हंपी एक्सप्रेस हादसा : समस्या की जड़ अभी भी मौजूद!

22 मई को सुबह 3 बजकर 10 मिनट पर हुबली से बैंगलुरू जा रही गाड़ी नं. 16591 हंपी एक्सप्रेस पेनुकोंडा रेलवे स्टेशन पर खड़ी एक मालगाड़ी से जा टकराई। इस ट्रेन दुर्घटना में 16लोग मारे गये और 50 जख्मी हुए।

22 मई को सुबह 3 बजकर 10 मिनट पर हुबली से बैंगलुरू जा रही गाड़ी नं. 16591 हंपी एक्सप्रेस पेनुकोंडा रेलवे स्टेशन पर खड़ी एक मालगाड़ी से जा टकराई। इस ट्रेन दुर्घटना में 16लोग मारे गये और 50 जख्मी हुए।

रेल प्राधिकरण ने दुर्घटना की जांच, रेलवे सुरक्षा आयुक्त, दक्षिणी सरकल के हाथ सौंपी, जिसकी स्वयं मानव जीवन और संपत्ति के नुकसान के लिए जवाबदेही है। लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और स्टेशन मास्टर बर्खास्त कर दिये गये। उन आधारभूत तथ्यों पर पर्दा डाल दिया गया,जिसकी गर्त में इस तरह की दुर्घटनाएं होती हैं।

इस दुर्घटना के निम्नलिखित आधारभूत तथ्यों पर ध्यान देना जरूरी है, जिन पर आल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन सहित अनेक रेल श्रमिक संगठनों ने पिछले कई वर्षों से रेल मंत्रालय के ध्यान को आकर्षित करने की कोशिश की है।

सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक डब्ल्यूडीपी-4लोंग हुड लीडिंग इंजन का परिचालन

डब्ल्यूडीपी-4 (वाईड डीजल पैसेंजर-400 बीएसपी), लोंग हुड लीडिंग इंजन, जो पेनुकोंडा दुर्घटना में शामिल है (तस्वीर 1) का परिचालन लोको ड्राईवर पीछे से करता है। इसके विपरीत, डब्ल्यूडीपी-4 शार्ट हुड लीडिंग इंजन (तस्वीर 2), का परिचालन लोको ड्राईवर द्वारा सामने से किया जाता है। डब्ल्यूडीपी-4 लोंग हुड लीडिंग इंजन की लंबाई 21 मीटर होती है। पीछे से परिचालन करने के कारण लोको पायलट को बाएं से दाएं और दाएं से बाएं देखने में 200 मीटर की दूरी की दृश्यता का नुकसान होता है। जहां रेल की पटरियां घुमावदार होती हैं, वहां पर सिग्नल तथा बोर्डों को देखने में, इस दृश्यता में लोको पायलट के लिये गुणात्मक बाधा उत्पन्न होती है। सीकरी कमेटी ने 1980 में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए यह स्वीकार किया था कि रेल दुर्घटनाओं में 87 प्रतिशत योगदान लोंग हुड लीडिंग डीजल इंजन के इस्तेमाल से है। साथ ही साथ, रेलवे अभिकल्प एवं अनुसंधान संगठन (आरडीएसओ) लखनऊ ने भी इस इंजन पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये हैं।

लोको पायलट मानते हैं कि यदि डब्ल्यूडीपी-4 लोंग हुड लीडिंग इंजन की सामान्य गति 100 किलोमीटर/घंटा से घटाकर 40 किलोमीटर/घंटा की जाये तो भविष्य में होने वाली दुर्घटना को रोका जा सकता है।

गुंटकल बेस के लोको पायलटों को 6 दिशाओं में काम करना पड़ता है – बैंगलुरू, शोलापुर, गुंटकल, हुबली, रेनीगुंटा तथा सिकंदराबाद। बैंगलुरू बेस के लोको पायलटों को गुंटकल, अरसीकरे, मैसूर, इरोड तथा चेन्नई की ओर 30 या 40 दिन में एक बार गाड़ी ले जाने का मौका मिलता है। इससे चालक उस रेल रोड पर अभ्यस्त भी नहीं हो पाता है।

