दिल्ली की बिजली दरों में वृध्दि, लोगों की जीविका पर क्रूर हमला है!

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति का बयान, 10 जुलाई 2012

26 जून को दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डी.ई.आर.सी.) ने दिल्ली के घरेलू उपभोक्ताओं की बिजली दर सारणी में 25 से 27 प्रतिशत की वृध्दि की घोषणा की। एक वर्ष से भी कम समय में दिल्ली के निवासियों को प्रति यूनिट बिजली के लिये 65 प्रतिशत अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसके अलावा, मासिक स्थायी भुगतान में भी 33 प्रति

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति का बयान, 10 जुलाई 2012

26 जून को दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डी.ई.आर.सी.) ने दिल्ली के घरेलू उपभोक्ताओं की बिजली दर सारणी में 25 से 27 प्रतिशत की वृध्दि की घोषणा की। एक वर्ष से भी कम समय में दिल्ली के निवासियों को प्रति यूनिट बिजली के लिये 65 प्रतिशत अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसके अलावा, मासिक स्थायी भुगतान में भी 33 प्रतिशत की वृध्दि की गयी है।

जबकि दिल्ली निवासियों की बिजली की दरें बढ़ाई गयी हैं, साथ ही उन्हें अनियमित और लम्बे पॉवर कट भी झेलने पड़ रहे हैं। हजारों मेहनतकश लोग पॉवर कट की वजह से असहनीय गर्मी और नींद के बिना रातें बिताने के विरोध में, अपने-अपने इलाकों में सड़कों पर उतरे हैं। लोग इतने गुस्साये हैं कि उन्होंने प्रमुख महामार्गों पर भी चक्का जाम किया है।

जब दस वर्ष पहले, दिल्ली में बिजली वितरण का निजीकरण शुरू किया गया था, तब प्रचार किया गया था कि सरकारी दिल्ली बिजली सप्लाई उपक्रम (डेसू) में अनुत्पादकता की वजह से दिल्ली के उपभोक्ताओं को उचित दाम पर और पर्याप्त मात्रा में और भरोसेमंद बिजली आपूर्ति नहीं होती है। इसके समाधान के लिये बिजली वितरण को निजी हाथों में सौंपने की वकालत की गयी थी। निजीकरण की वकालत करने वालों ने दावा किया था कि व्यवस्था में कार्यकुशलता बढ़ाने से दिल्ली के उपभोक्ताओं, दिल्ली के मेहनतकश परिवारों को फायदा होगा।

उस वक्त भी मज़दूरों के संगठनों और शहर के निवासियों ने अपनी आवाज उठाई थी कि सभी परिवारों के खरीदने योग्य दामों पर बिजली उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी से दिल्ली सरकार मुक्त नहीं हो सकती। दिल्ली सरकार ने लोगों को आश्वासन दिया था कि उनके हित का बचाव तथाकथित स्वतंत्र प्राधिकरण, डी.ई.आर.सी. करेगा।

आज, जिन्दगी की सच्चाई ने निजीकरण के समर्थन में किये गये झूठे प्रचार का पूरी तरह पर्दाफाश कर दिया है। दिल्ली की बिजली सप्लाई बेहद खराब है जिसमें सबसे गरमी के मौसम में लम्बे-लम्बे समय तक पॉवर कट होते हैं, जब लोगों को बिजली की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इसके साथ ही लोगों को अत्याधिक ऊंची दरों पर बिजली का उपभोग करना पड़ रहा है।

लोगों को इतनी ऊंची दर सारणी पर बिजली का भुगतान क्यों कराया जा रहा है? इसका कारण है कि प्रसारण और वितरण के अपने नुकसान को कम करने के बाद, अब टाटा और अंबानी की इजारेदार निजी कंपनियां राजधानी में बिजली बेच कर अपने मुनाफों को अधिकतम करने के लिये उतावले हैं।

