अमरीकी साम्राज्यवाद व उसके मित्र देशों द्वारा जन आतंक के हथियारों के प्रयोग की निंदा करें!
बढ़ते तौर पर मानव-रहित विमानों (जिन्हें ड्रोन के नाम से जाना जाता है) द्वारा निशाना बनाये गये विभिन्न देशों पर मौत व विनाश बरसाने की अमरीकी साम्राज्यवाद की नीति के खिलाफ़ विरोध तेज़ हो रहा है। शुरू में इसका इस्तेमाल जासूसी विमान के जैसे किया जाता था, परन्तु बाद में ड्रोन विमा
अमरीकी साम्राज्यवाद व उसके मित्र देशों द्वारा जन आतंक के हथियारों के प्रयोग की निंदा करें!
बढ़ते तौर पर मानव-रहित विमानों (जिन्हें ड्रोन के नाम से जाना जाता है) द्वारा निशाना बनाये गये विभिन्न देशों पर मौत व विनाश बरसाने की अमरीकी साम्राज्यवाद की नीति के खिलाफ़ विरोध तेज़ हो रहा है। शुरू में इसका इस्तेमाल जासूसी विमान के जैसे किया जाता था, परन्तु बाद में ड्रोन विमानों में प्रक्षेपास्त्र लगा कर उन्हें हमला करने के लिये बनाया गया। आने वाले दशक में, संभावित है कि अमरीका ड्रोन विमानों पर खर्चा दुगना कर के 11 अरब डॉलर से भी अधिक कर देगा। इन घातक मशीनों की कमान अमरीकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. के हाथों में है जो इनका संचालन हजारों किलोमीटर दूर, सुरक्षित अमरीकी या दूसरे सैन्य केन्द्रों से करती है।
अफग़ानिस्तान व पाकिस्तान के साथ-साथ सोमालिया और यमन में ड्रोन विमानों से हमले किये जा रहे हैं जहां पर अचानक हुये हमलों में हजारों गैर-सैनिक लोग मारे गये हैं। अनुमान लगाया गया है कि सिर्फ पाकिस्तान में ही, पिछले 8 वर्षों में ड्रोन हमलों में 1715 से 2680 लोगों की मौत हुयी है। परन्तु मृतकों और खास तौर पर घायलों की संख्या की जांच करना असंभव ही है। आम तौर पर आम नागरिकों के घरों को हमलों का निशाना बनाया जा रहा है और बगैर किसी सबूत के आधार पर यह औचित्य दिया जा रहा है कि ये स्थान आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी इस बात का दावा करते हैं कि ड्रोन सुनिश्चितता से निशाने पर वार करता है परन्तु इस बात का कोई लेखा-जोखा नहीं होता कि बम गिरने के वक्त उस स्थान पर निश्चित तौर पर कौन मौजूद था। यह ज्ञात है कि ड्रोन हमलों में महिलाओं और बच्चों सहित पूरे के पूरे परिवार नष्ट हुये हैं। अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान के उन इलाकों के लोग घरों से निकलने से भी घबराते हैं जहां ऐसे हमले हो चुके हैं। उन्हें डर लगा रहता है कि क्या पता अगला बम उन पर ही गिरे। सारांश में, ड्रोन जन आतंक और विनाश के हथियार हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी जिन्होंने इस झूठे आरोप के आधार पर इराक पर हमला किया और सद्दाम हुसैन का कत्ल किया कि उसके पास ''जन विनाश के हथियार'' थे, वही जन आतंक व विनाश के हथियारों का जानबूझकर प्रयोग कर रहे हैं।
यह भी महत्वपूर्ण है कि अनाधिकृत हत्याओं पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रिपोर्टर ने एक रिपोर्ट में अमरीका द्वारा ड्रोन विमानों के इस्तेमाल में ''आकस्मिक बढ़ोतरी'' पर चिंता व्यक्त की है। ऐसा तब किया गया जब पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान, जहां सबसे ज्यादा ड्रोन हमले हुये हैं, दोनों ने ड्रोन हमलों की कड़ी निंदा की। मई के महीने में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने घोषणा की थी कि ''गैरकानूनी हमले (हमारी) संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन हैं और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना है'', जबकि मार्च में पाकिस्तानी मजलिस ने सर्वसम्मति से पाकिस्तान के इलाके में ड्रोन हमलों को रोकने की मांग की थी। अफग़ानिस्तान के प्रधान मंत्री, हमीद करजई ने भी ड्रोन हमलों में गैर-सैनिकों की हत्याओं का विरोध किया है। उन्होंने कहा है कि ''अगर अफग़ान लोगों का जीवन ही सुरक्षित नहीं है तो (अमरीका के साथ) रणनैतिक साझेदारी का कोई मतलब ही नहीं है।'' सबसे हाल में, अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन ने ड्रोन हमलों की विस्तृत जानकारी की मांग करते हुये एक मुकदमा दायर किया है, परन्तु ओबामा सरकार ने ''राष्ट्रीय सुरक्षा'' का बहाना लेकर जानकारी देने से इनकार कर दिया है।
