विमान चालकों के यूनियन को खत्म करने की एयर इंडिया प्रबंधन की कोशिशों की निंदा करें!
24 जून, 2012 से एयर इंडिया के लगभग सौ विमान चालक – कैप्टेन व फर्स्ट ऑफिसर – जो इंडियन पायलट्स गिल्ड के सदस्य हैं, संसद के सामने अनिश
विमान चालकों के यूनियन को खत्म करने की एयर इंडिया प्रबंधन की कोशिशों की निंदा करें!
24 जून, 2012 से एयर इंडिया के लगभग सौ विमान चालक – कैप्टेन व फर्स्ट ऑफिसर – जो इंडियन पायलट्स गिल्ड के सदस्य हैं, संसद के सामने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। 25 जून, 2012 से 350 से अधिक विमान चालकों ने मुंबई के आज़ाद मैदान पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी एयर इंडिया के विमान चालकों की जायज़ मांगों का समर्थन करती है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी एयर इंडिया के प्रबंधन और नागरिक उव्यन मंत्रालय की कड़ी निंदा करती है, क्योंकि उन्होंने एयर इंडिया के विमान चालकों पर सब तरफा हमले किये हैं, जिनकी वजह से विमान चालकों को उड़ान छोड़कर, दिल्ली की कड़ाके की धूप में और मुंबई की मूसलाधार वर्षा में, भूख हड़ताल पर बैठने को मज़बूर होना पड़ा है। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी यह मांग करती है कि एयर इंडिया के प्रबंधन और नागरिक उव्यन मंत्रालय अपनी नीच मजदूर-विरोधी हरकतों को फौरन रोकें और विमान चालकों की जायज़ मांगों को मानें।
एयर इंडिया के ये 440 विमान चालक इंडियन पायलट्स गिल्ड (आई.पी.जी.) के सदस्य हैं। यह विलयित एयर इंडिया के भूतपूर्व एयर इंडिया भाग के सदस्य हैं। विलयित एयर इंडिया के भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस भाग के विमान चालकों के संगठन का नाम इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसियेशन (आई.सी.पी.ए.) है। एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस को खत्म करके उनका निजीकरण करने की योजना के अनुसार, मनमोहन सिंह सरकार ने 2007 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलयन किया। सरकार ने जानबूझकर इस बात को नजरंदाज़ किया कि इन दोनों विमान कंपनियों में विमान चालकों, केबिन क्रू, इंजीनियर व ज़मीन पर स्थित कर्मचारियों के वेतन व काम की हालतें भिन्न थीं और यह विलयन आसान नहीं होगा। कर्मचारियों के यूनियनों से कभी खुलकर यह बात नहीं की गयी। विलयन के पांच वर्ष बाद, (आई.सी.पी.ए.) इंडियन एयरलाइंस के विमान चालकों की हड़ताल के बाद, मई 2011 में, दोनों भूतपूर्व विमान कंपनियों के कर्मचारियों के नये वेतनमान व विलयन के सवाल की जांच करने के लिये, धर्माधिकारी समिति का गठन किया गया। उस समिति ने कुछ दिन पहले जारी की गई अपनी अनुपूरक रिपोर्ट में यह साफ-साफ माना है कि हर स्तर पर कर्मचारी खुद को इस या उस विमान कंपनी के मानते हैं। इस हालत को बदलने के लिये उसने जो कदम प्रस्तावित किये हैं, वे फासीवादी कदम हैं। उसका यह प्रस्ताव है कि दोनों विमान कंपनियों के कर्मचारियों को ''उद्योग के कायदे'' मानने को बाध्य किया जाये। खास तौर पर विमान चालकों व कैबिन क्रू के लिये उसने यह प्रस्ताव किया है कि ''समाकलन'' सुनिश्चित करने के लिये दोनों विमान कंपनियों के कर्मचारियों को घुमाफिरा कर नियुक्त किया जायेगा। दूसरे शब्दों में, ''समाकलन'' के नाम पर, कुछ कर्मचारी अपनी वरिष्ठता खो बैठेंगे और उनके लिये ''स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति'' लेने की हालत बन जायेगी।
यह जानी-मानी बात है कि एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विमान चालक हमेशा संघर्ष में आगे रहे हैं, सिर्फ अपने अधिकारों की रक्षा के लिये ही नहीं बल्कि अपने संस्थान, विलयित एयर इंडिया को प्रबंधन व सरकार की निजीकरण व परिसमापन की योजनाओं से बचाने के लिये भी। जब-जब एयर इंडिया के विमान चालकों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया है, तब-तब सरकार, एयर इंडिया प्रबंधन और पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया ने विमान चालकों के संघर्ष को बदनाम करने तथा एयर इंडिया के दूसरे कर्मचारियों व एयर इंडिया के बाहर, दूसरे मेहनतकशों को संघर्षरत विमान चालकों के खिलाफ़ कर देने के लिये, शत्रुतापूर्ण प्रचार किया है। इस बार भी ठीक ऐसा ही हुआ है।
