कड़ाके की गर्मी में, पूरे के पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में, लोगों को पानी की अत्याधिक कमी सहनी पड़ रही है। पानी की कमी इक्का-दुक्का जगह सीमित नहीं है बल्कि पूरे शहर में व्यापक है और ज्यादा गंभीर होती जा रही है। बहुत से अवासीय इलाकों में लोग मांग करने के लिये सड़कों पर उतर रहे हैं कि सरकार लोगों की इस मौलिक जरूरत को पूरा करे।
कड़ाके की गर्मी में, पूरे के पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में, लोगों को पानी की अत्याधिक कमी सहनी पड़ रही है। पानी की कमी इक्का-दुक्का जगह सीमित नहीं है बल्कि पूरे शहर में व्यापक है और ज्यादा गंभीर होती जा रही है। बहुत से अवासीय इलाकों में लोग मांग करने के लिये सड़कों पर उतर रहे हैं कि सरकार लोगों की इस मौलिक जरूरत को पूरा करे।
20 जून को दक्षिणी अमरीका के रिओ द जनेरो शहर में पर्यावरण को बचाने के लिये और पानी की कमी पर चर्चा करने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ का रिओ पृथ्वी शिखर सम्मेलन 2012 संपन्न हुआ है। जब रिओ में पृथ्वी शिखर सम्मेलन की शुरुवात हो रही थी तभी दिल्ली में अधिकारों के बचाव में काम करने वाले अनेक कार्यकर्ता, गैर सरकारी संगठन तथा ट्रेड यूनियन ''पानी अधिकार'' अभियान की शुरुवात करने के लिये एक साथ आये। दिल्ली में जमा हुये लोगों ने घोषणा की कि पानी का अधिकार जीवन के लिये एक मौलिक अधिकार है और इसका वितरण निष्पक्षता से होना चाहिये। उन्होंने दिल्ली जल बोर्ड (डी.जे.बी.) द्वारा पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.) के ज़रिये निजीकरण की शुरुवात करने की कड़ी निंदा की।
लोगों की यह प्रतिक्रिया तब आई जब हाल में दिल्ली सरकार ने निजी कंपनियों को शहर के तीन इलाकों में पानी आपूर्ति के लिये निमंत्रण दिया, जिसकी सफाई में उसने कहा कि पी.पी.पी. में माल मत्ता दिल्ली जल बोर्ड के पास ही रहेगा। राष्ट्रीय जल नीति 2012 में भी इसी बात पर जोर दिया गया है। नीति में कहा गया है कि राज्य एक नियामक की भूमिका अदा करेगा ''और उचित पी.पी.पी. के जरिये समुदाय और/या निजी क्षेत्र को सेवा प्रदाता की भूमिका अदा करने के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।'' पी.पी.पी. की आड़ में निजी कंपनियों को लाने का यह एक बहुत ही धूर्ततापूर्ण कदम है। इस तरह के कदमों का दूसरे देशों का बहुत ही कटु अनुभव है। सरकार की कोशिश है कि एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन को निजी हाथों में सौंपना ताकि इस सेवा से मुनाफा बनाया जा सके।
अभियानकर्ताओं ने दृढ़ निश्चय किया कि पानी के मौलिक अधिकार के लिये वे संघर्ष करेंगे। प्रधान मंत्री को एक खुले पत्र में उन्होंने मांग की कि दिल्ली सरकार बिना किसी रुकावट के डब्ल्यू.एच.ओ. की प्रति व्यक्ति 120 लिटर की सिफारिश के आधार पर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करे। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की ''अनाधिकृत'' बस्तियों को भी उचित व न्यायसंगत पानी आपूर्ति होना चाहिये।
मज़दूर एकता लहर अभियानकर्ताओं की मांगों का समर्थन करती है और शहर के सभी मेहनतकश लोगों को आह्वान देती है कि किसी भी बहाने पानी आपूर्ति व प्रबंधन को निजी हाथों में सौंपने के विरोध में और सभी आवासीय बस्तियों में उचित और न्यायसंगत तौर पर पानी आपूर्ति की मांग के लिये संघर्ष तेज करें।