हमारे दिंडीगुल संवाददाता के अनुसार, नागल नगर के करीब 35,000 हस्तकरघा मज़दूरों के पास कोई नौकरी नहीं है और करीब 7,000 हस्तकरघे रुके पड़े हैं। इसका कारण, साड़ियों को बुनने के लिये सूत और रेशम के धागे जैसे कच्चे माल की कीमतों में बहुत उतार-चढ़ाव, है। यहां की बनी साड़ियां तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और ओडिसा में बेची जाती हैं और इनके व्यापार में सालाना 100 करोड़ रु.
हमारे दिंडीगुल संवाददाता के अनुसार, नागल नगर के करीब 35,000 हस्तकरघा मज़दूरों के पास कोई नौकरी नहीं है और करीब 7,000 हस्तकरघे रुके पड़े हैं। इसका कारण, साड़ियों को बुनने के लिये सूत और रेशम के धागे जैसे कच्चे माल की कीमतों में बहुत उतार-चढ़ाव, है। यहां की बनी साड़ियां तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और ओडिसा में बेची जाती हैं और इनके व्यापार में सालाना 100 करोड़ रु. के वारे न्यारे होते हैं।
पिछले छ: महीनों में, सूत-धागा की कीमत 35,000 रुपये प्रति बेल से बढ़कर 52,000 रुपये प्रति बेल हो गयी है। इसी दौरान कृत्रिम रेशम की कीमत 320 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 480 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है। शुध्द रेशम की कीमत 2,200 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 4,200 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है। जरी की कीमत भी 200 रुपये प्रति रील से बढ़कर 280 रुपये प्रति रील हो गयी है।
व्यापारियों के संगठन के अनुसार, कीमतों में इतने उतार-चढ़ाव का कारण हस्तकरघों के सूत और दूसरे कच्चे माल के निर्यात में बे-लगाम छूट और ऑन-लाईन व्यापार है। व्यापारी बिक्री कीमत तक निर्धारित करना असहज महसूस कर रहे हैं और कीमतों के उतार-चढ़ाव की वजह से ऑर्डर नहीं ले पा रहे हैं। व्यापारियों के अनुसार, हस्तकरघा उद्योग में बीते चार दशकों में यह सबसे बुरा संकट है।