आई.पी.जी. के विमान चालकों को संघर्ष का रास्ता क्यों अपनाना पड़ा? इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के विलयन के पांच वर्ष बाद, एयर इंडिया के जो नौजवान विमान चालक फर्स्ट ऑफिसर हैं, उनमें यह डर पैदा हो गया है कि पदोन्नति के मामलों में, उनके साथ भेदभाव किया जायेगा। भूतपूर्व एयर इंडिया के विमान चालकों का यूनियन आई.पी.जी. भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस के विमान चालकों के समान, समयबध्द पदोन्नति के लिये संघर्ष करता रहा है। 3-6 मई, 2012 के दौरान, इस मुद्दे पर आई.पी.जी. और एयर इंडिया के प्रबंधकों के बीच, काफी बातचीत चली। पदोन्नति में समानता के मुख्य मुद्दे पर 6 मई को मोटे तौर पर समझौता हो गया था। आई.पी.जी. के नेताओं ने अपने यूनियन के सदस्यों के साथ इस समझौते पर चर्चा की और उनके बीच में इस समझौते पर सहमति हुई। परंतु अगले दिन, समझौते में भाग लेने वाला प्रबंधक दल अपने वादों से मुकर गया। आई.पी.जी के नौजवान सदस्य, जो ज्यादातर 20-30 की उम्र के फर्स्ट ऑफिसर हैं, इससे बहुत नाराज़ हो गये और उन्होंने आई.पी.जी के सदस्य, अपने 80 कैप्टेनों व कमांडरों से गुस्से में ऐलान कर दिया कि वे अब इसे और बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्हें एयर इंडिया में अपने लिये कोई भविष्य नहीं दिख रहा है। एयर इंडिया में उन्हें कोई सरकार और प्रबंधन जानबूझकर आई.पी.जी. के विमान चालकों को हड़ताल करने को भड़काना चाहते थे, इसीलिये वे अपने आश्वासनों से पीछे हट गये क्योंकि उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि जुझारू विमान चालकों का जवाब क्या होगा। कुछ ही घंटों के अंदर, प्रबंधन ने आई.पी.जी. की “मान्यता रद्द कर दी”, उसके कार्यालयों को बंद कर दिया और विमान चालकों को निलंबित व बरखास्त करना शुरू कर दिया। अब तक, 101 विमान चालकों को निलंबित किया गया है। 7 मई के बाद, प्रबंधन ने आई.पी.जी. के विमान चालकों के साथ कोई बातचीत नहीं की।
इन विमान चालकों को जनवरी से अपना वेतन नहीं मिला है। वे समय पर अवकाश और समय पर वेतन की मांग कर रहे हैं, पर एयर इंडिया के प्रबंधन ने कई वर्षों तक उन्हें इन मुद्दों पर कोई आश्वासन नहीं दिया है। इन लगभग 360 नौजवान फर्स्ट ऑफिसरों ने अपनी उड़ान की डिग्री हासिल करने के लिये लगभग 40-50 लाख के कर्जे लिये हैं। इन्होंने घर, वाहन, आदि के लिये कर्जे लिये हैं। पर इन्हें न तो समय पर वेतन और एलावंस मिल रहे हैं, और न ही एयर इंडिया में इनके लिये वह सुनहरी नौकरी सुनिश्चित है, जिसका सपना देख कर इन्होंने उड़ान के प्रशिक्षण पर निवेश किया था। जबकि एयर इंडिया के अन्य कर्मचारियों को हाल में मार्च के महीने के वेतन मिले थे, आई.पी.जी. के विमान चालकों को हड़ताल का रास्ता चुनने के लिये सज़ा बतौर, ये वेतन भी नहीं दिये गये। अत:, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एयर इंडिया के ये नौजवान विमान चालक अपनी आकांक्षाओं के साथ इस विश्वासघात पर बहुत नाराज़ हैं।
आई.पी.जी. के विमान चालक अपने संघर्ष में एकजुट हैं क्योंकि उन्हें पूरा यकीन है कि उनका संघर्ष जायज़ है। इसी वजह से वे अपने अधिकारों और अपने यूनियन पर प्रबंधन के इन सारे हमलों का सामना कर पाये हैं। हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी यह मांग करती है कि एयर इंडिया प्रबंधन और नागरिक उव्यन मंत्रालय आई.पी.जी. को फौरन पुन: मान्यता दें, निलंबित 101विमान चालकों को वापस लें और विमान चालकों की लंबे अरसे से चली आ रही शिकायतों पर उनके साथ बातचीत शुरू करें।
एयर इंडिया के विमान चालकों का संघर्ष का लंबा अनुभव है। उन्हें पता है कि अपना यूनियन बनाये रखने के अधिकार की हिफ़ाज़त आज उनका मुख्य काम है। उन्होंने यह पक्का इरादा बना लिया है कि जब तक प्रबंधन उनकी जायज़ मांगों को नहीं मानते तब तक वे काम पर वापस नहीं जायेंगे।