन ग्रीन हंट'' का अभियान छेड़ा है। ''ऑपरेशन ग्रीन हंट'' के तहत सुरक्षा बलों और कोबरा जैसे विशेष कमांडो दलों को गांव वासियों को लूटने, बलात्कार करने और कत्ल करने की पूरी छूट दी गयी है। हिन्दोस्तानी राज्य के सुरक्षा बलों ने कई और कातिलाना अभियान चलाये हैं, जैसे कि ''ऑपरेशन हक़'' और ''ऑपरेशन विजय''। इस सबके ज़रिये राजकीय आतंक को खूब बढ़ाया गया है। यह हालिया कत्लेआम भी इसी राजकीय आतंक का हिस्सा है।
छत्तीसगढ़ में इस हालिया कत्लेआम के खिलाफ़ लोगों ने बहुत गुस्सा प्रकट किया है और कुछ कार्यकर्ताओं ने इस कांड की न्यायिक जांच की मांग की है। लेकिन राजकीय आतंकवाद के बहुत से पूर्व कांडों में हमारे लोगों का यही अनुभव रहा है कि हम गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिये राज्य पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। इन जांचों की कार्यवाहियां महीनों या सालों तक खिंचती रहती हैं, ज्यादा से ज्यादा कुछ अफसरों का एक पद से दूसरे पद में बदली कर दिया जाता है परन्तु असली गुनहगारों, यानि राज्य और उसके सुरक्षा बलों, को कभी सज़ा नहीं दी जाती। लोगों के प्रतिरोध को कुचलने की पसंदीदा नीति बतौर राजकीय आतंकवाद बेरोक चलता रहता है।
मजदूर एकता लहरदेश के मजदूरों, किसानों और सभी मेहनतकशों से आह्वान करती है कि राजकीय आतंकवाद के खिलाफ़ एकजुट हों और एक ऐसे नये राज्य के निर्माण के लिये आंदोलन को तेज़ करें, जो सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।