''आतंक के खिलाफ़ जंग'' के बहाने बढ़ते ड्रोन हमले, अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा, संप्रभुता के सिध्दांतों या अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संधियों या युध्द आचरण की संधियों, जिनके लिये मानवता ने आधुनिक काल में बहुत जोर का संघर्ष किया है, इनसे निरंकुश होकर दुनिया भर में अपनी सैनिक कार्यवाइयों को बढ़ाने का एक तरीका है। इन सिध्दांतों व संधियों को अमरीका सहित, दुनिया के अधिकांश देशों ने माना है और इनका मकसद है कि देशों की संप्रभुता की रक्षा हो सके और मनमाने बल प्रयोग के शिकार लोगों को न्याय सुनिश्चित हो सके। परन्तु हम देख रहे हैं कि अमरीका व दूसरे देश ढिठाई से ड्रोन हमले कर रहे हैं और वे उन देशों को सूचना तक नहीं देते – जबकि उन देशों की संप्रभु संस्थाओं ने अपनी भूमि पर ऐसे ड्रोन हमले करने पर साफ-साफ प्रतिबंध लगाये हैं, जैसा कि पाकिस्तान की मजलिस ने किया है। ये ड्रोन हमले इन देशों पर औपचारिक युध्द घोषणा के बिना किये जा रहे हैं। यथार्थ में, पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान के मामले में ये हमले उन देशों पर हो रहे हैं जो अमरीका के ''मित्र देश'' माने जाते हैं। चूंकि अमरीका ने इन देशों पर युध्द की घोषणा नहीं की है, उसके द्वारा किये जा रहे ड्रोन हमले, युध्द आचरण की अंतर्राष्ट्रीय संधि के अंतर्गत नहीं आते, जिसके अंतर्गत नागरिकों की सुरक्षा व ''साथ में होने वाले नुकसान'' पर सीमायें संबंधी नियम हैं।
विशेष निशानों पर ड्रोन हमले ऐसी सुनियोजित हत्यायें हैं जिनमें न कोई आरोप लगता है, न बचाव पक्ष या गवाह होते हैं और न ही कोई मुकदमा चलता है। हाल की रिपोर्टों के अनुसार, अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा सी.आई.ए. द्वारा तैयार की गयी सूची में से निशानों का ''चयन'' करता है और ड्रोन हमलों के ज़रिये उनका खात्मा करने के आदेश देता है। दूसरे शब्दों में, अमरीकी राष्ट्रपति खुद ही न्यायाधीश, जूरी तथा खुद ही सजा देने वाला बन जाता है, जबकि जिन्हें वह सजा देता है वे उसके देश के नागरिक भी नहीं हैं बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हैं। अमरीका दूसरे देशों में ऐसे हस्तक्षेप की सफाई ''मानव अधिकारों की रक्षा'' के नाम पर देता है परन्तु इससे बड़े मानव अधिकारों के हनन की संकल्पना तक मुश्किल है।
ड्रोन विमानों का बढ़ता प्रयोग, जिससे हमलावरों को जोखिम नहीं उठाना पड़ता, जबकि जिन पर हमला हो रहा है उनकी अधिकतम बर्बादी होती है, यह अमरीकी साम्राज्यवाद का तरीका है जिससे उसके कारनामों पर अमरीकी जनमत की जांच-पड़ताल को टाला जा सकता है। चूंकि इसमें अमरीकी सिपाहियों की जान नहीं जाती है, ''नुकसान'' का एहसास वैसा नहीं होता जैसा कि ज़मीनी युध्द से या चालक वाले विमानों के इस्तेमाल से होता है। उनकी अमानवीय सोच है कि इस तरह वे एक अन्यायी युध्द की अपने देश में विरोधता को काबू में रख पायेंगे।
ड्रोन विमानों का उपयोग दिखा रहा है कि अमरीकी साम्राज्यवाद एक नया और पाश्विक तरीके का युध्द तैयार कर रहा है जैसा कि उसने पहले भी कई बार किया है। हम नहीं भुला सकते कि वह अमरीका ही अणुबम गिराने वाली पहली ताकत थी और उसी ने सबसे पहले वियतनाम व अन्य स्थानों में रासायनिक युध्द किये थे। इससे फिर पुष्टि होती है कि अमरीकी साम्राज्यवाद मानव इतिहास में सबसे खूनी और क्रूर सत्ता है।