पिछले हफ्ते में जब पाकिस्तान के अंदर से अफगानिस्तान जाने के नाटों के सप्लाई मार्गों को पुन: खोला गया, तो पूरे देश में भारी संख्या में लोग इसका विरोध कर रहे हैं। पिछले नवम्बर में जब पाकिस्तान स्थित चलाला वायु सैनिक अड्डे पर अमरीकी मिसाइल हमले से 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गये थे, तो उसके बाद पाकिस्तान की सरकार ने इन सप्लाई मार्गों को बंद कर दिया था। अमरीका ने उस मिसाइल हमले के लिए न तो पाकिस्ता
पिछले हफ्ते में जब पाकिस्तान के अंदर से अफगानिस्तान जाने के नाटों के सप्लाई मार्गों को पुन: खोला गया, तो पूरे देश में भारी संख्या में लोग इसका विरोध कर रहे हैं। पिछले नवम्बर में जब पाकिस्तान स्थित चलाला वायु सैनिक अड्डे पर अमरीकी मिसाइल हमले से 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गये थे, तो उसके बाद पाकिस्तान की सरकार ने इन सप्लाई मार्गों को बंद कर दिया था। अमरीका ने उस मिसाइल हमले के लिए न तो पाकिस्तान को कोई मुआवज़ा दिया, न ही बीते 7 महीनों तक कोई माफी मांगी। पाकिस्तानी राष्ट्र सभा में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि जब तक अमरीका माफी नहीं मांगता और मानव रहित ड्रोन विमानों द्वारा पाकिस्तानी इलाकों पर बम बरसाना नहीं रोकता, तब तक अफगानिस्तान को जाने वाले नाटो के सप्लाई मार्गों पर यातायात की इजाजत नहीं दी जायेगी।
इस बीच, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने अफगानिस्तान को सप्लाई पहुंचाने के लिए रूस और मध्य एशिया के जरिये कुछ जटिल प्रबंध किये थे। इसमें उन्हें प्रति दिन 10 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त खर्चा हो रहा था, इसलिए उन्होंने कराची के जरिये अफगानिस्तान को सप्लाई पुन: चालू करने के लिए पाकिस्तानी सरकार पर खूब दबाव डाला। अंत में, पिछले हफ्ते अमरीकी विदेश सचिव क्लिंटन ने (अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने नहीं) एक अत्यंत सीमित बयान दिया जिसमें उन्होंने औपचारिकता पूरी करने के लिए ''माफी मांगी'' परंतु अपनी ओर से कोई गलती नहीं मानी। उसके ठीक बाद अफगानिस्तान को सप्लाई के मार्गों पर यातायात शुरू हुआ।
पाकिस्तानी लोगों ने इसे अपने आत्मसम्मान पर एक हमला माना है। लोग बहुत नाराज हैं और बड़ी संख्या में इसका विरोध कर रहे हैं। 9 जुलाई को पाकिस्तानी राष्ट्र सभा के सामने विरोध दर्शाने के लिए, कई पार्टियों और दलों के एक गठबंधन ने दसों हजारों लोगों को इकट्ठा करके,लाहौर से इस्लामाबाद तक ''लोंग मार्च'' जुलूस निकाली। प्रदर्शनकारियों ने अमरीकी साम्राज्यवाद और नाटो के खिलाफ़ नारे लगाये। वक्ताओं ने ऐलान किया कि ''नाटो सप्लाई का पुन: शुरू किया जाना, नाटो और अमरीकी सेनाओं को हथियार भेजना शुरू किया जाना और मुसलमानों का जनसंहार, यह सब हमें मंजूर नहीं है। हम ड्रोन हमलों को और बर्दाश्त नहीं कर सकते। हम इस इलाके में अमरीका और उसके मित्रों की मौजूदगी को और बर्दाश्त नहीं कर सकते।''
राष्ट्र सभा में विपक्ष के नेता चौधरी निसार अली खान ने कहा कि उनके देश से नाटो के सप्लाई मार्गों का पुन: खोला जाना ''पाकिस्तान के लिए बड़ी बेइज्जती है।''
आने वाले दिनों में, पाकिस्तान के कुछ अन्य शहरों, जैसे कि क्वेटा और पेशावर से अफगानिस्तान सीमा तक जलूस निकालने की योजना बनाई जा रही है।
इन प्रदर्शनों से यह जाहिर होता है कि पाकिस्तान के लोग इस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादी प्रसारवादी योजनाओं के साधन बतौर इस्तेमाल किये जाने के खिलाफ़ बहुत क्रोधित हैं। अमरीका की इन योजनाओं की वजह से पाकिस्तान के अंदर व पड़ोस में बड़े पैमाने पर मौत और तबाही हुई है। लोगों को इस बात से बहुत गुस्सा है कि अमरीका पाकिस्तान पर अपना हुक्म चलाने का दबाव डाल रहा है। चलाला वायु सैनिक अड्डे पर हमले के बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा बैठाये गये एक जांच आयोग ने यह पाया है कि वह हमला कोई ''गलती'' नहीं थी, जैसा कि अमरीका दावा कर रहा है, बल्कि वह जानबूझकर किया गया था। प्रदर्शन करने वाले लोग अपने देश के वायुस्थल हनन के खिलाफ़, अपने नागरिकों पर हमलों के खिलाफ़, वजीरिस्तान में निशानों पर बार-बार किये जाने वाले ड्रोन हमलों के खिलाफ, अपने देश की संप्रभुता की हिफाज़त करना चाहते हैं। नाटो सप्लाई मार्गों के खोले जाने के ठीक 3दिन बाद, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने एक ही समय पर तीन ड्रोन हमले किये, जिसमें बहुत से लोग मारे गये। यह साम्राज्यवादियों के घमंड को दर्शाता है।
साम्राज्यवादी मीडिया और साम्राज्यवादी दलाल यह प्रचार करते हैं कि पाकिस्तान में हो रहा जन-विरोध ''उग्रवादियों'' और ''आतंकवादियों'' का काम है, ताकि उन्हें बदनाम किया जा सके। लेकिन सच तो यह है कि पाकिस्तान के अधिक से अधिक लोग अमरीका और नाटो के साथ कोई सहकार्य नहीं चाहते हैं और यह बढ़ते जन-विरोध से स्पष्ट होता है। अमरीकी साम्राज्यवाद और नाटो के खिलाफ़ पाकिस्तान में चल रहा जन प्रतिरोध अत्यंत जायज़ है।