ओडीशा, जिस राज्य में सबसे पहले बिजली का निजीकरण किया गया था, वहां का अनुभव, दिल्ली और अंतर्राष्ट्रीय अनुभव दिखाता है कि बिजली वितरण के निजीकरण से लोगों को फायदा नहीं होता है। अनिवार्यत: उन्हें या तो बिजली के बहुत ऊंचे दाम देने पड़ते हैं या बिजली उपभोग में कटौती करनी पड़ती है। बिजली पर नियंत्रण पाने वाली निजी कंपनियों को ही फायदा होता है। शुरुवाती ढांचे में परिवर्तन की अवधि के बाद उन्हें अधिकतम मुनाफा मिलने लगता है।

डी.ई.आर.सी. के एक ''स्वतंत्र प्राधिकरण'' होने के बेइमान दावे का पर्दाफाश खुद जीवन का अनुभव करता है। लोगों को बताया गया था कि डी.ई.आर.सी. सभी ''साझेदारों'', पूंजीपतियों का, जो बिजली बेचते हैं और मेहनतकश लोगों का, जो बिजली खरीदते हैं, दोनों के हित की रक्षा करेगा। जब पूर्व डी.ई.आर.सी. के अध्यक्ष, श्री बिजेंदर सिंह ने बिजली की दरों में तकरीबन 25 प्रतिशत की कटौती का आदेश दिया था, चूंकि प्रसारण व वितरण में नुकसान में कमी हुयी थी, तब दिल्ली सरकार ने तुरंत उसके आदेश को रोका। उसकी जगह एक नया अध्यक्ष लाया गया जिसने अगस्त 2011में 22 प्रतिशत वृध्दि का आदेश दिया। इससे साफ दिखता है कि न तो नियामक सरकार से आजाद है और न ही दिल्ली सरकार और नियामक बड़े पूंजीपतियों के हितों से आजाद हैं।

डी.ई.आर.सी. नामक तंत्र बनाने से इजारेदार पूंजीपतियों और उनकी पार्टियों को ही फायदा होता है। उदाहरण के लिये, दिल्ली सरकार के कमान में कांग्रेस पार्टी डी.ई.आर.सी. के तथाकथित आज़ाद होने की आड़ में छुपती है, कि बिजली की आपूर्ति व दरों की समस्या के लिये अब लोग सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं। यह एक तंत्र है जो लोगों में भ्रम फैलाता है कि कौन बिजली की दरों को तय करता है। लोग एक जगह से दूसरी जगह भटकते हैं जबकि बड़े पूंजीपति अपना मुनाफा समेटते हैं।

निजीकरण से सार्वजनिक चीजें, विक्रय वस्तुओं में बदल जाती हैं, जिन्हें फिर इजारेदारी कीमतों पर बेचा जा सकता है। बिजली के निजीकरण का असली मकसद एक सामाजिक सेवा को, इजारेदार पूंजीपतियों के लिये एक फायदे के कारोबार में बदल देना है। इसका अवश्यंभावी नतीजा है कि लोगों से ज्यादा से ज्यादा दरों से वसूली ताकि निजी कंपनियों का अधिकतम मुनाफा सुनिश्चित हो।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की दिल्ली इलाका समिति, दिल्ली के कड़ी मेहनत करने वाले लोगों और परिवारों को बुलावा देती है कि बिजली पर्याप्त मात्रा में, खरीदने योग्य दरों पर, पाने के अपने अधिकार की सुरक्षा में एकजुट हों। चलो हम इस नज़रिये के साथ अपने अधिकारों के लिये लड़ें, कि फैसले लेने का अधिकार मेहनतकश लोगों को अपने हाथों में लेना होगा, ताकि अर्थव्यवस्था उनके हित में चले। चलो हम एक आवाज़ से मांग करें :

हाल में की गयी बिजली दरों की वृध्दि तुरंत वापस लो;

बिजली वितरण का निजीकरण वापस लो; और

दिल्ली सरकार को बिजली वितरण की जिम्मेदारी लेनी होगी और जवाबदेही का एक आधुनिक तंत्र प्रस्थापित करना होगा जिसमें लोगों की समितियां व सामाजिक लेखा परीक्षण शामिल हों – ताकि शहर के सभी निवासियों के लिये भरोसेमंद और पर्याप्त मात्रा में बिजली की सप्लाई सुनिश्चित हो। 

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