लोको पायलटों के काम की अमानवीय हालतें

हंपी एक्सप्रेस गाड़ी पर मौजूद ड्राईवर ने 14 मई से 19 मई तक, लगातार 6रात काम किया था। 20 मई को वह एक रात के लिये आराम करने गया और 21 मई को वह पुन: हंपी एक्सप्रेस की डयूटी पर आ गया।

2 या 3 सेट क्रू को बचाने के लिए रेलवे प्रशासन लोको पायलट को ज्यादा समय तक गाड़ी चलाने के लिए मजबूर करते हैं। रेलवे अभिकल्प एवं अनुसंधान संगठन (आरडीएसओ) ने बहुत पहले सप्ताह में 2 रात ही लगातार काम करने का सुझाव रखा था। इसे रेलवे प्रशासन ने कभी मंजूर नहीं किया। 2004में संसदीय स्टेंडिंग कमेटी ने सुरक्षात्मक दृष्टि से लोको पायलट की डयूटी के लिए 8 घंटे का सुझाव रखा था। इसे भी रेलवे प्रशासन ने मंजूर नहीं किया। जबकि रेलवे का नियम एक सप्ताह में 6 रात लगातार काम करने पर जोर देता है। यह मानवीय क्षमता से बाहर है।

लोको पायलट को महीने में 30 घंटे के 4 विश्राम या फिर 22 घंटे के 5 विश्राम दिये जाते हैं। रेलवे ने इसमें से ज्यादा कठिन, यानि 22 घंटे के 5 विश्राम निर्धारित किये हैं। रेलवे में निर्धारित लोको पायलटों की कुल संख्या 60,000 में से 17,000 पद खाली हैं। इन हालतों में, रेलवे द्वारा लोको पायलटों पर अतिरिक्त समय और काम का बोझ डाला जा रहा है।

स्टेशन मास्टर की भूमिका

पेनुकोंडा स्टेशन पर डयूटी पर तैनात स्टेशन मास्टर को इस दुर्घटना के लिए रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने जिम्मेदार ठहराया है। पेनुकोंडा खामियों से भरा हुआ एक स्टेशन है। इस स्टेशन पर यात्रियों को पैदल ही पटरियां पार करके बाहर निकलना पड़ता है, क्योंकि यहां पर उपरी पार पथ नहीं है, जबकि स्टेशन में यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह अतिआवश्यक है। प्लेटफार्म पर पर्याप्त रोशनी का इंतजाम नहीं है।

स्टेशन मास्टर ने यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखते हुए, रोड नं. 3 को सेट नहीं किया था। यदि हंपी एक्सप्रेस का आगमन रोड नं. 3 पर हो जाता तो यात्रियों को प्लेटफार्म नं. 3 से प्लेटफार्म नं. 1 की ओर से बाहर निकलने के लिये रेल पटरियां पार करनी पड़तीं। स्टेशन मास्टर ने निर्णय लिया कि वह हंपी एक्सप्रेस का प्लेटफार्म नं. 1पर स्वागत करेगा, इसलिए प्लेटफार्म नं. 1के खाली होने तक उसने हंपी एक्सप्रेस को होम सिग्नल पर रोकने की कोशिश की, जिसमें वे असफल रहे।

बीते कुछ सालों से रेल दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। हर रेल दुर्घटना के बाद, लोको पायलट तथा स्टेशन मास्टर को दोषी ठहराया जाता है। समस्या की जड़ को छुपाया जाता है।

सरकार और रेल मंत्रालय, भारतीय रेल को चूस रहे हैं। यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा इनके अजेंडा में नहीं है। लोको पायलटों सहित रेलवे के अन्य श्रमिकों के हजारों-हजारों पद खाली हैं। सुरक्षा बढ़ाने का कोई कदम नहीं लिया जाता है। हर दुर्घटना के बाद सुझाव आता है कि आधुनिक सुरक्षा प्रणाली को लागू किया जाये, लेकिन कुछ नहीं किया जाता है। इसलिए सही मायने में रेल मंत्रालय और रेलवे प्रशासन ही इन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं।

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